राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम

जय श्री राधे कृष्ण, प्रिय पाठकों, कैसे है आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे। 

राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम 


राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम
राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम 


मित्रों! आज की इस पोस्ट मे हम राधा कृष्ण के अनूठे रिश्ते, उनके निःस्वार्थ प्रेम और विश्वास के बारे मे जानेंगे। हालांकि उनके प्रेम को तो सारा जगत जानता ही है,लेकिन फिर भी उनकी जितनी बाते की जाये ,उतनी कम है। 

मित्रों! राधा कृष्ण के प्रेम को देखते हुए मन मे अनेक प्रकार के प्रश्न उठते है कि जब राधा कृष्ण एक दूसरे से इतना प्रेम करते थे, तो वो अलग क्यों हुए, क्यों उनकी शादी एक-दूसरे से नही हो सकी। 

किसी अन्य राजा से विवाह करने के बाद भी,राधा कृष्ण से ही प्रेम करती थी,उनकी यादों मे खोई रहती थी,क्या ऐसा करना उचित था? क्या उन्होंने पतिव्रत धर्म को नही निभाया?क्या राधा जी ने अपनी जिम्मेदारियों को नहीं निभाया?

क्यों श्री कृष्ण को याद करते हुए राधा जी ने अपने प्राण त्याग दिए ? क्यों कृष्ण ने अपनी सबसे प्रिय बाँसुरी तोड़ दी?क्या भगवान श्री कृष्ण जी ने राधा जी के साथ अन्याय किया? क्या उन्होंने राधा जी को धोखा नहीं दिया ? ऐसे अनेक प्रश्न मन मे उठते रहते है। शायद आपके मन भी ऐसे प्रश्न उठते हो।

इसीलिए आज इस पोस्ट मे हम राधा कृष्ण से जुड़े हर सुने, अनसुने किस्सों को जानेंगे। उनका प्रेम इतना पवित्र और अटूट था कि अलग रहने के बावजूद भी ,मरते दम तक वो हमेशा एक-दूसरे के दिल मे ही रहें। कभी किसी प्रकार की ईर्ष्या भाव मन मे नही रहा।  आज समाज मे ऐसा प्यार कहीं देखने को नहीं मिलता। 

आज का मनुष्य यदि राधा कृष्ण के प्रेम से,थोड़ी-सी भी सीख ले, तो धरती पर से प्रेम की पीछे होने वाले अत्याचार बंद ही हो जाये। पर ऐसा होना शायद ही सम्भव हो, क्योंकि राधा कृष्ण जैसी सहन शीलता, धैर्य और विश्वास आज के प्रेमियों मे नही है। शायद ही कोई विरला प्रेमी जोड़ा ऐसा हो। जिनके अंदर ये गुण हो। यदि हैं, तो समझिए उन पर साक्षात भगवान की कृपा है। 

मित्रों! राधा कृष्ण बचपन से ही एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। राधा के बिना कृष्ण अधूरे थे और कृष्ण के बिना राधा। जहां कृष्ण वहां राधा, जहां राधा वहां कृष्ण।  कहने के लिए तो ये दो शरीर है, पर इनके दिल एक। तभी तो इनके लिए ये कहावत प्रसिद्ध है कि-

एक प्राण दो देही, राधा संग स्नेही यानी राधा कृष्ण के सिर्फ शरीर अलग थे ,लेकिन प्राण एक। 

राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम
राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम 

कृष्ण और राधा दोनों एक दूसरे के पूरक है। अनादि काल से इनके प्रेम की गाथायें चली आ रही है। उनका ये प्रेम भौतिक सुखों से दूर था। वास्तव मे राधा कृष्ण के धरती पर जन्म लेने का कारण था ,लोगों को प्रेम का सही अर्थ सिखाना।

इसीलिए मित्रों! द्वापर युग मे भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप मे मथुरा मे जन्म लिया ,लेकिन उनका लालन-पालन वृंदावन मे यशोदा जी के घर मे हुआ। फिर भला कृष्ण की अंश राधा जी अकेली कैसे रहती। उन्होंने भी भगवान कृष्ण का साथ देने के लिए यमुना के पास स्थित रावल गांव मे वृषभान और कीर्ति के घर मे जन्म लिया। और जन्म के कुछ समय बाद ही उनके प्रेम  की लीलाएं शुरू हो गई। 

