MORAL STORY GAREEB HARI|कहानी गरीब हरि | ( किसी भी अच्छी बुरी परिस्तिथि में भगवान को दोष नहीं देना चाहिए )

श्री गणेशाय नमः  

हर -हर महादेव प्रिये पाठकों 

भोलेनाथ की आशीर्वाद हमेशा आपको प्राप्त हो। 


दोस्तों इस पोस्ट में आप पाएंगे 

कहानी गरीब हरि 

भोलेनाथ का हरि को दर्शन देना 

शिक्षा 


हमारे हिन्दू सभ्यता के अनुसार व्यक्ति को चार भागो में विभाजित किया है।पहला-भ्रह्माचारि का, जिसका कर्तव्य है ,गुरु -आज्ञाका पालन करना ,दूसरा है -गृहस्थ का,जिसका कर्तव्य है,अतिथि -सत्कार करना ,तीसरा है -वानप्रस्थ का,जिसका कर्तव्य है तप करना और चौथा है-सन्यासि का,जिसका कर्तव्य है ,भगवान का भजन करना। जिसमे से सबसे कठिन कर्तव्य है गृहस्थ आश्रम निभाना। ये कहानी गृहस्थाश्रम से ही सम्बंधित है।क्र्प्या ध्यान पूर्वक पढ़े। 


कहानी गरीब हरि 

MORAL STORY GAREEB HARI|कहानी गरीब हरि | ( किसी भी अच्छी बुरी परिस्तिथि में भगवान को दोष नहीं देना चाहिए )

एक व्यक्ति था।उसका नाम हरी था।वह बहुत गरीब था।उसे अपने जीवन से कोई भी शिकायत नहीं थी क्योंकि उसे अपने भगवान पर अटूट विश्वास था।जब तक उसका विवाह नहीं हुआ था,तब तक तो सब ठीक था।जैसे तैसे काम चल जाता था।पर संयोगवश प्रभु की कृपा से जब उस व्यक्ति का विवाह हो गया।तो उसकी जिम्मेदारी भी बड़ गईं।फिर भी उसने हिम्मत नही हारी।उसने अपनी स्त्री से कहा की देखो मैं बहुत गरीब हूँ।फिर भी मैं पूरी कोशिश करूँगा की तम्हें खुश रख सकूं।पर  तम्हें भी एक वादा करना होगा की हम चाहे कैसी भी स्थिति मे रहे।भूखे प्यासे जैसे भी रहे।पर हमारे घर आया हुआ कोई भी अतिथी भूखा न जाने पाये।फिर चाहे उस अतिथी को हमे अपने हिस्से का भोजन ही क्यो न देना पड़े।स्त्रीने कहा की अच्छी बात है।


अगली सुबह हरी काम पर गया। कुछ दिन ऐसे ही बीते। दिन भर में वो जो भी कमाता अपनी स्त्री को ला के दे देता।  घरकी स्थिति बहुत साधारण थी। खानेके लिए अन्न कभी होता था और कभी नहीं होता था।पर स्त्री ने कभी कोई शिकायत नहीं की। दोनों के अंदर बहुत सयंम था। भगवान से भी उन्हें कभी कोई शिकायत नहीं थी। वो हमेशा एक दूसरे को समझाते की भगवान किसी के साथ कुछ गलत नहीं करते ,वो जो करते है सोच समझ कर ही करते है और अपने भक्तों के हित के लिए ही करते है।

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ऊपर भगवान शिव ये सब देख रहें थे।  उनकी लीला बड़ी विचित्र है। इतनी परेशानी होने के बाद भी भगवन ने उनके धैर्य की परीक्षा लेनी चाही। प्रभु की लीला के कारण अगले दिन उसके मालिक ने उसे काम से निकाल दिया। जिसके कारण वह बहुत परेशान हो गया और सोचने लगा की अब मैं क्या करूँ। उसे अपनी स्त्री का ख्याल आया और खाली हाथ घर जाना उचित न समझ कर उसने भीख़ माँगना शुरू कर दिया। भीख से उसे जो कुछ मिला उसने वह अपनी स्त्री को ला कर दे दिया। स्त्री ने उससे भोजन की व्यवस्था की। राति के समय उसने अपनी स्त्री को सारी बात बता दी स्त्री ने बिना किसी शिकायत केअपने पती को धैर्य बधाँते हुए कहा की कोई बात नहीं सब ठीक हो जायगाऔर फिर वह दोनों सो गए। 


