शिव स्वरुप का महातम्य (भाग 1 )

आपने देखा होगा की हमारे भोलेनाथ बाकी सभी भगवानो से अलग है। बिलकुल अद्भुत , वस्त्र तो उनके व्याघ्र चर्म के है ,माथे पे भस्म विभूति और जहरीले साँप ,रुण्ड -मुण्ड मालाएँ तो उनके श्रृंगार है। है न- अपने भोलेनाथ सब देवों से अलग। 

पर क्या ? आप जानते है उनके इन विचित्र रूप का कारण क्या है ? उन्होंने ये अनूठा और विचित्र रूप ऐसे ही नहीं धारण किया है बल्कि उनके स्वरुप का एक -एक पहलू महान शिक्षाएँ और सन्देश देता है। 

उनका हर वस्त्र और अलंकार एक इशारा देता है ,इन इशारो से मानो की जैसे एक ही गूंज उठती है ,जो हम सब से कहती है -उठो ! जागो !........

हर हर महादेव !प्रिय पाठकों 

कैसे है आप लोग ? आशा करते है अच्छे ही होंगे। आप हमेशा ही अच्छे रहें ,स्वस्थ रहें। 

दोस्तों आज इस पोस्ट में हम जानेंगे भगवान शिव के बारे में कि भगवान् शिव कौन है ,उनका स्वभाव कैसा है ,उनके आभूषण इतने विचित्र क्यों है। 

इस पोस्ट में आप पायेंगे - 

भगवान् शिव का स्वरुप 

शिव कथा 

पहला शिव स्वरूप - भगवान् शिव का तीसरा नेत्र 

दूसरा शिव स्वरुप - गले में सर्पो की माला 

तीसरा शिव स्वरुप - हाथ में त्रिशूल

चौथा शिव स्वरुप - गले में मुंडो की माला पहनना 


भगवान् शिव का स्वरुप 

शिव स्वरुप का महातम्य
शिव स्वरुप का महातम्य  (भाग 1 )

दोस्तों ! भगवान् शिव अन्य सभी देवताओं से अलग है। उनके विचित्र श्रृंगार को देखकर अधिकतर लोगो के मन ये सवाल उठता है कि -भोलेबाबा का स्वरुप इतना अजीबोगरीब क्यों है ?माथे पे चन्द्रमा ,गले में सर्प और नर मुंडो की माला ,उनकी तीन आँखे क्यों है ? 

हम उनको कैसे देखे ,वो हमे कैसे मिले आदि इन सभी सवालों के बारे में आज हम जानेंगे।इन सबके बारे में जानने से पहले आइये पहले इस कहानी को पढ़े। ये एक ऐसे भक्त की कहानी है ,जिसे भोलेनाथ के भगवान् होने पर संदेह था - की भोले नाथ ऐसे नहीं हो सकते। आइये बिना देरी किये कहानी पढ़े। 

 दोस्तों ! महाशिवरात्रि का दिन था। एक नन्हा बालक रेशमी धोती पहने ,माथे पर चंदन का तिलक लगाए और हाथो में दूध से भरा कलश लेकर अपने पिता के साथ शिव मंदिर गया। वहां पहुंचकर उसने देखा की यहां तो सभी बम -बम भोले ,हर -हर महादेव ,जय भोले नाथ यही नाम ले रहे थे। 

ॐ नमः शिवाय ,ॐ नमः शिवाय -चारो और यही आवाज गूंज रही थी। सभी भक्त गण झूम -झूम कर नाच रहे थे ,ढोल -नगाड़े ,चिमटा बजा रहे थे। पर वो नन्हा बालक चुपचाप एकदम शांत होकर बैठा था। 

वो एकटक बस शिवलिंग को ही देख रहा था। इतने ग़ौर से देख रहा था की उसे न कोई चिमटे की आवाज सुनाई दी ,न ढोल नगाड़े की। वो कुछ नहीं देख रहा था। वो बस शिवलिंग को ही देख रहा था। 

नाचना -गाना  ,झूमना ,बजाना  ये सब करते -करते रात का पहला पहर बीत गया। दूसरे पहर में अँधेरा बढ़ते -बढ़ते भक्तो का उत्साह भी कम हो गया था। शिव गीतों की आवाज धीरे -धीरे कम होने लगी थी। नाचने वाले सभी लोग थक -थक कर बैठने लगे और जो बैठे थे उन्हें नींद सताने लगी। 

