जब कोई हमसे छल करे,तो क्या करें/कृष्ण उपदेश/ What to do when someone cheats on us

हर हर महादेव प्रिय पाठकोंकैसे है आप लोग, आशा करते है आप सभी सकुशल होंगे। भगवान् शिव की कृपा दृष्टी आप पर बनी रहे। 

जब कोई हमसे छल करे,तो क्या करें/कृष्ण उपदेश/ What to do when someone cheats on us


जब कोई हमसे छल करे,तो क्या करें/कृष्ण उपदेश/ What to do when someone cheats on us
जब कोई हमसे छल करे,तो क्या करें/कृष्ण उपदेश/ What to do when someone cheats on us

प्रिय पाठकों!आज इस पोस्ट मे हम जानेंगे की जब कोई हमारे साथ छल करता है,धोखा देता है,कष्ट देता है,तो हमे क्या करना चाहिये?क्या हमे भी उसी की तरह व्यव्हार करना चाहिए?क्या हमारे अन्दर बदले की भावना होनी चाहिये ?तो चलिये  बिना देरी किये पढ़ते है।

जब कोई हमसे छल करे,तो क्या करें/कृष्ण उपदेश
What to do when someone cheats on us

मित्रों ! जब कोई व्यक्ति हमे दुःख देता है ,कष्ट देता है ,तो हम बहुत दुःखी हो जाते है। हमारा तन दुःख से और मन प्रतिशोध यानी बदले की भावना से भर जाता है। तब हम प्रतिकार चाहते है। अपने मन की अग्नि को शांत करने के लिए प्रतिशोध चाहते है। और यही हम गलती कर बैठते है। तो मित्रों ऐसा क्या करें कि मन शांत रहे ,बदले की भावना न रहे। तो इसका केवल एक ही उपाए है क्षमा।  

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प्रिय पाठकों !ये शब्द तो बहुत छोटा है ,पर इसका असर बहुत बड़ा। क्षमा माँगना और क्षमा कर देना ,ये हर किसी के बस की नहीं है। लेकिन जो इस काम को अपना लेता है ,उसके मन में उठ रहीं सभी आशंकाए ,दुःख दर्द ,क्लेश मिट जाते है। इसलिए यदि बदला चाहिए तो प्रतिशोध भुला दीजिए और न्याय की और अपने पग बढ़ाइये क्योकि यहीं वास्तविक प्रकार है। 

मित्रों !हम अपनी सोच और संसार की मान्यताओं के अनुसार अपने विचार बनाते है जैसे सत्य कहना धर्म है ,असत्य कहना पाप, सहन करना धर्म है और क्रोध करना अधर्म ,किसी पर उपकार करना ,जीवों पर दया करना धर्म है और निष्ठुर होना अधर्म। 

मित्रों !आपको क्या लगता है ,क्या यही सच है ,क्या कभी कभी ऐसा नहीं होता की ये परिस्थितियां बदल जाती है, क्या कभी -कभी  ये परिस्थितियां आवेशों  को उल्टा  नहीं कर देती। करती है ,अवश्य करती है। क्योकि यदि इस संसार में कुछ धर्म है ,कुछ पुण्य है ,कुछ महान है ,तो वो है परिस्थिति के अनुकूल चलना। 

मित्रों ऐसे कई उदाहरण है जैसे जटायु ,भीष्म पितामह। 

जटायु को आप सभी लोगो ने रामायण में देखा होगा , सुना होगा या फिर तुलसीदास जी द्वारा लिखित धार्मिक ग्रन्थ रामायण में अवश्य पढ़ा होगा। उसमे जब रावण सीता माता को उठा कर ले जाता है ,तब जटायु ही माता सीता को बचाने की कोशिश करता है।

वह रावण पर आक्रमण करता है। उस वक़्त जो क्रोध जटायु को आता है ,वह क्रोध धर्म कहलाता है ,पाप नहीं। वह पुण्य कर्म था इसीलिए उसे अंत में प्रभु श्री रामजी की गोद मिली। जटायु ने अपने प्राण रामजी की गोद में ही त्यागे। 

मित्रों !वहीँ कुछ लोग ऐसे भी होते है ,जो धर्म को सहनशीलता समझकर हर अन्याय को सहते रहते है। जो अंत में  बाणों की शय्या पाते है जैसे- भीष्म पितामह। 

यदि कोई व्यक्ति या पशु -पक्षी, किसी पर भी, बिना किसी वजह के निर्दोष पर आक्रमण करके उसके प्राण लेने की कोशिश करें  ,तो उस  समय उसके बचाव के लिए उसको मार देना या उसके प्राण लेना पाप  नहीं है, बल्कि समय की मांग है। क्योकि आक्रमण भी आत्मरक्षण ही है। 

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यदि किसी दुष्ट की रक्षा करने से या सहायता करने से सामान्य व्यक्ति को पीड़ा पहुंचे ,कष्ट पहुंचे, तो उसे सहायता न देना ही धर्म है। बिना किसी कारण क्रोध आना या किसी को दंड देना अस्वीकार है। ठीक नहीं है ,लेकिन उसी क्रोध से किसी का भला हो ,तो वो क्रोध और दंड भी धर्म है,अधर्म नहीं। स्वीकार करना ,सत्य को स्वीकार करना मनुष्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। 

