A real story bhakt piplaad | दूसरों का अमंगल चाहने में ,अपना अमंगल पहले होता है

 श्री गणेशाय नमः 

A real story bhakt piplaad |  दूसरों का अमंगल चाहने में ,अपना अमंगल पहले होता है
A real story bhakt piplaad |  दूसरों का अमंगल चाहने में ,अपना अमंगल पहले होता है 

इस कहानी में पिप्पलाद देवताओं का अमंगल चाहते थे। इसलिए उन्होंने भगवान शिव से कहा की - वो अपना तीसरा  नेत्र खोले और देवताओं को भस्म कर दे। लेकिन जब भगवान का रूद्र रूप पिप्पलाद ने देखा तो वह स्वयं ही जलने लगा। 

यहां  तो भगवान् शिव थे ,जिन्होंने पिप्पलाद को समझाया और उनकी आँखे खोल उन्हें सही मार्ग दिखाया। लेकिन यहां इस संसार में कोई भगवान् शिव नहीं आएंगे क्योकि यहां पिप्पलाद के जैसे किसी में इतनी तपस्या करने की सामर्थ नहीं है। 

झूठ ,कपट ,लालच आदि बुरी आदते मनुष्यों के हृदय में भरी पड़ी है। साफ ,शुद्ध मन के व्यक्ति बहुत कम देखने को मिलते है। इसलिए यहां धरती पर तो सिर्फ  भगवान् शिव के दिए उपदेशो से ही सीखना पड़ेगा। 

प्रिय पाठकों ! आज की इस कहानी को पढ़ने के बाद आपकी क्या राय होगी । आपको कहानी कैसी लगी। आप चाहे तो हमसे अपनी बात शेयर कर सकते है। 

इस पोस्ट में आप पाएंगे -

कहानी 
देवराज इंद्र व देवताओं का अनुग्रह 
महर्षि का स्वभाव 
महर्षि का देह त्याग 
पिप्पलाद की तपस्या 
भगवान् शिव का पिप्पलाद को समझाना 
पिप्पलाद को रूद्र रूप का दर्शन 
भगवान् शिव का उपदेश 
हमारा अनुरोध 

कहानी 

देवराज इंद्र व देवताओं का अनुग्रह 


A real story bhakt piplaad |  दूसरों का अमंगल चाहने में ,अपना अमंगल पहले होता है
A real story bhakt piplaad |  दूसरों का अमंगल चाहने में ,अपना अमंगल पहले होता है 


एक बार की बात है असुर वृत्रासुर ने स्वर्ग पर अपना हक जमाने के उद्देश्य से सभी देवताओं व देवराज इंद्र को इतना परेशान किया की उन्हें स्वर्ग छोड़ कर भागना पड़ा। वृत्रासुर के अजयेप्राय होने के कारण उसे कोई देवता नहीं हरा सका। इसलिए सभी देवता इंद्र सहित महर्षि दधीचि के पास मदद मांगने के लिए गए। उन्होंने महर्षि दधीचि से कहा की हमे वृत्रासुर से आप ही बचा सकते है।

महर्षि का स्वभाव 

महर्षि बड़े ही दयालु थे। उन्होंने कहा की बताइये मैं क्या कर सकता हूँ। इंद्रदेव बोले की हे महर्षि !कार्य तो बहुत ही कठिन है-परआप के सिवा संकट मिटेगा नहीं। महर्षि बोले निःसंकोच होकर बोलो। यदि सम्भव होगा तो मैं अवश्य मदद करूंगा। 

इंद्रदेव बोले की असुर वृत्रासुर अजयेप्राय है (अमर है ) उसे वरदान प्राप्त है की वो किसी के मारने से नहीं मरेगा। कोई अस्त्र -शास्त्र उसे मारने के लिए नहीं बना। वो सिर्फ आपकी अस्थियों से बने शस्त्र से मर सकता है और किसी अस्त्र से नहीं। 

कृपया आप स्वर्ग और सभी देवताओ के हित के लिए हमे अपनी अस्थियों से बना अस्त्र प्रदान करें। हम सदा आपके आभारी रहेंगे।


महर्षि का देह त्याग 

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दयालु स्वभाव के होने के कारण महर्षि ने देवताओ तथा देवराज इंद्र की प्रार्थना स्वीकार कर ली। जिसे सुन देवता खुश हो गए। प्रार्थना स्वीकार कर महर्षि दधीचि ने अपने देह का त्याग किया। विश्वकर्मा ने उनकी अस्थियाँ लेकर एक वज्र बनाया। 

