कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा

कनक का अर्थ होता है सोना ,स्वर्ण  और धारा का अर्थ होता है बरसना। इस प्रकार से कनकधारा का पूरा अर्थ हुआ सोने की वर्षा और कनकधारा स्तोत्र का पूरा अर्थ हुआ सोने की वर्षा कराने वाला स्तोत्र......

हर -हर महादेव!प्रिय पाठकों,कैसे हैं आप, हम आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे 

प्रिय पाठकों, आज इस पोस्ट में आप पाएंगे 

कनकधारास्तोत्र की कथा 

कनकधारास्तोत्रं संस्कृत में 

कनकधारास्तोत्र हिंदी में 

कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा 

कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा
कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा 

कनकधारास्तोत्र की कथा 

प्रिय पाठकों !आज इस पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि कनकधारा स्तोत्र की रचना कैसे हुई। इस स्तोत्र के पीछे एक बहुत ही सुंदर कथा है। दोस्तों ! कनक का अर्थ होता है सोना ,स्वर्ण  और धारा का अर्थ होता है बरसना। इस प्रकार से कनकधारा का पूरा अर्थ हुआ सोने की वर्षा और कनकधारा स्तोत्र का पूरा अर्थ हुआ सोने की वर्षा कराने वाला स्तोत्र।


कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा
कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा 

इस स्तोत्र की रचना भगवान आदि शंकराचार्य ने उस समय करी थी -जब वे मात्र 12 वर्ष के थे। शंकराचार्य जी  8 वर्ष की छोटी सी उम्र में ही सन्यास ग्रहण कर चुके थे और 12 वर्ष की आयु तक वे आचार्य भी बन चुके थे। एक बार शंकराचार्य भिक्षा मांगने निकले तो ऐसे घर के द्वार पर पहुंच गए जहां पर रहने वाले लोग अत्यंत गरीबी में अत्यंत निर्धनता में दिन काट रहे थे। 


द्वार पर आवाज होने से भीतर से एक महिला बाहर निकली तो देख कर दंग रह गई उसके द्वार पर स्वयं शंकराचार्य खड़े थे। जो भिक्षा मांगने आये थे। आचार्य ने कहा भिक्षां देहि। महिला ने सोचा मैं अब क्या करूँ ?यहां  तो हमारे पास खाने को कुछ नहीं।  लेकिन  दूसरी और आचार्य को यह  एहसास हो गया था कि -वह गलत घर में आ गए है। 


कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा
कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा 


घर के लोगों की दशा देखकर लग रहा था कि उनके पास आचार्य को देने के लिए कुछ भी नहीं है। आचार्य के मन में तो एक बार हुआ कि वे वापस चले जाएं। लेकिन तब तक महिला ने कहा आचार्य जी रुकिए ,मैं कुछ लाती हूँ। ये जानते हुए की घर में कुछ नहीं है फिर भी अंदर गई और अंदर जाकर अपनी रसोई में ढूंढ़ने लगी की किसी बर्तन में कुछ मिल जाय। 


चर्पटपञ्चरिकास्तोत्र हिंदी में 


लेकिन बर्तन में कुछ नहीं मिला।  फिर भी ढूंढ़ती रही । एक-एक करके सभी बर्तन ,डब्बे देखते देखते  उसकी आंखों से आंसू आ गए कि -उसके पास आचार्य को देने के लिए कुछ भी नहीं है । अचानक -तभी देखते -देखते उसे एक सूखा आँवला मिला। उसे बड़ा दुःख हुआ की उसके पास शंकराचार्य जी को देने के लिए कुछ भी नहीं है। 



कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा
कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा 



उसने वह आवला लाकर आचार्य जी को दिया। और देते हुए बोली की आचार्य जी ! हमे क्षमा कीजिए ,हम बहुत गरीब है और देने के लिए इस आंवले के अलावा कुछ भी नहीं है। आचार्य जी ने आँवला हाथों में लिया और  माथे से लगा लिया। आचार्य जी अंतर मन से करुणा भाव से भर चुके थे। उन लोगों की हालत आचार्य जी से  देखी नहीं गई और उन्होंने हाथ में लिए उस सूखे आंवले से श्री लक्ष्मीजी का  पूजन किया और एक के बाद एक 18 श्लोक शंकराचार्य के मुख से निकलते चले गए। 


कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा
कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा 


अंतिम श्लोक की समाप्ति पर माता लक्ष्मी उनके सामने आ गई और अपनी मधुर वाणी में बोली -मुझे कैसे याद किया आचार्य। क्या आप भी धनी होना चाहते हैं। माता की इस ठिठोली पर आचार्य जी मुस्कुराये। उन्होंने उत्तर दिया माता मैं धनपति कैसे हो सकता हूं। मैं तो साधारण सा सन्यासी हूँ। भिक्षा मांग कर खाता हूँ। और आपकी स्तुति करता हूँ। मुझे धन की क्या आवश्यकता। इस बात पर माता लक्ष्मी मुस्कुराने लगी और बोली की जब तुम्हे धन नहीं चाहिए तो मुझे बुलाने का क्या प्रयोजन है। 


