कहानी आखिर भगवान् कहाँ -कहाँ रहते है ?

प्रिय पाठकों ! बहुत समय पहले की बात है ,एक नरोत्तम नाम का ब्राह्मण था। उसके घर में उसके अलावा उसके माँ -बाप थे। एक बार उसने तीर्थ जाने का निश्चय किया ,सो उसने अपने माता -पिता का ख्याल न कर - वह तीर्थयात्रा के लिए निकल गया। उसने अनेक तीर्थो के दर्शन किये तथा अवगाहन किया (डुबकी लगाई ) जिसके प्रताप से उसके गीले वस्त्र अपने आप आजाद हो कर आकाश में उड़ने लगे और सूखने लगे......

हर -हर महादेव!  प्रिय पाठकों 

कैसे है आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे 


दोस्तों ! आज इस कहानी में हम जानेंगे की भगवान कहाँ ?कैसे लोगों के घर रहना पसंद करते है। 

कहानी आखिर भगवान् कहाँ -कहाँ रहते है ?


कहानी आखिर भगवान् कहाँ -कहाँ रहते है ?
कहानी आखिर भगवान् कहाँ -कहाँ रहते है ?

इस पोस्ट में आप पाएंगे -

कहानी 

माता -पिता की सेवा करने वाले के घर 

पतिव्रता के घर 

सत्यवादी वैश्य के घर 

जितेन्द्रिय मित्र के घर  

कहानी 


प्रिय पाठकों ! बहुत समय पहले की बात है ,एक नरोत्तम नाम का ब्राह्मण था। उसके घर में उसके अलावा उसके माँ -बाप थे। एक बार उसने तीर्थ जाने का निश्चय किया ,सो उसने अपने माता -पिता का ख्याल न कर - वह तीर्थयात्रा के लिए निकल गया। उसने अनेक तीर्थो के दर्शन किये तथा अवगाहन किया (डुबकी लगाई ) जिसके प्रताप से उसके गीले वस्त्र अपने आप आजाद हो कर आकाश में उड़ने लगे और सूखने लगे। 


जब उसने देखा की उसके कपड़े अपने आप तेज़ गति से आकाश में उड़ रहे है  तो उसे अपनी तीर्थयात्रा पर अहंकार हो गया। वह सोचने लगा की उसके समान कोई दूसरा पुण्यकर्मा यशस्वी इस संसार में नहीं है। उसे इस कदर अहंकार हो गया की उसने ये बात औरो से कहनी शुरू कर दी। 


एक बार जब वह अपने इस प्रताप की बात दूसरे से कह रहा था ,तभी अचानक एक बगुले ने उसके ऊपर बीट कर दी। यह देखकर नरोत्तम को गुस्सा आ गया और उसने बगुले को शाप दे दिया, जिससे वह बगुला वही जलकर भस्म हो गया। पर आश्चर्य की बात है ! की तभी से उसके कपड़ो का आकाश में उड़ना और सुखना बंद हो गया। 


ये देख नरोत्तम बड़ा उदास और दुःखी हो गया। तभी आकाशवाणी हुई --- ब्राह्मण तुम परम् धार्मिक मूक चांडाल के पास जाओ। वही (धर्म क्या है ) इसका तुम्हे पता चल जाएगा और तुम्हारे मन शान्ति भी मिलेगी। 

दीर्घायुष्य एवं मोक्ष के लिए भगवान् शंकर की आराधना

अब तो नरोत्तम के क्रोध के मारे माथे पर बल पड़ गए ,उसकी भौहें तन गई। वह मूक चांडाल के पास गया। उसने उससे धर्म के बारे में जान्ने के लिए कहा। तो मूक ने कहा की तुम थोड़ी देर प्रतीक्षा करो ,मैं अभी बताता हूँ। 


यह सुनकर वह गुस्से से बड़े जोर से चिल्लाकर बोला --- अरे ! मुझ ब्राह्मण की सेवा से बढ़कर तुम्हारा और क्या काम आ गया ? तुमने मुझे कोई हँसी -खेल समझ रक्खा है क्या ? मूक ने कहा --- ब्राह्मण मैं कोई बगुला नहीं हूँ। तुम्हारा क्रोध सिर्फ बगुले को ही भस्म कर सकता है ,बाकी किसी ओर को नहीं। 


