आदित्यहृदयस्तोत्रम हिंदी अर्थ सहित

 हर हर महादेव 


आज आपको जिस स्त्रोत के बारे में बताने जा रहे है ,उसका नाम है आदित्यहृदयस्त्रोतम। 


यह पाठ अपने आप में एक बहुत शक्तिशाली पाठ है। ये वो पाठ है जिसे श्री अगस्त्य मुनि ने ,राम जी को रावण से युद्ध करते -करते थक जाने पर सुनाया था। जिसे सुन कर श्री राम जी के मन की सारी शंकाये दूर हो गई। 


इस पाठ को करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। सभी शत्रुओं का नाश हो जाता है। मन की सारी चिन्ताएं व शोक मिट जाता है तथा मनुष्य की आयु में वृद्धि होती है अथार्त आयु लम्बी होती है। तो आइये इस पाठ को भक्ति ,श्रद्धा व विश्वास के साथ पढ़े ,जिससे की हमें इस स्तोत्र का पूरा फल प्राप्त हो सके। 

आदित्यहृदयस्तोत्रम

 

आदित्यहृदयस्त्रोतम। हिंदी अर्थ साहित


 विनियोग

ॐ अस्य आदित्यहृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुप् छंदः ,आदित्यहृदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।


 ऋष्यादिन्यास 

ॐ अगस्त्यऋषये नमः ,शिरसि। अनुष्टुप्छन्दसे नमः , मुखे। आदित्य -हृदयभूत -ब्रह्मदेवतायै नमः ,हृदि। ॐ बीजाय नमः गुह्ये। रश्मिमते शक्त्ये नमः ,पादयोः। 

ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः ,नाभौ।


करन्यास 

ॐ रश्मिमते अङ्गुष्ठाभ्यां नमः। ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः। ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ विवस्वते अनामिकाभ्यां नमः। ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां  नमः। 


हृदयादि अङ्गन्यास 

इस चित्र के माध्यम से आप न्यास करें। न्यास करते समय आप अपने उन अंगो को स्पर्श करें जो इस हृदयादि अङ्गन्यास में दिये गये है।जैसे ह्रदय पर हाथ रख कर कहे ----------------------ॐ रश्मिमते ह्रदयाये नमः , इसी प्रकार से बाकी के न्यास बोले। 


ॐ रश्मिमते ह्रदयाय नमः। ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा। ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट् । ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।


इस प्रकार न्यास करके निम्नाङ्कित मंत्र से भगवान् सूर्य का ध्यान और नमस्कार करना चाहिये ----ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् 


इतना करने के बाद आदित्यह्रदय का पाठ आरम्भ करना चाहिए।

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आदित्यह्रदय स्तोत्रम 


ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्। 

रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्।।

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्। 

उपगम्यब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा।।


राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम्। 

येन सर्वानरीन वत्स समरे विजयिष्यसे।।

आदित्यह्रदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्। 

जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्।।


सर्वमङ्गलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम्। 

चिंताशोकप्रश्मनमायुर्वर्धनमुत्तमम्।।


रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्। 

पूज्यस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।।

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः। 

एष देवासुरगनाल्लोकान् पाती गभस्तिभिः।।


एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः। 

महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः।।

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरूतो मनुः। 

वायुर्वहिनः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः।।


आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्। 

सुवर्णसदृशो भानुरहिरण्यरेता दिवाकरः।। 

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिरमरीचिमान्।

तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोsशुमान्।।


हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोहस्करो रविः। 

अग्निगर्भोअदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः।।

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः। 

घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः।।


आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः। 

कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः।।

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः। 

तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोस्तु ते ।।


नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः। 

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः।।

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः। 

नमो नमः सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नमः।।


नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः। 

नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोस्तु ते ।। 

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायादित्यवर्चसे। 

भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः।।


तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने। 

कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः।।

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे। 

नमस्तमोभिनिघ्नाये रुचये लोकसाक्षिणे।।


नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभुः। 

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः।।

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः। 

एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्।।


देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च। 

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः।।

एनमापत्सु कृच्छैषु कान्तारेषु भयेषु च।

कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव।।


पूज्यस्वैनमैकाग्रो देवदेवं जगतपतिं। 

एतत्त्रिगुणितम जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यति।।

अस्मिन क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि। 

एवमुक्त्वा ततोअगस्त्यो जगाम स यथागतम्।।


एतच्छुत्वा महातेजा नष्टशोकोभवत् तदा। 

धारयामास सुप्रीतो राघवः प्र्यतात्मवान्।।

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्। 

त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्।।


रावणं प्रेक्ष्य हष्टात्मा जयार्थं समुपागमत्। 

सर्वयत्नेन महता व्रतस्तस्य वधेअभवत ।।


अथ रवीरवदत्रिरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः। 

निशिचरपतिमसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेती।।

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आदित्यहृदयस्तोत्रम  हिंदी में 