तीसरा पहर आते आते तो सभी भक्तजनो  ,पंडितजनो  को भी नींद सताने लगी।नींद का प्रभाव तेज़ होने के कारण जिसको जहां जो स्थान मिला वो वहीं सो गया। शिव मंदिर तो ऐसे लग रहा था की जैसे वो एक सोने का स्थान हो। 

read moreशिव स्वरुप का माहात्म्य (भाग 2 )

पर उस नन्हे बालक की आँखों में नींद नहीं थी। शिवलिंग के आगे रखा दीपक भी शांत हो गया ,लेकिन उस नन्हे बालक के मन का दिया शांत नहीं हुआ। उसे विश्वास था की आज शिवरात्रि है और भोलेनाथ यहां जरूर आएंगे। मैं उन्हें देखूंगा। 

ऐसा  सोचकर वो शिवलिंग को देखता रहा -तभी अचानक कहीं से कुछ चूहे आये और शिवलिंग पर कूदने -फांदने लगे और शिवलिंग पर जो भी दूध ,दही ,मिठाई आदि भोग था ,वो सब उन चूहों का भोग बन गया।अब तो बालक को बड़ी ही हैरानी हुई। उसने सोचा की ये कैसे भगवान् है। ये तो अपना भोज भी नहीं संभाल पाए। 

उस बालक के मन में अनगिनत सवाल उठ रहे थे। ये कैसे भगवान् है ,जो अपने प्रसाद तक की रक्षा नहीं कर सके? इन दुष्ट चूहों को भगाना तो दूर -ये सिर हिलाकर इन्हे भगा भी नहीं सकते ? भला ये कैसे वही शिव हो सकते है ,जिनके बारे में पिताजी मुझे बताया करते है ? 

वो शिव तो सर्व समर्थ ,सर्वशक्तिमान है। ये जरूर कोई दूसरे शिव है। मेरे जीवित शिव नहीं है ,वो जरूर कही और मिलेंगे। मुझे तो जीवित और चिन्मय शिव को पाना है। किसी जड़ को नहीं। 

प्रिय पाठकों ! उस नन्हे बालक के मन में ये जो भी इतने प्रश्न उठ रहे थे ,आपको क्या लगता है कि क्या वो स्वयं ही उसके मन में आ रहे थे या कोई और कारण था ? जी हां !दोस्तों -- ये तो भगवान् शिव की ही लीला थी। वो इसी प्रकार अपने भक्तों के मन अनेक शंकाये पैदा कर देते है ,जिससे वो उनके बारे में और अत्यधिक जानने का इच्छुक हो जाता है। 

यही कारण था की वो नन्हा बालक मूल शंकर बड़ा होकर (स्वामी दयानन्द सरस्वती के नाम से जाने गए )वो शिव के इतने सच्चे भक्त थे की वो जड़ से जीवंत की और बढ़ चले अथार्त शिव को पहचानने के लिए ,जानने के लिए ,समझने के लिए चल पड़े। 

पर क्या ? दोस्तों -भगवान् शिव का ये संकेत सिर्फ एक ही बार होता है ,नहीं ! वो हर युग में अपने भक्तो को ऐसे ही संकेत देते है -जिससे भक्त उन्हें जानने ,पहचाने के लिए व्याकुल हो उठता है। दोस्तों ! भोलेनाथ का एक -एक अंग ,एक -एक अलंकार , उनका स्वरुप कोई -न कोई इशारा करता है। 

आपने देखा होगा की हमारे भोलेनाथ बाकी सभी भगवानो से अलग है। बिलकुल अद्भुत , वस्त्र तो उनके व्याघ्र चर्म के है ,माथे पे भस्म विभूति और जहरीले साँप ,रुण्ड -मुण्ड मालाएँ तो उनके श्रृंगार है। है न- अपने भोलेनाथ सब देवों से अलग। 