यदि तुम्हे मुझसे कुछ पूछना है तो तुम्हे यहां ठहरकर प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ेगी। यदि तुम्हे यहां ठहरने में परेशानी हो रही हो तो तुम पतिव्रता के घर जाओ। उनके दर्शन से तुम्हारे अभीष्ट की सिद्धि हो सकेगी। ऐसा कहकर वे अपने घर के अंदर चले गए। 


माता पिता की सेवा करने वाले के घर 


नरोत्तम को इससे बड़ा कुतूहल हुआ अथार्त उसके मन में धर्म को जानने की तीव्र इच्छा उत्तपन्न हुई इसलिए वह तुरंत पता लगाने के लिए मूक चांडाल के घर के अंदर घुस गए। वहां मूक बड़ी ही श्रद्धा -भाव से अपने माता -पिता की सेवा में लगा हुआ था। 


उसके इस कठिन पुण्य -प्रताप के कारण भगवान् विष्णु अदृश्य रूप में उसके घर पर विराजमान थे। नरोत्तम ने मूक को आवाज दी और कहा कि -- अरे !मैं यहां आया हूँ ,तुम मुझे यहां आकर धर्म का तत्व समझाते हो या नहीं। 


मूक ने कहा -- मैं अभी अपने माता -पिता की सेवा में लगा हुआ हूँ। पहले मैं इनकी अच्छी तरह से सेवा कर लूँ ,फिर उसके बाद तुम्हारा कार्य करूँगा। तब तक तुम चुपचाप दरवाजे पर जा कर बैठो। मैं पहले तुम्हारा आतिथ्य करना चाहता हूँ। 


पतिव्रता के घर 


तभी भगवान् विष्णु बूढ़े ब्राह्मण का वेश धारण कर ,चांडाल के घर से निकले और नरोत्तम से बोले कि -- चलो ,मैं तुम्हे पतिव्रता का घर दिखला दूँ। नरोत्तम उनके  साथ चल पड़े। 


रास्ते मैं नरोत्तम ने उनसे पुछा --हे ब्राह्मण ! तुम इस चांडाल के घर स्त्रियों में आवृत होकर क्यों रहते हो? भगवान् बोले -- इसका रहस्य तुम पतिव्रता को देखकर ही खुद समझ जाओगे। 


नरोत्तम ने फिर पुछा --- हे ब्राह्मण !यह पतिव्रता आखिर कौन है ? पतिव्रता का लक्षण और उसका महत्व क्या है ? भगवान् ने कहा --- एक पतिव्रता स्त्री अपने दोनों कुलों के सभी पुरषों का उद्धार कर देती है और मरने के बाद उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। 


जब वह दुबारा जन्म लेती है ,तब उसका पति सारी भूमि पर राज करने वाला राजा होता है। सैकड़ो जन्मों तक इसी तरह चलने के बाद अंत में उन दोनों पति -पत्नी को मोक्ष की प्राप्ति होती है। 


जो स्त्री में अपने पुत्र से सौ गुना तथा भय में राजा से सौ गुना अपने पती से प्यार करे और डरे वह स्त्री पतिव्रता कहलाती है। जो काम करने में दासी के समान ,भोजन कराने में माता के समान ,विहार में वेश्या के समान ,विपत्तियों में मंत्री से समान हो उसे पतिव्रता कहते है। वैसी ही यहां एक शुभा नाम की पतिव्रता स्त्री रहती है। तुम उसी से जाकर धर्म के रहस्यों को समझों। 


नरोत्तम को शुभा का घर दिखलाकर भगवान् वहां से चले गए। अब नरोत्तम ने पतिव्रता के घर के दरवाजे पर जाकर आवाज लगाई। आवाज सुन कर शुभा बाहर आई और बोली क्या बात है ? नरोत्तम ने कहा -- मुझे धर्म का रहस्य समझाओ। 


शुभा ने कहा --- हे ब्राह्मण देवता ! अभी मेरे पास समय नहीं है। मुझे इस समय अपने पती की सेवा करनी है। आप हमारा आतिथ्य स्वीकार कर ,थोड़ी देर विश्राम करे। जब मैं अपने पती की सेवा कर लुंगी तो आपके प्रश्नो का उत्तर दूंगी। 


नरोत्तम बोला --- हे कल्याणी ! मुझे आतिथ्य की कोई जरूरत नहीं है। न तो मुझे भूख है और न प्यास। न ही मैं थका हुआ ही हूँ। तुम मुझे साधारण ब्राह्मण समझ कर मेरा उपहास न करो। यदि तुम मेरी बात नहीं मानोगी तो मैं तुम्हे शाप दे दूँगा। 