तब आचार्य जी ने कहा -हे माता !आज मुझे जिस घर से भिक्षा मिली है। ये लोग बड़े निर्धन है। आप इन पर कृपा करिये और इन्हे धन प्राप्ति का आशीर्वाद दीजिये। लेकिन माता ने अपनी असमर्थता बताते हुए कहा कि - शंकराचार्य इनके पूर्व जन्म के पाप इतने अधिक है की इस जन्म में इन्हे धन की प्राप्ति नहीं होगी। यही विधान है। इसलिए इतने कष्ट भोग रहे है। इसलिए कुछ और मांगो।


शंकराचार्य जी ने अपने हाथ में लिए सूखे आंवले को माता लक्ष्मी को दिखाते हुए बोले की - माँ मुझ जैसे भिखारी को जो  रोज भिक्षा मांग कर खाने वाला है। इन्होने मुझे एक सूखे आंवले को देकर महान दान किया है ,इस महान दान के बदले इन्हे जो पुण्य मिला है। मुझे लगता है अब इनके सारे पाप मिट गए होंगे। इसलिए अब इन पर आप की कृपा तो होनी ही चाहिए। 


कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा
कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा 


आचार्य जी का करूँण भाव देखकर माता लक्ष्मी प्रेम विभोर हो गई। उन्होंने आचार्य के हाथ से आंवला लिया ,उनके सिर पर हाथ फेरा और बोली शंकर तुम्हारी करुणा ने मेरा मन जीत लिया। आज से जो भक्त मेरी पूजा में आंवला रखेगा उस पर मेरी असीम कृपा बरसेगी। और बिना आंवले के मेरी पूजा अधूरी ही मानी जायेगी। मेरे जाने के बाद इनके घर सोने की वर्षा होगी।


आज तुमने जिस स्तोत्र से मेरी स्तुति की ,उसे कनकधारा स्तोत्र के नाम से जाना जाएगा। आज से जो भी इस पाठ को सुनेगा और पढ़ेगा। वह मुझे आसानी से प्रसन्न कर पायेगा। इतना कहकर माता लक्ष्मी सूखे आंवले को लेकर वहां से चली गई। और उनके जाते ही उन लोगो के घर पर सोने के आंवले की वर्षा हुई। आचार्य जी द्वारा कहे गए इस 18 श्लोको वाली स्तुति को कनकधारा स्तोत्र इसीलिए कहते है क्योकि इस स्तोत्र के पाठ से प्रसन्न होकर माता लक्ष्मी जी ने सोने (स्वर्ण )की वर्षा की थी।  


कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा
कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा 


प्रिय पाठकों !ये थी कनकधारा स्तोत्र की कथा। आपको कैसी लगी अवश्य बताये। 

कनकधारास्तोत्रं

अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्

 अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गलदेवतायाः

 मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि

 माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः

 

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्दहेतुरधिकं    मुरविद्विषोऽपि

ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्धमिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम्

आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः


बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति

कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव

मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः


प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन

मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः

दद्याद्दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारामस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे

दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः

कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा
कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा 


इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयादृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।

दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति

सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै


श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै ।

शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै

नमोऽस्तु  नालीकनिभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै

नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै

 

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि ।

त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः  सेवकस्य  सकलार्थसम्पदः

संतनोति वचनाङ्गमानसैस्त्वां मुरारिहृदयेश्वरी भजे ॥


भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्टस्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम् ।

प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेषलोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः।

 

अवलोकय मामकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।

गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ।

॥ श्रीभगवत्पादशङ्करविरचितं कनकधारास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रम् /भगवान् चंद्रशेखर (चंद्राष्टकम   स्तोत्र) 

कनकधारास्तोत्र हिंदी में 

कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा
कनकधारास्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | कनकधारास्तोत्र की कथा 


कनकधारा स्तोत्र हिन्दी 

जैसे भंवरी अधखिले पुष्पों से अलंकृत तमाल वृक्ष का आश्रय लेती है। उसी प्रकार जो प्रकाश -श्री हरि के रोमांच से सुशोभित श्री अंगों पर निरंतर पढ़ता रहता है ,तथा जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्यों का निवास है ,संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती लक्ष्मी का वह कटाक्ष ,कृपा दृष्टि मेरे लिए मंगलदाई हो। 