पर क्या ? आप जानते है उनके इन विचित्र रूप का कारण क्या है ? उन्होंने ये अनूठा और विचित्र रूप ऐसे ही नहीं धारण किया है बल्कि उनके स्वरुप का एक -एक पहलू महान शिक्षाएँ और सन्देश देता है। 

उनका हर वस्त्र और अलंकार एक इशारा देता है ,इन इशारो से मानो की जैसे एक ही गूंज उठती है ,जो हम सब से कहती है -उठो ! जागो !चैतन्य शिव को देखो !शव -त्व नहीं शिव -त्व की और बढ़ो। क्या आप चाहते है -उस गूंज को पहचानना और उनके इशारों को समझना ? तो आइये एक -एक करके उनके हर पहलुओं के बारे में जाने --

पहला शिव स्वरुप -भगवान् शिव का तीसरा नेत्र !

दोस्तों !आप तो जानते ही है की शास्त्रों में भगवान् शिव को त्रिनेत्रधारी के नाम से भी पुकारा जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योकि उनकी तीन आंखे है और हम शिव के योगी रूप में उनके तीन नेत्रों को साफ़ देख सकते है। 

पुराणों में एक कथा आती है - कहते है एक बार माँ पार्वती ने हंसी -ठिठोली करते हुए भगवान् शिव के दोनों नेत्रों को अपने हाथो से ढक दिए। आँखों के ढकते ही पूरे ब्रह्माण्ड में अँधेरा छा गया। सूर्यदेव लुप्त हो गए। 

ठंडी चांदनी चटकाने वाले चंद्र देवता भी अमावस की खाई में डूब गए और इसी कारण से सभी प्राणि- क्या पशु ,क्या पक्षी और क्या मनुष्य सभी व्याकुल होने लगे तिलमिलाने लगे। ठीक उसी समय भगवान शिव के माथे पर तीसरा नेत्र (आँख )प्रकट हुआ अथार्त तीसरा नेत्र खुल गया।

उनकी पलके जैसे ही उठी महाज्वालायें फूट पड़ी। इतनी प्रचंड अग्नि थी की इस अग्नि से दसों दिशाएं प्रकाशित हो उठी।अकाश चमक उठा।  देवी पार्वती हैरान हो गयी।  उन्होंने भगवान शिव से हाथ जोड़कर प्रार्थना की। 

भगवान् शिव माता पार्वती की प्रार्थना सुन शांत हो गए। पुराणों में भी भगवान् शिव के तीन नेत्रों को सूर्य ,चन्द्रमा ,अग्नि के समान बताया गया है। 

पर क्या सिर्फ भगवान् शिव ही तीन नेत्रों वाले है ? 

नहीं दोस्तों ! भगवान् शिव का ये तीसरा नेत्र हमको एक बहुत ही गहरा संकेत देता है। और वो ये कि -हम सब भी तीन नेत्रों वाले है। जी हाँ -दोस्तों ! धरती पर जितने भी मनुष्य है ,उन सभी के माथे पर तीसरा नेत्र होता है। 

पर दुर्भाग्यवश ये तीसरा नेत्र हमेशा बंद ही रहता है। क्योकि मनुष्य कभी अपने अंदर झांकता ही नहीं है। हमेशा दूसरे के गुण ,अवगुण ,अच्छा ,बुरा ,ये काम ,वो काम बस इसी के पीछे भागता है। 

लेकिन जिस दिन वो अपनी इन्द्रियों को एकाग्रचित कर लेगा ,हमेशा दुसरो का भला ही सोचेगा ,उस दिन उसका तीसरा नेत्र खुल जाएगा। लेकिन ये इतना संभव भी नहीं है क्योकि मनुष्य का मन बहुत ही चंचल होता है ,वो इधर उधर भटकता ही रहता है। 

ऐसे में मनुष्य को चाहिए की वो एक ऐसे गुरु का चयन करे जिसे शास्त्रों ,वेदो आदि का सम्पूर्ण ज्ञान हो। जिसका लक्ष्य सिर्फ पैसा कमाना ही न हो अपितु अपने शिष्यों का सम्पूर्ण कल्याण करना ही लक्ष्य हो। 