आदित्यहृदयस्त्रोतम। हिंदी अर्थ साहित


विनियोग 

ॐ अस्य आदित्यहृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुप् छन्दः ,आदित्यह्रदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः। 


ऋष्यादिन्यास 

ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। अनुष्टुपछन्दसे नमः, मुखे। आदित्य -हृदयभूत-ब्रह्मदेवतायै नमः, हृदि। ॐ बीजाय नमः ,गुह्ये। रश्मिमते शक्तये नमः ,पादयोः। ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः ,नाभौ।


 करन्यास 

ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ समुधते तर्जनीभ्यां नमः। ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ विवस्वते अनामिकाभ्यां नमः। ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ भुनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।  


हृदयादि अंगन्यास 


ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा। ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट। ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट । ॐ भुनेश्वराय अस्त्राय फट। 

इस प्रकार न्यास करके निचे लिखे मंत्र से भगवान् सूर्य का ध्यान करना चाहिए और उन्हें नमस्कार करना चाहिए।  


ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात। 

फिर इसके बाद आदित्यह्रदय का पाठ आरम्भ करना चाहिए

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उधर भगवान् श्री रामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े थे। इतने में रावण भी युद्ध करने के लिए उनके सामने आ गया। यह देख कर भगवान् अगस्त्य मुनि ,जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे ,वे श्री राम जीके पास जा कर बोले। 


सबके ह्रदय में रमण करने वाले महाबाहो राम !यह सनातन गोपनीय स्त्रोत सुनो। वत्स ! इसके जपने से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे। इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है (आदित्यह्रदय ) यह परमपवित्र और सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला स्तोत्र है। इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम् कल्याणमय स्तोत्र है। सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिंता और शौक को मिटाने तथा आयु को बढ़ाने वाला उत्तम साधन है। 


भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित (रश्मिमान) है। ये नित्य उदय होने वाले (समुधन) ,देवता और असुरों से नमस्कृत ,विवस्वान नाम से प्रसिद्ध , प्रभा का विस्तार करने वाले (भास्कर ) और संसार के स्वामी --भुवनेश्वर है। तुम इनका (रश्मिमते नमः , समुधते नमः, देवासुरनमस्कृताय नमः , विवस्वते नमः ,भास्कराय नमः ,भुनेश्वराय नमः ----इन नाम मंत्रो के द्वारा )पूजन करो। सम्पूर्ण देवता इन्ही के स्वरुप है। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता और स्फूर्ति प्रदान करने वाले है। 


ये ही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित सम्पूर्ण लोकों का पालन करते है। ये ही ब्रह्मा ,विष्णु ,शिव ,स्कन्द ,प्रजापति ,इंद्र ,कुबेर ,काल ,यम ,चन्द्रमा ,वरूण ,पितर ,वसु साध्य ,अश्विनीकुमार ,मरुद्गण ,मनु ,वायु ,अग्नि ,प्रजा ,प्राण ,ऋतुओ को प्रकट करने वाले तथा प्रभा के पुंज है। इन्ही के नाम आदित्य (अदितिपुत्र ), सविता (जगत को उतपन्न करने वाले ), सूर्य (सर्वव्यापक ) खग (आकाश में विचरने वाले ), पूषा (पोषण करने वाले ), गभस्तिमान (प्रकाश मान ) सुवर्णसदृश ,भानु (प्रकाशक ), हिरण्यरेता (ब्राह्मण्ड की उत्पत्ति के बीज ) , दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले ) , हरिदश्व (दिशाओं में व्यापक अथवा हरे रंग के घोड़े वाले )


सहस्त्रार्चि (हजारों किरणों से सुशोभित ) , सप्तसप्ति (सात घोड़ों वाले ) , मरीचिमान (किरणों से सुशोभित ), तिमिरोन्मथन (अन्धकार का नाश करने वाले ,शम्भु(कल्याण के उद्गम स्थान), त्वष्टा (भक्तों का दुःख दूर करने वाले तथा जगत का संहार करने वाले ),मार्तण्डक (ब्राह्मण को जीवन प्रदान करने वाले ),अंशुमान (किरण धारण करने वाले ),हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा ),शिशिर (स्वभाव से ही सुख देने वाले ),तपन (गर्मी पैदा करने वाले ),अहस्कर (दिनकर ) , रवि (सबकी स्तुति के पात्र ) , अग्निगर्भ (अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले ) , 


