love affaire aur marraige life btaati hai ye rekha/किस रेखा से पता करें की स्त्री का पहले से किसी और से अनुचित सम्बन्ध है।

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यदि कोई रेखा मंगल क्षेत्र (प्रथम) से निकलकर (चित्र संख्या 7 e-e) नीचे आये और जीवन रेखा को स्पर्श करे या काटे, तो स्त्री के हाथ में यह योग इस बात का सूचक है कि उस स्त्री का पहले किसी के साथ अनुचित सम्बन्ध था जो उसके लिए चिन्ता-मुसीबत का कारण बना हुआ है।

यदि मंगल क्षेत्र से आने वाली वह रेखा अपनी सूक्ष्म शाखायें जीवन रेखा को भेजती है (चित्र संख्या 7 f-1) तो यह योग वैसे ही प्रभाव का सूचक है और उस प्रभाव के कारण समय-समय पर उस स्त्री को चिन्तित होना पड़ता है। इस प्रकार की रेखा से यह भी ज्ञात होता है कि जो व्यक्ति उसकी चिन्ता का कारण है वह कामुक और पाशविक प्रवृत्ति का है। 

जय श्री राधे श्याम 

हर हर महादेव प्रिय पाठकों ! कैसे है आप लोग, 
आशा करते है आप सभी सकुशल होंगे। 
भगवान् शिव की कृपा दृष्टी आप पर बनी रहे। 

love affaire aur marraige life btaati hai ye rekha


lines in hand

प्रिय पाठकों!हाथ में सात  प्रधान रेखायें होती हैं और सात अन्य रेखायें होती है। निम्नलिखित रेखायें प्रधान रेखायें मानी जाती हैं-- 

(1) जीवन रेखा (Line of Life) जो शुक्र क्षेत्र को घेरे हुए होती है। 

(2) शीर्ष रेखा (Line of Head) जो करतल के मध्य में एक सिरे से दूसरे सिरे की ओर जाती है।

(3) हृदय रेखा (Line of Heart) जो अंगुलियों के मूल स्थान के नीचे शीर्ष रेखा के समानान्तर चलती है। 

(4) शुक्र मुद्रिका (Gindle of Venus) जो हृदय रेखा से ऊपर होती है और अधिकतर सूर्य और शनि क्षेत्रों को घेरे हुए होती है। 

(5) स्वास्थ्य रेखा (Line of Health) जो बुध क्षेत्र से आरंभ होकर हाथ में नीचे की ओर जाती है। 

(6) सूर्य रेखा (LincofSun) जो प्रायः करतल के मध्य (जिसे मंगल स्थल- Plain Mars कहते हैं) से ऊपर चढ़ती हुई सूर्य क्षेत्र को जाती है। 

(7) भाग्य रेखा (Line of Fate) जो हाथ के मध्य में होती है और मणिबन्ध से आरंभ होकर शनि क्षेत्र को जाती है। 

अन्य सात रेखायें हैं- 

(1) मंगल रेखा (Line of Mars) जो प्रथम मंगल-क्षेत्र से आरंभ होकर जीवन रेखा के भीतरी भाग में जाती है। 

(2) वासना रेखा (Via Lasciva) जो स्वास्थ्य रेखा के समानान्तर होती है। 

(3) अतीन्द्रिय ज्ञान रेखा (Line of Intuition) जो एक अर्द्धवृत्त के रूप में बुध क्षेत्र से चन्द्र क्षेत्र को जाती है। 

(4) विवाह रेखा (Line of Marriage) जो बुध क्षेत्र पर एक आड़ी रेखा के रूप में होती है। 

(5) तीन मणिबन्ध रेखायें (The three bracelets) जो मणिबन्ध पर होती हैं। 

जीवन रेखा को आयु या जीवनी शक्ति रेखा भी कहते हैं। शीर्ष रेखा को मस्तक रेखा भी कहते हैं। भाग्य रेखा को शनि रेखा भी कहते हैं। सूर्य रेखा को प्रतिभा रेखा का नाम दिया गया है। हिन्दू हस्त-शास्त्र के अनुसार जो इन रेखाओं के नाम हैं उन्हें हम उपयुक्त स्थान पर देंगे।

हाथ का नक्शा hand map

शीर्ष रेखा द्वारा हाथ दो भागों में या अर्द्ध गोलों (hemispheres) में विभाजित हो जाता है। ऊपरी भाग (upper hemisphere) में अंगुलियां, वृहस्पति, शनि, सूर्य, बुध और मंगल क्षेत्र होते हैं। यह भाग बौद्धिक और मानसिक क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है। 

दूसरा भाग (Lower hemisphere) जो शीर्ष रेखा से नीचे हाथ के मूल स्थान तक होता है, सांसारिक रुचियों और भावनाओं का प्रतीक होता है। इन दो भागों को अपना मार्ग-दर्शक बनाकर हस्तविज्ञान के छात्र को जातक के स्वभाव की जानकारी तुरन्त प्राप्त हो सकती है। 

