क्यों है बांके बिहारी जी काले रंग के ?/निधिवन की सम्पूर्ण जानकारी (हरिदास जी की अचल भक्ति)निधिवन की एक प्रचलित सत्य घटना

 श्री गणेशाय नमः 

हर-हर महादेव 

प्रिय पाठकों!कैसे हैं आप लोग।आशा करते है की आप सभी लोग सकुशल होंगे। आशुतोष भगवान शिव आप सभी का कल्याण करें।


दोस्तों इस पोस्ट मे आप पायेंगे-

निधिवन का अर्थ

निधिवन की सम्पूर्ण जानकारी 

स्वामी हरिदास जी का जन्म

श्री राधे और कृष्ण का हरिदास को दर्शन देना

हरिदास जी का गीत 

राधा और कृष्ण का विश्राम स्थान रंगमहल

निधिवन की एक प्रचलित कथा 


जय श्री राधे कृष्ण प्रिय पाठकों!इससे पहले कि हम जानकारी प्राप्त करें स्वागत है आपका एक बार फिर से विश्वज्ञान मे। 

हरे कृष्ण यह पोस्ट वृंदावन के एक दिव्य कण्ठ निधिवन के बारे में है, जो कृष्ण के रहस्यमय अतीत के लिए प्रसिद्ध है।

निधिवन का अर्थ

"निधि" का अर्थ है धन और "वन" का अर्थ है "वान"।


रासलीला नृत्य और अन्य संयुक्त मामलों के बाद राधा और कृष्ण को यहाँ विश्राम करने के लिए कहा जाता है। इसके पास एक तालाब है जिसे विशाखापट्टनम कहा जाता है जिसे कृष्ण ने अपनी बांसुरी के साथ विशाखापट्टनम अन्य गोपियों की प्यास से छुटकारा दिलाने के लिए बनाया था।  

श्री बांके बिहारी के प्रसिद्ध देवता को स्वामी हरिदास ने यहाँ विशाखापट्टनम में पाया था । प्रारंभ में बिहारीजी के देवता को निधिवन में उपस्थिति स्थान के करीब एक मंदिर में स्थापित किया गया था । 

स्वामी हरिदास का जन्म

क्यों है बांके बिहारी जी काले रंग के  ?/निधिवन की सम्पूर्ण जानकारी (हरिदास जी की अचल भक्ति)निधिवन की एक प्रचलित सत्य घटना


उसके बाद में 1862 ई में बिहारजी के लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। स्वामी हरिदास जी का जन्म 1478 ई। में एक छोटे से गाँव में हुआ था , जिसे अब उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ के पास हरिदासपुर के नाम से जाना जाता है।

जन्म से भक्त (ललिता सखी का अवतार) होने के नाते , वह जल्द ही वृंदावन चले गए और निधिवन नाले में बस गए। वे भगवान कृष्ण को मीठे रूप से भक्ति गीत गाकर प्रसन्न करते थे, जिसे उन्होंने व्यक्तिगत रूप से संगीतबद्ध किया और बजाया था।

श्री राधे और कृष्ण का हरिदास को दर्शन देना

एक बार जब उन्हें राधा और कृष्ण की दिव्य दृष्टि मिली अथार्त भगवान्  राधा और कृष्ण  जी के दर्शन हुए तो उन्होंने भगवान और उनकी पत्नीसे हमेशा अपनी आंखों के सामने एक विशेष संयुक्त रूप में रहने का अनुरोध किया। 

भगवान श्री कृष्ण का काले रंग मे बदलना 

उसे अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए, युगल एक ही काले आकर्षक देवता में बदल गए , वही जिसे आप सभी लोग आज मंदिर में देखते हैं। श्री बांके बिहारीजी। जी दोस्तों श्री बांके बिहारी का आकर्षण और सौंदर्य ही एकमात्र कारण है कि मंदिर में 'दर्शन' निरंतर नहीं होता है, 

