2 moral stories for parents/ नैतिक कहानियां /माता -पिता अनमोल है।

हर -हर महादेव ! प्रिय पाठकों 

भगवान भालेनाथ जी का आशीर्वाद आप सभी को प्राप्त हो। आशुतोष भगवान् सभी पढ़ने वालो का और अन्य सभी लोगो का कल्याण करें। 

इस पोस्ट में आप पाएंगे - दो छोटी कहानियां 

पहली शिक्षा प्रद कहानी - अंग्रेजी पढ़ाई का तिरस्कार 

दूसरी  शिक्षा प्रद कहानी - पिता की सहनशक्ति 

निर्देश 

शिक्षा  


2 moral stories for parents/ नैतिक कहानियां /माता -पिता अनमोल है।

यदि आप जीवन में सफलता चाहते हैं तो माता-पिता का सम्मान करें आपके माता-पिता ने आपके पालन-पोषण में कितनी कठिनाइयाँ झेली हैं,इसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते इसलिए अपने माता-पिता की अवज्ञा(अनादर ) कभी भी नहीं करनी चाहिए। वे आपके लिए सम्मानित हैं। उनका सम्मान करना आपका कर्तव्य है।

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भारतीय संस्कृति में माता-पिता को देवता कहा गया  है। मातृदेवो भव ,पितृदेवो भव। भगवान श्री गणेशजी  भी  माता-पिता की परिक्रमा करने के बाद पहले भक्त बने। माता-पिता की सेवा में श्रवण कुमार ने अपने कष्टों की चिंता नहीं करी और अंत में सेवा करते हुए प्राण त्याग दिए। पिता की खुशी के लिए भीष्म जी ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत पालन किया और विश्व में प्रसिद्ध हो गए। आइये आज इन दो छोटी -छोटी कहानियों से माता -पिता को और गहराई से समझे। जाने की उनकी आदमियद क्या है ? क्यों है ?


पहली शिक्षाप्रद कहानी -- अंग्रेजी पढ़ाई का तिरस्कार 


एक बार  की बात है। एक किसान का बेटा शहर जाकर वकालत की पढ़ाई कर रहा था। पुत्र को शुद्ध घी, पनीर मिलता रहे और पुत्र स्वस्थ है। इसलिए पिता सीधे घी, गुड़, दाल-चावल आदि बेटे के पास भेज देते थे।  एक बार बेटा अपने दोस्तों के साथ चाय-रोटी का नाश्ता कर रहा था। इतने में वह किसान वहां पहुंचा।धोती फटी पड़ी थी , चमड़े के जूते थे , हाथ में डंडा था , कमर झुकी हुई थी।  वह आया और गठरी उतारी । बेटा ने सोचा , 'बूढ़ा आ गया है,कहीं मेरी इज्जत न चली जाए !' इतने में उसके दोस्तों ने पूछा कि यह बूढ़ा कौन है लड़के ने कहा: यह मेरा नौकर है।

2 moral stories for parents/ नैतिक कहानियां /माता -पिता अनमोल है।


लड़के ने धीरे से कहा लेकिन पिता ने सुन लिया। वृद्ध किसान ने कहा: ''भाई!  मैं नौकर तो जरूर हूँ पर इसका नौकर नहीं हूँ। मैं तो इसकी माता का नौकर हूँ। इसलिए मैं यह सामान लाया हूं। ये अंग्रेज़ी पढाई का ही नतीजा है की दोस्तों के सामने पिता को पिता कहने से कतराते हैं और झिझक महसूस करते  हैं

दोस्तों !ऐसी पढ़ाई को तो बंद कर देना चाइये जो आपको ,आपके अपनों से दूर करें। इससे तो अनपढ़ रहना ही सही है। 


दूसरी शिक्षाप्रद कहानी -पिता की सहनशक्ति 

आइये एक छोटी सी कहानी और पढ़ते है।  घर की छत पर एक बेटा अपने पिता से साथ उनकी  गोद में बैठा था। वहीं एक कौआ उड़ता हुआ आया और सामने छज्जे पर  आकर  बैठा गया। बेटा उसे देखकर बड़ा खुश हुआ और उसने अपने पिता से पूछा --


2 moral stories for parents/ नैतिक कहानियां /माता -पिता अनमोल है।


बेटे ने पूछाः 'पापा!  यह क्या है? 


पिता ने कहा: बेटा ये "कौवा है।"


बेटे ने फिर पूछा: पापा "यह क्या है?"