इस विभाजन की ओर बहुत कम ध्यान दिया गया है; परन्तु यह अत्यन्त महत्त्व का है और इस पर विचार न करना बहुत बड़ी गलती होगी। 

हाथ की रेखाओं की विशेषतायें 
characteristics of hand lines

रेखाओं के सम्बन्ध में नियम यह है कि वे स्पष्ट अंकित होनी चाहिए। उनको न तो चौड़ी होना चाहिए न रंग की पीली। उनमें टूट-फूट, डीप-चिन्ह और अन्य किसी प्रकार की अनियमिततायें होना अशुभ होता है। यदि रेखायें बहुत निस्तेज होती हैं तो स्वास्थ्य की कमी होती है और न तो स्फूर्ति होती है न निर्णय लेने की क्षमता। 

यदि रेखायें लाल वर्ण की होती है तो जातक उत्साही, आशावादी, स्थिर स्वभाव का और सक्रिय होता है। यदि रेखायें पीले रंग की हो तो जातक में पित्त-प्रकृति प्रधान होती है और उसको जिगर-विकार की सम्भावना होती है। वह अपने आप में रमा हुआ, कम बोलने वाला और कम मिलने-जुलने वाला तथा घमण्डी होता है। 

यदि रेखायें गहरे रंग की हो (बिल्कुल काली-सी) तो जातक गम्भीर और उदासीन होता है। वह हठधर्मी भी होता है और बदले की भावना उसके मन से कभी नहीं हटती। वह सरलता से किसी को क्षमा नहीं करता। Gopiyon ka viyog/ separation of gopis/गोपियों का वियोग

रेखायें बनती रहती हैं, धुंधली पड़ती रहती हैं और प्रायः मिट भी जाती हैं। हाथ की परीक्षा में इस तथ्य को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। हस्त-शास्त्री का कर्तव्य है। कि जातक के हाथ के अशुभ लक्षणों को देखकर उसे उसकी अनिष्टकर प्रवृत्तियों के कारण आने वाले संकटों के सम्बन्ध से सावधान कर दे। 

यह जातक की इच्छा शक्ति पर निर्भर है कि वह उन प्रवृत्तियों को सुधार सकता है या नहीं। यदि अपने गत जीवन में वह ऐसा नहीं कर सका है तो हस्त-शास्त्री उसको बता सकता है कि भविष्य में भी वह ऐसा करने में समर्थ होगा या नहीं। 

हाथ की परीक्षा में केवल एक ही अशुभ लक्षण देखकर निर्णय नहीं लेना चाहिये। यदि अशुभ लक्षण महत्त्वपूर्ण है तो लगभग प्रत्येक प्रधान रेखा में उसका प्रभाव प्रदर्शित होगा और यह भी आवश्यक है कि अन्तिम निर्णय लेने से पहले दोनों हाथों की परीक्षा की जाये। केवल एक लक्षण प्रवृत्ति का संकेत देता है। 

यदि उसकी पुष्टि अन्य रेखाओं से हो जाये, तो यह समझना चाहिये कि उस लक्षण से प्रदर्शित संकट निश्चित रूप से आयेगा। 

क्या लोग हाथ से प्रदर्शित संकटों या मुसीबत. से बच सकते हैं? हमारा उत्तर है कि यदि वे प्रयत्न करें तो निश्चित रूप से अपनी रक्षा कर सकते हैं. परन्तु हम पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि वह बचने के उपाय नहीं करेंगे और आने वाले संकट का शिकार बनकर रहेंगे। 

हमने अपने अनुभव में ऐसे सैकड़ों लोगों को देखा है जिन्हें हमने आने वाले संकटों की चेतावनी दी; परन्तु उन्होंने उसकी परवाह नहीं की और अन्त में संकटों को झेलने को विवश हुए। 

हम भवितव्यता पर कुछ अधिक विश्वास करते है।चेतावनी पाकर लोग चाहे तो सावधानी से काम लेकर या मनोवृत्ति को सुधारकर अशुभ प्रभावों से अपनी रक्षा कर सकते हैं, परन्तु भवितव्यता उनको ऐसा नहीं करने देती।

hast rekha Which line shows that the woman already has an inappropriate relationship with someone else/किस रेखा से पता चलता है कि स्त्री का पहले से किसी और से अनुचित सम्बन्ध है।


जब किसी प्रधान रेखा के साथ कोई सहायक रेखा ( a-a) हो,अर्थात् ऐसी रेखा हो जो उसके साथ चल रही हो, तो उससे प्रधान रेखा को अतिरिक्त बल मिलता है। ऐसी परिस्थिति में यदि प्रधान रेखा कहीं पर टूटी हुई हो तो सहायक रेखा उस दोष का निवारण कर देती है और टूटी रेखा से जो संकट का संकेत मिलता है वह मिट जाता है। 

