Dwadash jyotirling stotram।द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र

 

हर-हर महादेव प्रिय पाठकों 

आशुतोष भगवान शिव आप सभी का कल्याण करे।l

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संक्षिप्त जानकारी 

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र केवल हिंदी मेस्तोत्र 

Dwadash jyotirling stotram। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र

स्तोत्र के रचनाकार

इस स्तोत्र के रचनाकार-श्री मच्छंकराचार्य जी

अधारित स्तोत्र

आधारित स्तोत्र-भगवान शिव 

संक्षिप्त जानकारी 

दोस्तों!भगवान शिव की ये स्तुति बहुत ही सुंदर स्तुति है।इस स्तोत्र मे भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे मे बताया गया है।

चलिए हम सभी उन स्थानों के बारे में जाने जहाँ  भगवान शिव ने अपने चरणो को रखाऔर वास किया। चलिए उन सभी स्थानों को नमन कर है जहाँ भगवान शिव लोगों के कल्याण के लिए लिन्ग्स्वरूपो मे विराजमान है।

नोट -- दोस्तो स्तुति पढ़ने से पहले स्वागत है आपका एक बार  फिर से विश्वज्ञान मे। यह एक धार्मिक ब्लोग है।इसमे आपको हर प्रकार की सही जानकारी देना ही हमारा उददेश्य है।आप सही राह पर चले भटके नही ,जीवन मे कोई दुविधा हो जवाब न मिल रहा हो ,परेशान हो तो आप हमसे अपने प्रश्नो को comment द्वारा पुछ सकते है।हम आपके प्रश्नो का उत्तर अवश्य देंगे।

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द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित

Dwadash jyotirling stotram।द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र
Dwadash jyotirling stotram।द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र


सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।

भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥1॥


जो अपनी भक्ति प्रदान करनेके लिये
अत्यन्त रमणीय ( बहुत ही सुंदर )तथा निर्मल (पवित्र )सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में
दयापूर्वक (दया करने के लिए )अवतीर्ण हुए (आये ,उतरे )हैं,
चन्द्रमा जिनके मस्तक (माथे )का आभूषण (गहना )है,
उन ज्योतिर्लिंगस्वरूप(रौशनी के प्रतिक ) भगवान् श्रीसोमनाथ जी (शिवजी  )की शरण में मैं जाता हूँ॥1॥


श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम्।

तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम्॥2॥


जो ऊँचाईके आदर्शभूत पर्वतोंसे भी बढ़कर ऊँचे श्रीशैलके शिखरपर,
जहाँ देवताओंका अत्यन्त समागम होता रहता है,
प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा
जो संसार-सागरसे पार करानेके लिये पुलके समान हैं,
उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुन को मैं नमस्कार करता हूँ॥2॥


अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।

अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्॥3॥


संतजनोंको मोक्ष देनेके लिये
जिन्होंने अवन्तिपुरी (उज्जैन) में अवतार धारण किया है,
उन महाकाल नामसे विख्यात महादेवजीको
मैं अकालमृत्युसे बचनेके लिये नमस्कार करता हूँ॥3॥


कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।

सदैवमान्धातृपुरे वसन्त मोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे॥4॥


जो सत्पुरुषोंको संसार-सागरसे पार उतारनेके लिये
कावेरी और नर्मदाके पवित्र संगमके निकट
मान्धाताके पुरमें सदा निवास करते हैं,
उन अद्वितीय (अनोखे)कल्याणमय भगवान् ॐकारेश्वरका मैं स्तवन (स्तुति)करता हूँ॥4॥


पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम्।

सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि॥5॥


जो पूर्वोत्तर दिशामें चिताभूमि (वैद्यनाथ-धाम) के भीतर
सदा ही गिरिजा (माँ पार्वती) के साथ वास करते ( रहते)हैं,
देवता और असुर जिनके चरण कमलों (कमल के समान सुंदर पैरों)की आराधना करते हैं,
उन श्रीवैद्यनाथको मैं प्रणाम करता हूँ॥5॥


याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः।

सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये॥6॥


जो दक्षिणके अत्यन्त रमणीय सदंग नगरमें
विविध भोगोंसे सम्पन्न होकर
सुन्दर आभूषणोंसे भूषित हो रहे हैं,
जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्तिको देनेवाले हैं,
उन प्रभु श्रीनागनाथकी मैं शरणमें जाता हूँ॥6॥


महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।

सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे॥7॥


जो महागिरि(बड़े पहाड़) हिमालयके पास केदारशृंगके तटपर
सदा निवास करते हुए मुनीश्वरों (मुनियों) द्वारा पूजित होते (पूजें जाते)हैं तथा देवता, असुर, यक्ष और महान् सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं,उन एक कल्याणकारक (शुभ,कल्याण करने वाले) भगवान् केदारनाथका मैं स्तवन करता हूँ॥7॥


सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरितीरपवित्रदेशे।

यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे॥8॥


जो गोदावरीतटके पवित्र देशमें
सह्यपर्वतके विमल शिखरपर वास करते हैं,
जिनके दर्शनसे तुरंत ही पातक नष्ट हो जाता है,
उन श्रीत्र्यम्बकेश्वरका मैं स्तवन करता हूँ॥8॥


सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः।

श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि॥9॥


जो भगवान् श्रीरामचन्द्रजीके द्वारा ताम्रपर्णी (श्रीलंका)और सागर के संगम पर अनेक बाणों द्वारा पुल बाँधकर स्थापित किये गये हैं,उन श्रीरामेश्वरको मैं नियमसे (प्रतिदिन) प्रणाम करता हूँ॥9॥


यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च।

सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि॥10॥


जो डाकिनी (शमशान की देवी)और शाकिनी (पिशाचनी ) वृन्द मे (समूह,इकट्ठी होकर) प्रेतोंद्वारा सदैव सेवित (पूजे जाते )होते हैं,
उन भक्तहितकारी (भक्तों के हित करने वाले) भगवान् भीमशंकर को मैं प्रणाम करता हूँ॥10॥



सानन्दमानन्दवने वसन्त- मानन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।

वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥11॥


जो स्वयं आनन्दकन्द हैं और आनन्दपूर्वक
आनन्दवन (काशीक्षेत्र) में वास करते हैं,
जो पापसमूहके नाश करनेवाले हैं,
उन अनाथोंके नाथ काशीपति श्रीविश्वनाथकी शरणमें मैं जाता हूँ॥11॥


इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन्स मुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्।

वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये॥12॥


जो इलापुरके सुरम्य मन्दिरमें विराजमान होकर
समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं,
जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है,
उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान् शिवकी शरणमें मैं जाता हूँ॥12॥


ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण।

स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च॥13॥

यदि मनुष्य क्रमशः कहे गये
इन बारहों ज्योतिर्मय शिवलिंगोंके स्तोत्रका
भक्तिपूर्वक पाठ करे,
तो इनके दर्शनसे होनेवाले फलको प्राप्त कर सकता है॥13॥


द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र हिन्दी 

जो अपनी भक्ति प्रदान करनेके लिये अत्यन्त रमणीय ( बहुत ही सुंदर) तथा निर्मल (पवित्र) सौराष्ट्र प्रदेश(काठियावाड़) में दयापूर्वक(दया करने के लिए ) अवतीर्ण हुए (आये ,उतरे )हैं,
चन्द्रमा जिनके मस्तक (माथे )का आभूषण (गहना )है,उन ज्योतिर्लिंगस्वरूप(रौशनी के प्रतिक ) भगवान् श्रीसोमनाथ जी (शिवजी  )की शरण में मैं जाता हूँ॥1॥

जो ऊँचाईके आदर्शभूत पर्वतोंसे भी बढ़कर ऊँचे श्रीशैलके शिखरपर,जहाँ देवताओंका अत्यन्त समागम होता  रहता है, प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं तथा जो संसार-सागरसे पार कराने के लिये पुलके समान हैं, उन एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुन को मैं नमस्कार करता हूँ॥2॥

