कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?

 

सभी राम भक्तो को श्री राम जी का आशीर्वाद प्राप्त हो। 

अरे मूर्ख ! तुझे अपनी बातों पर बहुत घमंड है। तुझे अपने सिवा किसी की बात अच्छी नहीं लगती ,इसलिए मैं तुझे शाप देता हूँ की तू चांडाल पक्षी (कौआ )बन जा। मैंने मुनि से कुछ भी कहे बिना उनका शाप सिर पर चढ़ा लिया (स्वीकार कर लिया )। और तब  मैं तुरंत ही कौआ बन गया। फिर मुनि के चरणों में सिर नवाकर और श्री राम जी मन में याद करते हुए वहां से उड़ चला।  

 

कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?

प्रिय पाठकों - आज  जो कहानी हम आपको सुनाने जा रहे है वो बहुत ही रोचक व भक्ति पूर्ण है। ये कहानी है एक कौए की , एक ऐसा आम कौआ जिसने पक्षी रूप में होने के बावजूद प्रभु को पाया। जो मनुष्य मानव रूप में होकर भी इस सुख को नहीं पा पाता , वह सुख कौए ने एक पक्षी होकर पाया और श्री राम जी के बहुत प्रिय भक्त बना। आगे चलकर वे काकभुसुण्डि जी के नाम से जाने गए। तो आप ध्यान पूर्वक कहानी  पढ़े। 


इस पोस्ट मे आप पायेंगे-

कहानी काकभुशुण्डि जी की। 

काकभुशुण्डि जी की कथा अनुसार (काकभुशुण्डि जी की बातों के अनुसार )

काकभुशुण्डि जी द्वारा कलयुग का वर्णन करना। 

काकभुशुण्डि जी को भगवान् शिव का श्राप लगने का कारण। 

काकभुशुण्डि जी का लोमस मुनी जी से ज्ञान प्राप्त करना।

काकभुशुण्डि जी का कौआ बनने का कारण।


कहानी काकभुशुण्डि जी की। 

ये बात है रामायण काल की जब मेघनाथ ने राम जी को नागपाश में बाँध दिया। फिर गरूड़ जी ने उनको बंधन से मुक्त कियाऔर वापस चले गए। लेकिन उनके मन इस बात का बड़ा भारी विषाद था कि  -जो व्यापक ,विकाररहित ,वाणी के पति और मोह माया से परे ब्रह्म परमेश्वर है ,मैंने तो सुना था कि जगत में उन्ही का अवतार है। पर मुझे तो उनका कुछ भी प्रभाव नहीं दिखा। जिनका नाम जप कर मनुष्य संसार के बंधन से छूट जाते है ,उनहीराम को एक तुच्छ राक्षस ने नागपाश से बांध लिया। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?/


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गरूड़ जी ने अपने मन को बहुत समझाया पर उनके मन को संतुष्टि नहीं मिली। ह्रदय में भ्रम और भी अधिक छा गया। वे दुखी होकर नारद जी के पास गए और सारी बात बताई। नारद जी को उन पर बड़ी दया आई। नारद जी ने कहा की प्रभु की माया बड़ी प्रबल है। एक बार मैं भी इस जाल में फँस चुका हूँ। आपके मन में बड़ा भारी मोह उत्पन्न हो चुका है। मेरे बताने से ये नहीं मिटेगा। आप ब्रहम्मा जी के पास जाइये और वो जो करने के लिए कहे, वही कार्य करना। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?

फिर गरूड़ जी ब्रहम्मा जी के पास गए और अपने मन के सभी संदेहो के बारे। .में बताया। तब ब्रहम्मा जी ने बड़े प्यार से कहा कि --श्री राम जी की महिमा को भोलेनाथ  बहुत अच्छी तरह से जानते है। आप उनके पास जाओ। 


उसके बाद गरूड़ जी भगवान् शिव के पास गए और सिर नवाकर अपना सारा हाल कह सुनाया। भगवान् शिव उस वक़्त रास्ते में थे सो उन्होंने कहा की तुम मुझे रास्ते में मिले हो ,रास्ते में तुम्हे किस प्रकार समझाऊँ ?तुम्हारे सभी संदेहो का नाश तभी होगा जब लम्बे समय तक सत्संग किया जाए। सुन्दर हरी कथा सुनी जाए। अतः मैं तुम्हे वहीं भेजता हूँ ,जहां प्रतिदिन राम कथा होती है। तुम जाकर उसे सुनो। उसे सुनते ही तुम्हारा सारा संदेह मिट जायगा। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