ऐसी सहायक रेखा या रेखायें प्रायः जीवन रेखा के अतिरिक्त यदि किसी रेखा के अन्त में दो शाखायें (fork) बन जाते हैं तो वह रेखा अधिक बलयुक्त हो जाती है। जैसे यदि शीर्ष रेखा के अन्त में दो शाखायें बन जायें तो मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है, परन्तु जातक दो स्वभाव वाला भी हो जाता है । 

जब रेखा गोपुच्छ रूप (चित्र मे अंकित b-b) में अन्त होती है तो यह चिन्ह कमजोरी का घोतक है, और इस के कारण उस रेखा का सद्गुण नष्ट हो जाता है।

रेखाओं के चित्र व उनके प्रारूपो के नाम-
Drawings of lines and names of their forms-

(क) द्विशाखा वाली रेखा 
(ख) सहायक रेखायें।
(ग) रेखा पर बिन्दु 
(घ) रेखा में द्वीप 
(च) गोपुच्छ रेखा 
(छ) रेखा पर ऊपर और नीचे जाने वाली शाखायें। 
(ज) लहरदार रेखा
(झ) टूटी-फूटी रेखा 
(त) केशकीय रेखायें 
(थ) रेखा पर वर्ग
(द) शृंखलाकार रेखा।) 

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यदि ऐसा प्रारूप जीवन रेखा के अन्त में हो तो जातक के स्नायुतंत्र-कमजोर और नष्टप्राय हो जाते है।यदि किसी रेखा से शाखायें ऊपर की ओर उठती हों (चित्र मे अंकित क रेखा ) तो इससे उस रेखा को बल प्राप्त होता है। और नीचे जाने वाली शाखायें विपरीत फल देती हैं। 

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जब यह विचार करना हो कि जातक का विवाह सफल होगा या नहीं, तो हृदय रेखा के आरम्भ में ये शाखायें अत्यन्त महत्त्व की होती हैं। ऊपर उठती हुई शाखायें प्रेम की गरिमा की घोतक होती हैं (चित्र मे अंकित a-a)। और नीचे जाने वाली शाखायें विपरीत फल देती है।

शीर्ष रेखा पर ऊपर उठती हुई शाखायें चतुरता, प्रवीणता और महत्त्वाकांक्षा का संकेत देती हैं। नीचे की ओर जाती हुई शाखायें (चित्र में अंकित e-e) विपरीत फल देती है। 

भाग्य रेखा पर उठती शाखायें व्यवसाय में सफलता की प्रतीक होती हैं। जब कोई शाखा ऊपर उठती हो तो जीवन की उस अवस्था में जातक को अपने व्यवसाय में उन्नति प्राप्त होती है। 

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किसी रेखा का श्रृंखलाकार होना (चित्र मे अंकित द) उसे निर्बल बनाता है। रेखा का किसी स्थान पर टूटना असफलता का घोतक होता है। (चित्र मे अंकित c-c)

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यदि रेखा लहरदार हो तो वह निर्बल होती है (चित्र मे अंकित b-b)। 

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केशकीय रेखायें (Capillary lines) ये सूक्ष्म रेखायें होती हैं। कभी-कभी प्रधान रेखा से जुड़कर नीचे की ओर चली जाती हैं। (चित्र मे अंकित त रेखा )। इस प्रकार की रेखायें प्रधान रेखा को बलहीन कर देती हैं। 

यदि सारा करतल लगभग सब दिशाओं की ओर जाने वाली अनेकों रेखाओं से भरा हो तो यह समझना चाहिए कि जातक चिंतापूर्ण स्वभाव का है, जल्दी ही घबरा जाता है और साधारण-सी बातों से उसकी भावनाओं पर आघात लगता है। 

कण-कण एकत्रित होकर पर्वत का रूप धारण करते हैं। उसी प्रकार छोटी-छोटी बातों का ध्यानपूर्वक ग्रहण करने से हस्त विज्ञान में दक्षता प्राप्त होती है। 

दाहिना और बायां हाथ 
right and left hand

दाहिने और बायें हाथ के अन्तर को समझना भी हस्त परीक्षा में बहुत महत्त्वपूर्ण है। जो भी देखेगा वह विस्मय करेगा कि एक ही व्यक्ति के दोनों हाथ एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न होते हैं। यह भिन्नता अधिकतर रेखाओं के रूपों, उनकी स्थितियों तथा चिन्हों में होती है। 

हमने जो नियम अपनाया है उसके अनुसार दोनों हाथों की परीक्षा करनी चाहिये, परन्तु दाहिने हाथ में मिली सूचना को अधिक विश्वसनीय मानना चाहिए। 

ऐसा कहा जाता है - "The left is the hand we are born with, the right is the hand we make." (अर्थात् बायां वह हाथ है जो हमें जन्म से मिला है, दाहिना वह हाथ है जो हम स्वयं बनाते हैं)। यह सिद्धान्त सही भी है और इसी का अनुपालन करना चाहिए। 