अगले दिन भगवान एक  सन्यासी बनकर उनके घरआये और दरवाजें के बाहर खड़े हो कर बोले की घरमे कोई  है?हरी आवाज़ सुन कर बाहर आया। दिव्य रूप धारण किये और मुख पर तेज़ उत्पन्न किये हुए साधू को देख कर हरी उन्हें पल भर के लिए तो देखता ही रह गया। साधू के दुबारा आवाज़ लगाने पर उसको होश आया तो उसने झट से आकर साधू बाबा को प्रणाम किया। सन्यासी बोले की आज मनमे आ गयी की तुम्हारे यहाँ भोजन करुँ। हरी  बोला की बड़ी अच्छी बात है, आनंदकी बात है!वह बूढ़े सन्यासीको भीतर ले गया और उनको बैठाया।


दैवयोगसे उस दिन हरी को गाँवसे भिक्षा मिली ही नहीं थी !उसने सोचा की अब क्या करे? खुद तो भूखे भी रह जाएँ ,पर महाराज (साधू बाबा ) को भूखा कैसे रखें ? घरमे कोई सम्पत्ति थी नहीं। केवल फटे -पुराने कपड़े और बर्तन ,गोपीचंद ,टूटी हुई चटाई -बस घर में यही सामग्री थी !हरी ने स्त्रीसे कहा की आज बढ़ा गजब हो जायेगा ! स्त्री बोली की आप घबराते क्यों हो ,मैं बैठी हूँ न !हरी बोला की क्या तुम्हारे पास कोई गहना है ?वह बोली -'गहना कहाँ है ?कपड़े भी फटे-पुराने है !


हरी बोला -'तो फिर अतिथि -सत्कार कैसे करेंगे ?'स्त्री बोली -' आप नाइ के घरसे [कैंची] ले आओ। 'हरी कैची ले आया। स्त्रीने अपने सिरके केश भीतर -भीतरसे काँट लिये और बाहरके केश बाँध लिये। कटे हुए केशोंकी रस्सी बनायीं और हरी को देते हुए बोली की इसको बेच आओ। हरी उस रस्सी को लेकर बाजार गया और बेचनेपर जो थोड़े -से पैसे मिले ,उनसे थोड़े चावल और दाल ले आया। स्त्री ने दाल चावल बना दिये।और सन्यासी को कहा ! की महाराज भोजन तैयार है ,भोजन कर लीजिये ।


महाराज भोजन ग्रहण करने के लिए बैठ गए। हरी ने केले के पत्ते पर भोजन ला कर दिया और साधू बाबा भोजन खाने लगे।जब हरी ने देखा की साधू बाबा का भोजन समाप्त होने वाला है,तो उसने साधू बाबा से पूछा की -महाराज और भोजन लेंगे क्या। बाबा जी ने कहा - हाँ बेटा,-बहुत दिनों से भूखा हूँ। इसलिए थोड़ा भोजन और ले आओ। तब हरी ने बाकी बचा भोजन भी साधू बाबाको ला कर दे दिया। साधू बाबा भर पेट भोजन करने के बाद उठे और फिर बोले की बेटा , 

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आज बड़े दिनों बाद इतना भर पेट खाया है। इतना अच्छा भोजन करने के बाद अब नींद भी आ रही है। मेरा ये शरीर भी अब बूढ़ा हो गया है इसलिए मैं अब चल भी नहीं पाऊंगा। बेटा , क्या मैं थोड़ी देर यहाँ आराम कर सकता हूँ। हरी ने कहा की हाँ-हाँ महाराज क्यों नहीं। सन्यासी बाबा ने पूरा दिन वही बिताया और शाम होने पर बोले की बेटा -आज हमारे जाने की बिलकुल भी ईच्छा नहीं है। बहुत थकावट भी हो रही हैं सो आज हम यही रुकेंगे। 


हरी ने कहा ठीक है महाराज। उसके बाद हरी ने अपनी स्त्री को बाहर बुला कर,- कहा की दिन में तो भोजन की व्यवस्था हो गई परन्तु अब रात के भोजन की व्यवस्था कैसे करे।स्त्री ने कहा की आप चिंता न करें। स्त्री ने अपने सिर के बाकी बाल भी काट दिए और पहले की तरह इस बार भी रस्सी बनाई। हरी ने उस रस्सी को जाकर बाज़ार में बेच दिया और उससे मिले रुपयों से खाने की सामग्री खरीदकर अपनी स्त्री को ला कर दी। स्त्री ने उससे रात केभोजन की व्यवस्था की। और सन्यासी बाबा को भर पेट भोजन कराया। 