मित्रों ! ऐसा कहा जाता है कि राधा का जब जन्म हुआ,उस समय वो अंधी थी। वो देख नहीं सकती थी। और इसके पीछे का कारण भी उनका कृष्ण के प्रति प्रेम ही था। 

दोस्तों! धरती पर जन्म लेने से पहले राधा जी स्वर्ग लोक से ये वचन लेकर आयी थी कि, जब तक कृष्ण की पहली दृष्टि उन पर नही पड़ेगी, तब तक वो अपनी आंखें नहीं खोलेंगी। जब कृष्ण उन्हें देखेंगे, तभी वो  इस संसार को देखेंगी। इसलिए कृष्ण ने बचपन मे जब राधा जी  को पहली बार देखा तभी उन्होने अपनी आंखे खोली।  

बचपन से ही कृष्ण अपनी लीलाओं से ,अपनी बाँसुरी की धुन से पूरे वृंदावन को मोहित करते रहे। सभी ब्रजवासी उनकी छवि को एकटक बस देखते ही रहते। गोपियां तो उनकी बाँसुरी की धुन पर इतनी मोहित हो जाती ,कि उन्हें अपनी और अपनें घर की कोई सूद न रहती। सबकुछ छोड़छाड़ कर वो बांसुरी की धुन के पीछे दौड़ती-दौड़ती कृष्ण के पास पहुंच जाती। 

कृष्ण राधा 8 वर्ष की उम्र से ही प्रेम के आनंद मे झूमने लगे थे। कृष्ण को अपने जीवन में यदि किसी से प्यार था, तो वो थी उनकी प्रियतमा राधा और उनकी बाँसुरी। जिसे वो कभी अपने से दूर नहीं करते थे। क्योंकि कृष्ण और राधा बांसुरी के जरिए ही एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। 

श्री कृष्ण जब भी बाँसुरी बजाते, राधा जी तुरंत उनसे मिलने के लिए दौड़ी चली आती और घंटो तक कृष्ण के पास बैठी,उस बांसुरी की धुन मे खोई रहती। जिससे श्री कृष्ण को अपार सुख की प्राप्ति होती।

राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम
राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम 

कृष्ण राधा अधिकतर यमुना के तट पर बैठ कर बातें किया करते थे। कृष्ण को राधा के साथ नाचना, गाना, झूमना बहुत ही अच्छा लगता था। यहीं नही, उन्हें राधा को परेशान करने मे भी बड़ा आनंद प्राप्त होता था। 

इसलिए पहले तो वो राधा को परेशान करते और जब वो रूठ जाती तो उन्हें मनाने लगते। वो कभी-कभी उनकी चोटी किया करते,कभी स्त्री वेषभूषा पहन कर राधा जी को हँसाया करते। इस तरह दिन बीतते गए और वो किशोरावस्था मे पहुंच गए। 

दोस्तों! भगवान कृष्ण कभी मथुरा नहीं जाना चाहते थे। वे राधा को बहुत प्यार करते थे और उन्हें अकेला नही छोड़ सकते थे। वृंदावन, बरसाना,राधा, गोपियाँ और उनके गोप सखा मे उनके प्राण बसे हुए थे। इन सबकों छोड़ कर जाना उनके लिए शरीर से प्राण निकलने के बराबर था। 

जिसमें की राधा तो उनके प्राण ही थी। वो राधा से विवाह करना चाहते थे। लेकिन मित्रों! विधि के विधान को कौन रोक सकता है। होनी तो होकर ही रहती है। कृष्ण का विवाह राधा से नहीं हो पाया। क्योंकि राधा की शादी पहले ही किसी और से तय हो चुकीं थी। और इधर मथुरा से भी मल्लयुद्ध के लिए कंस ने नंद बाबा को कृष्ण सहित बुलावा भेजा था।  

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नंद बाबा और यशोदा के कहने पर भी कृष्ण मथुरा जाने के लिए राजी नही थे। वे तो बस राधा से विवाह करने की ही ज़िद पर अड़े रहे,तब नंद बाबा उन्हें गर्ग मुनि के पास ले गए। गर्ग मुनि ने कृष्ण को समझाते हुए कहा, वत्स तुम्हारा जन्म किसी खास उद्देश्य के लिए हुआ है।इसकी भविष्यवाणी तुम्हारे जन्म से पहले ही हो चुकी है। 