बायां हाथ जातक के प्राकृतिक स्वभाव को प्रदर्शित करता है और दाहिने हाथ में जन्म होने के बाद पाये हुए प्रशिक्षण, अनुभव और कर्मों के अनुसार रेखायें और चिन्ह होते हैं। 

मध्यकालीन युग में बायें हाथ को देखने की प्रथा थी, क्योंकि ऐसा विश्वास किया जाता था कि हृदय से निकट स्थित होने के कारण वह जातक के जीवन का प्रतिबिम्ब दिखाने का सच्चा दर्पण है। अधिकतर हस्तविज्ञान इसे अन्धविश्वास मानते है। क्यों  की इसके कारण हस्तविज्ञान को अवनति प्राप्त हुई थी। 

यदि हम युक्ति-संगत और वैज्ञानिक रूप से विवेचन करें तो पायेंगे कि मनुष्य अपने दाहिने हाथ ही को अधिक प्रयोग में लाता है, इस कारण बायें हाथ की अपेक्षा मांसपेशियों में तथा स्नायुओं में उसका अधिक विकास होता है। 

मस्तिष्क के विचारों और आदेशों पालन जितना अधिक दाहिना हाथ करता है उतना बायां में नहीं करता। मनुष्य शरीर एक धीमे परन्तु नियमित विकास (Developement) के दौर से गुजरता है, और जो भी परिवर्तन उसमें होता है उसके प्रभाव की छाप शरीर की सारी व्यवस्था पर पड़ती है। 

इसलिए यही युक्तिसंगत होगा कि उन परिवर्तनों को देखने के लिए दाहिने हाथ की परीक्षा करनी चाहिए क्योंकि भविष्य में जब भी विकास से या अविकास से परिवर्तन होंगे वे उसी हाथ द्वारा प्रदर्शित होंगे। अतः हमारा मत यह है कि 'साथ-साथ' दोनों हाथों की परीक्षा करना उचित होगा। 

इस प्रकार हम जान सकेंगे कि जातक के जन्म-जात गुण क्या थे और अब क्या हैं। परीक्षा से यह मालूम करने का प्रयत्न करना चाहिए कि जो परिवर्तन हुए हैं उनके क्या कारण हैं। भविष्य में क्या होगा, यह दाहिने हाथ की रेखाओं के विकास के द्वारा बताना सम्भव होगा। 

जिन लोगों का बायां हाथ सक्रिय होता है (जो बायें हाथ से काम करने वाले होते हैं) उनका बायां हाथ ही रेखाओं आदि का विकास प्रदर्शित करेगा। उनके लिए दाहिने हाथ को जन्म-जात गुणों का हाथ समझना होगा। 

यह देखा गया है कि कुछ लोगों में परिवर्तन इतना अधिक होता है कि बायें हाथ की कोई भी रेखा दाहिने हाथ की रेखाओं से नहीं मिलती। कुछ लोगों में परिवर्तन इतना धीमा होता है कि रेखाओं में अन्तर बहुत कम दिखाई देता है। 

जिसके हाथों में परिवर्तन अधिक हो तो यह समझना चाहिए कि उस जातक का जीवन उस व्यक्ति से अधिक घटनापूर्ण रहा है जिसके हाथ में परिवर्तन कम हो। 

इस प्रकार से ध्यानपूर्वक हस्त-परीक्षा करने से, जातक के जीवन की घटनाओं के बारे में और उसके विचारों में तथा कार्यशीलता में जो परिवर्तन आये  हैं, उनके सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

प्रकृति ने जैसे हमारे मुख पर नाक-कान की स्थितियां निर्दिष्ट की है, उसी प्रकार हाथ में चिन्हों के स्थान भी निश्चित किये हैं। इसीलिए यदि रेखायें अपने प्राकृतिक स्थानों से हटकर असाधारण स्थितियां ग्रहण करें तो असाधारण फलों की आशा करता युक्ति-संगत होगा। 

यदि मनुष्य के स्वाभाविक गुणों में इस प्रकार के परिवर्तन का प्रभाव पड़ सकता है, तो उसके स्वास्थ्य पर क्यों नहीं पड़ेगा। 

कुछ लोग हस्त-विज्ञान को कोई महत्त्व नहीं देते, इस बात पर विश्वास करने को तैयार नहीं होते कि हस्त-शास्त्र रोग या मृत्यु के सम्बन्ध में भविष्यवाणी कर सकता है। परन्तु हाथ की ध्यानपूर्वक परीक्षा से ऐसा फलादेश करना बिल्कुल संभव है। 

प्रत्येक मनुष्य के शरीर में ऐसे तत्व होते हैं जो समय आने पर उसकी मृत्यु का कारण बनते हैं। ये तत्व अपनी उपस्थिति में स्नायुओं के तरल स्रोत को दूषित हैं और उनका प्रभाव स्नायुओं के माध्यम से हाथ पर पड़ता है। 

