भगवान और भक्त की सच्ची कहानी

 हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे है आप लोग, आशा करते है कि आप ठीक होंगे 

मित्रों,भगवान शिव जिन्हें प्यार से लोग भोलेनाथ भी कहते है. क्योंकि वो सच मे बड़े भोले है और वो ऐसे ही भोले नहीं कहलाते।वो ओढ़रदानी है। 

हमारे प्यारे भगवान शिव कितने भोले ,दानी, कृपामयी और भक्त वत्सल है, ये आपको आज हम इस कहानी के जरिए बताते है,कि कैसे भगवान शिव एक शिकारी द्वारा मांस का भोग लगाने से प्रसन्न हो गए और उसको दर्शन भी दिए और हमेशा पूजा पाठ, अर्चना और सात्विक भोग लगानेवाले पंडित को दर्शन नहीं दिए आखिर क्यों?तो चलिए बिना देरी किए पढ़ते हैं आज की पोस्ट -

पहली कहानी-  शिकारी ने शिव को लगाया मांस का भोग 


भगवान और भक्त की सच्ची कहानी
भगवान और भक्त की सच्ची कहानी

एक बार की बात है, एक शिकारी शिकार की तलाश में घने जंगल में घूम रहा था। तभी अचानक उसे एक शिवलिंग दिखाई दिया। उसने देखा कि शिवलिंग  बेलपत्र, फूल, भस्म आदि सुगंधित वस्तुओं से सजा हुआ है, लेकिन आस-पास कोई पुजारी और मनुष्य नहीं है। 

उसने सोचा यहां इस जंगल मे भला कौन पूजा करने आएगा, लेकिन शिवलिंग को सजा हुआ देखकर उसे ये भी विश्वास था कि, कोई तो जरूर आता है, तभी तो ये शिवलिंग सजा हुआ है। 

उसने थोड़ी देर वहीँ आराम करने का विचार किया। उसने सोचा कि चलो थोड़ी देर यही आराम कर लेता हूं, क्या पता तब तक वो भी आ जाये जिसने शिवलिंग की पूजा की। और वो वहीँ शिवलिंग के पास बैठ गया। 

सुबह से शाम हो गई और शाम से रात, लेकिन वहां कोई नहीं आया। तो शिकारी को शिवजी की चिंता होने लगी वह अपने आप से कहने लगा कि अरे! यहां तो कोई भी नहीं आया। न कोई पुजारी और न कोई पहरेदार। 

Read more- विष्णु भक्त निर्धन और शिव भक्त धनी क्यो होते है

अब उसको शिवजी की चिंता सताने लगी। उसने सोचा कि अगर इतनी रात को घने जंगल मे शिवजी को अकेला छोड़ दिया तो कहीं कोई जंगली जानवर इन पर हमला न कर दे। इसलिए उसने खुद पहरेदारी करने का फैसला किया। 

अब शिकारी ने अपना धनुष उठाया और उसपर बाण चढा कर शिवजी की पहरेदारी करने लगा। पूरी रात जाग कर उस शिकारी ने शिवजी की पहरेदारी की। 

जब सुबह हुई तो शिकारी को भूख लगी। उसने सोचा कि जब मुझे भूख लगी है तो भगवान को भी भूख लगी होगी। उसने एक पक्षी पकड़ा और उसे मार कर उसका मांस भगवान शिव को खाने के लिए दिया। और खुद हमेशा की तरह शिकार करने निकल गया। 

शाम को जब वह जब वापस लौटा, तो उसने देखा कि आज भी शिवजी के पास कोई पहरेदार नहीं है। उसने उस रात फिर से पहरेदारी की और सुबह होने पर फिर से पक्षी पकड़ा और उसे मारकर भगवान शिवजी को खाने के लिए दिया। उसके बाद वह फिर से शिकार करने के लिए चला गया। 

