बच्चों के प्रति माता पिता का कर्तव्य/माता पिता बच्चो के प्रति अपनी जिम्मेदारी को कैसे पूरा करें/baccho ke prati mata -pita ka accha caunceller banna

माता -पिता से अच्छा कोई और बच्चे को नहीं समझ सकता ,माता पितासे अच्छा कोई दोस्त नहीं हो सकता। दुसरे लोग अच्छी शिक्षा दें रहे है या बुरी शिक्षा दे रहे है।  हमे क्या पता ? क्या पता कैसी शिक्षा दे रहे है ? कल को घर से परेशान या दुखी होकर और लोगों की बातों में आकर वो कोई गलत कदम उठा लें -तो फिर क्या करोगें ?

हर -हर महादेव !प्रिय पाठकों 

भगवान् भोलेनाथ का आशीर्वाद आप सभी को प्राप्त हो 

इस पोस्ट के सन्दर्भ में 

हर मनुष्य को स्वीकृति की आवश्यकता होती है 

काउंसलर (सलाहकार )और माता-पिता के बीच क्या अंतर है?

काउंसलर का कर्तव्य 

बच्चो के प्रति माता -पिता का अच्छा काउंसलर बनना 


बच्चों के प्रति माता पिता का कर्तव्य/माता पिता बच्चो के प्रति अपनी जिम्मेदारी को कैसे पूरा करें


हर मनुष्य को स्वीकृति (मंजूरी ,आज़ादी ) की आवश्यकता होती है
 

प्रिय पाठकों !बच्चे मन के साफ़  होते है। यदि आपको अपने बच्चों का बचपन याद हो तो आपने देखा होगा की बचपन में जब आपके बच्चे बहुत छोटे थे और खेलने के लिए बाहर जाया करते थे। जब वो खेलकर  घर वापस आते थे,तो आपको सब कुछ बताना शुरू कर देते थे। आपके न पूछने पर भी वे आपको बताते थे,माँ आज मैंने ये खेला , पापा मैंने आज ये किया। 

उस वक़्त यदि आपके पास समय होता था तब तो आप उसकी बात  सुन लेते थे पर कई बार आपके पास समय न होने पर भी आप उनकी बातों को सुनते थे और आप उसकी बातों को सुनकर खुश  होते थे और आज समय में क्या होता है ?आप उनके पीछे दौड़ते हुए पूछते हैं कि उन्होंने पूरे दिन क्या किया। क्या ऐसा नहीं होता है?

पहले वे हमारे पीछे आकर बातें बताते थे और आज हम उनके पीछे भागते हैं ,लेकिन वे अपने कमरे के दरवाजे बंद कर लेते हैं और अपने फोन में पासवर्ड डाल देते हैं। पूछने पर भी आपको कुछ नहीं बताते और यदि आप उन पर उत्तर देने के लिए दबाव डालते हैं, तो हो सकता है कि वे सच न कहें।PARENTS AUR BACCHO  का ये अटूट रिश्ता कैसे और कहाँ बदल गया ? 


एक समय था जब वो हमें सब कुछ बताते थे लेकिन अब उन्होंने हमें बताना बंद कर दिया है। क्यों? क्योंकि जब वे छोटे थे इतनी छोटी और आसान चीजें थीं तो हमें उन्हें सुनकर खुशी होती थी । हम उन्हें स्वीकार करते थे हर आत्मा(व्यक्ति ) - कृपया इसे अपने जीवन का मंत्र बनाएं  "हर आत्मा को स्वीकृति की आवश्यकता होती है" इसलिए जब वे छोटे थे, तो जब वे चीजें साझा करते थे, तो हम खुश महसूस करते थे और उन्हें स्वीकार करते थे जैसे वे उपयोग करते थे हमें रोज कुछ बताने के लिए। 