उसके बाद गरूड़ जी वहाँ गए जहां निर्बाध बुद्धि और पूर्ण भक्ति वाले काकभुशुण्डि जी रहते थे। जिस पर्वत पर वो रहते थे ,वहाँ पहुंचते ही ,उस पर्वत को देखते ही उनका मन प्रसन्न हो गया। उनके मन का सारा संदेह ,मोह ,माया और सोच जाता रहा। तालाब में स्नान और फिर जलपान करके वे काकभुशुण्डि जी के पास गए। वहाँ उन्हें प्रणाम करके सारा वृतांत बताया।


गरूड़ जी को प्रभु की माया के  वश फंसे देखकर उन्होंने मन से श्री राम जी को याद किया और फिर गरूड़ जी को श्री हरी की कथायें सुनाई। कथा सुनने से उनके मन का सारा भ्रम ,सोच ,मोह तो मिट गया किन्तु एक बात उनके मन में बार -बार खटक रही थी ,कि  -इतने बुद्धिमान ,ग्यानी होने के बावजूद इनका रूप कौए का क्यों है। उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने उनसे बड़े आदर ,प्यार और कोमल  वाणी से पूछ लिया --


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


कि ,हे प्रभु -मुझे अपना दास समझ कर आप मुझ पर कृपा करे। कृपया आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दीजिये कि आप बहुत बुद्धिमान ,सबकुछ जानने वाले है ,अन्धकार से परे ,सुशील ,सरल आचरण वाले है और ज्ञान ,वैराग्य ,विज्ञान के धाम प्रभु श्री राम जी के प्रिय दास है। तो फिर आपने ये कौए का शरीर किस कारण से पाया। 


उनकी बात सुन कर काकभुशुण्डि जी मुस्कुराये और कहा -ये एक बहुत विचित्र कथा है। आज आपके इस प्रश्न से मुझे अपने बहुत से जन्मो की याद आ गई। मैं अपनी सारी कथा आपको विस्तार से बताता हूँ। 


काकभुशुण्डि जी की कथा अनुसार (काकभुशुण्डि जी की बातों के अनुसार )

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इस संसार में जितने भी जप तप ,यज्ञ ,शम (मन को रोकना) ,दम (इन्द्रियों को रोकना ) ,व्रत ,दान ,वैयाग्य ,विवेक ,योग ,विज्ञान आदि फल है ,वो सब प्रभु श्री राम जी के चरणों में है। इनके बिना कोई कल्याण नहीं पा सकता। और मैंने अपने इसी रूप(कौए )में  भगवान् की भक्ति को पाया इसलिए मुझे अपना ये रूप अति प्रिय है। जिस कार्य में अपना कोई स्वार्थ हो तो भला उस पर किसे प्रेम नहीं होगा। हे गरूड़ जी --वेदों में ऐसी निति बताई गई है और लोग भी कहते हैकि यदि नीच व्यक्ति के साथ रहने पर अपना हित  है तो उसके साथ रहने में कोई बुराई नहीं अतः उनसे प्रेम करना चाहिए। 


एक रेशम का कीड़ा जिससे सुन्दर रेशमी वस्त्र बनाये जाते है। ये जानते हुए भी की वो एक कीड़ा है लोग उसे बड़े प्यार से पालते है। क्यों ? क्योकि उसमे उसका स्वार्थ होता है। चाहे कोई  भी  हो उसके लिए सच्चा स्वार्थ यही है कि वो मन ,कर्म ,वचन से श्री राम का भजन करे ,उनके चरणों में रहें। वही शरीर पवित्र और सुन्दर है जिस शरीर को पाकर श्री राम जी का भजन किया जाए। 


जो मनुष्य श्री राम जी से विमुख होते है, उसे यदि ब्रह्ममा जी के सामान शरीर मिल भी जाए तो भी कवि और पंडित( समझदार व्यक्ति )उसकी प्रशंसा नहीं करते।मेरे इसी शरीर से मेरे हृदय में रामभक्ति उत्पन्न हुई। इसलिए मुझे अपना ये रूप अच्छा लगता है।


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


चूँकि भोलेनाथ के आर्शीवाद से मेरा जीना मरना सब मेरी इच्छा पर है ,लेकिन फिर भी मै इस शरीर को नहीं छोड़ता  क्योकि वेदों में लिखा है की शरीर के बिना भजन नहीं होता। पहले मोह के कारण मेरी बड़ी दुर्दशा हुई। श्री राम जी दूर होकर मै कभी चैन से नहीं सोया। अनेको जन्मो में मैंने अनेक प्रकार के दान ,योग ,जप,तप ,यज्ञ आदि किये। ऐसी कोई सी भी योनि नहीं जिसमे मैंने बार -बार जन्म न लिया हो। हे गरूड़ जी --मैने सब कर्म कर के देख लिए पर  इस जन्म की तरह कभी सुखी नहीं हुआ। 


