kahaani naard muni ji ke prashn नारद जी के कठिन प्रश्न

ये सिर्फ कहानी नहीं ज्ञानपूर्ण कहानी है। इस कहानी में नारद जी ने कुछ ऐसे प्रश्न पूछे जिनका जवाब पाने के लिए उन्हें पूरे ब्रह्माण्ड में घूमना पड़ा..........

 राधे -राधे प्रिये पाठकों 

इस पोस्ट में आपने पाएंगे --

श्लोक की हिंदी। 

श्लोक का अर्थ। 

नारद जी के प्रश्न। 

नारद जी के प्रश्नो के उत्तर। 

हमारा उद्देश्य। 

kahaani naard muni ji ke prashn  नारद जी के कठिन प्रश्न
kahaani naard muni ji ke prashn  नारद जी के कठिन प्रश्न 

श्लोक की हिंदी। 

द्विहेतु षडधिष्ठानं षडंग च द्विपाकयुक। 

चतुष्प्रकारं त्रिविधं त्रिनाशं दानमुच्यते।।

इस श्लोक की हिंदी है  --दान के दो हेतु ,छः अधिष्ठान ,छः अंग ,चार प्रकार ,तीन भेद और तीन विनाश -साधन है। 

प्रिय पाठकों !ये तो इस श्लोक की हिंदी है ,किन्तु इसका अर्थ क्या है। दोस्तों इसे जान्ने और समझने के लिए आपको आज की ये कहानी बड़े ध्यान से पढ़नी पड़ेगी। 

क्योकि ये सिर्फ कहानी नहीं ज्ञानपूर्ण कहानी है। इस कहानी में नारद जी ने कुछ ऐसे प्रश्न पूछे जिनका जवाब पाने के लिए उन्हें पूरे ब्रह्माण्ड में घूमना पड़ा। 

कहानी (नारद जी के कठिन प्रश्न )

एक बार देवर्षि नारद मही -सागर -संग्राम में स्नान करने गए। उसी समय वहाँ बहुत से ऋषि -मुनि भी आये। नारद जी ने उनसे पुछा --हे महात्माओं !आप लोग कहाँ से आये है ? ऋषि -मुनि बोले कि हम लोग सौराष्ट्र देश में रहते है ,वहाँ के राजा धर्मवर्मा है। एक बार उस राजा ने दान के तत्व को समझाने के लिए बहुत वर्षो तक तपस्या की। तभी आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी थी

द्विहेतु षडधिष्ठानं षडंग च द्विपाकयुक। 

चतुष्प्रकारं त्रिविधं त्रिनाशं दानमुच्यते।।

अथार्त दान के दो हेतु ,छः अधिष्ठान ,छः अंग ,चार प्रकार ,तीन भेद और तीन विनाश -साधन है। आकाश ने यह श्लोक कहा और चुप हो गई। नारद जी ! राजा ने बहुत बार पुछा ,पर आकाशवाणी ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया। श्लोक का कोई अर्थ नहीं बताया। 

तब राजा ने नगर मे ढींढोरा पिटवाकर यह घोषणा करवाई की --जो इस श्लोक की ठीक -ठीक व्याख्या करेगा ,उसे मैं सात लाख गाय ,सात लाख  स्वर्ण -मुद्राएँ तथा सात गांव दूंगा। हम सब लोग वहीँ से आ रहे है। श्लोक का अर्थ किसी को पता नहीं था। इसलिए किसी ने उसकी कोई व्याख्या नहीं की। नारद जी ने जब ये सुना ,तो सुन कर बड़े प्रसन्न हुए। 

उन्होंने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और राजा के पास गए। राजा के पास पहुंचकर उन्होंने कहा कि --हे राजन !मैं श्लोक का अर्थ जानता हूँ। मैं आपको उसका अर्थ बतलाऊंगा पर बदले में जो आपने ढिंढोरा पिटवाया है ,उसको सच कीजिए। 