शुभा ने कहा --- मैं कोई बगुला नहीं हूँ। अगर तुम्हे इतनी ही जल्दी है तो तुम तुलाधार वैश्य के पास चले जाओ। हो सकता है तुम्हे अपने प्रश्नो के उत्तर वहां जल्दी मिल पाए। इतना कह कर शुभा ने दरवाजा बंद कर लिया। 


सत्यवादी वैश्य के घर 


नरोत्तम जब उस ब्राह्मण के घर पहुंचा तो उसने उस ब्राह्मण को दुबारा देखा जो चांडाल के घर से निकला था। यानी भगवान् विष्णु को। तुलाधार व्यापार के काम में फंसा पड़ा था। 


इसलिए नरोत्तम के कहने पर की मुझे धर्म की व्याख्या समझाओ ,उसने मना कर दिया ,कहने लगा कि -- हे ब्राह्मण देवता ! मेरे पास इस वक़्त तो क्या रात तक भी समय नहीं है। 


आप कृपा करके अद्रोहक के पास जाओ। वह आपके द्वारा बगुले की मृत्यु ,वस्त्रो का न उड़ना ,सुखना आदि बातों का सभी रहस्य अच्छे से समझा देगा। 


भगवान् विष्णु फिर से नरोत्तम के साथ चल पड़े तो ,नरोत्तम ने उनसे पुछा --- हे ब्राह्मण! बड़े आश्चर्य की बात है ,यह तुलाधार न तो स्नान करता है ,न पूजा -पाठ करता है और देवर्षि ,पितृ -तर्पण आदि से सर्वथा रहित है। 


इसका शरीर मल  का भण्डार है अथार्त इसके शरीर पर अत्यंत मैल जमा पड़ा है ,इसके सारे कपड़े बेढंगे ,फटे पड़े है-तो भी ये सारी बाते कैसे जानता है ?मैं तो इससे पहले कभी मिला भी नहीं। 


ब्राह्मण वेश धारण किय भगवान् विष्णु बोले --- इसने सत्य और समता से तीनों लोकों को जीत लिया है। इसने मुनिगणों के साथ -साथ देवता और पितरों को भी संतुष्ट कर रक्खा है और इसी प्रभाव के कारण इसे भूत ,वर्तमान और भविष्य के बारे में पता चल जाता है। 


सत्य से बढ़कर कोई दूसरा धर्म नहीं है ,झूठ से बढ़कर कोई दूसरा पाप नहीं है। इसी प्रकार एक समान होना भी महत्ता है। शत्रु ,मित्र और मध्यस्थ (बीच -बचाव कराने वाला )--- इन तीनो में जिसका समान भाव उत्पन्न हो गया हो ,उसके सारे पाप कट जाते है और वह विष्णु के धाम को प्राप्त कर लेता है। 


जिस व्यक्ति में सत्य ,शम ,दम ,धैर्य ,स्थैर्य (मज़बूती ),अनालस्य ,अनाश्चर्य ,निर्लोभिता और समता जैसे गुण है ,उसमे ये सारा संसार ही समाया हुआ है। ऐसा व्यक्ति करोड़ो कुलों का उद्धार कर लेता है। उसके शरीर  में साक्षात भगवान् विराजमान रहते है। वह देवलोक और नरलोक की सभी बातों को जान सकता है। 


नरोत्तम ने कहा --- अच्छा ! तुलाधार के सबकुछ पहले से ही जान लेने के कारण को मैं समझ गया !  लेकिन ये अद्रोहक कौन है ?


जितेन्द्रिय मित्र के घर 


ब्राह्मण रुपी भगवान् विष्णु बोले --- कुछ समय पहले की बात है। एक राजकुमार था ,उसकी स्त्री बड़ी ही सुंदर थी। एक बार उस राजकुमार को अपने पिता की आज्ञा से कहीं बाहर जाना पड़ा। 


जाने से पहले वह अपनी स्त्री के बारे सोचने लगा की उसे कहाँ छोड़ कर जाऊं ? जहां वह पूरी तरह से सुरक्षित रह सकें। अंत में वह अद्रोहक  के घर गया और अपनी स्त्री की रक्षा करने के लिए उससे  प्रार्थना की। 


अद्रोहक ने कहा ---- कि न तो मैं तुम्हारा पिता हूँ। ,न भाई -बंधू ही। मैं तुम्हारा मित्र भी नहीं ,फिर तुम मेरे सामने ऐसा प्रस्ताव क्यों रख रहे हो ?


