Ganesh Chaturthi Special/ganesha 12 names stotra with meaning स्मरण, गणेश स्तुति

गणपति नमो नमः      

हे वक्रतुण्ड (टेढ़े मुख वाले ),

हे एक दन्त (एक दांत वाले ),

हे कृष्णपिङ्गाक्ष (काली और भूरी आँखों वाले ),

हे गजवक्त्र (हाथी के मुख वाले ),

हे लबोदर (बड़े पेट वाले ),

हे विकट (विकराल ),

हे विघ्नराजेन्द्र (विघ्नों का नाश करके उन पर शासन करने वाले राजाधिराज ),

हे धूम्रवर्ण ( धुएं के रंग वाली ध्वजा वाले )

हे भालचंद्र (मस्तक पर चन्द्रमा धारण करने वाले) 

हे विनायक (न्याय करने वाले ),

हे गणपति (गण के स्वामी ),

हे गजानन (हाथी के समान सूंड वाले ).......

हर हर महादेव प्रिय पाठकों ! 
कैसे है आप लोग, 
आशा करते है आप सभी सकुशल होंगे। 

श्री गणपति मंगल करण हरण तिमिर अज्ञान,हे गणनायक आपका प्रथम करे आवाहन ।

गणपति नमो नमः ,मंगलमय गणपति नमो नमः

इस पोस्ट में आप पाएंगे -

श्री गणेश जी के 12 नाम हिन्दी अर्थ सहित 

नारद पुराण के अनुसार गणेश जी के 12 नामो की महिमा 

श्री गणेश जी के 12 नाम हिन्दी मे 

श्री गणेश भक्त मोरया की कहानी  

श्री गणेश जी के 12 नाम हिन्दी अर्थ सहित 

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Ganesh Chaturthi Special/ganesha 12 names stotra with meaning स्मरण, गणेश स्तुति 

श्री गणेश जी के 12 नाम हिंदी अर्थ सहित  

हे पार्वती नंदन ,हे देवादिदेव श्री गणेश जी हम आपको सिर झुका कर प्रणाम करते है। हम इस धरा पर जब तक है ,तब तक आपका स्मरण करते रहें। 

हे वक्रतुण्ड (टेढ़े मुख वाले ),

हे एक दन्त (एक दांत वाले ),

हे कृष्णपिङ्गाक्ष (काली और भूरी आँखों वाले ),

हे गजवक्त्र (हाथी के मुख वाले ),

हे लबोदर (बड़े पेट वाले ),

हे विकट (विकराल ),

हे विघ्नराजेन्द्र (विघ्नों का नाश करके उन पर शासन करने वाले राजाधिराज ),

हे धूम्रवर्ण ( धुएं के रंग वाली ध्वजा वाले )

हे भालचंद्र (मस्तक पर चन्द्रमा धारण करने वाले) 

हे विनायक (न्याय करने वाले ),

हे गणपति (गण के स्वामी ),

हे गजानन (हाथी के समान सूंड वाले )

मधुराष्टकं स्तोत्र हिंदी अर्थ साहित

नारद पुराण में वर्णित 

हे विनायक ,हे गणपति, हे गजानन --हम आपको सत सत ,कोटि कोटि प्रणाम करते है। लोक में प्रसिद्घ है और नारद पुराण में भी लिखा है -कि जो व्यक्ति आपकी इन बारह नामो द्वारा स्तुति करता है ,याद करता है व तीनो कालों (सुबह ,दोपहर ,शाम )को तन ,मन से आपकी पूजा करता है ,उसे जीवन में फिर किसी प्रकार का भय नहीं रह जाता। वो हमेशा खुश रहता है। उसे आपकी कृपा से सब सिद्धियाँ प्राप्त होती है। 

शुद्ध मन ,वचन से जो आपकी स्तुति करता है ,उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती है। हे कृपालु ,हे दीनदयाल -आप विद्या की इच्छा रखने वाले को विद्या प्रदान करते हो ,जो धन पाने की इच्छा रखते है ,उन्हें धन देते हो ,जो पुत्र पाने की इच्छा रखता है ,उसे पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देते हो। हे भक्तो पर दया करने वाले गौरी पुत्र गणेश ,जो आपसे मुक्ति पाने की अभिलाषा रखता है ,आप उसे मोक्ष प्रदान करते हो। इसमें कोई संदेह नहीं। 