भोलेनाथ की कृपा से मेरी बुद्धि को मोह ने नहीं घेरा इसलिए मुझे अपने बहुत से जन्मो की याद है। हे पक्षीराज सुनिए !अब मैं आपको अपने सबसे पहले जन्म की कथा सुनाता हूँ। जिसे सुनकर मेरे मन में प्रभु के चरणों में प्यार उत्पन्न हुआ और सब क्लेश मिट गए।  


पहले के जन्मो में पापो का मूल युग कलयुग था। जिसमे स्त्री और पुरुष सभी अधर्म करने वाले और वेदो को न मानने वाले थे।उस कलयुग में  मैंने अयोध्यापुरी में जन्म लिया और एक शूद्र का शरीर पाया। मैं  बहुत ही अभिमानी था। मैं  तन,मन,और वचन से शिवजी का ही सेवक था। मुझे शिव अति प्रिय थे और दूसरे जितने भी देवता थे ,मै उनकी निंदा किया करता था। मै बहुत उग्र बुद्धि वाला व्यक्ति था। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


काकभुशुण्डि जी द्वारा कलयुग का वर्णन करना। 


मुझे धन का इतना लोभ था कि , मै हर किसी से बकवास करने लगता। जबकि मै श्री राम जी की नगरी में रहता था फिर भी मेरे मन में उस समय उनकी कोई अहमीयत नहीं थी। धीरे -धीरे समय बीतता गया और मैंने जाना की वेद,शास्त्र और पुराणों ने ऐसा कहा है की किसी भी जन्म में जो कोई भी अयोध्या में जाकर बसता है। वह श्री राम जी के परायण होता । अवध के प्रभाव को मनुष्य तभी जनता है। जब हाथ में धनुष धारण करने वाले श्री राम उसके हृदय में निवास करते है। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


हे पक्षीराज -वह कलियुग काल बड़ा बेकार था। उसमे स्त्री नर-नारी पापो से लिप्त थे। सदग्रन्य लुप्त हो गये। दम्भियों ने अपनी -अपनी बुद्धि से कल्पना कर -कर के बहुत से पंथ प्रकट कर दिए। सभी लोग मोह के वश थे। शुभ कर्मो को लालच ने ठग रखा था। कलयुग में कपट ,दंभ,हठ ,द्वेष ,पाखंड ,मान ,मोह ,काम ,क्रोध, लालच और मद पूरे ब्रह्माण्ड में छाया हुआ था। मनुष्य जप ,तप,व्रत ,यज्ञ और  दान आदि धर्म कार्य तामसी भाव से करने लगे। देवता (इंद्र )पृथ्वी पर जल नहीं बरसाते और खेतों में बोया हुआ अन्न कभी उगता ही नहीं। 

काकभुशुण्डि जी को भगवान् शिव का श्राप लगने का कारण। 

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हे पक्षीराज--उस कलयुग में मैं बहुत वर्षो तक अयोध्या में ही रहा। एक बार वहां आकाल पड़ा ,तब मैं विपत्ति का मारा हुआ विदेश चला गया। मैं बहुत दीन ,उदास ,दरिद्र और दुःखी होकर उज्जैन गया। कुछ समय बीतने पर थोड़ी बहुत संपत्ति इकट्ठी कर के मैं वहीं भगवान् शंकर की आराधना में लग गया। वहां पर एक  ब्राह्मण रहते थे। वे बड़े ही विधि विधान से भगवान् शिव  की आराधना किया करते थे। इसके अलावा उनका कोई दूसरा काम नहीं था। वे परमार्थ के ज्ञाता थे। वे शम्भू के उपासक थे ,पर कभी भी श्री हरि की निंदा नहीं करते थे। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


मैं कपट पूर्वक उनकी सेवा करता था। वे ब्राह्मण बड़े ही दयालु और निति के धाम थे। वे मुझे पुत्र की भांति मानकर पढ़ाते थे। उन्होंने मुझे शिव जी का मन्त्र दिया और कई प्रकार के अच्छे उपदेश दिए। मैं रोज शिवजी के मंदिर में जाकर मंत्र जपता। गुरु जी ने मुझे मंत्र दिया इससे मेरे मन में अहंकार और भी बड़ गया। मैं दुष्ट ,नीच जाति और पापमयी, मलिन बुद्धिवाला मोह के वश होने के कारण जिस किसी श्री हरि भक्तों और ब्राह्मणों को देखता तो मेरा हृदय जल उठता ,मुझे वो तनिक भी नहीं सुहाते थे। मै विष्णु भगवान् से द्रोह करता था।


