एक सामान्य मानव और भक्त में क्या अंतर् है।

 नमस्ते प्रिय पाठकों ! आशा करते है आप ठीक होंगे। 

एक सामान्य मानव और भक्त में क्या अंतर् है। 

एक सामान्य मानव और भक्त में क्या अंतर् है।

एक सामान्य मानव और भक्त में क्या अंतर् है। 

मित्रो ,आज इस पोस्ट में हम जानेंगे की एक भक्त और सामान्य मानव में क्या अंतर् है। दोनों को ही सुख दुःख मिलते है पर दोनों के सुख दुःख में क्या अंतर् है। तो चलिए बिना देरी किय पढ़ते है साथ में पोस्ट -

मित्रों ! भक्तो को सुख दुःख श्री भगवान् की व्यवस्था से प्राप्त होता है तथा एक सामान्य व्यक्ति को अपने विगत कर्मो के फलस्वरूप सुख दुःख मिलता है। साधारण कर्मी तथा भक्त एक ही स्तर पर नहीं होते। 

साधारण कर्मी चाहे जीवन के किसी भी दशा में हो उसका जन्म -मरण का चक्र चलता रहता है ,क्योकि कर्म तथा सकाम कर्म का बीज वहाँ उपस्थित रहता है ,जो अवसर पाते ही फल उतपन्न करता है। 

सामान्य मनुष्य कर्म के नियम के कारण बार -बार जन्म -मृत्यु में हमेशा फँसा रहता है,जबकि कर्म के अधीन न होने के कारण एक भक्त के सुख दुःख भगवान् के अस्थाई व्यवस्था के अंग है तथा इनके द्वारा भक्त कभी बंधन में नहीं पड़ता। 

भगवान् ऐसी व्यवस्था केवल एक अस्थाई प्र्योजन सिद्ध करने के लिए करते है। यदि कोई कर्मी (कर्म करने वाला ) शुभ कर्म करता है ,तो उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है और यदि वह पाप कर्म करता है ,तो उसे नरक में डाल दिया जाता है। 

किन्तु एक भक्त चाहे तथाकथित पुण्य अथवा पापपूर्ण रीती से कार्य करे,तो उसकी न केवल स्वर्ग तक उन्नति होती है ,न नरक में पतन ,अपितु उसे आध्यात्म लोक में स्थान प्राप्त होता है। इसलिए भक्त के सुख दुःख एक ही स्तर के नहीं है। 

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इस बात की पुष्टि अजामिल के मोक्ष के सम्बन्ध में अपने एक सेवक से यमराज की बात से होती है। 

एक बार की बात है ,यमराज ने अपने पाषर्दों को परामर्श दिया कि जिन लोगो ने कभी भी भगवान् का पवित्र नाम नहीं लिया है तथा भगवान् के रूप ,गुण और लीलाओं का स्मरण नहीं किया है ,तुमको यानी यमदूतों को उनके समीप जाना चाहिए। और अपने दूतो को आदेश दिया की कहीं भी उनकी भेंट किसी भक्त से हो जाये तो वे भक्त को सादर प्रणाम करें। 

इसीलिए मित्रों इस भौतिक जगत में किसी भी भक्त की प्रगति अथवा अधोगति होने का प्रश्न ही नहीं उठता। जैसे की माता द्वारा दिए गए दंड तथा एक शत्रु द्वारा दिए गए दंड के बीच एक विशाल बहुत बड़ा अंतर् होता है ,उसी भांति एक भक्त की दुखी अवस्था तथा एक सामान्य कर्मी मानव की दुखी अवस्था एकसमान नहीं है। 

प्रिय पाठकों !आपको पोस्ट कैसी लगी अपनी राय अवश्य प्रकट करें। यदि आपके मन में किसी प्रकार का कोई प्रश्न हो तो आप पूछ सकते है। हम उत्तर देने की पूरी कोशिश करेंगे। 

इसी के साथ विदा लेते है।विश्वज्ञान मे अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाकात होगी।तब तक हँसते रहिए ,मुस्कुराते रहिए ,और प्रभु का नाम लेते रहिए। 

राधे -राधे ,जय श्री राधे कृष्ण 

धन्यवाद 

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