भोजन कराने के बाद हरी ने उन्हें सोने के लिए चटाई दी। जो की बहुत जगहसे फट रही थी। साधू बाबा उस पर लेट गए।और हरी उनके पैर दबाने लगा। थोड़ी देर बाद साधू बाबा को नींद आ गई। और वे सो गए। हरी भी उनके पैरो के पास सो गया और स्त्री भी थोड़ी दूर धरती पर ऐसे ही सो गई। जब वो दोनों सो गए ,तब साधू बाबा उठे। उन्होंने उनके इस कठिन अतिथि सत्कार से खुश हो कर उन दोनों को आशीर्वाद दिया की तुमदोनों सदा खुश रहो। 


साधू बाबा ने उस स्त्री के सारे बाल ठीक कर दिए। उनके कपड़े ,घर सब ठीक कर दिए। घर को धन और अन्न से भर दिया। स्त्री पुरूष दोनों को सुन्दर आभूषणों से सजा दिया और फिर सन्यासी बाबा वहां से अंतर्धान हो गए। आधी रात में जब स्त्री की आँख खुली तो उसने देखा की साधु बाबा नहीं है। उसने अपने पति को जगाया। उसके पति ने उठकर देखा की उसकी स्त्री और वो खुद गहनों ,कपड़ो से सजे हुए है और पूरा घर भी बदला हुआ है। स्त्री ने कहा साधु बाबा घर पर नहीं है। हरी ने कहा की वो तो बहुत बूढ़े है चल भी नहीं पाते फिर इस अँधेरे में कैसे चले गए। 

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स्त्री बोली पता नहीं। हरी ने बाहर निकल कर देखा ,गलियों में ,चबूतरे पे ,हर तरफ देखा। पर सन्यासी बाबा कहीं दिखाई नहीं दिए। वो घर लौट आया और बोला की बाबा कही नहीं मिले। वो दोनों रोने लगे और कहने लगे की हमसे कितनी बड़ी गलती हो गई। हमारे प्रभु हमारे पास थे और हमने उन्हे पहचाना नहीं और भगवान से क्षमा मांगने लगे की- प्रभु हमने आपको नहीं पहचाना ,हम अनजान थे। हमसे आपकी सेवा में बहुत त्रुटि हो गई। हमे क्षमा कर दो प्रभु -क्षमा कर दो। एक बार  हमे अपने वास्तविक रूप का दर्शन दो प्रभु -नहीं तो हम अपने इस जीवन का अंत कर देंगे। दोनों ऐसा कह कर रोते रहे।


भोलेनाथ का हरि को दर्शन देना 

तभी दिनों पर दया करने वाले भगवान शिव वहां प्रकट हुए। उन्होंने उन दोनों को उठाया ,शांत कराया और कहा कि मैं तुम्हारी सेवा सत्कार व भोजन से अति प्रसन्न हूँ। तुम दोनों ने कठिन से कठिन परिस्थिति में भी मुझ पर से विश्वास नहीं डिगाया। इसलिए मैं तुम्हे आशीर्वाद देता हूँ कि तुम दोनों को जीवन में कभी कोई दुःख तकलीफ नहीं होगी। और जीवन के अंतीम समय को प्राप्त करने के बाद तुम्हे मेरा ही धाम प्राप्त होगा। तुम हमेशा मुझे प्रिय रहोगे। जिस तरह तुमने मेरा सत्कार किया ऐसे ही सभी अतिथियों का करते रहना। और इतना कह कर भगवान अंतर्धान हो गए। 


शिक्षा 

जीवन में कभी भी किसी भी अच्छी बुरी परिस्तिथि में भगवान को दोष नहीं देना चाहिए। क्योकि वो जो भी करते है, अपने भक्तो के हित के लिए करते है। वो जीवन को यदि बर्बाद कर सकते है -तो आबाद भी कर सकते है।उनसे किसी भी प्रकार की शिकायत करने की बजाये ---- बस जरूरत है उन पर अटूट विश्वास रखने की


प्रिय पाठकों!आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी।इसी के साथ हम अपनी वाणी को विराम देते है और प्रार्थना करते हैं कि भगवान शिव आप सभी के मनोरथों को सिद्ध करें।विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए हर -हर महादेव। 

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