गुरु जी मेरे इस व्यवहार से बड़े परेशान थे। वे मुझे रोज़ समझाते पर ,मैं बिलकुल भी नहीं समझता ,बल्कि उनकी बातों से मेरा गुस्सा और बड़ जाता। एक दिन गुरु जी ने मुझे बुलाकर बहुत अच्छी तरह से नीति की बातें समझायी और कहा कि -हे पुत्र ! शिवजी की सेवा का यही फल है कि श्री राम जी के चरणों में अटूट विश्वास हो। भगवान् शिव और ब्रह्ममा जी भी श्री राम जी को भजते है। फिर हम इंसानो की तो बात ही क्या है। ब्रह्ममा जी और शिव जी जिनके चरणों के प्रेमी है ,अरे अभागे !तू उनसे द्रोह करके क्या कभी चैन से रह पायेगा। 


गुरूजी ने शिवजी को श्री हरि का सेवक कहा ,ये सुनकर हे पक्षीराज ! मेरा हृदय जल उठा ,मुझे अत्यधिक क्रोध आया। नीच जाती का मैं विद्या पाकर ऐसा हो गया जैसे दूध पिलाने पर साँप हो जाता है। उस दिन से मैं अभिमानी ,कुटिल ,कुजाति दिन रात गुरु जी से नफ़रत करने लगा,गुस्सा करने लगा ,पर गुरु जी बहुत दयालु थे ,उन्होंने मुझ पर कभी क्रोध नहीं किया। बल्कि मझे बार -बार समझाते ,ज्ञान देते। 


शास्त्रों में लिखा है की -नीच मनुष्य जिससे बड़ाई पाता है सबसे पहले उसी का नाश करता है। जैसे -धूल रास्ते में निरादर से पड़ी रहती है और सदा सब लोगो की लातों को सहन करती है। पर जब हवा उसे उठाती है (ऊँचा उठाती है )तो सबसे पहले वो उस हवा को ही धूल से भर देती है। ऐसी बात समझ कर बुद्धिमान लोग कभी अधम का संग नहीं करते। कवी और पंडित ऐसी नीति कहते है कि दुष्टों से न तो दोस्ती अच्छी होती है न दुश्मनी,उससे जितना दूर रहा जाये उतना अच्छा। ऐसे लोगो को दूर से ही त्याग देना चाहिए। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


इसी तरह मैं दुष्ट था ,मेरे हृदय में कपट और कुटिलता भरी पड़ी थी ,फिर भी गुरु जी ने मुझे मेरे हित की ही बातें समझाई पर मुझे वो बिलकुल अच्छी नहीं लगी। एक दिन में शिवजी के मन्दिर मे जप कर रहा था। उसी समय पूज्य गुरु जी वहाँ आये ,पर अहंकार के कारण मैने उठकर उनको प्रणाम नहीं किया।लेकिन गुरु जी बहुत दयालु थे (मेरा दोष देखकर भी )उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा। उन्हें बिलकुल क्रोध नहीं आया। पर गुरु का अपमान बहुत बड़ा होता है और भगवान् शिव उसे सहन नहीं कर सकें। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


तभी मंदिर में आकाशवाणी हुई की अरे दुष्ट ,अभागे ,मूर्ख ,अभिमानी !भले ही तेरे गुरु ने तुझ पर क्रोध नहीं किया ,वे अत्यंत दयालु और ज्ञान के भण्डार है तो भी अरे मूर्ख !मैं तुझे शाप दूंगा क्योकि नीति का विरोध मुझे अच्छा नहीं लगता। अरे दुष्ट ! यदि मैं तुझको दंड न दूँ तो मेरा वेदमार्ग ही भ्रष्ट हो जाए। जो मनुष्य गुरु से ईर्ष्या करते है वो करोड़ों युगों तक नरक में पड़े रहते है। फिर वहाँ से निकल कर तीयर्क (पशु -पक्षी आदि )योनियों में  शरीर धारण करते है और दस हज़ार जन्मो तक दुःख पाते रहते है। अरे पापी ! तू गुरु के सामने अज़गर की भाँति बैठा रहा। 


अरे दुष्ट! तेरी बुद्धि पाप से ढक गई है। अतः तू साँप बन जा और अधम से अधम सर्प की नीची योनि को पाकर किसी बड़े भारी पेड़ के खोकले में जाकर रह।

 

कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


शिवजी के इतने भयानक शाप को सुन कर गुरु जी ने हाहाकार किया। मुझे काँपता हुआ देखकर उनके मन में बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने प्रेम सहित हाथ जोड़कर भगवान् शिव से गदगद वाणी से विनती की ,कहा की -हे नाथ ! मैं न तो योग जानता हूँ ,न जप जानता हूँ और न पूजा ही जानता हूँ। हे शिव ! मैं तो सदा सर्वदा आप को ही भजता हूँ। आपको ही नमस्कार करता हूँ। हे प्रभु ! बुढ़ापे तथा मृत्यु के दुःख के समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुःख से रक्षा कीजिये। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