यदि हम अज्ञात, निश्चेष्ट और सक्रिय मस्तिष्क के रहस्यों को स्वीकार करते. है तो हमें यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि ऐसे तत्वों के प्रभाव से मस्तिष्क जरूर अवगत होगा और वह स्नायु सम्बन्ध द्वारा उसकी सूचना हाथ तक पहुंचा देगा। 

इस प्रकार सम्बन्धित रेखा था चिन्ह के अध्ययन से हस्त-शास्त्री यह बताने में समर्थ होगा कि कौन-सा रोग किस समय उम्र रूप धारण करेगा और उसका क्या परिणाम होगा। 

विश्व विख्यात भविष्य वक्ता कीरो महान 
World famous prophet Keiro Mahan

इन बातों को ध्यान में रखकर हम हस्त रेखा की परीक्षा की ओर अग्रसर होते हैं। विश्व विख्यात भविष्य वक्ता कीरो महान दार्शनिक और उच्च कोटि के कवि भी थे। उन्होंने जीवन, हृदय, मस्तिष्क, भाग्य, विवाह और सन्तान रेखाओं का वर्णन कविता से आरम्भ किया है। यहाँ हम उनकी कविता का भावानुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि सहृदय पाठक हस्त-परीक्षा सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ कीरो की कविता का रसास्वादन भी कर सकें।
 
जीवन रेखा (The Line of Life) 
हम जिसको जीवन कहते हैं, वह तो छोटी-सी रचना है, 
ज्यों सागर तट पर पोत एक। 
ज्यों पथ पर पद चिन्ह एक, ज्यों शत-शत युग में निमिष एक,
व्यापक जीवन की झलक एक

किस रेखा पर समय (काल), बीमारी और मृत्यु अंकित होती हैं ?
On which line time (Kaal), disease and death are marked?

जीवन-रेखा बृहस्पति क्षेत्र के नीचे से प्रारम्भ होकर नीचे की ओर जाती है और शुक्र क्षेत्र को घेर लेती है। इस रेखा पर समय (काल), बीमारी और मृत्यु अंकित होती हैं और अन्य रेखाओं से जिन घटनाओं का पूर्वाभास प्राप्त होता है, उसकी पुष्टि जीवन-रेखा करती है। जीवन-रेखा लम्बी, संकीर्ण, गहरी अनियमितताओं से रहित, बिना टूट-फूट के और क्रास चिन्हों से रहित होनी चाहिए। इस प्रकार की निर्दोष जीवन रेखा सबल स्वास्थ्य, जीवन शक्ति और सप्राणता (Vitality) की सूचक होती है। 

जब जीवन-रेखा शृंखलाकार या जंजीराकार [चित्र संख्या 2 (द)रेखा] होती है तो वह निर्बल स्वास्थ्य की द्योतक होती है, विशेषकर जब हाथ मुलायम हों। जब रेखा फिर नियमित या सम हो जाती है तो स्वास्थ्य ठीक हो जाता है। 

यदि जीवन रेखा हाथ के अन्दर की ओर के बजाय बृहस्पति क्षेत्र के मूल स्थान से प्रारंभ हो तो यह समझना चाहिए कि जातक आरम्भ से ही महत्वाकांक्षी है। 

यदि जीवन रेखा अपनी प्रारम्भिक अवस्था में श्रृंखलाकार हो तो वह जीवन के प्रारम्भिक भाग में अस्वस्थता की सूचक होती है। 

जब जीवन रेखा घनिष्ठता से शीर्ष रेखा से जुड़ी हो तो जीवन का मार्गदर्शन युक्ति-संगतता और बुद्धिमानी से होता है, परन्तु जातक उन सब बातों में और काम में सतर्कता बरतता है जिनका सम्बन्ध उसके अपने आप से होता है। (चित्र संख्या 1)

जब जीवन रेखा और शीर्ष रेखा के बीच में फासला मध्यम हो तो जातक अपनी योजनाओं और विचारों को कार्यान्वित करने में अधिक स्वतंत्र होता है। ऐसी स्थिति जातक को स्फूर्तिवान और जीवट वाला बनाती है। (चित्र संख्या 1d-d)। 

परन्तु यदि यह फासला बहुत चौड़ा हो तो जातक को बहुत अधिक आत्म-विश्वास होता है और वह दुःसाहसी, आवेशात्मक, जल्दबाज बन जाता है और युक्ति संगतता उसके लिए कोई अर्थ नहीं रखती। 

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हाथ में अत्यन्त दुर्भाग्यसूचक चिन्ह कौन सा हैं?
What are the most unfortunate signs on hand?