एक ब्राह्मण वहां हर रोज शिवलिंग की पूजा करने के लिए पास ही के गांव से आते थे। वो रोज शिवलिंग पर चढ़े हुए मांस को देखकर दुःखी होते थे। वो कहने लगे कि, मैं रोज आकर शिवलिंग साफ करता हूँ ,पता नहीं कौन आकर शिवलिंग गन्दा कर जाता है? आज उस दुष्ट का पता लगाया जाये जो इतना घृणित कार्य करता है। 

वह उस समय घर वापस लौट गए। ईधर शिकारी जब रात को  वापस आया तो देखा आज भी कोई नही है। उसने  हमेशा की तरह फिर से शिवजी की पहरेदारी की। 

अगली सुबह वह ब्राह्मण सूरज निकलने से पहले यानी ब्रह्ममुहूर्त मे ही आ गए। उसने देखा कि एक भील यानी शिकारी शिवलिंग की पहरेदारी कर रहा है। ब्राह्मण डर के मारे एक पेड़ के पीछे छिप गया। 

थोड़ी देर बाद शिकारी मांस लेकर आया और शिवजी को भोग लगाकर वापस जाने लगा। ये देखकर ब्राह्मण को बहुत गुस्सा आया। उसने तुरंत उस शिकारी को रोका और कहा-अरे मुर्ख ! ये क्या कर रहे हों? क्यों महादेव को अपवित्र कर रहे हों?

दोस्तो!ये सुनकर शिकारी ने भोलेपन से सारी घटना ब्राह्मण को कह सुनाई। 

अब तो ब्राह्मण छाती पीट पीट कर उस शिकारी को कोसने लगा। लेकिन शिकारी डरा नहीं ब्लकि उसने उल्टा ब्राह्मण को ही धमकी दी कि, अगर दोबारा से कभी शिवजी को अकेला छोड़ा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। 

तब ब्राह्मण बोला कि अरे मुर्ख! जो पूरे संसार की रक्षा करते हैं, उन्हें तेरे जैसा मानव भला क्या सुरक्षा देगा ? लेकिन शिकारी ठहरा मोटी बुद्धि का ,उसके दिमाग मे ये बात कहाँ से आती। इसलिए वो यह बात मानने को तैयार नहीं हुआ और ब्राह्मण को दोषी ठहराने लगा। 

उसने ब्राह्मण से कहा कि तुम शिवजी की सेवा से जी चुराते हो। उन्हें रात मे इस जंगल मे अकेला छोड़कर अपने घर मे आराम से सोते हो। तुम्हें इसका दंड अवश्य मिलेगा। 


भगवान शिव ये सब देख रहे थे। वो उन दोनों की बातों को सुनकर मुस्करा रहे थे ,लेकिन जब स्थिति बिगड़ती देखी ,तो वह खुद वहां प्रकट हो गए। 


भगवान शिव ने शिकारी को प्रेम से गले लगाया और आदेश दिया, कि तुम इस ब्राह्मण को छोड़ दो। मैं अपनी सुरक्षा का दूसरा प्रबंध कर लूँगा और शिकारी को प्रेम से विदा किया। शिकारी भगवान को दण्डवत प्रणाम करके वहां से चला गया। 


शिकारी के जाने के बाद ब्राह्मण ने पहले तो भगवान शिव की पूजा अर्चना की और फिर उनसे अपनी शिकायत कहीं ,कि प्रभु - मैं बर्षों से तुम्हारी पूजा ,आराधना कर रहा हूं। 


इस जंगल मे अपने प्राण संकट मे डाल कर पूजा, अर्चना करने आता हूं। फल,मेवे का भोग लगाता हूं ,लेकिन फिर भी आपने मुझे दर्शन नहीं दिए। 


इस भील ने तुम्हें मांस चढ़ाकर तीन दिन तक आपको अपवित्र किया ,फिर भी आप उससे प्रसन्न हो गए और उसको दर्शन भी दिए। क्यों प्रभु?