राजा ने कहा कि -हे ब्राह्मण !ऐसी बात तो बहुत से ब्राह्मण कह चुके है। पर किसी ने भी इसका वास्तविक अर्थ नहीं बतलाया।दान के दो हेतु कौन से है? छः अधिष्ठान कौन से है ? छः अंग कौन से है ? दो फल कौन से है ? चार प्रकार कौन से है ? तीन भेद और तीन विनाश के साधन कौन से है ? इन सातों प्रश्नो के उत्तर यदि आप ठीक -ठीक बतला सके तो मैं आपको सात लाख गाय ,सात लाख सोने की मुद्रायें  और सात गांव अवश्य दूंगा। 


kahaani naard muni ji ke prashn  नारद जी के कठिन प्रश्न
kahaani naard muni ji ke prashn  नारद जी के कठिन प्रश्न 

श्लोक का अर्थ। 

नारद जी ने कहा --श्रद्धा और शक्ति ये दो दान के हेतु है ,क्योकि दान का थोड़ा या ज्यादा होना पुण्य का कारण नहीं होता। सही न्याय से धन का श्रद्धापूर्वक थोड़ा सा भी दान भगवान् को प्रसन्न करने के लिए बहुत है।

 धर्म ,अर्थ ,काम ,लज्जा ,हर्ष और भय --ये दान के छः अधिष्ठान है। 

धर्मयुक्त देय वस्तु ,दाता ,प्रतिग्रहिता ,शुद्धि ,देश और काल --ये दान के छः अंग है। 

इहलोक के प्राणी और परलोक के प्राणी --ये दान के दो फल है। 

ध्रुव ,त्रिक ,काम्य और नैमित्तिक --ये दान के चार प्रकार है। मतलब (कुआं -पोखरा खुदवाना ,बगीचा लगवाना ,आदि जो सबके काम आये वो -ध्रुव है।

 हमेशा दान करते रहना ही- त्रिक है। 

संतान ,विजय ,स्त्री आदि की विषयक इच्छापूर्ति के लिए दिया गया दान --काम्य है। 

ग्रहण ,संक्रान्ति आदि जितने भी पुण्य अवसर है , उन अवसरों पर दिया गया दान --नैमित्तिक कहलाता है। )

उत्तम , मध्यम ,कनिष्ठ --ये तीन दान के भेद है। 

पश्चाताप (दान देने के बाद पछताना ) , कुपात्र (किसी गलत व्यक्ति को दान  देना ) और तीसरा अश्रद्धा यानी (बिना मन के दान देना ) --ये दान के विनाश-साधन है। 

हे राजन ! इस प्रकार जो सात पदों में बंधा हुआ दान का महात्म्य है। वह मैंने आपको बता दिया। राजा धर्मवर्मा सुन कर चकित रह गए। उन्होंने नारद जी से कहा की हे मुने ! आप कौन है ? आप कोई साधारण मनुष्य तो हो नहीं सकते। मैं आपके चरणों में सिर झुकाता हूँ। कृपया आप अपना परिचय दीजिए। 

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नारद जी ने कहा --हे राजन ! मैं देवर्षि नारद हूँ। अब तुम जो भूमि मुझे दे रहे हो ,उसे मैं धरोहर के रूप में आपके पास छोड़ रहा हूँ। जरूरत पड़ने पर ले लूंगा। ऐसा कहकर वे रैवतक पर्वत पर चले गए। वहां पहुंच कर सोचने लगे की मैंने भूमि तो पा ली ,पर अब इस भूमि के योग्य ब्राह्मण कहाँ मिले। जिसे मैं ये भूमि दे सकूँ। 


kahaani naard muni ji ke prashn  नारद जी के कठिन प्रश्न
kahaani naard muni ji ke prashn  नारद जी के कठिन प्रश्न 

नारद जी के प्रश्न। 

ये सोच कर नारद जी ने 12 प्रश्न बनाये और उन्हें गाते हुए यानी बोलते हुए वे ऋषियों के आश्रमों पर विचरने लगे। उनके प्रश्न थे--

1 - मातृका क्या और कितनी है ?

2 - पच्चीस वस्तुओ से बना अद्भुत ग्रह क्या है ?

3 - अनेक रूप वाली स्त्री को एक रूप वाली बनाने की कला का ज्ञान किसे है ?

4 - संसार में विचित्र कथा की रचना करना कौन जानता है ?

5 - समुन्द्र में बड़ा ग्राह कौन है ?

6 - आठ प्रकार के ब्राह्मण कौन है ?

7 - चार युगों के आरम्भ के दिन कौन से है ?

8 -चौदह मन्वन्तरों का आरम्भ किस दिन हुआ ?

