लक्ष्मी जी कहाँ निवास करती हैं?

जहां मैं रहूँगी वहां आशा ,श्रद्धा ,धृति ,क्षान्ति ,विजिति ,संतति,क्षमा और जया -ये आठों देवियाँ मेरे साथ निवास करेंगी। मेरे साथ ही ये सभी देवियां भी असुरों का त्याग कर आ गयी है। तुम देवताओ.....

जय श्री गणेशाय नमः 

श्री ,श्री नारायण की कृपा दृष्टि आप पर सदैव बनी रहें। 


इस पोस्ट में आपने जाना -

माँ लक्ष्मीजी का निवास 

माँ लक्ष्मी बिना कुछ भी संभव नहीं 

माँ लक्ष्मी जी का प्रिय स्थान 

माँ लक्ष्मीजी की कथा 

हमारा उद्देश्य 

लक्ष्मीजी का वास 

lukshmi ji kahan rehti hai लक्ष्मीजी कहाँ रहती है
लक्ष्मी जी कहाँ निवास करती हैं?

लक्ष्मीजी का वास वैसे तो समुंद में है। समुन्द्र में शेषनाग जी की शय्या पर विराजमान भगवान् विष्णु के चरणों के पास माँ हमेशा बैठी रहती है। दुसरा उनका वास पाताल में भी है। तीसरा वह कमल के फूल पर भी विराजती है। ये तो माँ के वास्तविक स्थान है जहां माँ खुद विराजमान होती है। पर धरती पर माँ कहाँ ,कैसे और किस स्थान पर रहना पसंद करती है। क्या आप जानते है?

माँ लक्ष्मी बिना कुछ भी संभव नहीं 

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लक्ष्मी जी कहाँ निवास करती हैं?

प्रिय पाठकों !माँ लक्ष्मीजी को धन की देवी कहा जाता है। धन के बिना धरती पर कुछ भी संभव नहीं। जीवन की हर सुविधाओं को पाने के लिए धन का होना अति आवश्यक है। लक्ष्मी जी की कृपा के बिना सुख ,वैभव ,शान्ति ,समृद्धि , मान -सम्मान कुछ भी नहीं है। इसलिए हर कोई चाहता है ,कि माँ उनके घर वास करें। ये तो ईच्छा है हर मनुष्यों की। पर माँ की ईच्छा क्या है ? माँ कहाँ रहना पसंद करती है ? वो किस घर में ,किसके हृदय में रहना पसंद करती है। क्या आप जानते है ?

माँ लक्ष्मी जी का प्रिय स्थान 

दोस्तों माँ उस जगह रहना बहुत पसंद करती है जहाँ लोगों में सदभाव हो ,प्यार हो ,शान्ति हो ,क्लेश न हो ,जिस घर में लोग एक -दुसरे का मान -सम्मान करते हो ,अच्छे वचन बोलते हो , घर में आये अतिथि का सत्कार करते हो। उन्हें देखकर ऊबते न हो।  

प्रिय पाठकों !आइये इस कहानी के जरिए माँ की मन की बातों को और अच्छे से जाने 

माँ लक्ष्मीजी की कथा 

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लक्ष्मी जी कहाँ निवास करती हैं?

एक बार की बात है देवराज इंद्र राजा बलि को ढूँढ़ते -ढूँढ़ते एक जंगल में पहुँचे। बड़े परिश्रम के बाद आखिरकार उन्हें राजा बलि दिखाई दिए। उन्हें देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ की ,राजा बलि झाड़ियों के पीछे छिपकर एक गधे के रूप में जीवन बिता रहे है। 

देवराज इंद्र राजा बलि के पास गए और उनसे इस राज का कारण पूछा। तब उन्होंने इंद्र को तत्वज्ञान का उपदेश दिया और काल की महत्ता बतलाई। दोनों आपस में बात कर ही रहे थे की एक बहुत ही सुंदर व दिव्य अलौकिक स्त्री राजा बलि के शरीर से निकल गई। 

ये देखकर इंद्र को बड़ी हैरानी हुई। उन्होंने राजा बलि से पुछा - की हे दानवराज !तुम्हारे शरीर से यह कौन स्त्री बाहर निकली है? इतनी सुंदर ,तेजपुंज यह स्त्री कौन है ? ये कोई देवी है या कोई आसुरी या फिर कोई मानुषी कौन है ये ? 