Read more- शिव पंचाक्षर स्तोत्र की महिमा ,अर्थ व लाभ 


भगवान शिव ने ब्राह्मण को समझाते हुए कहा कि, तुम पूजा करने के बाद, फल की इच्छा रखते हों। लेकिन इस भील ने निस्वार्थ पूजा की। इसलिए इसने मुझे अपवित्र नहीं किया। 


ये इसका स्वभाव है। इसे अपने प्रियजनों की सेवा करने का यही तरीका आता है। और मैं तो भाव का भूखा हूं। इसके भाव ने मुझे जो तृप्ति दी है, वह किसी फल और मेवे मे नही है। इतना कहकर भगवान शिव वहां से अंतर्धान हो गए। 


दूसरी कथा- हिम्मत ने क्यो खिलाया शिव को मांस ( सच्ची कहानी)


भगवान और भक्त की सच्ची कहानी


ये कहानी है भगवान शिव और उनके प्रिय भक्त हिम्मत की। 


मित्रों हिम्मत एक शिकारी था। एक बार की बात है हिम्मत अपने दोस्तों के साथ जंगल मे शिकार करते-करते एक ऐसी जगह पहुंचा, जहां एक शिव मंदिर था। 


मंदिर मे शिवलिंग देखकर अचानक हिम्मत के मन मे शिवजी के प्रति गहरा प्रेम जाग उठा। उसके मन मे शिवलिंग पर कुछ अर्पित करने का विचार आया। 


हिम्मत ने शिकार किए हुए मांस को शिवलिंग पर चढ़ा दिया और खुश होकर चला गया कि शिव जी ने उसका चढावा स्वीकार कर लिया। 


उस मंदिर की देखभाल एक ब्राह्मण पुजारी करता था। जो कि रोज उस मंदिर की साफ- सफाई करता और पूजा करता। 


शिकारी हिम्मत के जाने के बाद ब्राह्मण वहां पहुंचा और शिवलिंग पर मांस चढ़ा देखकर कर वह हैरान रह गया। फिर ये सोचते हुए कि ये किसी जानवर का काम होगा ,उसने शिवलिंग साफ़ किया और पूजा अर्चना करके वापस चला गया। 


अगले दिन हिम्मत दोबारा शिव को अर्पित करने के लिए मांस लाया। चूंकि हिम्मत को पूजा पाठ की बिलकुल भी जानकारी नहीं थी इसलिए उसने मांस अर्पित करने के बाद शिवजी से अपने दिल की बात कहने लगा। वह रोज इसी तरह मांस चढ़ाता और शिव से अपने दिल की बात कहता। 


एक दिन जब हिम्मत मांस चढ़ाने गया तो उसे लगा कि शिवलिंग बहुत गन्दा हो गया है ,इसलिये इसकी सफाई करनी जरूरी है। वह पास ही बह रही नदी के पास गया, लेकिन उसके पास पानी लाने के लिए कोई बर्तन नहीं था, इसलिये वह अपने मुहँ मे पानी भरकर लाया और उस पानी  को शिवलिंग पर थूक दिया और उसके बाद मांस चढ़ाया। 


अगले दिन ब्राह्मण ने जब शिवलिंग पर थूक और मांस देखा तो उसका मन बहुत घृणित हो गया। उसे ये विश्वास हो गया कि यह कार्य किसी जानवर का नहीं हो सकता। जरूर ये किसी इंसान का काम है। 

Read more- अदभुत शिव गुफा|शिव गुफा में छिपा कलयुग का अंत 


उसने मंदिर साफ़ किया और शिवलिंग को शुद्ध करने के लिए मंत्र पढ़े। और फिर पूजा करके अपने घर लौट गया। लेकिन जब भी वह पूजा करने के लिए आता ,शिवलिंग उसे हमेशा उसी अपवित्र अवस्था में ही दिखता यानी उसे रोज शिवलिंग पर थूक और मांस पड़ा दिखाई देता। 


एक दिन उसने आंसुओं से भरकर यानी रोते हुए भगवान से पूछा 'हे देवो के देव, हे महादेव, हे प्रभु कौन है, जो रोज मन्दिर को दूषित करके चला जाता है। कृप्या इस उलझन को सुलझाए प्रभु। 


