10 अनमोल वचन /10 Precious Words

जीवन में जो होना है वो तो होकर ही रहेगा। उसे कोई बदल नहीं सकता और जो नहीं होने वाला ,वो कभी नहीं होगा। जो होना है वो और जो नहीं होना है वो ,जब हमारे हाथ में ही नहीं तो उसके बारे में सोच कर अपने मन और वक़्त को क्यों बर्बाद किया जाय। इसलिए इस बात की कभी चिंता नहीं करनी चाहिए की अब क्या होगा ,कैसे होगा।ये सब विधाता के अधीन है ,इसलिए ये काम उन पर ही छोड़ देना चाहिए। और धैर्य रखते हुए हर परिस्थिति का सामना डट कर करना चाहिए। 

दोस्तों इस पोस्ट में आप पाएंगे 

10 अनमोल वचन 

जिनका यदि मनुष्य अनुसरण करे तो मन के दुःख को बहुत हद तक कम कर सकता है। 


10 अनमोल वचन

संसार में हर एक व्यक्ति के मन में कोई न कोई उलझन लगी रहती है ,कई प्रकार के सवालों ने मन में घर कर रखा होता है। जिससे वो काफी परेशान रहने लगते है। सवालों के जवाब मिल जाए तो ठीक अन्यथा जवाब न मिले तो परेशानी के बारे में सोच-सोच कर शरीर में अनेक प्रकार के  रोगो को उत्पन्न कर लेते है। जिसका की उन्हें पता ही नहीं चलता। पर ये समस्या का हल नहीं है क्योकि--


(1 ) जीवन में जो होना है वो तो होकर ही रहेगा। उसे कोई बदल नहीं सकता और जो नहीं होने वाला ,वो कभी नहीं होगा। जो होना है वो और जो नहीं होना है वो ,जब हमारे हाथ में ही नहीं तो उसके बारे में सोच कर अपने मन और वक़्त को क्यों बर्बाद किया जाय। इसलिए इस बात की कभी चिंता नहीं करनी चाहिए की अब क्या होगा ,कैसे होगा।ये सब विधाता के अधीन है ,इसलिए ये काम उन पर ही छोड़ देना चाहिए। और धैर्य रखते हुए हर परिस्थिति का सामना डट कर करना चाहिए। 

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(2 ) जीवन में किसी भी व्यक्ति के परेशान और दुखी होने का एक ही कारण होता है ,वो है उसकी इच्छा। मतलब जब मनुष्य को किसी वस्तु की अभिलाषा हो और वो उसे न मिले ,तो वो परेशान हो जाता है, दुखी हो जाता है। और अगर किसी वस्तु की अभिलाषा न हो तो ?-तो क्या होगा ?क्या आपको पता है। तब ये होगा की वह बंधन मुक्त हो जाएगा। जीवन में खुश रहेगा ,क्योकि किसी भी वस्तु की इच्छा रखना ,मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी रुकावट होती है। यदि मन में कोई इच्छा ,अभिलाषा होगी ही नहीं ,तो वस्तु चाहे हमारे पास हो या न हो ,व्यक्ति हमेशा खुश रहेगा। जीवन आनंद में बीतेगा। 


(3 ) मनुष्यो को मृत्यु से बड़ा डर लगता है ,लेकिन इसमें उसकी कोई गलती नहीं क्योकि मनुष्य ही जीवन का एक ऐसा प्राणी है जो मोह ,ममता ,इच्छाओ ,अभिलाषाओं से घिरा रहता है और यदि ये सब मन में न हो तो ,मृत्यु भी किसी ख़ुशी से कम नहीं होती क्योकि मनुष्य का जीवन  तभी तक कष्टमय होता है जब तक मन में अनेक प्रकार की इच्छाएं होती है। इसी तरह मृत्यु भी उस वक़्त तक कष्टदाई होती है जब तक मन में जीने की इच्छा होती है। 


यदि जीने की इच्छा को छोड़ दिया जाए ,तो मृत्यु कभी भी आ जाए कोई डर नहीं होता। इस बात को मानना चाहिए क्योकि ये जीवन का कड़वा सच है। एक न एक दिन सभी को मरना है,इसलिए मरने से कभी नहीं डरना चाहिए।ये तो संसार का जीवन चक्र है। जीना मरना तो लगा ही रहता है। मृत्यु के समय कष्ट न हो इसके लिए जरूरी है अपना मन सांसारिक भोगो में न लगा कर भगवान् में लगाए।    