पुत्र, तुम तारणहार हो ,तुम जगत के कल्याण के लिए धरती पर अवतरित हुए हो ,राधा से विवाह करना तुम्हारे लिए ठीक नही है। लेकिन कृष्ण अपनी बात पर डटे रहे। कहने लगे कि मुझे कोई तारणहार नही बनना। मुझे तो बस राधा से ही विवाह करना है। मैं इन गायों, ग्वालों, नदियों और पहाड़ों के बीच ही ठीक हुँ। 

अगर मेरा जन्म धर्म की स्थापना करने के लिए  ही हुआ है, तो क्या मैं धर्म की स्थापना एक अधर्म से शुरू करूँ। की जो मुझे चाहती है और मैं जिसे प्रेम करता हूं  उसे छोड़ दूँ। ये तो न्याय नहीं है गुरुदेव। 

जब गर्ग मुनि ने देखा कि कृष्ण कुछ भी समझने को तैयार नही, तो वो उन्हें नंदबाबा से दूर एकांत मे ले गये।  और उन्हे उनके जीवन का सारा राज बता देते हैं। उन्होंने कृष्ण से कहा कि, पुत्र! तुम नंद और यशोदा के पुत्र नहीं हो। तुम देवकी और  वासुदेव के पुत्र हो। तुम्हारे माता-पिता मथुरा मे कंस की कैद मे है, कंस ने तुम्हारे कई भाइयों को पैदा होते ही मार दिया। आदि सभी बातें बताई। 

तुम्हारे माता-पिता मथुरा मे तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। तुम्हें उन्हें कैद से छुड़ाना है। य़ह सुनकर कृष्ण खामोश हो गए और बिना कुछ कहे गोवर्धन पर्वत की सबसे ऊपर चोटी पर जाकर खड़े हो गए और आकाश को देखने लगे। पूरा दिन वो उसी पर्वत पर रहे और शाम तक सोचते रहे। अब उनके अंदर राधा से विवाह करने की ज़िद नहीं थी।उन्होंने प्यार के बजाय धर्म को स्वीकार किया। और उसी दिन से उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई। 

जब भगवान कृष्ण को पता चला कि कंस उनके मामा है और उसने उनके माता-पिता को बंदी बना रखा है। और उन्हें भी  मारना चाहता है तो उनके अंदर मथुरा जाने की प्रबल इच्छा हुई और  उन्होने कंस का बुलावा स्वीकार कर लिया। उसके बाद कृष्ण मथुरा चले गये और इधर कुछ समय बाद राधा का विवाह यशोदा के भाई अभिमन्यु से हो गया। 

मित्रों! राधा और कृष्ण दोनों को ही पता था कि अब कृष्ण वृंदावन दोबारा नहीं आयेंगे और पहले की तरह नहीं मिल पाएंगे। इसलिए मथुरा जाने से एक दिन पहले कृष्ण और राधा यमुना तट पर मिले। उस दिन राधा ने कृष्ण से दो वचन मांगे।  पहला वचन माँगा कि, मेरे के हृदय मे केवल तुम्हारा ही वास रहे और दूसरा वचन कि, मेरी मृत्यु से पहले मुझे तुम्हारे दर्शन हो। 

दोस्तों श्री कृष्ण ने राधा जी के दोनों वचन स्वीकार कर लिए। लेकिन दोनों वचनों को देने के बाद श्री कृष्ण ये अच्छे से जानते थे कि ,उनके जाने के बाद राधा का उनके विरह मे रो-रोकर बुरा हाल हो जाएगा। वो जी नहीं पायेंगी इसलिए उन्होंने भी राधा से एक वचन माँगा। उन्होंने राधा से कहा कि मुझे वचन दो की मेरे जाने के बाद तुम एक भी आंसू नही बहने दोगी। 