उसी रात भगवान शिव ब्राह्मण के सपने मे आए और कहा कि ''तुम जिसे मेरा अपमान मान रहे हों, वो मेरे एक दूसरे भक्त का प्यार से अर्पण किया हुआ भोग है। मैं उसकी भक्ति मे बंधा हुआ हूं और वो मुझे जो भी अर्पण करता है, मैं उसे स्वीकार करतार हूं।,,


अगर तुम मेरे उस भक्त की भक्ति की गहराई को देखना चाहते हो तो कल पास मे ही कहीं जाकर छुप जाओ और देखो। ब्राह्मण अगले दिन मंदिर के पास एक झाड़ी के पीछे जाकर छिप गया। 


थोड़ी। देर बाद हिम्मत मांस और पानी लेकर आया। जैसे ही वह मांस और पानी चढ़ाने के लिए झुका तो उसने देखा कि शिवलिंग की दाहिनी आंख से खून निकल रहा है। उसने उसमें जड़ी-बूटी लगाई ताकि आंख ठीक हो सके ,लेकिन उसमे से और ज्यादा खून बहने लगा।आखिरकार उसने अपनी आंख देने का फैसला किया। 


उसने अपना चाकू निकाला और उससे अपनी दाहिनी आंख निकालकर भगवान शिव की दाहिनी आंख पर लगा दी। जिससे खून निकलना बंद हो गया। ये देखकर हिम्मत बड़ा खुश हुआ।   


उसने अभी चैन की साँस ली ही थी ,कि उसने देखा भगवान शिव की बाईं आंख से भी खून निकल रहा है। तभी उसने अपनी दूसरी आंख निकालने के लिए चाकू निकाल लिया। लेकिन उसे लगा कि आंख निकालने के बाद वह देख नहीं पायेगा कि आंख को कहां रखना है।p


इसलिये उसने लिंग की बाईं आंख के ऊपर अपना पैर रख दिया, ताकि अपनी आंख को सही जगह पर लगा पाए। वो अपनी आंख निकालने ही वाला था कि तभी भगवान शिव प्रकट हुए और कन्नप्पा  से कहा, कि ''रुको कन्नप्पा  रुको" 


आज से तुम कन्नप्पा के नाम से जाने जाओगे ,क्योंकि तुमने मुझे अपनी आंख अर्पित की है।  भगवान शिव की कृपा से उसकी आंखों की रोशनी वापस आ गई। 


भगवान को सामने देखकर हिम्मत बड़ा खुश हुआ। उसकी आँखों से आंसू बहने लगे। वह मुहँ से कुछ बोल भी नही पा रहा था। रोते रोते वह भगवान शिव के आगे दंडवत हो गया। भगवान कन्नप्पा को आशीर्वाद देकर वहां से अंतर्धान हो गए। 


मित्रों उस दिन से हिम्मत को कन्नप्पा नयनार के नाम से जाना जाने लगा। कन्नप्पा का अर्थ है- कन्ना यानी आंखे अर्पित करने वाला और नयनार यानी शिव भक्त। 


Read more- शिव महिम्न: स्तोत्रम् । (सरल हिंदी )


मित्रों! इस कहानी से यह पता चलता है कि भगवान शिव को पाने के लिए जरूरी नहीं कि आप रीति रिवाज से उनकी पूजा करते हैं या नहीं बल्कि जो भक्त शिव के प्रति सच्ची श्रद्धा रखता है, वही शिव को प्रिय है।यानी भगवान भाव के भूखे होते हैं, नियमों के नही। 


तो प्रिय पाठकों ये थी भगवान शिव की दो सच्ची कहानी।आशा करते हैं की आपको कहानी अच्छी लगी होगी। ऐसी ही रोचक और ज्ञानवर्धक कहानी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी। तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें, हंसते रहें, मुस्कराते रहें और प्रभु को याद करते रहें। 


हर-हर महादेव 

धन्यवाद 



Previous Post Next Post