संतजनोंको मोक्ष देनेके लिये जिन्होंने अवन्तिपुरी (उज्जैन) में अवतार धारण किया है,उन महाकाल नामसे विख्यात महादेवजी को मैं अकालमृत्यु से बचनेके लिये नमस्कार करता हूँ॥3॥

जो सत्पुरुषोंको संसार-सागरसे पार उतारनेके लिये कावेरी और नर्मदाके पवित्र संगमके निकट मान्धाताके पुरमें सदा निवास करते हैं,उन अद्वितीय (अनोखे) कल्याणमय भगवान् ॐकारेश्वरका मैं स्तवन(स्तुति) करता हूँ॥4॥

जो पूर्वोत्तर दिशामें चिताभूमि (वैद्यनाथ-धाम) के भीतर सदा ही गिरिजा के(माँ पार्वती के) साथ वास करते हैं,देवता और असुर जिनके चरण कमलों (कमल के समान सुंदर पैरों) की आराधना करते हैं,उन श्रीवैद्यनाथको मैं प्रणाम करता हूँ॥5॥

जो दक्षिणके अत्यन्त रमणीय(सुन्दर,मनोहर) सदंग नाम के नगर में विविध (कई तरह के,अनेक प्रकार के ) भोगोंसे सम्पन्न होकर सुन्दर आभूषणोंसे भूषित हो रहे हैं,जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्तिको देनेवाले हैं,उन प्रभु श्रीनागनाथकी मैं शरणमें जाता हूँ॥6॥

जो महागिरि (बड़े पहाड़) हिमालयके पास केदारशृंग के तटपर सदा निवास करते हुए मुनीश्वरों (मुनियों) द्वारा पूजित होते (पूजे जाते)है तथा देवता, असुर, यक्ष और महान् सर्प आदि भी जिनकी पूजा करते हैं,उन एक कल्याणकारक (शुभ,कल्याण करने वाले)भगवान् केदारनाथका मैं स्तवन (स्तुति) करता हूँ॥7॥

जो गोदावरीतटके पवित्र देशमें सह्यपर्वतके विमल (पवित्र) शिखरपर (पहाड़ की चोटी पर) वास करते हैं,जिनके दर्शनसे
तुरंत ही पातक (अपराध,पाप,गुनाह) नष्ट हो जाता है, उन श्रीत्र्यम्बकेश्वरका मैं स्तवन (स्तुति) करता हूँ॥8॥

जो भगवान् श्रीरामचन्द्रजीके द्वारा ताम्रपर्णी (श्रीलंका)और सागरके संगम पर अनेक बाणोंद्वारा पुल बाँधकर स्थापित किये गये हैं, उन श्रीरामेश्वरको मैं नियमसे(प्रतिदिन)प्रणाम करता हूँ॥9॥


जो डाकिनी (शमशान की देवी)और शाकिनी (पिशाचनी ) वृन्द मे (समूह,इकट्ठी होकर) प्रेतोंद्वारा सदैव सेवित (पूजे जाते )होते हैं,
उन भक्तहितकारी (भक्तों के हित करने वाले) भगवान् भीमशंकर को मैं प्रणाम करता हूँ॥10॥

जो स्वयं आनन्दकन्द हैं और आनन्दपूर्वक आनन्दवन (काशीक्षेत्र) में वास करते हैं,जो पापसमूहके नाश करनेवाले हैं,उन अनाथोंके नाथ काशीपति श्रीविश्वनाथकी शरणमें मैं जाता हूँ॥11॥

जो इलापुरके सुरम्य मन्दिरमें विराजमान होकर समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं, जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है, उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान् शिवकी शरणमें मैं जाता हूँ॥12॥

यदि मनुष्य क्रमशः कहे गये इन बारहों ज्योतिर्मय शिवलिंगोंके स्तोत्रका भक्तिपूर्वक पाठ करे, तो इनके दर्शनसे होनेवाले फलको प्राप्त कर सकता है॥13॥

प्रिय पाठकों! इस प्रकार प्रभु की ये प्यारी स्तुति संपन्न हुई।आशा करते है कि आपको यह शिव स्तुति अच्छी लगी होगी।इसी के साथ आपसे विदा लेते है।विश्वज्ञान मे अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी।

धन्यवाद 
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