एक सामान्य मानव और भक्त में क्या अंतर् है। 

तब राजा बलि ने कहा की --- देवराज इंद्र न तो ये कोई देवी है ,न कोई मानुषी और न ही कोई आसुरी। ये कौन है ,क्या है -ये तुम इसी से पूछो। राजा बलि की बात मानकर इंद्र ने उस स्त्री से पुछा की ---- हे देवी !तुम कौन हो और असुरराज बलि को छोड़कर मेरी और क्यों आ रही हो ? 

इस पर उस दिव्य शक्ति ने उत्तर दिया कि -- देवेंद्र ! मुझे न तो विरोचन (बलि के पिता जी ) जानते थे और न ये उनके पुत्र बलि ही जानते है। पंडित लोग मुझे विधित्सा ,दुस्सहा ,भ्रति ,श्री और लक्ष्मी के नामो से पुकारते है। तुम और बाकी दुसरे देवता भी मुझे इसी नाम से जानते है। 

इस पर इंद्र ने पुछा की --- हे देवी ! आप इतने दिनों तक राजा बलि के पास रहीं और अब मेरे पास आ रही हो। आखिर ऐसा कौन सा दोष आपने इनमे देखा और मुझमे ऐसा क्या गुण देख लिया जो आपने अपना रुख बदल लिया।

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लक्ष्मी जी कहाँ निवास करती हैं?

लक्ष्मी बोली --देवेंद्र मुझे एक स्थान से दुसरे स्थान पर धाता ,विधाता कोई भी नहीं हटा सकता। काल के प्रभाव से ही मैं एक को छोड़ कर दुसरे के पास जाती हूँ। इसलिए तुम बलि का अनादर मत करो। 

इंद्र ने फिर पुछा --हे देवी !आप अब असुरों के पास क्यों नहीं रहना चाहती ?

लक्ष्मी जी बोली -- जहाँ सत्य ,दान ,व्रत ,तप ,पराक्रम तथा धर्म रहते है ,,मैं वहीं रहती हूँ। और ये असुर इस समय इन सब से विमुख है। पहले ये सत्यवादी थे। ब्राह्मणों तथा जितेन्द्रियों के हितेषी थे। 

पर अब ये सिर्फ ब्राह्मणों से नफरत ही नहीं बल्कि अब ये झूठे हाथ घी छूते है ,अभक्ष्य भोजन करते है और धर्म की मर्यादा तोड़कर मनचाहा आचरण करते है। पहले ये उपवास करते थे ,तप और धर्म  आदि के कार्य करते रहते थे। 

हर रोज सूर्य के उगने से पहले उठ जाते थे और रात के आधे भाग में ही सोते थे। दिन में तो ये कभी भी सोने का नाम नहीं लेते थे। दीन ,अनाथ ,दुर्बल ,वृद्ध ,रोगी तथा स्त्रियों पर दया करते थे। 

इतना ही नहीं उनके लिए अन्न ,जल तथा वस्त्रो की व्यवस्था करते थे। जो जीवन से बिलकुल हताश हो चुके थे --उन रोगी ,दुर्बल ,पीड़ित ,भयभीत व व्याकुल लोगो को ढाढ़स बंधाते थे और उनकी सहायता करते थे। 

ये अच्छा खाना बनाकर अकेले ही नहीं खाते थे बल्कि पहले अन्य को खिलाकर बाद में खुद खाते थे। हमेशा सब लोगो को एक समान समझकर उन पर दया करते थे। चतुरता ,सरलता ,उत्साह ,निरहंकारता ,सौहार्द ,क्षमा ,सत्य ,दान ,तप ,पवित्रता ,दया ,कोमल वाणी और मित्रों से अटूट प्रेम --ये सभी गुण इनमे मौजूद थे। 

निद्रा ,आलस्य ,दोषदृष्टि ,अविवेक ,अप्रसन्नता ,असंतोष और कामना --ये अवगुण इन्हे छूते तक नहीं थे। पर अब इनकी सारी बाते ही निराली और विपरीत ही दिखाई पड़ती है। धर्म तो इनमे अब रहा ही नहीं और हमेशा काम -क्रोध के वशीभूत रहते है।