जब तक मनुष्य सच को स्वीकार नहीं करता ,तब तक उसे झूठ से लड़ने की शक्ति नहीं मिलती। मित्रों! जब आप खाना खाते है ,उस वक़्त क्या होता है। उस वक़्त आपका पेट उस भूख को स्वीकार करता है। वो कहता है कि अब पेट भर चुका है। तो आप खाना खाना बंद कर देते है। 

ठीक उसी प्रकार जब आपको नींद आती है ,उस वक़्त क्या होता है। मित्रों !उस वक़्त आपका मन स्वीकार करता है की आपका शरीर अब थक चुका है और उसे अब आराम की जरूरत है और आप सो जाते है। 

ठीक इसी प्रकार मित्रों !किसी व्यसन (बुरीआदत या लत) को रोकने के लिए भी आपके मन को स्वीकारना पड़ता है कि बस अब बहुत हो चुका। उस व्यसन को चाहे वो लालच हो या शराब पीना या फिर कोई अन्य लत। उसे आप तभी छोड़ पाएंगे ,जब आप मान लेंगे ,स्वीकार कर लेंगे की आप उस बुरी आदत के आदि है। 

उदाहरण के लिये

दोस्तों ! अधिकतर आकाश में उड़ती चिड़ियों को देखकर भी मन में कभी -कभी उनसे ये ईर्ष्या होने लगती है कि देखो ये कैसे आकाश में निश्चिन्त होकर उड़ रही है। काश हम भी इनकी तरह आकाश में उड़ पाते। पर क्या कभी आपने या हमने ये सोचा कि ये उड़ान भरने के लिए इन्होने कितनी मेंहनत की होगी। 

आकाश में उड़ने से पहले ,धरती पर इन्होने कितनी कठिन मेहनत की होगी। इनके माता-पिता ने पहली बार जब उन चिड़ियों को पंख चलाने सिखाये होंगे ,उन्हें उड़ने के लिए उकसाया होगा तो कितनी बार ये पक्षी गिरे होंगे। 

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पहली बार खुले आसमान में उड़ते हुए कितना डर लगा होगा इन पक्षियों को। पहली बार उड़ने के बाद जब धरती पर उतरे होंगे तब कितनी चोटे लगी होंगी। इतनी कठिन मेहनत करने के बाद आज ये खुले आसमान में आजाद घूम रहे है। ये उस स्वतंत्रता ,मेहनत का मोल है। 

यदि आप भी ये मोल चुका सकते है तो निश्चित ही आप उस स्वतंत्रता को पा सकते है। इन पक्षियों की तरह आप अपने जीवन में किसी भी सफल मनुष्य को देखे ,तो उससे ईर्ष्या ,नफरत न करें। बल्कि उसकी उस पीड़ा और परिश्रम को याद  करे जो उसने यहाँ तक आने में की हो। ऐसे व्यक्तियों से ईर्ष्या करने की बजाय उनसे प्रेरणा लें ,प्रयास करें और खुद भी सफल बन जाए। 

मनुष्य के जीवन का मूल आधार है करुणा। मित्रों !करुणा क्या है। करुणा दया नहीं बल्कि वो भाव है जिससे हम दूसरे की समस्या को समझते है,उसकी कठिनाई को अनुभव करते है। इस संसार में सारे संधर्षों का मूल है एक दूसरे की परिस्थिति को न समझना और इस समस्या का हल है करुणा। 

करुणा चाहे किसी पशु-पक्षी के प्रति हो या किसी मनुष्य के प्रति। ये आपके जीवन में क्लेश और संघर्षों जैसी भावनाओं को दूर रखती है और जिस दिन आप दूसरों को करुणा की नजर से देखेंगे ,तो आपको उसकी समस्या समझ आएगी और उसको आपकी और  ऐसा करने से उस दिन सारे संघर्षों का अंत हो जाएगा। 

मित्रों !हम मनुष्य का जीवन भी एक रेत के घड़े की तरह होता है। जो रेत नीचे गिर चुकी है वो हमारा अतीत है और जो ऊपर है वो हमारा आने वाला भविष्य तथा वर्तमान। ये संकुचित स्थल है। जहां से धीरे -धीरे करके रेत गिर रही है। 

कहने का तात्पर्य है कि हमारे पास जीने के लिए यही एक क्षण है। इस पल का ,इस वक़्त का हमे कैसे इस्तेमाल करना है ,ये हम पर निर्भर करता है। 

प्रिय पाठकों !आशा करते है आपको श्री कृष्ण भगवान्  के उपदेश से अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा। विश्वज्ञान मे अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी। आप अपना ख्याल रखें ,हँसते रहिये ,मुस्कुराते रहिये और प्रभु का स्मरण करते रहिये। 

धन्यवाद 

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