9 - सूर्य नारायण अपने रथ पर सबसे पहले किस दिन बैठे ?

10 - काले सांप की तरह प्राणियों का उत्तेजक कौन है ?

11 - इस घोर संसार में सबसे बड़ा चतुर कौन है ?और 

12 - दो मार्ग कौन से है ?


kahaani naard muni ji ke prashn  नारद जी के कठिन प्रश्न
kahaani naard muni ji ke prashn  नारद जी के कठिन प्रश्न 

इन बारह प्रश्नो को पूछते हुए वे सारी पृथ्वी पर घूम आये ,पर कहीं भी उन्हें अपने प्रश्नो का उत्तर नहीं मिला। उचित ब्राह्मण न मिलने के कारण नारद जी बड़े दुःखी हुए और हिमालय पर्वत पर अकेले में बैठ कर सोचने लगे। सोचते -सोचते अचानक उन्हें याद आया कि मैं कलाप ग्राम में तो गया ही नहीं। 

वहाँ 84 हजार विद्वान् ब्राह्मण प्रतिदिन तपस्या करते रहते है। सूर्य ,चंद्र ,वंश और सद ब्राह्मणों के पुनः प्रवर्तक देवापि और मरुत भी वहीं रहते है। ऐसा मन में विचार करके वे कलाप ग्राम पहुंचे। वहाँ उन्होंने बड़े तेजस्वी ,विद्वान् और कर्मनिष्ठ ब्राह्मणों को देखा। उन्हें देख कर नारदजी बड़े प्रसन्न हुए। 

वो ब्राह्मण जहाँ बैठकर शास्त्रों की चर्चा कर रहे थे ,वहाँ जाकर नारद जी ने कहा --आप लोग ये क्या काँव -काँव कर रहे है। यदि आपमें कुछ समझने की शक्ति है ,तो मेरे इन कठिन प्रश्नो के उत्तर दीजिए। 


kahaani naard muni ji ke prashn  नारद जी के कठिन प्रश्न
kahaani naard muni ji ke prashn  नारद जी के कठिन प्रश्न 

ये सुनकर ब्राह्मण अचम्भे में पड़ गए और बोले (वाह अति सुंदर ) जरा सुनाओ तो अपने प्रश्नो को। तब नारद जी ने अपने 12 प्रश्नो को दोहरा दिया। प्रश्न सुनकर वे मुनि मुस्कुराने लगे और बोले कि -- मुने ! ये आपके प्रश्न तो बालकों जैसे है। यहां आप जिसे सबसे ज्यादा छोटा और मुर्ख समझते हैं ,आप उसी से पूछिये। 

अब तो नारद जी बड़े असमंजस में पड़ गए। उन्होंने सोचा की किससे पूँछू। यहां तो सभी विद्वान् है। लेकिन नारदजी को भूमि दान के लिए एक उचित ब्राह्मण की जरूरत थी। सो उन्होंने वहाँ खेलते एक बालक जिसका नाम सुतनु था ,उससे पुछा।

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जब नारद जी ने उस बालक के आगे अपने प्रश्नो को दोहराया तो बालक ने कहा --क्या आप बच्चो जैसे प्रश्न पूछ रहे है। इन का उत्तर देने का मेरा जरा भी मन नहीं है ,किन्तु आपने मुझे यहाँ सबसे छोटा और मुर्ख समझा है ,इसलिए मैं आपके प्रश्नो का जवाब जरूर दूंगा। 

नारद जी के प्रश्नो के उत्तर। 

1 - अ ,आ ,उ ,ऊ आदि जीतने भी 52 अक्षर है। वे ही मातृका है। 

2 - 25 तत्वों से बना हुआअद्भुत ग्रह -यह शरीर ही है। 

3 - अनेक रूपों वाली स्त्री -बुद्धि है। जब इसके साथ धर्म का संयोग होता है ,तब यह एकरूपा हो जाती है।

4 - विचित्र रचनायुक्त कथन को पंडित ही कहते है अथार्त संसार में विचित्र कथा की रचना पंडित करता है।  

5 - समुन्द्र का सबसे बड़ा ग्राह है -संसार में मौजूद अतिलोभ। 

6 - मात्र ,ब्राह्मण ,क्षोत्रिय ,अनूचान ,भ्रूण ,ऋषिकल्प ,ऋषि और मुनि -ये आठ प्रकार के ब्राह्मण है। 