(4 ) जीवन में किसी भी व्यक्ति से जरूरत से ज्यादा बात नहीं करनी चाहिए।क्योकि जरूरत से ज्यादा बात करने से व्यक्ति की महत्वता कम होती है। जैसे जब आप किसी भी व्यक्ति से पहली  बार मिलते है तो बातचीत  इज्जत और आदर के साथ होती है। आप, आइये ,जाइये ,खाइये ,पीजिये आदि शब्दों का उच्चारण होता है (बोला जाता है )पर वहीं कुछ दिनों बाद यह आप शब्द तुम में बदल जाता है और कुछ समय बाद जब आप पूर्ण रूप से उस व्यक्ति के अधीन हो जाते है (दोस्ती मज़बूत हो जाती है ) तब यह तुम शब्द तू में बदल जाता है। 


इसलिए आप विचार कीजिये की आप पहले उस व्यक्ति के लिए क्या थे और अब उस व्यक्ति के लिए क्या है। हम ये नहीं कहते की दोस्त नहीं बनाने चाहिए ,बनाने चाहिए ,क्योकि जीवन में अकेले रहना कोई समझदारी की बात नहीं ,सबसे मिलजुल कर रहना ही एक अच्छे व्यक्ति की पहचान है और ये पहचान बनी रहे ,इसके लिए जरूरी है की बात सिमित दायरे में ही की जाए। 

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(5 ) मनुष्य चाहे जीवन में कितने भी जतन कर ले ,लेकिन उसकी ये सोच की ये शरीर हमारा है ,बिलकुल गलत है , बिलकुल गलत सोच है। वास्तव में मनुष्य का शरीर उसका खुद का होता ही नहीं और न कभी चाहने पर होगा। और जो उसका है वह उसे पहचानना ही नहीं चाहता बल्कि उससे दूर भागता है। मनुष्य से दूर यदि कोई वस्तु है तो वो है उसका खुद का शरीर और अगर कोई बिलकुल पास है तो वो है परमात्मा ,भगवान्, लेकिन मनुष्य इस बात को  नहीं समझता । 


वह मोह ,ममता और इच्छाओं के कारण इनकी तरफ देखता ही नहीं। और  न कभी चाह कर ही देख सकता है क्योकि वो शरीर संसार में लिप्त होता है। उसे शरीर पास और भगवान् दूर दिखाई देते  है। और जिस दिन वो इस बात को समझ लेता है की संसार की कोई भी वस्तु उसकी नहीं है ,सब भगवान् की है ,सब उसी में व्याप्त है ,सब उसी के है और बस वो अनादि ईश्वर हमारे है तो उसके अंदर भगवान् के होने का आभास होने लगता है। 


वह उनको महसूस करने लगता है। मन शांत रहने लगता है। और तब  उसे जीवन में होने वाली घटनाओं से कोई फर्क नहीं पड़ता।क्योकि वो इस बात को बहुत अच्छी तरह से समझ चूका होता है की जीवन में हमारी वस्तु वही हो सकती है जो हमारे पास हो और हम हमेशा उनके पास हो ,वो कभी हमसे अलग न हो। ऐसी वस्तु तो जीवन में एक ही है और वो है हमारे भगवान्। लोग ,दोस्त ,मित्र ,बंधू ,रिश्तेदार  सब साथ छोड़ देते है पर भगवान ही एक ऐसे साथी है जो अच्छे बुरे हर वक़्त में हमारा साथ देते है। 

बस व्यक्ति को जरूरत है  उन्हें पहचानने की ,उन्हें अनुभव करने की। इसलिए भगवान् को अपना समझो ,उनसे प्यार करो। भगवान् बड़े बड़े यज्ञ ,दान ,तप ,तीर्थ और तप आदि करने से नहीं मिलते बल्कि सिर्फ उन्हें अपना मानने से मिलते है। बस भगवान् ही मेरे है और मैं उनका हूँ ,और कुछ भी मेरा नहीं है ,यही भाव मन में रखना चाहिए। तभी व्यक्ति  भगवान् को जल्दी और आसानी से पा सकता है। 


(6 ) जीवन में कभी भी किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए और न कभी दूसरो में बुराई देखनी चाहिए। ऐसा करने से पहले खुद के अंदर झांक कर देखना चाहिए क्योकि धरती पर ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिससे कभी कोई गलती न हुई हो और न कभी किसी का दिल दुखाया हो। इसलिए दुसरो को कहने से पहले अपने अंदर की कमियों को देखना चाहिए और गलती पता लगने पर उसे ठीक करना चाहिए। ऐसा करने से कभी भी कोई व्यक्ति गलत लगेगा ही नहीं और जब गलत लगेगा ही नहीं तो कभी भी किसी से कोई अपवाद होगा ही नहीं। 