एक बार जब वे बड़े हो गए तो वे आपके पास आए और मान लीजिए कि उन्होंने आपसे कहा "माँ, आप जानते हैं कि आज क्या हुआ, हमने क्लास बंक कर दी या की माँ आज मैं स्कूल न जाकरअपने दोस्त के घर चला गया और फिर हम मूवी देखने गए।" हमने उस पर कैसी प्रतिक्रिया दी? क्या हम मुस्कुराए? नहीं। उस बच्चे ने ईमानदारी के अपने संस्कार (आदत) का उपयोग करते हुए हमे सारी बातें बताई , ठीक वैसे ही जैसे उसने छोटा होने पर किया था। लेकिन उस दिन हमारी तरफ से स्वीकार करने के बजाय पहली बार उन्हें रिजेक्शन मिला।


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कुछ दिनों के बाद उसने कुछ और कहा और फिर से हमसे रिजेक्ट हो गया। तो धीरे-धीरे उसने हमें बताना बंद कर दिया। PARENTS हमेशा इस बात का ध्यान रखें की जिस दिन बच्चो को घर से रिजेक्शन मिलता है ,उसी दिन से दोस्तों की स्वीकृति मिलना शरू हो जाती है। हमने सोचा कि उसने उन चीजों को करना बंद कर दिया है और इसलिए हमें कुछ नहीं बता रहा है। 

लेकिन उसने कुछ भी करना बंद नहीं किया उसने केवल हमें बातें बताना बंद कर दिया। क्या स्कूल बंक करके मूवी देखने जाना गलत है? अगर वे किसी पार्टी में हैं तो क्या उनके लिए सिगरेट पीने की कोशिश करना गलत है? क्या किसी पार्टी से देर रात वापस आना गलत है? क्या गाड़ी चलाते समय अपनी कार को ओवर-स्पीड करना गलत है? हाँ ! ये गलत  है।

इसी प्रकार जब कक्षा से  सभी बच्चे पिकनिक जा रहे होते हैं और कोई एक नहीं जाता है,तो वे बाकी के बच्चे उसका मजाक उड़ाते हैं और फिर वे उसे अपने समूह से अलग कर देते हैं और वह उस समूह का हिस्सा बनना चाहता है। क्या उसके लिए जाने के लिए ललचाना सही है? हाँ !सही है क्योकि एक दूसरे को देख कर मन में ये आता है की ये जा रहा है तो मैं भी जाऊँगा। 

घर आकर बच्चे ने आपको बताया। आप नहीं चाहते की आपका बच्चा पिकनिक जाए  इसलिए  आपने मना कर दिया। लेकिन उस समय  हम उससे कह सकते थे, बेटा आप जो करने की सोच रहे हैं" "यह आपके लिए सही नहीं है।" "आप सही कह रहे हैं, लेकिन वह बात आपके लिए सही नहीं है।" क्या उनके बीच कोई अंतर है?  "तुम सही हो।" "आपकी  बात भी सही है।" 

"लेकिन, यह बात आपके लिए ठीक नहीं हैअगर आप ऐसा बोलते तो आपका बच्चा आपके इतना करीब आ जाता। अब ऐसा बोलने पर आपको उनका सम्मान मिला, वे आपके करीब हो गए तो इस बात की अधिक संभावना है कि वे आपकी बातों से प्रभावित होंगे।लेकिन अगर हमने ये कहा, "तुम गलत हो, तुम क्या कर रहे हो? क्या यही मैंने तुम्हें सिखाया है? लोग क्या कहेंगे?" 