आप सा दीनदयाल तो पूरी पृथ्वी पर कोई नहीं। आप भोनेनाथ के प्यारे व माँ पार्वती की आँखों के दुलारे हो। हे ऋद्धि -सिद्धि से स्वामी -आपकी जय हो ,जय हो ,जय हो। हे शुभ और लाभ जी के पालन हार आपकी जय हो ,जय हो ,जय हो। हे मूषक की सवारी करने वाले नटखट प्रभु आपकी जय हो ,जय हो ,जय हो। हे मोदक प्रिय आपकी जय हो ,जय हो ,जय हो। हे शत्रुओं का नाश करने वाले ,आपकी जय हो ,जय हो ,जय हो। 

हे गजानन ! नारद जी ने कहा है कि -जो इन नामो से आपकी स्तुति करता है ,जप करता है। उसे 6 महीने में मनचाहा फल प्राप्त हो जाता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं है, और जो इसे लिखकर आठ ब्राह्मणो को समर्पण करता है ,उसे आपकी कृपा से सब प्रकार की विद्या प्राप्त हो जाती है।

हे संकटनाशन हम आपसे प्रार्थना करते है कि -- जो भी व्यक्ति चाहे वो स्त्री हो या पुरुष ,बच्चे हो या बूढ़े --  जो भी आपकी इन 12 नामों द्वारा  पूजा करें ,आपकी कृपा उन पर बरसती रहे। वो जीवन के हर प्रकार के सुखो का अनुभव प्रात्प करते रहे। उन्हें कोई दुःख न सताये। आप उनके परिवार की रक्षा ,बिलकुल अपने परिवार की तरह करते रहे। आप अपनी कृपा हमेशा उन पर बनाये रखें। 

वेदसारशिवस्तव स्तोत्रम् (सभी पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव का दिव्य स्तोत्र)

जय श्री गणेश


Ganesh Chaturthi Special/ganesha 12 names stotra with meaning स्मरण, गणेश स्तुति
Ganesh Chaturthi Special/ganesha 12 names stotra with meaning स्मरण, गणेश स्तुति 


श्री गणेश जी के 12 नाम ऊपर स्तुति में दिय गए है। फिर भी आप इन्हे आसानी से पढ़ सकें ,जान सके -इसके  लिए हमने इन्हे अलग से लिखा है। 

पहला - वक्रतुण्ड 

दूसरा - एकदन्त 

तीसरा -कृष्णपिङ्गाक्ष 

चौथा - गजवक्त्र  

पाँचवाँ  - लम्बोदर

छठा - विकट 

सातवाँ -- विघ्नराज 

आठवाँ - धूम्रवर्ण 

नवाँ - भालचंद्र 

दसवाँ  - विनायक 

ग्यारहवाँ- गणपति 

बारहवाँ - गजानन

गणपति भक्त मोरया की कहानी 

गणपति बप्पा जिन्हें हम गणेशजी के नाम से भी जानते हैं। पर क्या दोस्तों आपने कभी सोचा है कि, गणपति जी के साथ ‘मोरया’, शब्द क्यों जुड़ा है। आखिर मोरया कौन है? क्यों कहते हैं कि गणपति बप्पा मोरया?

प्रिय पाठकों,  पिछले 600 सालों से आस्था,भक्ति और श्रद्धा की एक अनोखी यात्रा चली आ रही है। इस यात्रा में करोड़ों भक्त शामिल होते हैं। उनमें से कुछ इस यात्रा के बारे में जानते हैं, तो कुछ नहीं जानते और बिना जाने बस चले जा रहे हैं।

दोस्तों, दरअसल हम बात कर रहे हैं, उन करोड़ों गणेश भक्तों की, जो सालों से गणपति बप्पा मोरया के नारे लगा रहे हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर लोग ये नहीं जानते कि मोरया असल में थे कौन?