(7) मन के अंदर अनेक प्रकार की बुराइया भरे रहने के बाद अगर मनुष्य दूसरो का भला करे, तो  उसका ये कर्म हृदय में अभिमान पैदा कर देता है। जो की आगे चल कर उसके लिए घातक सिद्ध होता है ,इसलिए भलाई करने से पहले मन का साफ होना बहुत जरूरी है। निच्छल (साफ ,शुद्ध )मन से किसी का भला करना ,सेवा करना ही सच्ची पूजा है। 


(8 )किसी भटके को रास्ता दिखाना ,किसी की पूजा करना ,किसी को अन्न - जल देना आदि जितने भी शुभ कार्य है ,उन सभी को करते समय ये नहीं सोचना चाहिए की ये उसने किया है,बल्कि ये सोचना चाहिए की ये सब भगवान् ने कराया है क्योकि उनकी मर्जी के बगैंर कोई कुछ नहीं कर सकता, इसलिए मनुष्य की जगह अपना लक्ष्य भगवान् पर ही रखना चाहिए।भगवान् को अपने द्वारा किये गए हर कार्य के लिए धन्यवाद देना चाहिए की उन्होंने आपको इस लायक बनाया।

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(9 ) जो व्यक्ति किसी भी वस्तु को पाने में जल्दबाज़ी करता है उसे बाद में पछताना पड़ता है। क्योकि वो सिर्फ सुख को देखता है ,सुख आया कैसे इसके बारे में नहीं सोचता। ऐसे ही जो व्यक्ति वस्तु पाने में धैर्य रखता है ,उसे वस्तु देर से मिलती पर बाद में उसे पछताना नहीं पड़ता। उसका जीवन सुख से बीतता है क्योंकि उसे वस्तु से नहीं बल्कि फल से मतलब होता है। अथार्त (भगवान् )मनुष्य भगवान् से अनगिनत वस्तुये -हीरे ,मोती,सोना ,चांदी ,कपडे ,खाद्य पदार्थ आदि मांगता है ,पर उस सुख को देनेवाले (भगवान् )को नहीं मानता,उनकी भक्ति नहीं मांगता।  सुख देने का साधन ही अगर मिल जाए तो क्या कभी दुःख होगा। 


(10 ) संसार मे मनुष्य के अंदर एक बहुत बड़ी कमी होती है ,वो ये की भगवान् के पास वो तभी  जाता है ,तभी पूजा करता है जब उसे किसी वस्तु की अभिलाषा हो, वस्तु मिल जाए तो ठीक और न मिले तो भगवान् गलत ,क्या ऐसा होना ठीक है ,-बिलकुल नहीं ---पूजा पाठ करना ,भगवान् से कुछ माँगना अच्छी  बात है,गलत नहीं है।पर  ऐसा करके आप भगवान् को पा लोगे ,भगवान आपके अधीन हो जाएंगे ,आप जो चाहोगे वही होगा, ऐसा सोचना गलत है।ये अभिमान की निशानी होती है। 


भगवान् का ये स्वभाव है कि वो ये नहीं देखते की व्यक्ति करता क्या है अपितु वो ये देखते है की व्यक्ति चाहता क्या है ,अथार्त मनुष्य ने जो माँगा वो किस उद्देश्य से माँगा ,वो किसी के हित  के लिए है या बुरे के लिए ,आपके द्वारा मांगी गई उस इच्छा से आपका भला होगा या बुरा।भगवान् अपने   भक्तो की  वही इच्छा पूरी करते है जिसमे उनका भला हो ,यदि आपकी मांग ठीक है तो उसका फल आपको ज़रूर प्राप्त होगा ,इसमें कोई संदेह नहीं। इसलिए भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में कहा है की मनुष्य को केवल अपना कर्म करना चाहिए ,फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। सब कुछ भगवान् पर छोड़ दो और निष्काम भाव से अपने काम करते रहो। 


इसी के साथ अपनी वाणी को विराम देते हुए और भगवान् से आपके मंगल की कामना करते हुए हम आज के लिए विदा लेते है। विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी, तब तक के लिए नमस्कार ।

भगवान् शिव आपका कल्याण करें 

धन्यवाद

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