अदितिपुत्र ,शंख (आनंद स्वरुप एवं व्यापक ) , शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले ) ,ऋग ,यजुः और सामवेद केपारगामी,घनवृष्टि (घनी वृष्टि के कारण ) , अपां मित्र ( जल को उतपन्न करने वाले ), विन्ध्यवीथीप्लवङ्गम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले  ),आतपी (घाम यानी धुप उतपन्न करने वाले ), मण्डली (किरण समूहों को धारण करने वाले ), मृत्यु (मौत के कारण ), पिङ्गल (भूरे रंग वाले ),सर्वतापन (सबको ताप देने वाले ), कवि (त्रिकालदर्शी),विश्व(सर्वस्वरूप)  महातेजस्वी , रक्त (लाल रंग वाले ), सर्वभवोद्भव (सबकी उतपत्ति के कारण ), नक्षत्र , ग्रह और तारों के स्वामी ,विश्वभावन (जगत की रक्षा करने वाले ), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी तथा द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त ) है। --इन सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्य देव !--आपको नमस्कार है। 


पूर्वगिरि ---उदयाचल तथा पश्चिमगिरि ---अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है।ज्योतिर्गणों  (ग्रहों और तारों ) के स्वामी तथा दिन के अधिपति --आपको प्रणाम है। आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता है। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते है। --आपको बारम्बार नमस्कार है। सहस्त्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य !--आपको बारम्बार नमस्कार है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से प्रसिद्ध है --आपको प्रणाम है। उग्र (अभक्तों के लिए भयंकर ), वीर (शक्ति -संपन्न ) और सारङ्ग  (शीघ्रगामी ) --सूर्यदेव को नमस्कार है। कमलो को विकसित करने वाले प्रचंड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है। 


(परात्पर -रूप में  ) आप ब्रह्मा ,  शिव और विष्णु के भी स्वामी है। सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्य मंडल आपका ही तेज़ है ,आप प्रकाश से परिपूर्ण है ,सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरुप है। आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक है , आप जड़ता और शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले है। आपका स्वरुप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले है। सम्पूर्ण ज्योति के स्वामी और देवस्वरूप है। आपको नमस्कार है। आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है। आप हरि (अज्ञान का हरण करने वाले ) और विश्वकर्मा (संसार की सृष्टि करने वाले )है। तम के नाशक ,  प्रकाशस्वरुप और जगत  के साक्षी है। आपको बारम्बार प्रणाम है। 


रघुनन्दन !ये भगवान् सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार ,सृष्टि और पालन करते है। ये ही अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते है और वर्षा करते है। ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते है। ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषो को मिलने वाले फल है। यज्ञ में भाग ग्रहण करने वाले देवता ,यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही है। सम्पूर्ण लोको में जितनी क्रियाएँ होती है ,उन सब का फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ है। 


राघव !  विपत्ति में ,कष्ट में ,दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरूष इन सूर्य देव का कीर्तन करता है। उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता। इसलिए तुम एकाग्रचित होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वरकी पूजा करो। इस आदित्यहृदय का तीन बार जप करने से कोई भी युद्ध में विजय प्राप्त कर सकता है। महाबाहो !---तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे। यह कहकर अगस्त्यजी जैसे आये थे ,उसी प्रकार चले गए।

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उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्री रामचंद्रजी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित मन से आदित्यह्रदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की और देखते हुए तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी रघुनाथजी ने धनुष उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साह पूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बड़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया। उस समय देवताओं के बीच में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्री रामचंद्र की ओर देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा कि ----रघुनन्दन !  अब जल्दी करो। 


इस प्रकार प्रभु श्री राम जी ने भगवान् सूर्य के आशीर्वाद और आज्ञा से रावण का अंत किया। जिससे की आकाश में उपस्थित सभी देवताओ के मन का सारा शोक मिट गया। 


प्रभु श्री राम जी- की तरह ही जो मनुष्य भगवान् सूर्य का हर रविवार को शुद्ध होकर व निश्चल मन से आदित्यह्रदय का पाठ करें , तो उसके जीवन की सारी चिंताए दूर हो जाएंगी व उनके जीवन से शत्रुओं का नाश होगा। 


भगवान् सूर्य का आशीर्वाद पाने और आयु बढ़ाने के लिए हमेशा इस परम पवित्र आदित्यह्रदय स्तोत्र का पाठ करें। 


भगवान् सूर्य का आशीर्वाद आप सभी को प्राप्त हो। विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी।तब तक के लिए हर-हर महादेव।


धन्यवाद।

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