अच्छे गुरु से मिली शिक्षा के कारण मनुष्य अपने अस्तित्व को पहचान पाने में सक्षम होता है। पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति कर मनुष्य अपनी इन्द्रियों को एकाग्रचित करने में सफल हो जाएगा और जिस दिन वो ऐसा करने में सक्षम हो गया -तो समझो की उसका तीसरा नेत्र खुल गया-

अथार्त उसे जीवन में आने वाली हर परिस्तिथि के बारे में पहले से ही पता चलने लगेगा। सबसे बड़ी बात की उसे ब्रह्म -सत्ता का साक्षात्कार होगा अथार्त उसे उसे भगवान् का दर्शन प्राप्त होगा। 

दूसरा हम सभी लोग जानते है की जब भी भगवान् शिव का तीसरा नेत्र खुलता है तो संसार में प्रलय आती है। ठीक यही प्रलय मनुष्य के मन भी आती है। जिससे मन के विकार ,क्रोध ,लोभ मोह आदि अवगुण नष्ट होने लगते है। 

और सबसे बड़ा विकार की मनुष्य की काम -वासना भस्म हो जाती है। और उसका कारण ये है कि ये तीसरा नेत्र अग्नि के समान होता है। इस अग्नि की दैवी भीषणता में साधक की काम वासना भस्म हो जाती है। 

भगवान और भक्त की सच्ची कहानी

ये बात तो शिव पुराण में भी लिखी है जिसे कामदहन प्रसंग के नाम से जाना जाता है.एक बार भगवान् शिव कैलाश पर ध्यान में लीन थे। देवताओं के कहने पर कामदेव जी भगवान् शिव की तपस्या भंग करने के लिए गए और जैसे ही उन्होंने अपना काम - लैस बाण भगवान् शिव पर छोड़ा तो उनके माथे पर स्थित ये तीसरा नेत्र खुला और उसमे से इतनी तेज़ ,भयंकर ज्वालाएँ निकली कि उसी समय कामदेव जी भस्म हो गए। 

ये कामदेव दहन की लीला यही प्रेरणा देती है की सतगुरु की कृपा से जब ये तीसरा नेत्र खुलता है तो मनुष्य के मन के अंदर ही ईश्वर का दर्शन होता है और साथ ही काम-वासनाएँ भी भस्म हो जाती है। 

दूसरा शिव स्वरुप - गले में सर्पो की माला 

प्रिय पाठको आपने देखा होगा की भगवान् शिव के गले में सर्प (सांप ) लिपटे रहते है। प्रभु शिव का ये स्वरुप भी  बड़ी प्रेरणा देता है। पहला तो ये की साँप काल के प्रतीक होते है। भगवान् शिव के गले या उनकी भुजाओं पर ये तीन -तीन घेरे लेकर लिपटे रहते है। ये तीन घेरे भूत ,वर्तमान और भविष्य के प्रतीक है और भगवान् भोलेनाथ का इन सर्पो को गले में धारण करने का अर्थ यही है कि -उन्होंने काल को जीता हुआ है। 

दूसरा ये कि -ये सांप धन के और लोभ के प्रतिक है। सांप खजाने पर घेरा मारकर या फिर ये कहे की कुंडली मारकर कर बैठा रहता है। यह उनकी धन -लोलुप्ता को दर्शाता है। बड़े -बड़े ज्ञानियों व अनुभवियों ने कहा है की 

अन्ति काली जो लछमी सिमरै ,ऐसी चिंता महि जै मरै। 

सरप जोनि वलि वलि अउतरै।।

मतलब - की जो मनुष्य अपने अंत समय में धन का चिंतन या माया का लोभ करे तो ,उसे अगले जन्म में सर्प की योनि मिलती है अथार्त सांप बनते है। इसी कारण भगवान् शिव का इन्हे अपने वश में करना ये दर्शाता है कि उन्होंने माया को जीत लिया है। अतः भगवान् शिव के गले में लिपटे ये सांप दर्शाते है की हम मनुष्य भी कैलाश पति का दर्शन कर काल और माया को जीतने की कोशिश करें। 

और तीसरा ये कि -सांप बहुत ही तामसी ,निकृष्ट और विकारी जीव माना जाता है। हिंसक स्वभाव तो इनमे कूट -कूट कर भरा है। ये इतने क्रूर ,उग्र और स्वार्थी स्वभाव के होते है की अपने ही कोख जनी संतान अथार्त अपनी संतान को ही खा जाते है। 