जीवन रेखा, शीर्ष रेखा और हृदय रेखा का एक साथ जुड़ा होना (चित्र मे अंकित a-a रेखा ) हाथ में अत्यन्त दुर्भाग्यसूचक चिन्ह हैं। वह इस बात की सूचना देता है कि अपनी बुद्धिहीनता से या आवेश में आकर जातक अपने आपको संकट और महा विपत्ति में डाल लेगा। यह चिन्ह इस बात का भी द्योतक है कि जातक को अपने ऊपर आने वाले संकटों का बिल्कुल आभास नहीं है। 

जब जीवन रेखा अपने मध्य में विभाजित हो जाती है और शाखा चन्द्र-क्षेत्र के मूल स्थान को जाती है (चित्र मे अंकित e-e) तो एक अच्छी बनावट के दृढ़ हाथ का जातक अस्थिर और अधीर होता है। वह एक स्थान में टिककर नहीं बैठ सकता। यात्रायें करके ही उसे चैन मिलता है। 

यदि इस प्रकार का योग पिलपिले मुलायम हाथ में हो जिसमें झुकी हुई शीर्ष रेखा हो, तो भी जातक अस्थिर और अधीर होता है और वह उत्तेजनापूर्ण अवसरों के लिये लालायित रहता है; परन्तु इस प्रकार की उत्तेजना मदपान आदि से शान्त होती है। 
यदि बाल की तरह सूक्ष्म रेखायें जीवन रेखा से नीचे की ओर गिरती हों या उससे जुड़ी हों; तो जिस आयु में वे दिखाई दें उस आयु में जीवन शक्ति में कमी होती है। 

अधिकतर ऐसी रेखायें जीवन रेखा के अन्त में दिखाई देती हैं और तब वे जातक की जीवन शक्ति के विघटन की सूचक होती हैं। जो रेखायें जीवन रेखा से निकलकर ऊपर की ओर जाती हैं वे जातक के अधिकार बढ़ने, आर्थिक लाभ और सफलता की द्योतक होती हैं।

यदि ऐसी कोई रेखा बृहस्पति क्षेत्र को चली जाये ( चित्र मे अंकित c-c) तो जिस आयु पर ऐसा योग बने उसमें जातक को पद में या अपने व्यवसाय में उन्नति प्राप्त होती है। ऐसा योग जातक की महत्त्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने वाला होता है। 

यदि ऐसी रेखा शनि क्षेत्र की ओर चली जाये और भाग्य रेखा के बराबर चलने लगे तो जातक को धन-लाभ होता है और उसकी सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति होती है। 

परन्तु ऐसा फल जातक के परिश्रम और दृढ़ निश्चय द्वारा ही प्राप्त होता है (चित्र मे अंकित d-d)। यदि ऊपर जाती हुई रेखा जीवन रेखा से निकलकर सूर्य क्षेत्र की ओर चली जाये तो हाथ के गुणों के अनुपात में जातक को विशिष्टता (Distinction) प्राप्त होती है।
 
यदि ऐसी रेखा बुध क्षेत्र को चली जाये तो व्यापारिक तथा वैज्ञानिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। वर्गाकार हाथ में ऐसा योग व्यापारिक या वैज्ञानिक क्षेत्र में सफलता दिलाता है। 

चमसाकार हाथ वाला जातक किसी आविष्कार या खोज में सफलता प्राप्त करता है। कोनिक हाथ वाले को आर्थिक मामलों में सफलता मिलती है। उसको ऐसी सफलता जुए, सट्टे या व्यापार में रिस्क से प्राप्त होती है। 

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किस रेखा से पता चलता है कि व्यक्ति की मृत्यु अपने जन्म स्थान से कहीं दूर होगी।Which line shows that the person's death will be far away from his place of birth.

जब जीवन रेखा अपने अन्त पर दो शाखाओं में विभाजित हो जाये और दोनों शाखाओं के बीच में बहुत फासला हो तो जातक की मृत्यु अपने जन्म स्थान से कहीं दूर होती है (चित्र मे अंकित a-a) । जब जीवन रेखा पर द्वीप का चिन्ह हो तो जब तक वह बना रहता है तब तक जातक किसी रोग से पीड़ित रहता है। (चित्र मे अंकित b)।
 
यदि द्वीप चिन्ह जीवन रेखा के आरम्भ में हो तो यह समझना चाहिये कि जातक के जन्म के सम्बन्ध में कोई रहस्य छिपा हुआ है। जब जीवन रेखा पर वर्ग हो तो वह मृत्यु से रक्षा करता है। यदि द्वीप वर्ग से घिरा हुआ हो तो अस्वस्थता से भी रक्षा होती है। 

जब करतल मध्य (Plain of Mars) से आती हुई कोई रेखा जीवन रेखा को काटे और काट के स्थान को वर्ग ने घेर लिया हो तो दुर्घटना से रक्षा होती है। 

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जीवन रेखा पर किसी भी स्थान पर वर्ग चिन्ह का होना एक अत्यन्त शुभ और सुरक्षा का लक्षण है। जीवन रेखा की सहायक रेखा (चित्र मे दी हुई है) जो अन्दर की ओर होती है और जिसे मंगल रेखा कहते हैं, उसका विवेचन हम बाद में करेंगे। 