उसके बाद कृष्ण मथुरा चले गए और राधा वृंदावन मे ही रह जाती हैं। मथुरा जाकर श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध किया और कारागार मे बंद अपने माता-पिता को आजाद किया। उसके बाद उन्होंने मथुरा की सुरक्षा के लिए द्वारिका नगरी की स्थापना की, इसलिए श्री कृष्ण को द्वारिकाधीश के नाम से भी पुकारा जाता है। 

कृष्ण ने द्वारिका मे ही रुक्मिणी और सत्यभामा से विवाह किया। इसके अलावा कृष्ण की 16 हजार 108 रानियाँ भी थी। आपकी जानकारी के लिए बता दें मित्रों! की ये जो 16 हजार 108 रानियाँ है, कृष्ण ने इनसे विवाह नहीं किया था। 

राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम
राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम

इन सभी रानियों को एक राक्षस ने कैद कर रखा था। श्री कृष्ण ने इन सभी रानियों को राक्षस की कैद से छुड़ाया। चुकी ये सब बेसहारा थी और इनसे कोई विवाह भी नहीं करता। इसलिए कृष्ण ने इन्हें अपनी नगरी मे रखा। 

श्री कृष्ण ने उन्हें राक्षस की कैद से आज़ाद किया, इसलिए उनके मन मे कृष्ण के प्रति प्रेम जागृत हो गया और वो उन्हें मन ही मन अपना पति मानने लगी। कृष्ण की नगरी मे घूमते फिरते, हर समय, बस कृष्ण नाम का जाप करती। हर गली, हर मंदिर मे वो कृष्ण नाम के गीत गाती हुई विचरती रहती।

उन्हें कृष्ण के सिवाय और कुछ नहीं दिखाई देता था। कृष्ण उनकी रगों मे बस चुके थे। कृष्ण धुन मे उन्हें अपने खाने पीने की भी सूद न रहती। भूखी प्यासी रहना उन्हें मंजूर था, लेकिन कृष्ण के दर्शन बिना जीना उन्हें बिल्कुल मंजूर न था। उनकी इस हालत को देखकर सभी नगर वासी उन्हें कृष्ण की दीवानी रानियाँ कहने लगे। कोई कोई तो उन्हें कृष्ण की पत्नियाँ भी कहने लगे।  

मित्रों! इस तरह से कृष्ण की 16 हजार 108 रानियाँ थी। लेकिन लोगों के मन मे इस बात को लेकर अलग अलग धारणाएँ है ,जिन्हें बदला नहीं जा सकता। परंतु सत्य यही है कि कृष्ण ने राधा के सिवा किसी और को नहीं चाहा। 

रुक्मिणी ,सत्यभामा और अन्य तीन रानियाँ, ये सब पुर्व जन्मों मे कृष्ण की परम भक्त थी। इन सभी ने कृष्ण को पति रूप मे पाने के लिए तपस्या की। उनकी तपस्या से खुश होकर श्री कृष्ण ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए कहा कि द्वापर युग मे वो कृष्ण रूप अवतार लेंगे और तब उन्हें अपनी पत्नी रूप मे स्वीकार करेंगे। 

इस प्रकार मित्रों! श्री कृष्ण का हर किसी से विवाह करने के पीछे कोई न कोई कारण था। श्री कृष्ण, विष्णु अवतार है और भगवान विष्णु का उद्देश्य ही है अपने भक्तों की इच्छा को पूरी करना। 

इसलिए कभी वो किसी के घर पुत्र बनकर जन्म लेते हैं, तो कभी किसी के प्रेमी बनने के लिए ,तो कभी किसी के पति बनने के लिए,तो कभी धर्म की रक्षा करने के लिए। कहने का अर्थ है कि भगवान को जो जिस रूप मे पाना चाहता है, वो उसे उसी रूप मे प्राप्त होते है। 

ऐसा नहीं है मित्रों! कि भगवान को पाने की सामर्थ केवल यशोदा ,मीरा या देवकी मे थी। नहीं! ऐसा  बिल्कुल भी नहीं है। यह सामर्थ्य तो आपके अंदर भी है। यदि आप चाहते है कि भगवान आपके पुत्र, पति ,भाई,प्रेमी या पिता बने ,तो ये सम्भव है। आप उन्हें मनचाहे रूप मे पा सकते है। बस जरूरत है भगवान से यशोदा, मीरा और देवकी जैसे प्यार और विश्वास करने की। 