बच्चे आपसे दूरी बना लेंगे। अब वे रोज स्कूल जाना बंद करेंगे और आपको बताएंगे भी नहीं। हमने इस विषय में एक पोस्ट और लिख चुके है। अगर आपने नहीं पढ़ी है तो उस पोस्ट को पढ़े क्योकि उस पोस्ट में पेरेंट्स और बच्चे के रिलेशन के बारे में हमने विस्तार से  बताया है। 

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आज की दुनिया में अगर आप अपने बच्चों की रक्षा करना चाहते हैं - तो एक ही रास्ता है और वह यह होना चाहिए कि वे आकर आपको अपने जीवन में होने वाली हर बात बता सकें। बिल्कुल सब कुछ। और हो सकता है कि सब कुछ वह न हो जो आप हमेशा पसंद करेंगे। यह नहीं होगा।

लेकिन आप उनकी देखभाल करना और उनकी रक्षा करना चाहते हैं? उन्हें आकर आपको सब कुछ बताना होगा। हमें बच्चों से उनके कई मुद्दों के बारे में लंबे ईमेल प्राप्त होते हैं और प्रत्येक ईमेल की अंतिम पंक्ति कहती है, "कृपया मेरे माता-पिता को न बताएं"। और इसीलिए आज स्कूलों में काउंसलर हैं।

काउंसलर (सलाहकार )और माता-पिता के बीच क्या अंतर है?


बच्चों के प्रति माता पिता का कर्तव्य/माता पिता बच्चो के प्रति अपनी जिम्मेदारी को कैसे पूरा करें


काउंसलर और माता-पिता के बीच क्या अंतर है? काउंसलर और माता-पिता के बीच अंतर क्यों है? हमारे समय में जब हम स्कूल में थे तो कोई काउंसलर नहीं थे। है ना? लेकिन आज हर स्कूल में एक काउंसलर होना अनिवार्य है। क्या अंतर है?और ऐसा क्यों होता है कि - एक बच्चा अपने माता-पिता के पास जाने के बजाय अपनी समस्याओं के बारे में बात करने के लिए किसी अजनबी के पास  जाता है? क्यों? 

काउंसलर और माता-पिता के बीच का  अंतर है? माता -पिता बच्चे की गलती पर उसे डांटेंगे लेकिन काउंसलर बच्चे की गलती पर कभी नहीं डाँटेगा  -उदाहरण के लिए -अगर आप एक काउंसलर हैं और अगर मैं आकर आपको बता दूं कि मैंने यह गलती की है, सिर्फ एक गलती नहीं है, मान लीजिए मैंने बहुत बड़ी गलती की है - तो गलती को सुनने के बाद भी कोई प्रतिक्रिया नही देंगे। 

अपने भीतर मुझे सुनते हुए व अच्छा बुरा कुछ भी बोलने पर  मेरे  लिए कोई आलोचनात्मक या निर्णयात्मक विचार नहीं बनाया जाएगा। तो जब उसके  भीतर मेरे बारे में ऐसा कोई विचार ही नहीं पैदा होगा तो मुझे तुमसे किस तरह का कंपन मिलेगा? 

मुझे आपसे किस तरह का कंपन मिलेगा? मैंने जो किया है उसके बावजूद भी मुझे काउंसलर से सम्मान और स्वीकृति मिली । वो भी बिना शर्त स्वीकृति है। और क्योंकि मुझे वे स्पंदन आप से मिल रहे हैं, मैं सब कुछ बताने में सहज हूं। मैं सब कुछ बताकर सहज हूं।

लेकिन क्या होता है जब बच्चा अपने माता-पिता से वही बात कहता है? सिर्फ शब्दों में नहीं, विचारों में भी यह (नकारात्मक) कंपन (ऊर्जा ) बच्चे को हमें कुछ भी कहने से रोकता है। और फिर उनकी मदद कौन करेगा? 

एक काउंसलर केवल उनकी बात सुन सकता है। लेकिन वे माता-पिता की तरह प्यार, शक्ति और आशीर्वाद नहीं दे सकते। तो समय की मांग यह है कि प्रत्येक माता-पिता को काउंसलर बनने की आवश्यकता होगी? हर माता-पिता को बनना होगा? 