पिता ने फिर से कहा: 'बेटा ये 'कौवा है।


"बेटा बार-बार पूछता है:" पापा!  यह क्या है?  '


'पिता ने बार-बार स्नेह (प्यार ) से कहाः'' बेटा! ये  कौआ है ,कौवा है!


काफी समय बीतने  के बाद  पिता बूढ़ा हो गया। एक दिन पिता चटाई पर बैठे थे। घर में कोई उसके बेटे से मिलने आया था। 

पिता ने पूछा: बेटा !'कौन आया है?'


"बेटे ने नाम बताया दिया ।


अब थोड़ी देर में फिर से कोई  और आया  पिता ने फिर पूछा। 


इस बार बेटा चिल्लाया और कहने लगा --क्या पापा "तुम चुप क्यों नहीं पड़े रहते? तुम्हें कोई और काम तो है नहीं  ,बस पूरा दिन चिल्लाते रहते हो ,पूछते रहते हो।  ये कौन आया है-यह कौन है? तुम दिन भर यह टाई-टाई क्यों लगाते हो ?चुप क्यों नहीं बैठते? सिर  में दर्द करके रख दिया। जानकार क्या कर लोगे। एक तो पूरा दिन काम करो और फिर तुम्हारी टाई -टाई सुनो। चुप बैठे रहा करो।  


2 moral stories for parents/ नैतिक कहानियां /माता -पिता अनमोल है।


पिता ने एक लंबी और गहरी सांस ली , अपने हाथ से अपना  सिर पकड़ लिया और धीरे-धीरे बड़ी उदासी भरी आवाज में कहने लगा। मेरे एक बार पूछने पर तुम्हे कितना गुस्सा आ रहा है  ? लेकिन बचपन में तुम्हारे बार -बार पूछने पर भी मैंने तुम्हें कभी डांटा नहीं। मैंने तुमसे बार-बार कहा: बेटा! कौआ है। 

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आपके पालन-पोषण में माँ-बाप ने कितना दर्द ,कष्ट सहा है! तुम्हारी माँ ने तुम्हारे लिए कितनी रातें गीले बिस्तर में सोकर बिताई है , तुम्हारे जन्म से लेकर अब तक तुम्हारे लिए और भी कितने कष्ट  सहे  है, तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। कितने -कितने कष्ट सहकर तुम्हे बड़ा कर दिया और अब आपको  बूढ़े माता -पिता को  प्यार से दो शब्द कहने में परेशानी होती है।  और तो और  पिता को पिता कहने में भी शर्म आती है। 


निर्देश 

प्रिय पाठकों ! पिता तो पिता ही होता है। पिता चाहे कैसी भी हालत में हो।  प्रह्लाद को कष्ट देने वाले राक्षस हिरण्यकश्यप को भी प्रह्लाद कहता था पिताश्री। और  तुम्हारे लिए कड़ी मेहनत करके अपना शरीर तोड़ने वाले अपने पिता को नौकर कहने में तुम्हे शर्म नहीं आती. जो माँ और पिता व गुरु की सेवा करता है  उनका सम्मान करता है। वह सम्मानित व्यक्ति बन जाता है

जो बच्चे अपने माता-पिता का सम्मान नहीं करते हैं वे जीवन में कभी भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

शिक्षा 

प्रिय पाठकों ! इन दोनों  कहानियों से हमे ये सीख मिलती है कि जो बच्चे अपने माता -पिता का सम्मान नहीं करते वे इस संसार में अकेले रह जाते है और अपमान जनक जीवन व्यतीत है। ऐसे  व्यक्तियों को  कोई पसंद नहीं करता जो अपने पिता का तिरस्कार करते हो। इसलिए व्यक्ति को चाहिए की वो खुद भी अपने माता -पिता के सम्मान का  ख्याल रखें ,उनका सम्मान करें ,उन्हें प्यार दे। बुढ़ापे में उन्हे आपकी सबसे ज्यादा जरूरत है और अन्य व्यक्तियों को भी ये सलाह दे की वो भो अपने माता -पिता का सम्मान करें। 

आशा करते है कि आपको ये पोस्ट अच्छी लगी होगी ,पसंद आई होगी। इसी के साथ विदा लेते है। अगली पोस्ट के साथ विश्वज्ञान में फिर मुलाक़ात होगी। भोलेनाथ आपकी हर इच्छाएं पूरी करें व आपके और आपके पेरेंट्स के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध बनाये रखें। 

धन्यवाद 

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