अब तपस्या करने के लिए ये बिल्कुल भी जरूरी नहीं की आप घर से बाहर निकल जाये और पहाड़ों पर जाकर एक टांग से खड़े हो जाये या भूखे प्यासे रहे। नहीं ऐसा बिल्कुल भी न करे। आप जहां है, वही रहे बस आपकी पूजा मे, पुकार मे, श्रद्धा मे बल होना चाहिए। 

इतना बल, इतना प्यार, इतना दर्द की भगवान से रुका ही न जाये। वो आपको दर्शन देने के लिए व्याकुल हो जाए और आपके पास दौड़े चले आये। जब वो आपके पास आ जाए, तो आप उन्हें जिस रूप मे पाना चाहते हैं, उस रूप मे प्राप्त होने के लिए उनसे प्रार्थना कर सकते है। 

मित्रों! ये काम इतना आसान नही है, पर असंभव भी नही है। अब भगवान को पाना है, तो थोड़ी मेहनत तो करनी होगी। हम कलयुग के लोगों के लिए तो ये युग ,हमे वरदान स्वरूप मिला है। इस युग यानी कलयुग मे भगवान को पाना इतना सरल है की, इतना तो सतयुग और त्रेता युग मे भी नहीं था। 

सतयुग ,त्रेता और द्वापर युग मे भगवान तपस्या करने पर दर्शन देते थे ,लेकिन कलयुग मे तो भगवान का नाम लेना ही तपस्या के बराबर है। इसलिए इस युग को व्यर्थ न जाने दे। भगवान मिले या न मिले, उनका नाम लेते रहने से अंत समय जो मोक्ष की प्राप्ति होगी, वो हमारे लिए सौभाग्य की बात है। 

मित्रों! रुक्मिणी और सत्यभामा से शादी करने के बाद कृष्ण अपने दैवीय कार्यो मे व्यस्त हो गए। जैसा कि आप जानते हैं मित्रों की आजकल भौतिक विवाह को ही सच्चे प्रेम का माध्यम मानते हैं। लेकिन कृष्ण और राधा तो दुनिया के लिए ऐसी मिसाल है, जिन्होंने कभी विवाह ही नहीं किया। 

उन्होंने केवल अपने मन और हृदय से एक-दूसरे को प्रेम किया और उसी निर्मल प्रेम के जरिए एक-दूसरे से बंधे रहे। यूं तो राधा और कृष्ण की बहुत सी कहानियां आपने सुनी होंगी या किताबों मे पढ़ी होगी। लेकिन एक कहानी जो जगत मे बहुत प्रसिद्ध है, वो हम आपको बताने जा रहे है। 

प्रसिद्ध कथा 

मित्रों! एक बार की बात है - श्री कृष्ण अपने महल मे सो रहे थे और सोते-सोते बस राधे-राधे बोले जा रहे थे। जब श्री कृष्ण की रानियों ने उन्हें राधे राधे कहते सुना तो उन्हें अच्छा नहीं लगा। उन्होंने भगवान से कहा- कि हे स्वामी ! हम सब भी आपसे अत्यन्त प्रेम करती है, लेकिन आप कभी हमारा नाम नहीं लेते और राधा तो यहां है ही नहीं, फिर भी आप सोते सोते उसका नाम ले रहे हैं। ऐसा क्यों?

तब कृष्ण ने रानियों को जवाब देते हुए कहा कि, एक बार तुम राधा से खुद मिलकर आओ, तो तुम्हें पता चल जाएगा कि मैं राधा का नाम क्यों लेता हूं। और हाँ! एक बात और जब तुम राधा से मिलने जाओ तो उनके लिए कुछ लेकर जरूर जाना।

राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम
राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम 

रुक्मिणी जी अगले दिन राधा के लिए गर्म दूध प्रसाद के रूप मे लेकर उनसे मिलने गई। जब वो उनके महल मे पहुंची तो उन्हें द्वार पर एक बहुत ही सुंदर ,तेज और औजवान स्त्री मिली। जिससे रुक्मिणी जी पूछती हैं कि, क्या आप ही राधा हो। वह स्त्री कहती है नही नही,मैं राधा नहीं हूं। ,मैं तो उनकी दासी हूँ। राधा रानी तो आपको सात द्वारों के अंदर मिलेंगी। 