हां? और इसका मतलब है कि हर आत्मा को हर दूसरी आत्मा का सलाहकार बनना होगा यानी के हर व्यक्ति को एक -दुसरे को समझने की जरूरत है ,एक दू से बात करने की जरूरत है। 

हर आत्मा को हर दूसरी आत्मा का सलाहकार बनना है। यानी हम -आत्मा, उनके संस्कार, उनके व्यवहार को देखेंगे लेकिन अंदर? कोई आलोचनात्मक या निर्णयात्मक विचार नहीं लाएंगे और उनके व्यवहार पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगाएंगे । 

लेकिन हम इसे तभी कर पाएंगे जब हमें याद होगा "वह अपने संस्कारों को धारण करने वाली आत्मा है" इस कलयुग को देखकर और यहाँ क्या हो रहा है और उन्हें देखकर आत्मा शरीर छोड़ कर दूसरा तन धारण कर लेती है । तो आत्मा अपने साथ क्या ले जाएगी? (संस्कार ) 

एक बार नेपाल में भूकम्प आया था, इतनी आत्माएं शरीर छोड़कर चली गईं। सही? बहुत से लोग पीछे छूट गए और आघात का अनुभव किया। हादसे के साक्षी बने लोगों की अब भी काउंसलिंग की जा रही है। अभी भी उनकी काउंसलिंग की जा रही है। 

लेकिन उन लोगों का क्या जिन्होंने उस आघात में अपना शरीर छोड़ दिया? वे फिर से बच्चों के रूप में पैदा हुए थे लेकिन उनके नए माता-पिता को उम्मीद थी कि बच्चा सही होगा। 

अब जिसने भी उन दर्दनाक दृश्यों को देखा और उस दृश्य में अपना शरीर छोड़ दिया वह बच्चा कैसा होगा? जरा सोचो - वह बच्चा कैसा होगा? वह बच्चा डर जाएगा।

वह बच्चा शायद कहीं अकेला न जाए। हो सकता है कि वह बच्चा रात में अकेले सो न पाए। वह बच्चा अपने माता-पिता से चिपक सकता है। लेकिन माता-पिता इसे कैसे समझेंगे? वे बच्चे के व्यवहार पर सवाल उठाने लगते हैं। वह बच्चा ठीक नहीं हुआ था (अपने पिछले जन्म में उस आघात को देखने के बाद)। 

वह आत्मा ठीक नहीं हुई। आत्मा 5 साल का बच्चा हो सकता है या आपके साथ काम करने वाला 50 साल का व्यक्ति हो सकता है, जिसने अपने पिछले दुर्व्यवहार में आघात, दर्द, विश्वासघात, अस्वीकृति का अनुभव किया हो , कुछ भी।

तो उसके संस्कार कैसे होंगे? तो जिन आत्माओं (लोगों ) ने अपने साथ दर्द उठाया है, उन्हें हम से क्या प्राप्त करना चाहिए? अब यह बच्चा जिसने आघात का अनुभव किया है यदि उसके वर्तमान माता-पिता उसकी आलोचना करते हैं और उसे कायर कहते हैं। हम कभी-कभी ऐसा करते हैं, है ना? हम उसे कायर कहते हैं। 

तो जो बच्चा पहले से ही अपने साथ दर्द सह चुका है अगर उसकी आलोचना की जाती है और उपहास किया जाता है तो आत्मा की शक्ति का क्या होता है? सत्ता का क्या होता है? यह और घटेगा। जब उसका स्थूल शरीर बढ़ता है तब भी आज शरीर 5  वर्ष का है, कल 50  वर्ष का होगा। लेकिन आत्मा के साथ क्या होता रहेगा? (घटता रहता है) तो मरहम लगाने वाला का अर्थ है जो हर आत्मा को ठीक कर देगा। 

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काउंसलर का कर्तव्य 

एक काउंसलर का कर्तव्य है कि वह उन लोगो को जो उनसे बात कर रहे होते है या सलाह मांग रहे होते है ,वो उनको सही सलाह दे। यदि कोई व्यक्ति उनसे कोई बात पूछे या कुछ गलत करने जा रहा हो तो वो उन्हें रोके ,टोके ,सिर्फ हाँ में हाँ न मिलाये क्योकि व्यक्ति उसके पास भरोसा करके जाता है। विश्वास करके जाता है। 