हे शम्भो,हे ईश्वर मैं आपको नमस्कार करता हूँ। बहुत प्रकार से गुरु जी ने विनती की। तभी मंदिर में आकाशवाणी हुई की हे द्विज श्रेष्ठ !वर मांगो , गुरु जी ने कहा कि हे प्रभो !यदि आप मुझ पर प्रसन्न है और मुझ दीन पर आपका प्यार है - तो पहले आप मुझे अपने चरणों की भक्ति दे कर, फिर दूसरा वर दीजिये।

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हे प्रभो --ये अज्ञानी मनुष्य आपकी माया के वश होकर निरन्तर भूला फिरता है। हे कृपा के समुन्द्र भगवान् --आप इस पर क्रोध न कीजिए। हे दिनों पर दया करने वाले प्रभो --आप इस पर कृपा कीजिए। जिससे थोड़े ही समय में इसको शाप से मुक्ति मिल जाए। दुसरे के हित के लिए सनी हुई वाणी सुनकर फिर आकाशवाणी हुई ---एवमस्तु (ऐसा ही हो ) यद्यपि इसने भयानक पाप किया है और मैंने भी क्रोध करके इसको शाप दिया है ,तो भी तुम्हारी साधुता को देखकर मैं इस पर विशेष कृपा करूंगा। 


हे द्विज  ! - जो क्षमाशील और परोपकारी होते है , वे मुझे वैसे ही प्रिय है ,जैसे श्री राम जी। हे द्विज मेरा ये शाप व्यर्थ नहीं जाएगा। ये हजार जन्म अवश्य लेगा किन्तु जन्म लेने और मरने पर जो दुःख होता है ,वह दुःख इसे कभी भी नहीं व्यापेगा और किसी भी जन्म में इसका ज्ञान नहीं मिटेगा। फिर शूद्र से कहा कि ---अब मेरा सत्य वचन सुन। पहला तो तेरा जन्म अवधपुरी में हुआ ,फिर तूने मन लगाकर मेरी भक्ति की ,सेवा की। अवधपुरी के प्रभाव और मेरी कृपा से तेरे हृदय में राम भक्ति उत्पन्न होगी। 


अब हे भाई---अब मेरा ये सत्य वचन सुन --ब्राह्मणों की सेवा ही भगवान् को प्रसन्न करने वाला व्रत है। अब कभी किसी ब्राह्मण का अपमान मत करना। जो इंद्र के और मेरे विशाल त्रिशूल ,काल के दंड और श्री हरि के विकराल चक्र से नहीं मरता ,वो एक ब्राह्मण के गुस्से की आग से भस्म हो जाता है। इस बात का हमेशा ध्यान रखना। मेरे आशीर्वाद से तुम्हारे लिए जगत में कुछ भी दुर्लभ नहीं होगा और तुम जहां  जाना चाहोगे बिना रोक टोक के जा सकोगे। गुरूजी शिवजी के वचन सुनकर बहुत खुश हुए और मुझसे कहा की सब कुछ ऐसा ही हो , और फिर गुरुजी अपने घर चले गए। शिवजी के शाप के कारण मैं विंध्याचल में जाकर सर्प बना। फिर कुछ काल बीतने पर बिना किसी कष्ट के मैंने वह शरीर त्याग दिया।


 इस तरह मैंने कई जनम लिए और उनको सुख पूर्वक वैसे ही त्याग देता जैसे मनुष्य पुराने कपड़ो को त्याग देते है। और नए कपडे पहन लेते है।शिवजी ने वेद की मर्यादा की रक्षा की और मैंने क्लेश (कष्ट )भी नहीं पाया। मैंने अनगिनत शरीर धारण किये ,पर मेरा ज्ञान नहीं मिटा। मैं वहां जिस योनि (पशु -पक्षी ,देवता या मनुष्य )का जो भी शरीर धारण करता ,वहाँ  -वहाँ ,उस -उस शरीर में मैं श्री राम जी का भजन जारी रखता। (इस प्रकार मैं  सुखी हो गया )पर एक दुःख मुझे हमेशा त्रिशूल की भाँति चुभता। वो ये की मैंने अपने परम दयालु ,सुशील स्वभाव वाले गुरु जी का बहुत अपमान किया। 