जैसे भ्रमरी महान कमल दल पर मंडराती रहती है। उसी प्रकार  जो श्री हरि के मुखारविंद की ओर बराबर प्रेम पूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है। समुद्र कन्या श्री लक्ष्मीजी कि वह मनोहर दृष्टि माला  मुझे धन संपत्ति प्रदान करें। 


जो संपूर्ण देवताओं के अधिपति इंद्र के पद का वैभव विलास देने में समर्थ है ,उन मुरारी श्री हरि को भी जो अधिकाधिक आनंद प्रदान करने वाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है ,उन लक्ष्मी जी के अधखुले नेत्रों की दृष्टि क्षणभर के लिए मुझ पर थोड़ी सी अवश्य पढ़े। 


जय श्री भगवान विष्णुजी की धर्मपत्नी श्री लक्ष्मी जी के नेत्र हमे ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हो जिनकी पुतली तथा बरौनी अनंग के वशीभूत हो अधखुले ,किंतु साथ ही निर्निमेष (अपलक )नैनों से देखने वाले आनंदकंद श्री मुकुंद को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती है। 


जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलमयी हरावली -सी सुशोभित होती है तथा उनके मन में भी प्रेम का संचार करने वाली है ,वह कमल-कुंजवासिनी कमला की कृपा दृष्टि मेरा कल्याण करें। 


जैसे मेघों की घटाओं में बिजली चमकती है उसी प्रकार जो कैटभ -शत्रु श्री विष्णु के काली मेघमाला के समान श्याम सुंदर वक्ष-स्थल पर प्रकाशित होती है , जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोगों की जननी है उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीय मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करें। 


समुद्र कन्या कमला की वह मंद ,अलस ,मंथर और आधी मुस्कान वाली दृष्टि जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था वही दृष्टि मुझ पर भी पड़े। 


भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मीजी का नेत्ररूपी मेघ ,दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म रूपी (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध )रुपी धाम को चिरकाल के लिए दूर हटा कर विशाद रूपी धर्म से जन्य ताप से पीड़ित  मुझ दीनरूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करें। 


विशिष्ट बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीति पात्र हो जिस दया दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग पद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं  पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल-गर्भ के समान कांतिमयी दृष्टि मुझे मनोवांछित फल प्रदान करें। 


जो सृष्टि रचना के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति ) के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय लीला के काल में शाकंभरी (भगवती दुर्गा )अथवा चंद्रशेखर वल्लभा पार्वती (रूद्र शक्ति )के रूप में स्थित होती हैं,त्रिभुवन के एकमात्र पिता भगवान नारायण की प्रिय श्री लक्ष्मी जी को नमस्कार है। 


हे देवी !शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है ,रमणीय गुणों की सिंधु रूपा रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुष्टि रूपा पुरुषोत्तम प्रिया को नमस्कार है। 


कमल वदना कमला देवी को नमस्कार है। क्षीरसिंधु सभ्यता श्री देवी को नमस्कार है। चंद्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है। 


कमल के समान नेत्रों वाली हे मातेश्वरी ! आप सम्पवित संपूर्ण इंद्रियों को आनंद प्रदान करने वाली हो।  साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा हर लेती हो। मुझे भी आपकी चरण वंदना करने का शुभ अवसर प्राप्त हो। 


जिनकी कृपा दृष्टि के लिए की गई उपासना उपासकों के लिए संपूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करती है श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का मैं मन ,वाणी और शरीर से भजन करता हूँ। 


हे विष्णु प्रिय !तुम कमल वन में निवास करने वाली हो,तुम्हारे हाथों में नीला कमल सुशोभित है। तुम अत्यंत उज्जवल वस्त्र ,गंध और माला आदि से सुशोभित हो। तुम्हारी झांकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी -मुझ पर प्रसन्न हो जाओ। 


दिग्गजों द्वारा स्वर्ण कलश के मुख से गिराए गए आकाश गंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्री अंगो का अभिषेक (स्नान )होता है। संपूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहणी और छीर सागर की पुत्री उन जगत जननी लक्ष्मी को मैं प्रात काल प्रणाम करता हूँ। 


कमल नयन के समान भगवान केशव कामिनी पत्नी हे कमले !मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ।  आपकी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूं। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरंगों के समान मेरी ओर देखो।आप मुझ पर कृपा दृष्टि करें। 


जो मनुष्य इस प्रकार प्रतिदिन वेदत्रयी  स्वरूपा त्रिगुण जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं। वो इस लोक पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। 


कनकधारा स्तोत्र को कोटि-कोटि प्रणाम। माता लक्ष्मी को कोटि -कोटि प्रणाम। 


                 **********॥ श्रीभगवत्पादशङ्करविरचितं कनकधारास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥**********

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