यहां पर हमने उसका जिक्र इसलिए किया है कि जो रेखायें जीवन रेखा में से निकलती हैं उनको मंगल रेखा न समझ लिया जाये। (मंगल रेखा मंगल क्षेत्र से आरम्भ होती है)। इसी प्रकार शुक्र क्षेत्र से निकलने वाली रेखायें भी मंगल रेखा से भिन्न होती हैं। 

इस संबंध में सबसे सरल नियम यह पालन करना चाहिये कि जो सुघटित सम रेखायें जीवन रेखा के साथ चलती हैं वे जीवन पर शुभ प्रभाव डालती हैं (चित्र संख्या 3 f-f); 

परन्तु जो आड़ी या तिरछी रेखायें जीवन रेखा को काटती हैं वे विरोधियों और जातक के जीवन में हस्तक्षेप करने वालों के कारण उत्पन्न चिन्ताओं और बाधाओं की सूचक होती हैं। (चित्र संख्या 3 g-g) तब यह समझना चाहिये कि जातक के सम्बन्धी उसके गृहस्थ जीवन में हस्तक्षेप करके उसे परेशान कर रहे हैं। 

जब वे जीवन रेखा को काटकर भाग्य रेखा पर आक्रमण करती हैं (चित्र संख्या 1 e-e) तो यह समझना चाहिये कि वे सम्बन्धी व्यावसायिक क्षेत्र तथा अन्य सांसारिक मामलों में जातक का विरोध करेंगे और उसे जहां रेखा काटती है। क्षति पहुंचायेंगे। 

किस अवस्था में ऐसा होगा यह उस स्थान को देखने से ज्ञात होगा जहाँ रेखा काटती है।kaisa angutha shubh hota hai/What kind of thumb is good/कैसा अंगूठा शुभ होता है/अंगूठे से जानिए व्यक्ति कैसा है ?

यदि ऐसी रेखायें शीर्ष रेखा तक पहुंच जायें (चित्र संख्या 1 f-f) तो यह निष्कर्ष निकालना चाहिये कि वे विरोधी जातक के मत और विचारों पर प्रभाव डालेंगे। 

यदि वे रेखायें आगे बढ़कर हृदय रेखा को काट दें. (चित्र संख्या 1 g-8) तो यह समझना चाहिए कि जातक के विरोधी उसके प्रेम के मामलों में हस्तक्षेप करेंगे और बाधायें डालेंगे। किस समय यह घटना होगी उसकी गणना जीवन रेखा के कटने के स्थान से करनी चाहिये। 

व्यक्ति की बदनामी होगी ये किस रेखा से पता चलता है?
Which line shows that the person will be defamed?

जब ऐसी रेखायें सूर्य रेखा को काटें तो वे इस बात की सूचक होती हैं कि विरोधी जातक की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचायेंगे और उसके कारण जातक की बदनामी होगी और उसको असम्मान का सामना करना पड़ेगा। ऐसा कब होगा इसका ज्ञान उस स्थान से निर्णित करना चाहिए जहां सूर्य रेखा कटती हो (चित्र संख्या 1h-b) 

जब इस प्रकार की प्रभाव रेखा सारे हाथ को पार करके विवाह रेखा को स्पर्श करती है (चित्र संख्या 3 h-h), तो वह जातक के वैवाहिक सम्बन्ध को विच्छेद कर देती है। 

यदि ऐसी रेखा में द्वीप या द्वीप के समान चिन्ह हों तो समझना चाहिये कि इस रेखा को धारण करने वाले व्यक्ति को जीवन में बदनामी, विरोध या अपमान का सामना करना पड़ेगा  (चित्र संख्या 3-i) । 

परन्तु यदि ऐसी रेखायें जीवन-रेखा के समानान्तर चलती हो, तो समझना चाहिये कि जातक का जीवन दूसरों से अत्यन्त प्रभावित हुआ है।

किस रेखा से पता चलता है कि स्त्री का पहले से किसी और से अनुचित सम्बन्ध है।
Which line shows that the woman already has an inappropriate relationship with someone else.

यदि कोई रेखा मंगल क्षेत्र (प्रथम) से निकलकर (चित्र संख्या 7 e-e) नीचे आये और जीवन रेखा को स्पर्श करे या काटे, तो स्त्री के हाथ में यह योग इस बात का सूचक है कि उस स्त्री का पहले किसी के साथ अनुचित सम्बन्ध था जो उसके लिए चिन्ता-मुसीबत का कारण बना हुआ है। 

यदि मंगल क्षेत्र से आने वाली वह रेखा अपनी सूक्ष्म शाखायें जीवन रेखा को भेजती है (चित्र संख्या 7 f-1) तो यह योग वैसे ही प्रभाव का सूचक है और उस प्रभाव के कारण समय-समय पर उस स्त्री को चिन्तित होना पड़ता है। इस प्रकार की रेखा से यह भी ज्ञात होता है कि जो व्यक्ति उसकी चिन्ता का कारण है वह कामुक और पाशविक प्रवृत्ति का है। 

