Heart touching sad story(Tum to gopaal ji ke putra ho) तुम तो गोपाल जी के पुत्र हो।

जय श्री राधे श्याम 

हर हर महादेव प्रिय पाठकों ! कैसे है आप लोग, 
आशा करते है आप सभी सकुशल होंगे। 
भगवान् शिव का आशीर्वाद हमेशा आपको प्राप्त हो।  


Heart touching sad story(Tum to gopaal ji ke putra ho) तुम तो गोपाल जी के पुत्र हो।

कहानी

तुम ती गोपाल जी के पुत्र हो 


ठाकुर मेघसिंह बड़े प्रजाप्रिय और न्यायकारी जागीरदार थे। भगवान के विश्वासी भक्त थे। वे इतने साधु-स्वभाव के थे कि बुरा करने वाले में भी भलाई देखते थे।भगवत-कृपा तथा भगवान के मंगल-विधान में उनका अटूट विश्वास था। ठाकुर मेघसिंह के एक ही कुमार(बेटा ) था-सज्जन सिंह । जो की सोलह वर्ष की उम्र का था । शील, सौन्दर्य और गुणों का भण्डार था।  उसका विवाह हुए अभी तीन ही महीने हुए थे ।

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भगवान के विधान से वह एक दिन घोड़े से गिर पड़ा और उसके मस्तक (दिमाग ) में गहरी चोट आई। थोड़ी देर के लिए तो वह चेतना शून्य (बेहोश ) हो गया, परन्तु कुछ ही समय बाद उसको चेत (होश ) आ गया । यथासाध्य पूरी चिकित्सा हुई, पर घाव में कोई सुधार नहीं हुआ। होते-होते (धीरे -धीरे ) घाव बढ़ता चला गया और उसका जहर सारे शरीर में फैल गया। अब सबको निश्चय हो गया कि सज्जन सिंह के प्राण नहीं बचेंगे। 


सज्जन सिंह से भी यह बात छिपी नहीं रही। उसके चेहरे पर कुछ उदासी आ गयी। ठाकुर मेघसिंह पास बैठे विष्णुसहस्रनाम का पाठ कर रहे थे। उसे उदास देखकर उन्होंने हँसते हुए कहा- 'बेटा! तुम्हारे चेहरे पर उदासी क्यों है। अभी तुम मेरे पुत्र हो, मेरी जागीर के मालिक हो, तुम्हें मेरे कुँवर का पद मिला है। यह सब तुम्हारे गोपाल जी के मंगल विधान से ही हुआ है। अब उन्हीं के मंगल विधान से तुम साक्षात् उनके पुत्र बनने जा रहे हो। अब तुम्हें उनके कुँवर का पद मिलेगा और दिव्य धाम की प्राप्ति भी होगी। 


Heart touching sad story(Tum to gopaal ji ke putra ho) तुम तो गोपाल जी के पुत्र हो।


बेटा! ये तो हर्ष (ख़ुशी ) का समय है। तुम प्रसन्नता से जागीर के अधिकारी बनोगे। वहाँ जाओ, उन मंगलमय प्रभु से मेरा नमस्कार कहना और यह भी कहना कि मेघसिंह की आपके धाम में तबादले की भी कोई व्यवस्था हो रही है क्या? मुझे कोई जल्दी नहीं है; क्योंकि मुझे तो चाकरी में रहना है, चाहे जहाँ रक्खें; परन्तु इतना अवश्य होना चाहिए कि आपकी चाकरी (सेवा ) में हूँ, मुझे इसका स्मरण सदा बना रहे।


बेटा! यहाँ के संयोग-वियोग सब उन लीलामय के लीला संकेत से होते हैं और हमारे मंगल के लिए! इस बात को जिसको पता है, वह न तो दुःख के संयोग से दुखी होता है और न सुख के वियोग से दुखी होता है । उसे तो सभी समय सभी संयोग-वियोगों में, सभी दुःख-सुखों में सदा अखण्ड सुख, अखण्ड शान्ति और अखण्ड तृप्ति का अनुभव होता है। तुम भगवान के मंगल संकेत से ही यहाँ आये और उनके मंगल संकेत से मंगलमय की चरण करने जा रहे हो।'