बच्चो के प्रति माता -पिता का अच्छा काउंसलर बनना 


बच्चों के प्रति माता पिता का कर्तव्य/माता पिता बच्चो के प्रति अपनी जिम्मेदारी को कैसे पूरा करें


प्रिय पाठकों !यदि आप  चाहते है की आपका बच्चा आपको सबकुछ बताये ,सारी बातें शेयर करें तो -आप अपने बच्चो को समझे ,उनकी पूरी बातें सुने। इस कलयुगी दौर में बच्चे  का बिगड़ना ,बहकना स्वाभाविक है। कहने का मतलब है की बच्चे गलत रास्ते बहुत जल्दी अपनाते है क्योकि उन्हें उन रास्तों पर चलना अच्छा लगता है। क्योकि उन्हें  कोई रोकने -टोकने वाला नहीं है।  इसका मतलब ये तो नहीं की हम बच्चो को उनके हाल पर छोड़ दे। 

घर के अंदर आप बच्चो का ध्यान रख सकते हो लेकिन घर से बाहर कैसे रखोगे। क्या आप उनका बाहर आना जाना बंद दोगे ?नहीं -इन समस्याओं से छुटकारा तभी मिलेगा जब आप उनको समझोगे। जब वो कोई ऐसा काम करें जो आपको पसंद न हो तो डांटने ,मारने की जगह पहले उनकी पूरी बात सुने- की उन्होंने ऐसा काम क्यों किया। दोस्तों कई बार आँखों देखा और  कानों सुना सही नहीं होता। 

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आपका बच्चा आपका अपना बच्चा है। उन पर भरोसा रखे। अपना विश्वास टूटने न दें। बच्चो को मारने -पीटने से हो सकता है की वो शांत बैठ जाए और उस गलती को दुबारा न दोहराये ,पर आगे कोई गलती नहीं करेंगे इस बात की क्या गारंटी है। 

दोस्तों यदि आप चाहते की आपका बच्चा किसी दूसरे काउंसलर के पास न जाए ,उसे कभी काउंसलर की जरूरत न पड़े ,आपका बच्चाआपकी सुने ,सही रास्ते पर चले - तो दूसरों से पहले आप उनके  काउंसलर बन जाएँ। क्योकि बच्चो के लिए माता -पिता से अच्छा काउंसलर कभी हो ही नहीं सकता। 

माता -पिता से अच्छा कोई और बच्चे को नहीं समझ सकता ,माता पितासे अच्छा कोई दोस्त नहीं हो सकता। दुसरे लोग अच्छी शिक्षा दें रहे है या बुरी शिक्षा दे रहे है।  हमे क्या पता ? क्या पता कैसी शिक्षा दे रहे है ? कल को घर से परेशान या दुखी होकर और लोगों की बातों में आकर वो कोई गलत कदम उठा लें -तो फिर क्या करोगें ?

इसलिए समय रहते समझ जाइये। गलतियां बच्चो से बड़ी तो नहीं हो सकती। बच्चे है तो सबकुछ है और अगर बच्चे नहीं तो कुछ भी नहीं।

आशा करते है आपको हमारी आज की ये पोस्ट पसंद आई होगी। आपको पोस्ट कई लगी कमेंटबॉक्स में बता सकते है। आपके मन में कोई प्रश्न हो ,आप कुछ पूछना चाहते हों या जीवन में कोई उलझन हो तो आप कमेंट बॉक्स में वो भी पूछ सकते है। विश्वज्ञान आपके लिए हमेशा ज्ञानपूर्ण और ऐसी ही रोचक जानकारियां लेकर आता रहेगा। 

इसी के साथ विदा लेते है और भोलेनाथ जी से आपके जीवन की मंगल कामना करते है की वो आपको हमेशा खुश रखे और आपके बच्चो को सद्बुद्धि प्रदान करें। 

धन्यवाद 

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