हो सकता है मित्रों, कि देश के हजारों गणेश भक्तों की तरह आप भी गणपति बप्पा के मोरया की कहानी ना जानते हों, लेकिन पुणे से 18 किलोमीटर दूर चिंचवाड़ के इस इलाके का बच्चा-बच्चा मोरया की कहानी जानता है। 

मोरया गोसावी 14वीं शताब्दी के वो महान गणपति भक्त हैं जिनकी आस्था की चर्चा उस दौर के पेशवाओं तक पहुंची तो वो भी मोरया गोसावी के दर पर अपना माथा टेकने पहुंचे।उन्हीं के नाम पर बना मोरया गोसावी समाधि मंदिर आज करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है। 

पुणे से करीब 18 किलोमीटर दूर चिंचवाड़ में इस मंदिर की स्थापना खुद मोरया गोसावी ने की थी। इस मंदिर के निर्माण की कहानी बेहद रोचक है।कहते हैं कि मोरया गोसावी हर गणेश चतुर्थी को चिंचवाड़ से पैदल चलकर 95 किलोमीटर दूर मयूरेश्वर मंदिर में भगवान गणेश के दर्शन करने जाते थे। ये सिलसिला उनके बचपन से लेकर 117 साल तक चलता रहा। 

उम्र ज्यादा हो जाने के कारण उन्हें मयूरेश्वर मंदिर तक जाने में काफी परेशानी होने लगी थीं। रास्ते के जंगल में चलते समय उन्हें बहुत सी मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता था। 

चिंचवाड़ देवस्थान के ट्रस्टी विश्राम देव ने बताया कि 1492 की बात है।मोरया गोसावी की 117 साल उम्र थी। एक बार मयूरेश्वर जी यानी गणेशजी जी उनके सपने में आए और उनसे कहा कि जब स्नान करोगे तो मुझे पाओगे। 

मोरया गोसावी जी ने जैसा सपने में देखा था, ठीक वैसा ही हुआ। मोरया गोसावी जब कुंड से नहाकर बाहर निकले तो उनके हाथों में मयूरेश्वर गणपति की छोटी सी मूर्ति थी। उसी मूर्ति को लेकर वो चिंचवाड़ आए और यहां उसे स्थापित कर पूजा-पाठ शुरू कर दी।तभी से धीरे-धीरे चिंचवाड़ मंदिर की लोकप्रियता दूर-दूर तक फैल गई। 

महाराष्ट्र समेत देश के अलग-अलग कोनों से गणेश भक्त यहां बप्पा के दर्शन के लिए आने लगे। इस मंदिर में प्रवेश करते ही आपको कण-कण में भगवान गणेश की छाप दिखेगी।

मान्यता है कि जब मंदिर का ये स्वरूप नहीं था तब भी यहां भक्तों की भारी भीड़ जुटती थी। यहां आने वाले भक्त सिर्फ गणपति बप्पा के दर्शन के लिए नहीं आते थे, बल्कि विनायक के सबसे बड़े भक्त मोरया का आशीर्वाद लेने भी आते थे। 

भक्तों के लिए गणपति और मोरया अब एक ही हो गए थे।पुणे शहर से 15 किलोमीटर दूर बसा चिंचवाड़ गांव मोरया गोसावी के नाम से मशहूर है। मोरया गोसावी मंदिर इस गांव की शान माना जाता है। 

गणेश के सबसे बड़े भक्त बनकर मोरया गोसावी ने गणेश का वरदान पाया और गणेश के नाम के साथ अपना नाम हमेशा के लिए जोड़कर सिद्धि प्राप्त कर ली। 

यही वजह है की चिंचवाड़ गावों में  लोग जब एक दूसरे से मिलते हैं तो वह नमस्ते नहीं बल्कि मोरया कहता है 1375 में मोरया गोसावी का जन्म भी भगवान गणेश के आशीर्वाद से हुआ ।

Faqs

मोरया गोसावी के माता पिता का क्या नाम था ? 

मोरया गोसावी के माता का नाम पार्वती बाई मोरया गोसावी और पिता का नाम वामनभट्ट गोसावी था। उनके माता-पिता कर्नाटक के शाली गांव के रहने वाले थे।  

मोरया गोसावी के गुरु का क्या नाम था ?