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धूलि प्रत्यक्ष प्राप्त दृढ़ता इसमें जरा भी सन्देह मत करो। संशयवान का ही पतन होता है। विश्वासी तथा श्रद्धालु तो  हँसते-हँसते प्रभु के धाम में चला जाता है। तुम श्रद्धा को विश्वास के साथ पकड़े रहो, विश्वास को जरा भी इधर-उधर मत होने दो। यहां से जाकर तुम वहाँ उस अपरिसीम अनन्त आनन्द को प्राप्त करोगे ,तो फिर यहां की सभी सुख की चीजें उसके सामने तुम्हें तुच्छ (बेकार ) दिखायी देंगी। रही तुम्हारी कुआँरानी (बीवी ) की बात सो उसकी कोई चिन्ता मत करो। वह पतिव्रता है।


यहाँ साधुभाव से जीवन बिताकर, वह भी दिव्य धाम में तुम्हारे साथ ही श्रीगोपालजी की चरण सेविका का पद प्राप्त करेगी। बेटा! विषयों का चिन्तन ही पतन का हेतु होता है, फिर स्त्री-पुरुष के विषयी जीवन में तो प्रत्यक्ष विषय-सेवन होता है। प्रत्यक्ष नरक-द्वारों में अनुराग हो जाता है। अतएव वह पतन का निश्चय हेतु है। भगवान ने दया करके उन नरक-द्वारों की अनुरक्ति और सेवा से कुआँरानी को मुक्त कर दिया है। वह परम भाग्यवती और साध्वी है, इसी से उस पर यह अनुग्रह हुआ है।


वह तपोमय जीवन बितायेगी और समय पर भगवान के दिव्य धाम में तुमसे आ मिलेगी। तुम्हारी माता को तो भगवान के मंगलविधान पर अखण्ड विश्वास है ही। उसे तो सर्वत्र सर्वथा मंगल ही दीखता है। बेटा! तुम सुख से यात्रा करो। स्वयं हँसते-हँसते और सबको हँसाते हुए जाओ। जब सबको यह विश्वास हो जाएगा कि तुम वहाँ जाकर यहाँ की अपेक्षा कहीं अनन्त गुने विशेष और अधिक सुख की स्थिति को प्राप्त करोगे, तब तुम्हारे वियोग में दुःख का अनुभव होने पर भी सच्चे प्रेम के कारण तुम्हारे सुख से वे सभी परम सुखी हो जाएंगे। पर यह विश्वास उन सबको तभी होगा, जब तुम विश्वास करके हँसते-हँसते जाओगे।


ठाकुर जी की कृपा से पिता के मुख से निकली  इन सच्ची बातों का सज्जन सिंह पर बड़ा प्रभाव पड़ा। उसका मुखमण्डल दिव्य आनन्द की निर्मल ज्योति से उद्भासित हो उठा। उसके होंठों पर मधुर हँसी छा गयी; उसका ध्यान भगवान गोपाल जी के मधुर श्रीविग्रह में लग गया और उसके मुख से भगवान नाम  का उच्चारण होने लगा। फिर देखते-ही-देखते ब्रह्माण्ड फटकर उसके प्राण निकलकर दिव्यधाम में पहुँच गये।

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ठाकुर, ठकुराइन, कुअँरानी- सभी वहाँ उपस्थिति थे। परन्तु सभी आनन्दमग्न थे। मानो अपने किसी परम प्रिय आत्मीय को शुभ आनन्दमय स्थान की शुभ यात्रा में सहर्ष सोत्फुल्ल हृदय से विदा दे रहे हों। ठाकुर , ठकुराइन, कुआँरानी-तीनों ने ही अपने जीवन को और भी वैराग्य से सुसम्पन्न किया, सभी ने अपने आप को भगवत रंग में विशेषकर रूप से रंगा और अन्त में यथासमय (निश्चित समय ) आने पर इस अनित्य (नश्वर ) मर्त्यलोक (भूलोक ) से सदा के लिये छूटकर भगवद्धाम में प्रयाण (सफर ) किया।


Heart touching sad story(Tum to gopaal ji ke putra ho) तुम तो गोपाल जी के पुत्र हो।


प्रिय पाठकों !आशा करते है आपको पोस्ट पसंद आई होगी। विश्वज्ञान हमेशा ऐसी ही रियल स्टोरीज आपको मिलती रहेंगी। विश्वज्ञान में अगली रोचक व ज्ञानपूर्ण कहानी  के साथ फिर मुलाक़ात होगी। तब तक के लिए अपना ख्याल रखे ,खुश रहे और औरों को भी खुशियां बांटते रहें। जय जय श्री राधे श्याम 

धन्यवाद। 


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