इस पर राजकुमार ने कहा --- हे महात्मन !इस संसार में आप जैसा धर्मज्ञ और जितेन्द्रिय कोई दूसरा नहीं है। इस बात को मैं भली प्रकार जानता हूँ। यह अब आपके घर ही रहेगी। आप ही ! चाहे जैसे हो, इसकी रक्षा कीजिएगा। ऐसा कहकर वह चला गया। उसके जाने के बाद अद्रोहक ने बड़े धैर्य से उसकी रक्षा की। 


6 महीने के बाद राजकुमार वापस लौट कर आया। उसने लोगों से अपनी स्त्री और अद्रोहक के बारे में पूछताछ की। अधिकतर लोगों ने अद्रोहक की बुराई की। जब अद्रोहक को ये बात पता चली तो उसने लोकनिंदा से बचने के लिए एक बड़ी चिता बनाई और उसमे आग लगा दी ,तब तक  राजकुमार भी वहां पहुंच गया। 


उसने अद्रोहक को रोकने  की बड़ी कोशिश की ,लेकिन उन्होंने राजकुमार की एक न सुनी और जलती आग में  बैठ गए। लेकिन अग्नि ने उनके अंगो तथा उनके वस्त्रो को नहीं जलाया। 


ये देखकर देवताओ ने आकाश से फूल बरसाये और अद्रोहक की प्रशंसा की। जिन लोगो ने अद्रोहक की निंदा की थी उनके मुँह पर अनेक प्रकार के कोढ़ हो गए। देवताओ ने ही उन्हें अग्नि से बाहर निकाला। उनका चरित्र सुनकर मुनियों को भी बड़ी हैरानी हुई। 


देवताओ ने राजकुमार से कहा की तुम अपनी स्त्री को स्वीकार करो। इन अद्रोहक  के समान कोई दूसरा व्यक्ति इस संसार में नहीं हुआ है। देवताओ को प्रणामकर व  क्षमा मांग कर वह अपनी स्त्री को लेकर अपने महल में ले गया।  अद्रोहक को भी दिव्य दृष्टि हो गई। 

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इसके बाद नरोत्तम अद्रोहक के पास पहुंचे और उनका दर्शन किया। अद्रोहक ने उनके  आने का कारण पुछा ,तब उसने कपड़ो के न सूखने ,उड़ने ,बगुले के बीट करने और उसके जलने का रहस्य पुछा अद्रोहक ने उन्हें वैष्णव के पास जाने को कहा। 


वैष्णव ने कहा कि -- अंदर चलकर भगवान् का दर्शन कीजिए। अंदर जाने पर नरोत्तम ने देखा की जो ब्राह्मण उसे चांडाल ,पतिव्रता और तुलाधार के घर पर थे। जो बार -बार उसे रास्ता बतला रहे थे। वो उस मंदिर में विराजमान है। 


वहां उन्होंने नरोत्तम की सभी समस्याओ का समाधान कर दिया और उसे माता -पिता की सेवा करने की आज्ञा दी।  तब से  नरोत्तम ने घर  लौटने के बाद अपने माता -पिता की द्रढ़  भक्ति के साथ सेवा करना आरम्भ कर दिया। 


तो प्रिय पाठको !आपको समझ आ गया होगा की भगवान् कहाँ रहना पसंद करते है। 


जहां माता -पिता की सेवा सत्कार हो ,बोझ न समझा जाता हो,अतिथियों का सत्कार करता हो , जो सच बोलता हो , दुसरो का अच्छा सोचता हो , जो धर्म आदि कारणों में लिप्त हो ,दूसरों की वस्तु पर अपना हक न जमाता हो ,पूजा पाठ चाहे भले ही न करें  पर मन से सदा ही उन ईश्वर का मनन करे। 


माता -पिता की सच्ची सेवा ही सारे तीर्थो का  एकमात्र स्थल है। यदि माता -पिता खुश नहीं है तो समझो की भगवान् भी आपकी किसी सेवा ,पूजा  आदि से खुश नहीं है । 


इसी के साथ आपके जीवन की मंगल कामना करते हुए हम अपनी बात  समाप्त  करते है और भगवान से प्रार्थना करते है की वो आपको हमेशा खुश रक्खे।  


हर -हर महादेव ! प्रिय पाठकों 

धन्यवाद। 




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