मैंने अंतिम शरीर एक ब्राह्मण का पाया , जिसे पुराण और वेद - देवताओं के लिए भी दुर्लभ बताते है। मैं वहाँ बच्चो के साथ खेलते -कूदते श्री राम जी की ही लीलाएं करता। थोड़ा सयाना होने पर पिताजी मुझे पढ़ाने लगे। मैं सबकुछ सुनता ,समझता और विचारता पर मुझे पढ़ना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। धीरे -धीरे मेरे मन की सारी  वासनाएं चली गई और श्री राम जी के चरणों में लग गई। पिता जी पढ़ा -पढ़ा कर हार गए पर मैं बिलकुल नहीं पढ़ा। कुछ समय बाद पिताजी काल वश (मर गए )हो गए। तब मैं श्री राम जी का भजन करते -करते वन में चला गया। वन में जहाँ -जहाँ मुझे मुनि मिलते ,वहां वहां उनको सिर नवाता। उनसे श्री राम जी की कथाएँ सुनता। मैं मन में खुश होता और यही सोचा करता की कब मुझे श्री राम जी के दर्शन होंगे।  

काकभुशुण्डि जी का लोमस मुनी जी से ज्ञान प्राप्त करना।


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


गुरु जी के वचनों को याद करके मेरा मन श्री राम जी के चरणों में लग गया। मैं हर एक पल बस  श्री राम जी का यश गाता  फिरता। एक बार सुमेरु पर्वत के शिखर पर बड़ के पेड़ के नीचे लोमश मुनि बैठे थे। उन्हें देख कर मैंने उनके चरणों में सिर नवाया और बड़े कोमल ,दीन वचन कहे। मेरे अत्यंत प्यारे और कोमल वचन सुनकर मुनि मुझसे पूछने लगे ---हे ब्राह्मण !आप किस कारण से यहाँ आये है। तब मैंने कहाँ ---हे कृपा निधि !आप तो सब कुछ जानने  वाले है। हे भगवन !मुझे सगुण ब्रह्म  की आराधना की ( प्रकिर्या ) कहिये। 


तब हे पक्षीराज !तब गुरूजी ने श्री राम जी के गुणों की सारी कथाएँ सुनाई। फिर वे ब्रह्मज्ञान परायण विज्ञानवान मुनि मुझे परम अधिकारी जानकर ब्रह्म का उपदेश देने लगे कि ---वह अजन्मा है ,अद्वैत है ,निर्गुण है और हृदय का स्वामी है। उसे कोई बुद्धि के द्वारा माप नहीं सकता। वह इच्छा रहित ,नामरहित ,रूपरहित ,अनुभव से जानने योग्य ,अखंड और उपमारहित है। वह मन और इन्द्रियों से परे ,विनाश -रहित ,निर्विकार सीमारहित और सुख की राशि है। वेदों ऐसा कहते है कि वही तू है (तत्वमसि ),जल और जल की लहर की भाँति उसमें और तुझमे कोई अंतर नहीं। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


मुनि ने मुझे अनेकों प्रकार से समझाया पर उनकी बातें मेरे हृदय में नहीं बैठी। मैंने उनसे फिर दोबारा चरणों में सिर नवाकर कहा ---हे मुनीश्वर ! मुझे सगुण ब्रह्म की उपासना कहिये। मेरा मन रामभक्तिरूपी जल में मछली हो रहा है (राम जी में रम रहा है)  हे मुनीश्वर !-ऐसी दशा में वह उससे अलग कैसे हो सकता है ? आप दया करके मुझे वही उपाय बतायें जिससे मैं अपने श्री रामजी को अपनी आँखों से देख सकूँ। पहले जी भर के श्री रघुनाथ को देख लूँ ,उसके बाद आपके सारे उपदेश सुनूँगा। 


मुनि ने फिर दोबारा मुझे राम जी कथा सुनाई ,जिन किसी बातो को लेकर मेरे मन में खेद था (समझ नहीं आया था )वो सब अच्छे तरीके से मुनि ने मुझे समझाया। पर मैं उनकी बातों में ध्यान न लगाकर ,उनकी बातो को बीच में ही काटकर उनसे ज़िद करके अपनी बातें कहने लगा। मैंने उत्तर -प्रतिउत्तर किया ,बार -बार उनके उत्तरों को काट कर प्रश्नो पर प्रश्न करने लगा।मेरे इस व्यवहार से मुनि के चेहरे पर क्रोध छलकने लगा। 

काकभुशुण्डि जी का कौआ बनने का कारण।

हे पक्षीराज !सुनो जिस प्रकार चन्दन की लकड़ी को बार -बार रगड़ने से अग्नि उत्पन्न हो जाती है ,उसी प्रकार अपमान करने पर ज्ञानी के भी हृदय में क्रोध उत्पन्न हो जाता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। मुनि जी ने क्रोध होने पर भी मुझे ज्ञान की ही बातें बताई ,पर मैं बैठा -बैठा अपने मन कई प्रकार के अनुमान करने लगा जैसे -- बिना द्वैतबुद्धि के क्रोध कैसा और बिना अज्ञान के क्या द्वेतबुद्धि हो सकती है ? माया के वश रहने वाला परिच्छिन्न जड़ जीव क्या ईश्वर को पा  सकता है। सबका हित चाहने से क्या कभी दुःख हो सकता है ? जिसके पास पारसमणि है ,उसके पास क्या दरिद्रता रह सकती है ? दूसरों से लड़ाई करने वाले क्या कभी निडर हो कर रह सकते है ?

कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


ब्राह्मणों का बुरा करने से क्या वंश रह सकता है ?दुष्टो के साथ रहने से क्या किसी को बुद्धि आ सकती है ?दूसरो की स्त्री के साथ बुरा कर्म करने वाले क्या कभी अच्छी गति को प्राप्त हो सकते है ? बिना पाप के भी क्या कोई अपयश पा सकता है ? जिसकी महिमा वेद ,पुराण और संत गाते है उस हरी -भक्त के समान क्या कोई दूसरा लाभ है ?जगत में क्या इसके बिना भी कोई दूसरी हानि है की मनुष्य का शरीर पा कर भी श्री राम जी का भजन न किया जाए ? चुगलखोरी के समान क्या कोई दूसरा पाप है ?दया के समान क्या कोई दूसरा धर्म है। 


हे गरूड़ जी ! इस प्रकार मेरे मन में कई बातें चल रही थी। और मै मुनि की बातों को ध्यान से नहीं सुन रहा था। मेरे बार -बार ये पूछने से की मुझे सगुण का उपाय बताइये ,गुरूजी को अत्यंत क्रोध आ गया और उन्होंने मुझसे कहा की --अरे मूढ़ ! मैं तुझे उत्तम शिक्षा देता हूँ ,तो भी तू उसे नहीं मानता और बहुत से उत्तर -प्रतिउत्तर (दलीलें ) ला कर रख देता है। मेरे सत्य वचनो पर तुझे विश्वास नहीं ! एक कौए की भाँति सभी से डरता है। 


अरे मूर्ख ! तुझे अपनी बातों पर बहुत घमंड है। तुझे अपने सिवा किसी की बात अच्छी नहीं लगती ,इसलिए मैं तुझे शाप देता हूँ की तू चांडाल पक्षी (कौआ )बन जा। मैंने मुनि से कुछ भी कहे बिना उनका शाप सिर पर चढ़ा लिया (स्वीकार कर लिया )। तब मैं तुरंत ही कौआ बन गया। फिर मुनि के चरणों में सिर नवाकर और श्री राम जी मन में याद करते हुए वहां से उड़ चला। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


भगवान् शिव कहते है - कि हे उमा !जो श्री राम जी के चरणों के प्रेमी है और काम ,अभिमान  क्रोध से रहित है। वो जगत को अपने प्रभु से भरा हुआ देखते है ,फिर वे किस्से वैर करें। 


काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति प्राप्त होना ।

काकभुशुण्डि जी ने कहा - हे पक्षीराज !सुनिए ,इसमें ऋषि मुनि का कोई भी दोष नहीं था। प्रभु श्री राम जी ही सबके ह्रदय में प्रेरणा करनेवाले है। कृपासागर प्रभु श्री राम जी ने मुनि की बुद्धि भोली करके (भुलवाके )मेरे प्रेम की परीक्षा ली। मन ,क्रम और वचन से जब प्रभु ने मुझे अपना दास जान लिया ,तब भगवान् ने मुनि की बुद्धि फिर पलट दी। मुनि ने मेरा महान पुरुषो का सा  स्वभाव (धैर्य ,अक्रोध ,विनय आदि ) देख कर और श्री राम जी पर अटूट विश्वास को देखते हुए मुनि को बहुत दुःख और पछतावा हुआ। और फिर मुनि ने आदरपूर्वक मुझे अपने पास वापस बुला लिया।वापस बुला कर उन्होंने अनेको प्रकार से मेरा संतोष किया (समझाया )फिर खुश होकर उन्होंने मुझे राममन्त्र दिया। 


मुनि जी ने मुझे बालकरूप श्री रामजी का ध्यान (ध्यान करने की विधि )बताई। सुन्दर और सुख देने वाला वह  ध्यान मुझे  बहुत ही अच्छा लगा। वह ध्यान मैं आपको बहुत पहले बता चुका हूँ। मुनि ने कुछ समय तक मुझे वही अपने पास रखा। फिर उन्होंने  रामचरितमानस का पूरा वर्णन किया। पूरी कथा सुनाने के बाद फिर मुनि ने मुझसे बहुत ही कोमल वाणी से कहा कि हे तात !यह सुंदर और गुप्त रामचरितमानस मैंने शिवजी की कृपा से पाया था। तुम्हे श्री राम जी का परम भक्त जाना ,इसी कारण मैने तुम्हे सब चरित्र विस्तार से बताया। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