दोस्तों ! भगवान् शिव के एक प्रसिद्ध भक्त हुए जगद्धर भट्ट ,जिन्होंने अपनी स्तुतिकुमांजलि के द्वारा अपने इष्ट भगवान् शिव से प्रार्थना की -कहा कि -हे शिव ! हे प्रभो !- मैं मानता हूँ की मैं दुर्गुणों से भरा हुआ हूँ। पर क्या मेरी इस अवस्था  को देख कर आपने मुझे त्याग दिया है ? यदि ऐसा है तो- 

हे दीनदयाल !--आप  कभी अपनी इन कण्ठमालाओं पर भी नजर डालिए। ये सांप भी तो मेरी ही तरह कर्णहीन है अथार्त ये भी तो आपकी आज्ञा नहीं सुनते। ये पेट के बल पृथ्वी पर रेंगते है अथार्त इनमे सत्यधर्म की हड्डी ही नहीं है। 

और तो और ये दो जीभ रखने वाले है अथार्त दो मुंही बात करते है। फिर भी आपने इन्हे गले से लगाया हुआ है और मेरा इतना तिरस्कार किया !हे नाथ ! आखिर ये भेद भाव क्यों ?

अपने भक्त के इतने करुणामई पुकार से ,भाव से भगवान् शिव का एक और गुण सामने आता है ,वो है करुणा और शक्ति  -जी हाँ ! दोस्तों -सांप बहुत ही दुर्गुणी होने के बावजूद भी शिव के गले का हार है। इससे ये बात साबित  होती है की भगवान् शिव बहुत ही शक्तिशाली और करुणामई है। 

इसी प्रकार ब्रह्मज्ञान में स्थित साधक भी शक्तिशाली और करुणामई है। क्योकि वो इस विषैले संसार को अपना साथ ,प्यार और आशीर्वाद देते है। निकृष्टतम यानी की बुरे से बुरे व्यक्तियों को भी वे अपने गले से लगाते है। सकुचाते नहीं है। और तो और वे इनकी जहरीली फुंकारों और डंको से जरा भी प्रभावित या पराजित नहीं होते।कभी अपने पथ से नहीं डगमगाते। 

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तीसरा शिव स्वरुप - हाँथ में त्रिशूल 

प्रिय पाठकों !भगवान् शिव के हाथ में त्रिशूल तो आपने देखा ही होगा। ये त्रिशूल भोलेनाथ के स्वरुप का सबसे अभिन्न यानी (प्रिय ,घनिष्ट ,जो कभी दूर न किया जा सके ) ऐसा अंग है। ये भगवान् शिव का अस्त्र है। ग्रंथो में लिखा है -कि ये सारा संसार तीन तरह के क्लेशकारी तापों से हमेशा दुखी रहता है। और वो तीन क्लेश है - आधिभौतिक ,आधिदैविक और आध्यात्मिक। 

ये तीन शूलों वाला भगवान् शिव का त्रिशूल इस पूरे संसार में फैले हुए इन तापों का नाश करता है। 

शिव स्वरुप का महातम्य
शिव स्वरुप का महातम्य  (भाग 1 )

आपकी जानकारी के लिए बता दे की -US NAVY SEALS के जो सुरक्षाकर्मी होते है -उनकी वर्दी यानी DRESS पर भी त्रिशूल का चिन्ह छपा होता है और ये उनके तीन दायित्वों जल ,थल और नभ का सूचक होता है। उनका एक -एक शूल ,एक एक क्षेत्र में दुश्मनों के आक्रमण से बचाता है। ठीक इसी प्रकार -सुरक्षा का अटूट वचन भगवान् शिव के पास खड़ा ये त्रिशूल देता है। 

बौद्ध धर्म में तो इस त्रिशूल को त्रयरत्न के नाम से जाना जाता है। क्योकि बौद्ध धर्म मे ये तीन रत्न -तीन प्रकार की शरणागति के सूचक है। -

