डाकू बना संत

ज़िद मत कर। आज तू जो ये धन देने आया है ,कल फिर इसी धन के लिए तू निरपराध और असहाय लोगो को लूटेगा ,उनका खून बहायेगा। अरे दुष्ट ! ,निर्दय ,अत्याचारी तू यहां से चला जा.....

 जय श्री हरि 

प्रिय पाठको ! हर -हर महादेव 

इस पोस्ट में आप पाएंगे -

कहानी 

निर्देश 

कहानी 

दोस्तों ! बहुत समय पहले की बात है ,बड़ोदा के शेडखी नामक गाँव में एक रविसाहेब नाम के संत रहते थे। एक बार उत्तर गुजरात के कुछ श्रद्धालु भजन गाते हुए शेडखी की और जा रहे थे। तभी रास्ते में उन्हें कबाजी नाम का डाकू मिला। 

लोग बिना डरे ,घबराये बस अपने भजनो में ही मस्त थे। उनके मस्त भजनो का डाकू पर बड़ा ही प्रभाव पड़ा और मन में भी रविसाहेब के दर्शन करने की अभिलाषा जाग उठी। तो वह भी भेष बदल कर उन लोगो के साथ भजन सुनते -सुनते शेडखी पहुंचा। 


डाकू बना संत
डाकू बना संत 

रात का समय था। संत रविदास जी के धाम में खूब रौनक थी ,चारों ओर बस भजनों की गूंज थी। डाकू ने अपने जीवन में रविसाहेब और भजन कीर्तन को पहली बार देखा था। वह रात भर वही रुका ,भजन सुनता रहा। उसका मन बड़ा प्रसन्न था। रविसाहेब ने दूर से ही डाकू को पहचान लिया पर उसे कुछ कहा नहीं। 

डाकू कबाजी वहां का सात्विक प्रभाव लेकर अपने घर लौट आया। कुछ दिनों बाद एक दिन एक नवविवाहित वरकन्या दोनों संत रविसाहेब  जी का आशीर्वाद पाने के लिए उनके धाम शेडखी के लिए निकले। 

अनेकों सेहले बंधे घरों की बरात सहित निर्दयता से लूट लेने वाले डाकू ने उनको देख लिया। पर जब उन्होंने रविसाहेब का नाम लिया तो डाकू ने केवल उनको छोड़ा ही नहीं अपितु उसके मन में एक ऐसी गहरी चोट लगी कि उसके मन में वातसल्य भाव उतपन्न हो गया। 

डाकू के कोई औलाद न होने के कारण जब उसने उन दोनों को देखा तो उसे लगा जैसे की ये मेरे ही बच्चे है। उसे ऐसा प्रतीत हुआ की जैसे मेरा ही पुत्र विवाह करके शेडखी के संत जी के घर जा रहे है। तब डाकू ने उनको एक सोने की मोहरों से भरी थैली दी और कहा की -यह रविसाहेब की सेवा में दे देना और उनसे मेरा प्रणाम कहना। 

दोनों नवविवाहित जोड़ा संत जी के पास पहुंचे और थैली उनके चरणों में रखकर बोले कि -कबाजी डाकू ने आपके चरणों में प्रणाम भेजा है। संत ने वो सोने की मोहरे नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद के रूप में दे दी और वे दोनों संत का आशीर्वाद  पाकर अपने घर लौट गए। 

ठीक ऐसे ही एक दिन बहुत बड़ी महान संत जनो की मंडली पहाड़ी रास्तों से होती हुई रविसाहेब के दर्शन के लिए शेडखी जा रही थी। जब डाकू ने उन लोगो को शेडखी जाते देखा तो उसने सोचा कि रविसाहेब तो संत है ,वे इतने सारे संतो का स्वागत -सत्कार भला किस प्रकार करेंगे ? 

क्यों न मेरे पास जो इतना सारा धन इकट्ठा पड़ा है ,मैं उसे रविसाहेब को दे दूँ। ये सोच कर डाकू कबाजी ने धन की एक गठरी बाँधी और शेडखी जाकर उसे संत रविसाहेब के चरणों में रख दी और उनसे प्रार्थना की कि -हे गुरुदेव आप इन संत जनो के सत्कार के लिए मेरी ओर से ये धन स्वीकार करें। 

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संत रविसाहेब जानते थे की कबाजी ने ये सारा धन किसी न किसी का रक्त बहाकर ही इकट्ठा किया है ,इसलिए संत ने कबाजी की रक्त भरी धनराशि को लेने से इंकार कर दिया और उसे बहुत तेज़ डांटकर कहा की - 