मात्र - जो केवल ब्राह्मण कुल में ही उत्पन्न हुए है और संस्कार आदि से हीन है। वह मात्र कहलाता है। 

ब्राह्मण -कामना रहित होकर सदाचारी वेदोक्त कर्मकारी ब्राह्मण को ही ब्राह्मण कहते है।

क्षोत्रिय - अंगो सहित वेदों का पूर्णज्ञान प्राप्त कर षट्कर्म में परायण ब्राह्मण को ही क्षोत्रिय कहते है। 

अनूचान - जिसे वेद का पूरा ज्ञान ,शुद्ध आत्मा , केवल शिष्यों को ही पढ़ने वाला ब्राह्मण ही अनूचान कहलाता है। 

भ्रृण - यज्ञावशिष्टभोजी पूर्वोक्त अनूचान ही भ्रृण है। 

ऋषिकल्प - लौकिक -वैदिक समस्त ज्ञान से परिपूर्ण जितेन्द्रीय ब्राह्मण ही ऋषिकल्प है। 

ऋषि - ऊर्ध्वरेता ,निःसंशय ,शापानुग्रह -सक्षम ,सत्यसंध ब्राह्मण को ही ऋषि कहते है। 

मुनि - सदा ध्यानस्थ ,मृतिका और स्वर्णसे तुल्य दृष्टि वाला ब्राह्मण ही मुनि है। अब सातवे प्रश्न का उत्तर सुनिय -

7 - कार्तिक शुक्ल पक्ष को कृतयुग का ,वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को त्रेतायुग का ,माघ कृष्ण अमावस्या को द्वापरयुग का और भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी को कलियुग का आरम्भ हुआ। उक्त तिथियों को ही युगादि कहा जाता है। 

8 आश्विन शुक्ल नवमी ,कार्तिक शुक्ल द्वादशी ,चैत्र शुक्ल तृतीया ,भादप्रद शुक्ल तृतीया ,फाल्गुन कृष्ण अमावस्या ,पौष शुक्ल एकादशी ,आषाढ़ शुक्ल दशमी ,माघ शुक्ल सप्तमी ,श्रावण कृष्ण अष्टमी ,आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा ,कार्तिक पूर्णिमा ,फाल्गुनी पूर्णिमा ,चैत्री पूर्णिमा और ज्येष्ठ की पूर्णिमा ये स्वायम्भुव आदि चौदह मनुओं की आदि तिथियां है। 

9 - माघ शुक्ल सप्तमी को सबसे पहले भगवान् सूर्य रथ पर सवार हुए थे। 

10 -  सदा मांगने वाला ही उद्वेजक है। 

11 - पूर्ण चतुर --दक्ष --वही है ,जो मनुष्य योनि का मूल्य समझकर इसमें अपना पूर्ण निःश्रेयसादि सिद्ध कर ले। 

12 - अर्चि और धूम --ये दो मार्ग है। अर्चि मार्ग में जाने वाले लोगों को मोक्ष मिलता है और धूम मार्ग से जाने वालों को पुनः लौटना पड़ता है। 

इस प्रकार उस बालक ने 12 प्रश्नो के उत्तर दिये ,जिसे सुनकर नारद जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा से मिली भूमि सुतनु को दे दी। 

हमारा उद्देश्य। 

प्रिय पाठकों !हमारा उदेश्य है आप तक अच्छी बाते ,ज्ञान की बातें पहुँचाना। जिसे आप ध्यान पूर्वक पढ़े और अपने बच्चों को भी सुनाये।  जिससे आपके बच्चे भी किताबी पढ़ाई के अलावा सामाजिक ,वास्तविक ज्ञान को प्राप्त कर सके और अपने अस्तित्व को पहचान सके। क्योकि आजकल के बच्चे अपनी असली राह से विमुख होते जा रहे है। दुनिया की चकाचोंध में खोते जा रहे है। 

आपको कहानी कैसी लगी। आशा करते है की आपको कहानी पसंद आई होगी। vishvagyaan me अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी, तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखे। 

राधे -राधे! प्रिय पाठकों 

यह भी पड़े : दान (स्वेत का उद्धार )

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