उसी वज्र से इंद्र ने अजेयप्राय वृत्रासुर को मारा और स्वर्ग पर फिर से अपना अधिकार स्थापित किया। माँ सुवर्चा और महर्षि दधीचि के पुत्र पिप्पलाद को जब अपने पिता दधीचि के घातक (नुक्सान पहुंचाने वाले ,हत्यारे ) देवताओ की करनी का पता चला तो उन्हें देवताओ पर बड़ा क्रोध आया। 

उन्होंने अपनी माँ से कहा कि -अपने स्वार्थ के लिए देवताओं ने मेरे तपस्वी पिता को आत्महत्या करने में मजबूर कर दिया। उन्हें हड्डियाँ मांगने में ज़रा भी लज्जा नहीं आई।
 
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पिप्पलाद की तपस्या 

पिप्पलाद के मन में प्रतिशोध (बदले ) की भावना जल उठी। उसने सभी देवताओं को नष्ट करने का संकल्प किया और इसी उद्देश्य से तपस्या करनी आरम्भ कर दी। 

पवित्र नदी गौतमी तट के किनारे बैठकर उन्होंने तपस्या शुरू की। तपस्या करते -करते उन्हें बहुत वर्ष बीत गये । उसकी कठिन तपस्या से भगवान् शंकर प्रसन्न हुए। उन्होंने पिप्पलाद को दर्शन देकर कहा -बेटा पिप्पलाद आँखे खोलो। मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ। मांगो तुम क्या वर मांगते हो। 

पिप्पलाद ने भगवान् शिव को साष्टांग प्रणाम किया और फिर बोले -हे प्रलयंकर,हे प्रभु !यदि आप सचमुच मुझ पर प्रसन्न है ,तो आप अपना तीसरा नेत्र खोले और स्वार्थी देवताओं को भस्म कर दें। 

भगवान् शिव का पिप्पलाद को समझाना 

भगवान् शिव ने भक्त पिप्पलाद को समझाते हुए कहा कि - पुत्र !मेरे रूद्र रूप का तेज तुम सहन नहीं कर सकते थे ,इसलिए मैं तुम्हारे सामने सौम्य रूप में प्रकट हुआ। मेरे तीसरे नेत्र के तेज को आवाज न  दो अथार्त न खुलने दो। क्योकि यदि ये खुली तो सारा संसार भस्म हो जाएगा। 

पिप्पलाद ने कहा -- हे प्रभु ! देवताओं और उनके द्वारा चलने वाले इस संसार का मुझे जरा भी मोह नहीं है। आप देवताओं को भस्म कर दें ,फिर चाहे भले ही ये पूरा विश्व भी उनके साथ ही क्यों न भस्म हो जाए। 

इस पर भगवान् शिव मुस्कुराये और कहा कि - पुत्र तुम्हे एक अवसर और दे रहा हूँ। तुम अपने अन्तःकरण (हृदय )से मेरे रूद्र रूप का दर्शन करो। 

पिप्पलाद को रूद्र रूप का दर्शन 


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A real story bhakt piplaad |  दूसरों का अमंगल चाहने में ,अपना अमंगल पहले होता है 

पिप्पलाद ने अपनी आँखे बंद की और अपने हृदय में कपालमाली ,विरुपाक्ष ,त्रिलोचन ,अहिभूषण भगवान् रूद्र का दर्शन किया। सिर्फ उस ज्वालामय प्रचंड स्वरुप के हृदय में मौजूद होने से ही पिप्पलाद को लगा की उनका रोम -रोम भस्म हुआ जा रहा है। 

उनका पूरा शरीर थर -थर काँपने लगा। उन्हें लगा की वो कुछ ही देर में बेहोश हो जाएंगे। करुण वाणी से उन्होने फिर भगवान् शंकर को पुकारा ,तो उनके हृदय से प्रचंड मूर्ति गायब हो गई। पिप्पलाद नेआँखे खोली तो देखा की शशांकशेखर प्रभु मुस्कुराते हुए उनके सामने खड़े है। 

पिप्पलाद ने दुखी होकर कहा कि -मैंने देवताओं को भस्म करने की प्रार्थना की थी और आपने मुझे ही भस्म करना प्रारम्भ कर दिया। 