मोरया गोसावी के गुरु का नाम योगीराज सिद्ध था। 

मोरया गोसावी ने कितने दिनों तक तपस्या की ?

मोरया गोसावी गणपति जी के परम भक्त थे। उन्होंने गणेश जी के दर्शन पाने के लिए पुरे मन और विश्वास के साथ 42 दिन तक कठोर तपस्या की। वहां के लोगों का कहना कि उनकी भक्ति इतनी प्रबल थी, कि तपस्या से खुश होकर उन्हें गणपति जी ने दर्शन दिए।और फिर वह महाराष्ट्र के पुणे ज़िले में थेऊर चले गए। 

क्या मोरया गोसावी चमत्कारी भी थे ?

हाँ मित्रों ! ऐसा कहा जाता है, कि मोरया गोसावी ने अपने जीवन में कई चमत्कार किए थे। इस पर कई कथाएं प्रचलित है ,उनमे से एक कथा के अनुसार एक बार मोरया गोसावी दूध लेने जा रहे थे, तब उन्होंने एक लड़की देखी ,जो की अंधी थी। वह देख नहीं सकती थी। 

मोरया गोसावी उस लड़की के पास गए और उसे उसी स्थान की मिटटी को चुने के लिए कहा , जिस जगह पर वो खड़े थे, लड़की ने मोरया गोसावी जी की सहायता से उस मिटटी को छुआ और जैसे ही उसने मिटटी को छुआ वैसे ही उस लड़की की आंखों की रौशनी आ गई। 

एक अन्य कथा के अनुसार मोरया गोसावी हर महीने चिंचवड़ से मोरगांव मंदिर में दर्शन करने के लिए पैदल जाते थे। एक बार उन्हें मंदिर पहुंचने में देर हो गई। 

दूर से देखा तो मंदिर में ताला लगा हुआ था। लेकिन जैसे ही उन्होंने मंदिर में प्रवेश किया ,तो मंदिर में लगा ताला अपने आप खुल गया और जिससे उन्हें मंदिर में भगवान मयूरेश्वर की पूजा करने में जरा भी परेशानी नहीं हुई । 

मोरया गोसावी की मृत्यु किस स्थान पर हुई ?

मोरया गोसावी मृत्यु चिंचवड़ में संजीवन स्थान पर हुई। 

मोरया गोसावी के पुत्र का क्या नाम था ?

मोरया गोसावी के पुत्र का नाम चिंतामणि था और बाद में उनके पुत्र चिंतामणि ने क़रीब 17वीं सदी में समाधी के ऊपर गणपति का एक मंदिर बनवाया था। 

कहा जाता है, कि संत तुकाराम, चिंतामणि को देव नाम से संबोधित करते थे और फिर इसके बाद उनके परिवार ने भी देव नाम से पुकारना शुरू कर दिया। 

चिंतामणि महाराज, जो दूसरे देव थे। उनके उत्तराधिकारी नारायण महाराज-प्रथम, चिंतामणि महाराज-द्वितीय, धरणीधर महाराज, नारायण महाराज- द्वितीय और चिंतामणि महाराज-तृतीय बने। चिंचवड़ के मंदिर में मोरया गोसावी के सभी छह वंशजों के मंदिर हैं।

पुणे ज़िले के राजपत्र में एक कहानी है, जिसके अनुसार तीसरे देव (नारायण महाराज प्रथम) के समय मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने देव के लिए खाने में मांस भेजा, जिसे देव ने चमेली के फूलों में तब्दील कर दिया। 

इससे प्रभावित होकर औरंगज़ेब ने देव-परिवार को आठ गांव ( बानेर, चिखली, चिंचवड, मान, चरोली बुदरुक, चिंचोली औऱ भोसारी) भेंट कर दिए। ये गांव आज पुणे शहर के उपनगर हैं।

प्रिय पाठकों !आशा करते है आपको पोस्ट पसंद आई होगी। विश्वज्ञान हमेशा ऐसी ही रियल जानकारीयां आपको मिलती रहेंगी। विश्वज्ञान मेंअगली पोस्ट के साथ फिर मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपना ख्याल रखे ,खुश रहे और औरों को भी खुशियां बांटते रहें। जय श्री गणेशा  

धन्यवाद। 

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