GAREEB HARI|कहानी गरीब हरि

बड़े -बूढ़ो की सभाओ में ये गुणहीन असुर उनमे दोष निकालते और उनकी हंसी उड़ाते रहते है। वृद्धों के आने पर ये लोग अपने आसन पर ही बैठे रहते है ,उठते भी नहीं। स्त्री पति की और पुत्र पिता की आज्ञा नहीं मानता। माता -पिता ,वृद्ध ,आचार्य ,अतिथि और गुरुओं का आदर इनमे से बिलकुल उठ गया है। 

सन्तानो के उचित लालन -पोषण में ध्यान नहीं देते। इनकी रसोइया भी अब पवित्र नहीं रहती। छोटे बालक आशा लगाकर टकटकी बांधे देखते ही रह जाते है। और ये दैत्य लोग खाने की वस्तुएं अकेले ही चट कर जाते है। ये पशुओ को पाल तो लेते है पर उन्हें चारा ,पानी नहीं देते हर दिन इनके घर में क्लेश रहता है।

अब इनके घर वर्णशंकर संताने पैदा होने लगी है। वेदवेत्ता ब्राह्मणो और मूर्खो को ये एक समान आदर या उनका अनादर करते है।ये अपने पूर्वजों द्वारा ब्राह्मणों की दी हुई जागीरें नास्तिकता के कारण छीन लेते है। 

शिष्य अब गुरुओं से सेवा करवाते है। पत्नी पति पर शासन करती है और उनका नाम ले -लेकर पुकारती है। ये सब के सब पापाचारी , नास्तिक और स्वैरी बन गए है। अब इनके बदन पर पहले जैसा तेज नहीं रह गया।  

हे देवराज ! इसलिए अब मैंने ये निश्चय कर लिया है की ,मैं अब इनके घर में नहीं रहूंगी। इसी कारण से मैं दैत्यों को छोड़कर तुम्हारी और आ रही हूँ। तुम मुझे स्वीकार करो। जहां मैं रहूँगी वहां आशा ,श्रद्धा ,धृति ,क्षान्ति ,विजिति ,संतति,क्षमा और जया -ये आठों देवियाँ मेरे साथ निवास करेंगी। मेरे साथ ही ये सभी देवियां भी असुरों का त्याग कर आ गयी है। तुम देवताओ का मन अब धर्म में लग गया है ,इसलिए अब हम सब तुम्हारे यहां ही निवास करेंगी। 

तब इंद्र ने उन लक्ष्मी जी का अभिनंदन किया। सारे देवता भी उनका दर्शन करने के लिए वहां आ गए। दर्शन करने के बाद सभी देवता वापस स्वर्ग को लौट गये। स्वर्ग पहुंचने के बाद नारद जी ने बाकी सभी देवताओं को जो दर्शन करने नहीं जा सके थे,

उन्हें लक्ष्मी जी के आगमन की सारी बातें बताई। बताते समय उनके मन में अपार ख़ुशी ,भक्ति व प्रेम भरा था। तभी सभी ने एक साथ बाजे -गाजे बजाए व पुष्पों की ,अमृत की वर्षा की। तब फिर से सारा  संसार सुखी तथा धर्ममय हो गया। 

आशा है आपको कहानी अच्छी लगी होगी। और माँ के दिल की आवाज़ आप तक पहुंच गई होगी। आप हमसे अपनी राय प्रकट कर सकते है अथार्त जो कुछ पूछना चाहे पूछ सकते है। विश्वज्ञान मे अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकत होगी।तब तक के लिए राधे-राधे, जय श्री कृष्ण ।

हमारा उद्देश्य 

जीवन में सभी लोग खुश रहे ,उन्नति करे। आप तक वही बात पहुंचे जो सत्य हो। हमारा उद्देश्य है -आपको रास्ता दिखाना ,रास्ते से भटकाना नहीं। 

प्रिय पाठकों! इसलिए यदि आप चाहते है की माँ लक्ष्मी जी का वास आपके घर में हो ,तो आप भी इन बातों का ख़ास ख्याल रखें। अपने घर की साफ़ सफाई रखें ,बड़ो का आदर करें ,अतिथियों का सत्कार करे,झूठ न बोले ,दीनों की मदद करे ,भूखे को खाना खिलाये। किसी भी व्यक्ति से घृणा न करें। सबसे प्यार से बोले ,प्यार से रहे ,खुद भी  खुश और औरो को भी खुश रखें। 

ऐसा करने से माँ लक्ष्मी आप पर प्रसन्न होंगी और आपके जीवन में खुशियाँ भर देंगी। 


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