बुद्ध शरणम गच्छामि - अथार्त बुद्ध एक पूर्ण जाग्रत महापुरुष की शरणागति। 

धम्मं शरणम गच्छामि - अथार्त धर्म की शरणागति मतलब आत्मसाक्षात्कार के पथ  पर आगे बढ़ते चले जाते है। अपने गुरु की शिक्षा और उपदेशो का भली भांति पालन करते है। 

संघं शरणम गच्छामि - अथार्त संघ की शरणागति मतलब सत्यपथ के पथिकों का संग करना (सत्य बोलने वाले लोगों के साथ रहना ) ,उनसे प्रेरित होकर अपना और समाज का कल्याण करना। 

जिस मनुष्य ने इन तीनो रत्नो को हासिल कर लिया तो उसे संसार का कोई भी दुःख नहीं सतायेगा अतः इससे साबित होता है की ऐसे व्यक्ति ने ,साधक ने शिव का अस्त्र प्राप्त कर लिया है।.शिव का प्रेम पा लिया है और संसार को जीत लिया है। 

चौथा शिव स्वरुप -गले में मुंडो की माला पहनना 

प्रिय पाठको !कितनी ही विचित्र बात है न -जहां सभी देवता अपने गले में तरह -तरह के फूलों की ,सोने आदि की माला धारण करते है और वहीँ ये हमारे प्यारे भगवान् शिव रुण्ड -मुंड ,कपाल और खप्परों  की माला पहनते है। 

इस स्वरुप के पीछे भी एक कथा आती है। की एक बार माँ पार्वती ने ,श्री नारद जी के आग्रह करने (कहने ) पर भगवान् शिव से इस रुण्ड -मुंड की माला पहनने का कारण पुछा। तो -

भगवान् शिव बोले कि -देवी ! ये सब तुम्हारे ही कपाल (खोपड़ी )हैं। अब तक तुम्हारे 108 जन्म हो चुके है। हर कपाल तुम्हारे एक जन्म का पतीक है। जिसे मैंने अपने सूत्र (धागा )में धारण कर रखा है। तो इस पर माँ पार्वती बोली -

माँ पार्वती -- हे नाथ ,हे स्वामी ! यदि ये सब मेरे कपाल है ,तो फिर आपके कपाल कहाँ है ?

भगवान् भोलेनाथ ने कहा कि - हे देवी !तुम जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधी हुई हो। पर मैं इस कालचक्र से बिलकुल पूरी तरह अलग हूँ ,आज़ाद हूँ। अथार्त अविनाशी हूँ। 

भगवान् भोले नाथ और माँ पार्वती के बीच हुई ये बातचीत इन कपालो का  राज (रहस्य )खोलती है। क्योकि ये सिर्फ माँ पार्वती के पूर्व जन्मो की चेन नहीं है बल्कि हर जीव के जन्म मरण ,आवागमन के चक्र को दर्शाती है। 

माला को जिस धागे में  पिरोया गया है -वो केवल एक धागा नहीं है अपितु वह एक अविनाशी चेतना है ,जो मनुष्य के अंदर जन्म जन्मांतर तक समाई रहती है।

इस माला में पिरोये हुए ये कपाल मनुष्य के उन जन्मो के प्रतिक है ,जिनमे उन्होंने अपना जीवन कुछ काल तक बिताया और फिर वह अंत समय आने पर चिता की अग्नि में नष्ट हो गया अथार्त जल गया। 

प्रिय पाठकों ! ये कपाल ,ये मुंड मनुष्य के जीवन का पल भर में  नष्ट होना दर्शाता है अथार्त  अवस्था को दर्शाता है। 

एक बहुत प्रसिद्ध चित्र है ,यदि कभी शायद आपने देखा हो -उसमे दर्शाया गया है की -एक खोपड़ी के सामने एक बहुत ही सुंदर स्त्री बैठी है और सजने -सँवरने में लगी हुई है। 

जो की सामने रक्खी खोपड़ी की धंसी हुई खोखली आँखों में सब दिखाई दे रहा है ।और उस चित्र के नीचे कुछ लाइने लिखी है , जोकि इस प्रकार है कि -आज जो चेहरा सुंदरता की मिसाल है ,कल वही अस्थियों का रूप होगा। 

इसी तरह की एक मिसाल रोम के सैंटा मारिया नाम के चर्च के नीचे बने एक स्मारक से भी मिलती है। 