लेकिन नियमित रूप से उस पर खींचे गए पर्दे से टूट जाता है।कहा तो ये भी जाता है कि यदि कोई व्यक्ति श्री बांके बिहारीजी की आँखों में देर तक घूरता रहे, तो व्यक्ति अपनी आत्म-चेतना खो देगा।

हरिदास जी का गीत 

तानसेन और बैजूबावरा , हरिदास स्वामी के प्रसिद्ध शिष्य थे । जब हरिदास स्वामी के बारे में महाराज अकबर ने तानसेन से कहा, जो उनके मंत्री थे  उन्होंने उनकी गायकी को सुनना चाहा। लेकिन स्वामी हरिदास ने दृढ़ संकल्प किया था कि किसी का मनोरंजन करने के लिए नहीं गाएंगे,

लेकिन बादशाह अकबर उनका गीत सुनना चाहते थे, इसलिए बादशाह अकबर ने खुद को एक साधारण व्यक्ति के रूप में छिपाने का संकल्प लिया और तानसेन के साथ निधिवन में अपनी कुटी में चले गए। 

तानसेन,एक अच्छे संगीतकार होने के नाते, जानबूझकर अपनी वीणा अपने साथ लाए और हरिदास स्वामी के सामने गाने लगे । थोड़ी देर के बाद हरिदास स्वामी ने अपने शिष्य के हाथों से वीणा ली और उनकी (तानसेन )की  गलतियों को इंगित करते हुए वही गीत गाने लगे। 

उनका गायन इतना मधुर था कि जंगल में हिरण, पक्षी और अन्य जानवर भी आने लगे और चुपचाप उनके गीतों को सुनने लगे। वहाँ बैठे सभी लोग,पशु -पक्षी आदि इतने आकर्षित हुए कि सभी अपनी सुदबुद खो बैठे। 

अकबर के विस्मय (हैरानी ) की कोई सीमा नहीं रह गई । वह इतना प्रसन्न था कि वह तुरंत स्वामी हरिदास के लिए कुछ प्रस्तुत करना चाहता था , लेकिन बुद्धिमान तानसेन ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी, क्योंकि इससे  हरिदास की भक्ति को ठेस पहुँचती।

राधा और कृष्ण का विश्राम स्थान रंगमहल

जिस स्थान पर हरिदास स्वामी ने बांकेबिहारी देवता की खोज की थी, उसके ठीक बगल में रंग-महल नामक एक छोटा सा मंदिर है जिसमें एक बिस्तर है जहां राधा नृत्य के बाद राधा और कृष्ण विश्राम करते हैं। यह भी कहा जाता है, कि कृष्ण रास नृत्य से पहले राधारानी को विभिन्न प्रकार के सौंदर्य प्रसाधनों से सजाते हैं ।

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हर शाम मंदिर का पुजारी बिस्तर को फूलों से सजाता है, और दिव्य जोड़े के लिए एक पानी का पात्र, कुमकुम और सुपारी रखता है और चमत्कारी रूप से, हर सुबह उन फूलों और कुमकुम को बिखरा हुआ पाया जाता है, और कंटेनर का पानी चबाया हुआ सुपारी के निशान के साथ पीला पाया जाता है। 

यह एक लोकप्रिय धारणा है कि भगवान कृष्ण और राधारानी रासलीला करने के लिए रात में इस स्थान पर आते हैं। इसलिए शाम ढल जाते ही सभी लोग वन से चले जाते है। यहां तक ​​कि पक्षी और बंदर भी शाम के समय निधिवन की सीमाओं को छोड़ देते हैं ।

श्रीमती राधारानी को समर्पित एक और छोटा सा मंदिर है, जिसमें कृष्ण की बांसुरी को चुराने और ललिता और विशाखा के साथ खेलने का वर्णन है । हरिदास स्वामी की समाधि एक छोटे मंदिर के पीछे इस केंद्रीय मंदिर से बाईं ओर है। साथ ही निधिवन में एक शाही सिंहासन है,