हे पुत्र ! जिनके ह्रदय में श्री राम जी की भक्ति न हो ,उसके सामने इसे कभी नहीं कहना चाहिए। मुनि ने मुझे बहुत प्रकार से समझाया। तब मैंने प्रेम के साथ मुनि के चरणों में सिर नवाया। मुनि ने अपने कर कमलों से मेरा सिर स्पर्श करके खुश होकर आशीर्वाद दिया कि अब मेरी कृपा से तेरे हृदय में सदा प्रगाढ़ राम भक्ति बसेगी। 

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तुम हमेशा श्री राम जी के प्रिय रहो और कल्याण गुणों के धाम ,मानरहित इच्छानुसार रूप धारण करने में समर्थ ,इच्छामृत्यु (जिसकी शरीर छोड़ने की इच्छा करने पर ही मृत्यु हो,बिना इच्छा के मृत्यु न हो ),तुम ज्ञान और वैराग्य के भण्डार होओ। इतना ही नहीं ,श्री राम जी का स्मरण करते हुए तुम जिस आश्रम पर निवास करोगे वहाँ एक योजन (चार कोस ) तक अविद्या (मोह -माया )नहीं व्यापेगी। काल ,कर्म ,गुण ,दोष और स्वाभाव से उत्पन्न हुए  दुःख तुमको नहीं व्यापेंगे। अनेको प्रकार के सुंदर श्री राम जी के रहस्य (गुप्त मर्म के चरित्र और गुण ),इतिहास और पुराणों में गुप्त और प्रकट है (वर्णित और लक्षित है )तुम उन सबको भी बिना परिश्रम के जान जाओगे। अपने मन में तुम जिस किसी चीज़ की इच्छा करोगे ,श्री हरी की इच्छा से उसकी पूर्ती कुछ भी दुर्लभ नहीं होगी। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


हे धीरबुद्धि गरूड़ जी !सुनिए ,मुनि का आशीर्वाद सुनकर आकाश में गंभीर ब्रह्मवाणी हुई कि हे ज्ञानी मुनि !तुम्हारा वचन सत्य हो। यह कर्म ,मन और वचन से मेरा भक्त है। आकाशवाणी सुन कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। मैं प्रेम में मग्न हो गया और मेरा सब संदेह जाता रहा। फिर मैं मुनि की विनती करके ,आज्ञा पाकर और उनके चरण -कमलो में सिर नवा कर इस आश्रम में आया। प्रभु श्री राम जी की कृपा से मैंने बड़ा दुर्लभ वर पा लिया। हे पक्षीराज !मुझे यहाँ निवास करते करते सत्ताईस कल्प बीत गए। 


मैं यहाँ सदा श्री रघुनाथ जी के गुणों का गान किया करता हूँ। और चतुर पक्षी उसे बड़े आदर के साथ सुनते है।अयोध्या में जब -जब श्री रघुवीर भक्तो के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करते है। तब -तब मैं जाकर श्री राम जी की नगरी में रहता हूँ। और प्रभु की शिशुलीला देखकर सुख प्राप्त करता हूँ। फिर हे पक्षीराज !श्री राम जी के शिशुरूप को ह्रदय में रखकर मै अपने आश्रम में आ जाता हूँ। 


कौन है काकभुशुण्डि जी ?/काकभुशुण्डि जी को राम भक्ति कैसे प्राप्त हुई ?


जिस कारण से मैंने कौए का शरीर पाया ,वह सारी  कथा आपको सुना दी। हे तात !मैंने आपके सब प्रश्नो के उत्तर दिए। अहा !राम भक्ति की बड़ी भारी माया है। मुझे अपना ये काक शरीर इसलिए प्रिये है क्योकि मुझे इसी रूप में अपने श्री राम का दर्शन प्राप्त हुआ। और मेरे सब संदेह दूर हो गए। 


तो प्रिय पाठकों ! ये थी काकभुसुंडि जी की कथा। जो अमर है ,जो युगों युगांतर तक पूरे विश्व में फैली थी ,फैली है और फैली रहेगी अथार्त जगमगाती रहेगी। जैसे प्रभु श्री राम जी  की प्रिय भक्ति  काकभुसुंडि जी को प्राप्त हुई ,वैसी ही भक्ति सभी को प्राप्त हो। प्रभु श्री राम आप  सभी के जीवन को मंगलमय बनाये। सबका जीवन  खुशियों से भर दें। 


इसी के साथ विदा लेते है। विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी। भगवान् आशुतोष शिवजी  का आशीर्वाद आप सभी को प्राप्त हो। भगवान शिव आप  सभी का कल्याण करें। 

धन्यवाद।

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