तू तो बड़ा ही निर्दयी  है ,तूने न जाने कितने ही असहाय लोगो का रक्त बहाया ,उन्हें लूटा और तू ये चाहता की इस धन से मैं इन महान संत जनों का स्वागत करूँ। मैं ऐसा नहीं कर सकता इसलिए तू अपनी इस पाप की कमाई को लेकर यहां से चला जा,

ज़िद मत कर। आज तू जो ये धन देने आया है ,कल फिर इसी धन के लिए तू निरपराध और असहाय लोगो को लूटेगा ,उनका खून बहायेगा। अरे दुष्ट ! ,निर्दय ,अत्याचारी तू यहां से चला जा। 

संत के मुख से गुस्से से निकले अपमान जनक शब्दों को कबाजी ने शान्ति से सुना तथा प्यार से शपथ लेते हुए कहा कि - महाराज !मैं आज से ,अभी से इस डकैती के काम  हमेशा -हमेशा के लिए छोड़ता हूँ। ये मेरे लिए हराम है। 

मैं कभी भी जीवन में इस काम को नहीं करूंगा। ऐसा कहकर कबाजी ने अपने सारे हथियार -तलवार ,ढाल ,बाण ,तरकस आदि सब संत के चरणों में रख दिये। और संत के चरणों में दंडवत प्रणाम किया। संत ने उसे उठाया और उठाकर अपने गले से लगाया। 

उस दिन से वह क्रूर डाकू कबाजी एक साधू की तरह निर्मल आत्मा ,शुद्ध आचरण वाला भक्त बन गयाऔर तभी से पहाड़ी रास्तों में उसका स्थान संत जनो का आतिथ्य धाम बन गया। 

आने जाने वाले सभी लोग जब थक जाते तो कबाजी के धाम में रुकते आराम करते और फिर संत रविसाहेब के दर्शन करने के लिए जाते। 

निर्देश

प्रिय पाठकों  ! देखा आपने कैसे एक डाकू संत बना। जब एक डाकू संत बन सकता है। अपने बुरे कामो को हमेशा के लिए छोड़ सकता है तो ,फिर हम ,आप क्यों नहीं। दोस्तों ! जीवन में कभी भी किसी को नहीं सताना चाहिए। बिना दोष के किसी मारना ,खून बहाना ये बिलकुल गलत है। हर एक व्यक्ति के जीने का तरीका अलग है ,इसलिए जो जैसा चाहता है ,उसे वैसे ही जीने दे। उनके जीवन में हक्ष्ताशेप न करे।  

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अच्छे संतो का ,लोगो का संग रखे अथार्त अच्छे संत महात्माओ और अच्छे समझदार ,अच्छी संगति वाले मनुष्यों के साथ रहे। क्योकि संगति का जीवन में बहुत असर पड़ता है। जैसे लोगो के साथ रहोगे आपका स्वाभाव धीरे -धीरे उसी  व्यक्ति के जैसा हो जाएगा। 

जैसे यदि आप संत महात्माओ के साथ रहते है तो आप की बुद्धि हमेशा निर्मल रहेगी ,आप कोई भी गलत कार्य करने से पहले एक बार तो अवश्य ही सोचेंगे। ठीक इसी प्रकार यदि आप किसी गलत आचरण वाले व्यक्ति के साथ रहेंगे तो उस व्यक्ति गलत आचरण आपमें न चाह कर भी समा जायेगे। आप जानते हुए भी की ये काम गलत है उसे कर देंगे ,ज़रा भी नहीं हिचकिचायेंगे। 

आसान भाषा में समझाये तो यदि आप चोरो के साथ रहेंगे तो चोर बनेंगे ,महात्माओ के साथ रहेंगे तो आपके आचरण महात्माओं जैसे होंगे ,खूनी ,डाकुओं के साथ रहेंगे तो खूनी ,अत्याचारी ही बनेगे इसलिए जीवन में अच्छे लोगो का संग ग्रहण करे मतलब अच्छे लोगो के साथ रहे।  अच्छे कर्म करे। तभी आप एक पुष्प की भाँती जीवन में महकोगे। 

आशा करते है आपको आज की ये कहानी अच्छी लगी होगी। इसी के साथ हम अपनी वाणी को विराम देते है और प्रार्थना करते है की जीवन में आपको कोई भी दुःख तकलीफ न हो। आपको हमेशा अच्छे ही लोग ही मिले । आप हमेशा अच्छे कार्य ही करें। 

धन्यवाद। 



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