जिस पर श्रीमति राधारानी ब्रज की रानी के रूप में बैठती हैं और श्रीकृष्ण, एक रक्षक के रूप में, क्षेत्र की रक्षा करते हैं। बिहारीजी के इन रहस्यों और जादू की सच्चाई का अनुभव करने के लिए , कृपया जल्द से जल्द वृंदावन की यात्रा करें।

निधिवन की एक प्रचलित कथा 

क्यों है बांके बिहारी जी काले रंग के  ?/निधिवन की सम्पूर्ण जानकारी (हरिदास जी की अचल भक्ति)निधिवन की एक प्रचलित सत्य घटना

मित्रों यह कथा है एक ऐसी कृष्ण भक्त की है,जिसने अपने गुरु से भागवत पुराण सुनने के बाद निधिवन में जाने का मन बना लिया और बार-बार उस वन से निकाले जाने के बाद भी अपने उद्देश्य से टस से मस नहीं हुआ और प्रयत्न करता रहा और अंत में एक दिन उसे वहां रात में रुकने का मौका मिल ही गया लेकिन उसके बाद उसने वहां जो देखा वह बेहद चौका देने वाला था। 


दोस्तों उस वक्त वहां एक ऐसी घटना घटी जो अचंभित करने वाली थी। ये एक सत्य घटना है जिसमें एक कृष्ण भक्त ने अपने गुरु से भागवत कथा सुनने के पश्चात निधिवन जाने का मन बना लिया जैसे ही उसे पता चला कि निधिवन के वनों में उपस्थित सभी पेड़ गोपियां है जो एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले खड़ी है और वहां शाम ढलते ही अपील गोपियां बनकर राधा रानी और कृष्ण सहित रासलीला करते हैं 


किंतु आज तक वहां यह दृश्य देखने वाला कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं बचा। इतना ही नहीं बल्कि वहां दिनभर वन में भ्रमण कर रहे हैं बंदर पशु-पक्षी भी शाम होते ही वहां से चले जाते हैं यहां तक कि जमीन पर रहने वाले जीव जैसे चींटी आदि भी ज़मीन के भीतर चले जाते हैं। 


इसका एक कारण यह भी सुनने में आता है कि उसमें हो रही लीला यहां के लौकिक जगत के लिए नहीं बल्कि अलौकिक की लीला है। कहा जाता है कि इस जगह से संबंध रखने वाला कोई भी साधारण जीव इस दृश्य को देखने का अधिकारी नहीं है। 


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कुछ साधु संतों का तो ऐसा भी कहना है कि उन्होंने तो निधिवन से राधा रानी और गोपियों की ध्वनि भी सुनी है यहां तक कि राधा रानी जब तक चाहती हैं तब तक भगवान श्रीकृष्ण उनके चरण कमल को दबाते हैं और रात में निधिवन में ही निरीक्षण करते हैं आज तक वहीं मौजूद है।


जहां रोज एक जल का पात्र (बर्तन) रखते हैं जो सुबह होने पर पानी का वह बर्तन खाली पाया जाता है। वहां सजाये हुए और फूल बिखरे हुए मिलते हैं। 


इतना सुनने के पश्चात उसकी उत्सुकता और बढ़ गई।इतनी बढ़ गई कि होने वाली लीला को देखने के लिए वह बैचैन हो गया।क्योंकि गुरु जी हमेशा से कहते थे कि आज भी वहां रात्रि श्री कृष्ण रास लीला रचाते हैं किंतु उसे विश्वास नहीं हुआ और उसने ठान लिया कि वह वृंदावन जरूर जायेगा। 


इसी जिज्ञासा के चलते राधा रानी की कृपा से उसे वृंदावन जाने का मौका मिला और उसने वहां पहुंचकर बिहारी जी और राधा रानी का मन भर कर मंदिर का दर्शन किया किंतु अभी भी उसके मन में निधिवन में क्या सच में बिहारी जी और राधा रानी गोपियों संग रास रचाते हैं ।