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A real story bhakt piplaad |  दूसरों का अमंगल चाहने में ,अपना अमंगल पहले होता है
A real story bhakt piplaad | दूसरों का अमंगल चाहने में ,अपना अमंगल पहले होता है 

भगवान् शिव का उपदेश 

भगवान् शिव ने पिप्पलाद को प्यार से समझाते हुए कहा की -विनाश किसी एक स्थान से ही शुरू होकर चारो और फैलता है और ये हमेशा वही से शुरू होता है जहां इसे बुलाया गया हो। तुम्हारे हाथ के देवता इंद्र है ,नेत्र के देवता सूर्य ,नासिका (नाक ) के अश्विनीकुमार ,मन के चन्द्रमा। 

इसी प्रकार प्रत्येक इन्द्रिय तथा अंग के अधिदेवताओं को नष्ट करने से शरीर कैसे रहेगा।  इसलिए बेटा !इसे समझो कि दूसरों का अमंगल चाहने पर पहले स्वयं अपना ही  अमंगल होता है। 

तुम्हारे पिता महर्षि दधीचि ने दूसरों के कल्याण के लिए अपनी हड्डियां तक दे दी। उनके इस त्याग ने ,बलिदान ने उन्हें अमर कर दिया। वे दिव्य धाम में अनंतकाल तक निवास करेंगे। 

तुम उनके पुत्र हो इसलिए तुम्हे भी अपने पिता की तरह सबके मंगल की कामना करनी चाहिए। दूसरों का भला करना चाहिए। क्रोध विनाश की जड़ है। इसलिए इसे मन पर हावी न होने दो। 

पिप्पलाद को अपने किये पर पछतावा हुआ। उन्होंने भगवान् शिव से माफ़ी मांगी और उनके चरणों में मस्तक झुका दिया। 

इस प्रकार भगवान् शिव पिप्पलाद के मन में जलती हुई ज्वाला को शांत करके अपने धाम को लौट गए 

हमारा अनुरोध 

प्रिय पाठकों! कहानी पढ़ कर आप ये अच्छे से समझ गए होंगे की जीवन में कभी भी दूसरों के विनाश करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। दूसरो को दुःख देना अच्छी बात नहीं। बहुत से लोग होते है जो दूसरों को दुखी अवस्था में देख कर बहुत खुश होते है। 

लेकिन वो इस बात को भूल जाते है की आज दूसरो की जिस अवस्था पर उन्हें हँसी आ रही है ,ख़ुशी मिल रही है ,कल उन्हें भी इस दौर से गुजरना  पड़ेगा। क्योकि जो जैसा करेगा ,वैसा ही भरेगा। ये विधि का विधान है। आज के किये अच्छे कर्मो का फल भविष्य में अच्छा ही मिलेगा। 

इसमें कोई संदेह नहीं। मनुष्य के अच्छे और बुरे कर्मो से ही उसकी पहचान होती है। कर्म अच्छे होंगे तो जीवन में मान -सम्मान और यश प्राप्त होता है ,वही अगर कर्म बुरे हुए तो जीवन में सिर्फ अपयश मिलता है। कोई भी ऐसे व्यक्तियों से सम्बन्ध नहीं रखता।  

शिव स्वरुप का महातम्य (भाग 1 )

यहां इस कहानी में तो भगवान् शिव थे ,जिन्होंने पिप्पलाद को समझाया और उनकी आँखे खोल उन्हें सही मार्ग दिखाया। लेकिन यहां इस संसार में कोई भगवान् शिव नहीं आएंगे क्योकि यहां किसी में इतनी तपस्या करने की सामर्थ नहीं है। 

झूठ ,कपट ,लालच आदि बुरी आदते मनुष्यों के हृदय में भरी पड़ी है। साफ ,शुद्ध मन के व्यक्ति बहुत कम देखने को मिलते है। इसलिए यहां धरती पर तो सिर्फ  भगवान् शिव के दिए उपदेशो से ही सीखना पड़ेगा। 

इसी के साथ अपनी वाणी को विराम देते हुए हम अपनी बात समाप्त करते है। और प्रार्थना करते है की भोले नाथ आपके जीवन को मंगलमय बनाये। 

धन्यवाद 

हर -हर महादेव 

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