भगवान भक्तों को दुखी करके उनके सुधार का प्रयत्न क्यों करते है?

ईश्वर भक्तों को दुखी करके उनके सुधार का प्रयत्न क्यों करते है?


जब ईश्वर अपने भक्त को दुःख की अवस्था में डालते है ,तो इसका कोई न कोई कारण होता है। जिसे हम मानव नहीं समझ पाते। लेकिन जैसा की हमने शास्त्रों में पढ़ा है कि कभी -कभी उनका उद्देश्य ये होता है की दुःख में भक्त की आसक्ति भगवान् के प्रति और बढ़ जाये। 


भगवान भक्तों को दुखी करके उनके सुधार का प्रयत्न क्यों करते है?
भगवान भक्तों को दुखी करके उनके सुधार का प्रयत्न क्यों करते है?


हर -हर महादेव ! प्रिय पाठकों ,

कैसे है आप लोग 

आशा करते है की आप ठीक होंगे। 


मित्रों आज इस पोस्ट में हम जानेंगे की भगवान् यानी ईश्वर सर्वशक्तिमान होने के बावजूद भी भक्तों को दुःखी करके ही उनके सुधार का प्रयत्न क्यों करते है। क्या ये जरूरी है की पहले तो वो अपने भक्त को अपार दुःख दें और फिर उसकी परीक्षा ले और सबसे बाद में जाकर उसके (भक्त )के दुःख का निवारण करें। 


प्रिय पाठकों !आपके मन मे भी कभी -कभी ये प्रश्न जरूर उठता होगा। आप कमेंट करके बताना। 


मित्रों ,ईश्वर सर्वशक्तिमान है फिर भी वो अपने भक्तो को दुःख देते है ,तो इसका उत्तर है कि - जब ईश्वर अपने भक्त को दुःख की अवस्था में डालते है ,तो इसका कोई न कोई कारण होता है। जिसे हम मानव नहीं समझ पाते। लेकिन जैसा की हमने शास्त्रों में पढ़ा है कि कभी -कभी उनका उद्देश्य ये होता है की दुःख में भक्त की आसक्ति भगवान् के प्रति और बढ़ जाये। 


उदाहरण के लिए -जब भगवान् श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों को उनकी राजधानी में छोड़ा। फिर उनसे जाने की आज्ञा मांगी ,तब कुंती देवी ने कहा ,हे प्रिय कृष्ण !हमारे दुःख की अवस्था में तुम सदैव हमारे साथ रहे हो और आज जब हमे राजसी पद प्राप्त हो गया है ,तो अब तुम हमसे विदा मांग रहे हो।


 एक सामान्य मानव और भक्त में क्या अंतर् है।


इसलिए मैं तुम्हे खोने की अपेक्षा दुःख में जीवन बिताना ज्यादा अच्छा समझूंगी। जब एक भक्त दुःखी परिस्थिति में होता है ,तब उसकी भक्ति सम्बन्धी गतिविधियों में तीव्रता आ जाती है। इसलिए किसी भक्त पर विशेष अनुग्रह ,कृपा का प्रदर्शन करने के लिए भगवान् कभी -कभी उसे दुःख दे देते है। 


इसके अलावा ये भी कहा जाता है की जिन्होंने दुःख की कड़वाहट का अनुभव किया है उन्हें सुख की मधुरता और अधिक मधुर लगती है। अपने भक्तों की दुःख से रक्षा करने के लिए भगवान् इस धरती पर प्रकट हुए है। दूसरे शब्दों में कहें तो ये की -यदि भक्तों को दुःख न होता ,तो भगवान् भी अवतार न लेते। 


जहां तक दुष्कर्मियों और असुरों को मारने का सवाल है ,तो वह उनकी (भगवान )शक्तियों के द्वारा भी आसानी से किया जा सकता है ,जैसे की उनकी बहिरंगा शक्ति ,दुर्गा देवी ने अनेक असुरों का वध किया। इसलिए ऐसे असुरों का वध करने के लिए भगवान् को अवतार लेने की जरूरत नहीं है। किन्तु जब उनके भक्त दुःखी होते है ,तब उनको आना ही पड़ता है। 


आपको याद होगा या कभी टीवी पर देखा होगा कि -भगवान् नृहसिंघ देव हरिण्यकशिपु का वध करने के लिए नहीं अपितु अपने भक्त प्रह्लाद से मिलने तथा उनकोआशीर्वाद देने के लिए प्रकट हुए। कहने का तात्पर्य है की भक्त जब -जब दुःखी होगा ,तब -तब भगवान् किसी न किसी रूप में आकर उसको कष्टों से मुक्ति दिलायेंगे। 


तो प्रिय पाठकों कैसी लगी आपको पोस्ट। शायद आपको इस प्रश्न के उत्तर से संतुष्टि हुई हो। अपनी राय हमसे प्रकट करें। इसी के साथ विदा लेते है ,अगली पोस्ट में फिर मुलाक़ात होगी। तब तक आप खुश रहिये ,मुस्कुराते रहिये और प्यारे प्रभु को याद करते रहिये। 


राधे -राधे 

धन्यवाद 

Previous Post Next Post