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यही जिज्ञासा उसे खाए जा रही थी फिर उसने वहीं रुक कर इस जिज्ञासा को शांत करने का उपाय निकाला और वहीं बैठा रहा शाम ढलने लगी और वहां के पुजारी निधिवन को खाली कराने लगे।


क्यों है बांके बिहारी जी काले रंग के  ?/निधिवन की सम्पूर्ण जानकारी (हरिदास जी की अचल भक्ति)निधिवन की एक प्रचलित सत्य घटना

 ये देखकर वो एक पेड़  के नीचे जाकर छिप गया लेकिन उसकी किस्मत काम नहीं आई और उसे पुजारी ने देख लिया और उसे वहां से जाने को कहा उस वक्त वह वहां से चला गया किंतु अगले ही दिन वो फिर आ गया किंतु बुरी किस्मत के चलते वह फिर पकड़ा गया लेकिन थोड़े समय बाद उसने वह जगह ढूँढ ही ली जहां उसे कोई नहीं देख सकता। वह वहां एक झाड़ि के पीछे  छुप कर बैठा रहा और सारी रात इंतजार करता रहा।

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सुबह होते ही जैसे ही सेविका आई उसने देखा कि कोई व्यक्ति बेसुध पड़ा है और उसके मुंह से झाग निकल रहा है उसे देखते ही सेविका ने आसपास के लोगों को बुलाया और वहां भीड़ इकट्ठा हो गई लोगों ने उससे  उसकी स्थिति के बारे में जानने की कोशिश की पर उसने कुछ नहीं बोला। मिठाई खाने को भी दी और उसने वह तक नहीं खाई और तीन-चार दिनों तक ऐसे ही बिना खाए पिए बैठा रहा ।


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सूचना मिलते ही  उसके गुरु जो कि गोवर्धन में रहते थे उसे अपने साथ अपने आश्रम ले गए किंतु वह वहां भी ऐसे ही पड़ा रहा 1 दिन सुबह उठकर उसने अपने गुरु जी से कागज और कलम मांगा गुरुजी देखकर थोड़ा खुश हुए और कागज कलम देने के बाद पास के ही सरोवर पर स्नान करने चले गए जब वह वापस आए तो उन्होंने पाया कि वह भक्त ब अपने प्राण त्याग चुका है और जो कागज कलम उसने मांगा था उस पर कुछ लिखा हुआ है मरने से पहले उस भक्त ने


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अपने गुरु को बताया कि उसने बांके बिहारी लाल और राधा रानी की रासलीला को देख लिया है अब उसके जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो गया है इससे अधिक नहीं जीना चाहता श्री श्याम सुंदर की सुंदरता के आगे संसार की सुंदरता कुछ भी नहीं है


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इसलिए आपके श्री चरणों में मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार कीजिए ऐसा कहा जाता है कि वह पत्र जो उस वक्त उसने अपने गुरु जी के लिए लिखा था आज भी मथुरा के सरकारी बंगाली भाषा में लिखा गया है, 


मित्रों यह सोचने वाली बात है कि जो मनुष्य सालों तक कितनी भी पूजा पाठ योग साधना करने के बाद भी संसार की इस मोह माया को त्याग नहीं पाया वह आखिर कैसे बांके बिहारी की एक झलक से संसार की इस मोह माया से मुक्ति पा सकता है 


प्रिय पाठकों !आशा करते है आपको पोस्ट पसंद आई होगी। आप अपने विचार हमसे प्रकट कर सकते है। इसी के साथ

अपनी वाणी को विराम देते हुए विदा लेते है। श्री राधे -कृष्ण जी आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें। विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए जय श्री राधे कृष्णा। 

धन्यवाद। हरे कृष्णा।


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