यदि कोई छोटी रेखा जीवन रेखा के अन्दर की ओर उसके बराबर ही चलती हो (चित्र संख्या 3 1-1) तो यह योग स्त्री के हाथ में इस बात का सूचक है कि जो पुरुष उसके जीवन में प्रवेश करता है वह नम्र स्वभाव का है और वह उसे पर्याप्त मात्रा में प्रभावित करेगा। 

यदि कोई छोटी रेखा जो कहीं से भी प्रारम्भ हुई हो, जीवन रेखा के साथ चलती-चलती शुक्र क्षेत्र के अन्दर मुड़ जाये तो यह योग यह संकेत देता है कि जिस पुरुष से वह स्त्री सम्बन्धित है धीरे-धीरे उसका उस स्त्री के प्रति आकर्षण कम होता जायेगा और अन्त में वह पुरुष उस स्त्री को बिल्कुल भुला देगा (चित्र संख्या 1-i) ।

यदि यह रेखा किसी द्वीप चिन्ह में प्रविष्ट हो जाये या स्वयं द्वीप के रूप में परिणित हो जाये तो यह समझना चाहिये कि उस पुरुष के साथ सम्बन्ध के कारण उसे समाज में कलंकित होना पड़ेगा। 

यदि यह रेखा किसी स्थान पर मुरझा जाये और फिर सजीव हो उठे तो इसका फल यह होगा कि उस पुरुष का प्रेम कुछ समय तक शान्त होकर पुनः जागृत हो उठेगा। 

यदि यह रेखा बिल्कुल ही फीकी पड़ जाये तो वह सूचना मिलती है। कि उस पुरुष की मृत्यु हो जायेगी या किसी अन्य कारण से प्रेम सम्बन्ध बिल्कुल टूट जायेगा। 

इस प्रकार को रेखाओं में से कोई रेखा यदि जीवन रेखा को काटती हुई किसी आड़ी रेखा से मिल जाये तो यह समझना चाहिये किसी अन्य व्यक्ति के षड्यन्त्र या बहकावे से उस पुरुष का प्रेम घृणा में परिवर्तित हो जायेगा और इससे स्त्री जातक को उस आयु में क्षति पहुंचेगी जब यह रेखा जीवन रेखा, शीर्ष रेखा या हृदय रेखा को स्पर्श करेगी (चित्र संख्या 8)। 

इस प्रकार की प्रभाव रेखायें जितनी जीवन रेखा से दूर हों उतना ही जातक पर दूसरों का प्रभाव कम पड़ेगा। वास्तव में ऐसी प्रभाव रेखायें जातक के जीवन पर काफी प्रभाव डालती हैं, परन्तु महत्व की रेखा यही होती हैं जो जीवन रेखा से निकट हों। 

यदि जीवन रेखा हाथ में दूर तक फैल जाती है तो शुक्र क्षेत्र बड़ा हो जाता है। इसके फलस्वरूप जातक की शारीरिक शक्ति बहुत अच्छी होती है और वह दीर्घायु होता यदि जीवन-रेखा के कारण शुक्र का क्षेत्र संकीर्ण हो गया हो तो स्वास्थ्य निर्बल होता है, शारीरिक शक्ति भी कम होती है। 

जीवन रेखा जितनी छोटी हो, आयु उतनी ही कम होती है। हम यह स्वीकार करते हैं कि जीवन रेखा से सदा यह नहीं जाना जा सकता है। कि मृत्यु किस आयु में होगी। जीवन रेखा केवल यह बताती है कि सम्भावित आयु कितनी होगी। 

दुर्घटनाओं आदि से जातक की मृत्यु सम्भावित आयु से पहले हो सकती है।ऐसा भी होता है कि दूसरी रेखाओं पर घातक चिन्ह जीवन रेखा से सूचित सम्भावित आयु को कम कर देते हैं। 

उदाहरण के लिए शीर्ष रेखा यदि टूटी हुई हो तो मृत्यु के सम्बन्ध में उसका दुष्ट प्रभाव होता है। इस सम्बन्ध में स्वास्थ्य रेखा की बनावट भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। 

जब स्वास्थ्य रेखा लम्बाई में जीवन रेखा के बराबर हो तो जहां वह जीवन रेखा से मिले वही मृत्यु का समय होता है, चाहे जीवन रेखा उसके बाद भी चलती रहे। मृत्यु का कारण स्वास्थ्य रेखा से ज्ञात होगा। 

प्रिय पाठकों!आशा करते है कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी,आपको आपके प्रश्नों के उत्तर मिल गये होंगे।हाथ की रेखाओं मे और भी बहुत कुछ है जो की एक ही पोस्ट मे बता पाना मुश्किल है।इसलिय आगे की जानकारी के साथ विश्वज्ञान मे अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी।

धन्यवाद 


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