ये स्मारक बड़े ही विचित्र तरीके से बना हुआ है ,इस स्मारक को बहुत सारे अस्थि -पिंजरों और खोपड़ियों को जोड़कर बनाया गया है ,जो की बहुत ही अद्भुत है व सुंदर कलाकृति से भरपूर है। इससे भी अद्भुत है खोपड़ी और अस्थियों पर लिखी लाइने -

हम वही थे ,जो आज तुम हो। तुम वही होंगे ,जो आज हम हैं। 

इसी तरह योरुबा देश की एक बहुत ही विख्यात कथा है। जो इस  प्रकार है -एक आदमी था। वो जिस रास्ते से जा रहा था ,उस रास्ते में बीचो -बीच एक खम्बा गड़ा था। उसे ये देखकर बड़ी ही हैरानी हुई उस खम्बे पर एक खोपड़ी टंगी हुई है। जो सिर्फ टंगी ही नहीं थी अपितु बोल भी रही थी। 

उस बोलती खोपड़ी को देख कर वह आदमी डर गया और राजा के पास पंहुचा। उसने सारी बातें राजा को कह सुनाई। राजा बात सुनकर बड़ी ही उत्सुकता के साथ उसी खोपड़ी को देखने के लिए निकल पड़ा। वहाँ पहुंचने पर राजा को उस आदमी पर क्रोध आया क्योकि वह खोपड़ी बोल नहीं रही थी ,शांत थी। 

राजा ने उस आदमी से कहा की इसे बोलने के लिए कहो। परन्तु उसके कहने पर भी खोपड़ी नहीं बोली। राजा का क्रोध बढ़ गया और उसने उस आदमी को मार डाला। कुछ ही समय बीता की राजा ने देखा उस खम्बे पर उसी आदमी की खोपड़ी लटकी हुई है। जो राजा से कह रही थी की  -

जैसा आज मैं हूँ ,वैसा कल तू भी होगा । 

इन सभी बातों का यही आधार है की ये नर -मुंड हमे यही प्रेरणा दे रहे है कि सतर्क रहो। जग में चमकते रहो तथा अविनाशी तत्व को चुनो। भगवान् शिव भी इन मुंडो की माला को पहन कर मानो हमे यही कह रहे है की जीवन की नश्वरता के प्रति हमे हमेशा सतर्क रहना चाहिए-

अथार्त ये जीवन नश्वर है -एक न एक दिन नष्ट जरूर होगा इसलिए इस नश्वर शरीर की नहीं बल्कि अविनाशी तत्वको चुनना चाहिए अथार्त कभी नष्ट न होने वाले शरीर को चुनना चाहिए। 

दोस्तों ! शिव की खप्परों वाली माला भी 108 की गिनती पर आकर रुक गई। 109 नहीं हुई। इस का अर्थ यही है की माँ पार्वती सतर्क होते ही ब्रह्मज्ञान द्वारा उस अविनाशी (कभी नष्ट न होने वाले शरीर को ) प्राप्त कर पायी। उन्होंने अपनी जन्म -मृत्यु के क्रम का अंत किया। 

और अब यही बात हर मनुष्य को समझनी चाहिए।आखिर हम कब तक भोलेनाथ की नर -मुंडो वाली माला में अपने मुंडो की संख्या बढ़ाते रहेंगे ? कब ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करेंगे ? कब शिव तत्व में स्थित होकर अमरता को प्राप्त करेंगे ?

प्रिय पाठकों ! भोलेनाथ के हर स्वरुप का कोई न कोई कारण है। अभी आपने इस पोस्ट में चार स्वरूपों के बारे में जाना। भोलेनाथ के अन्य स्वरूपों की जानकारी आपको अगली पोस्ट में मिलेगी। यदि आप शिव स्वरूपों को जानना चाहते है तो -अगली पोस्ट अवश्य पढ़े। 

आशा करते है आपको जानकारी अच्छी लगी होगी ,पसंद आई होगी। इसी के साथ भोलेनाथ से आपके जीवन की मंगलकामना करते हुए।आपसे विदा लेते है। 

धन्यवाद 

हर -हर महादेव ! 

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