रुक्मिणी जी अंदर जाती है। एक द्वार, दो द्वार पार करते हुए जब वो सातवे द्वार के अंदर पहुंचती है,तो वो देखती है की राधा जी सो रही है। सेविका से जगाने के लिए कहा तो ,सेविका बोली की कई रातों से राधा रानी नही सोयी ,वो हर पल कृष्ण कृष्ण जपती रही है और कृष्ण नाम जपते जपते ही उनको अभी अभी नींद आई है। 

रुक्मिणी, राधा जी की सेविका से उनके आने का कारण बताने लगती है, वो कहती हैं कि मैं द्वारिकापुरी से आई हूँ। मुझे कृष्ण ने भेजा है। अभी वो बता ही रही होती है कि कृष्ण का नाम सुनते ही राधा जी जाग जाती है। 

वो रुक्मिणी के पास जाती है और खुशी के आंसू बहाते हुए बोलती है कि, आज बहुत दिनो बाद कृष्ण ने मुझसे मिलने के लिए किसी को भेजा है। पहले तो रुक्मिणी हैरान हो गई ये देखकर कि कैसे कृष्ण का नाम सुनते ही राधा की निंदा टूट गई और उठते ही उनकी जुबा पर कृष्ण का ही नाम था। ये देखकर रुक्मिणी का हृदय भी राधा के प्रति प्रेम से भर गया। 

रुक्मिणी ने धीर धरते हुए राधा से कहा कि कृष्ण ने तुम्हारे लिए प्रसाद रूप मे ये दूध भेजा है। इतना सुनते ही राधा बिना कुछ सोचे रुक्मिणी से गर्म दूध लेकर एक साँस मे उसे पी जाती है यानी इतने गर्म दूध को वो बिना रुके पी जाती है। इतना  गर्म दूध जिसे छू पाना मुश्किल था और राधा उसे एक साँस मे पी गई ,जिसे देख कर रुक्मिणी आश्चर्य से भर गई। और फिर कुछ देर राधा से बात करने के बाद वो अपने महल वापस चली गई। 

राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम
राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम 

रात के समय जब रुक्मिणी कृष्ण के पैरों को दबाने के लिए जैसे ही उनके पैर को पकड़ती है ,तो वो देखती हैं कि उनके पैर मोटे-मोटे छालों से भरे पड़े हैं। उन्होंने कृष्ण से पूछा कि, प्रभु आप आज ऐसी कौन सी जगह गए थे कि, आपके पैरों मे ये छाले पड़ गए। 

तब श्री कृष्ण रुक्मिणी को उत्तर देते हुए कहते हैं कि तुम राधा के लिए गर्म दूध लेकर गई थी। जिसे राधा बिना रुके एक साँस मे ही पी गई और उनके हृदय मे छाले पड़ गए। और राधा के हृदय मे मेरे चरण कमल विराजमान रहते हैं और इसी कारण मेरे पैरों मे छाले पड़ गए हैं। 

इस प्रति कृष्ण और राधा के प्यार को देखकर रुक्मिणी को उनके प्रेम की परिकाष्ठा का पता चलता है की, प्रेम शरीर से नहीं ,आत्मा से होता है। जो राधा के हृदय मे चरण कमल के रूप मे विराजमान है। 

मित्रों! इसके अलावा एक कथा मे ये भी आता है कि ब्रह्मा जी ने धरती पर आकर भांडीरवन मे श्री कृष्ण और राधा का विवाह कराया था। जिस जगह उनका विवाह हुआ, उस जगह मंदिर बना दिया गया। वो मंदिर आज भी उसी स्थान पर मौजूद है। उस मंदिर मे श्री कृष्ण और राधा की मूर्ति है, जिसमें वे दोनों हाथ मे वरमाला लिए हुए एक दूसरे को देख रहे हैं।

इस कथन को यदि सही माने ,तो कृष्ण राधा का विवाह हुआ था और राधा ही कृष्ण की पहली पत्नी थी। इस बात को मानने से भी इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि शास्त्र उनके इस विवाह के बारे मे उल्लेख देता है और शास्त्र कभी झूठे नहीं होते। अब इसमे कितना सच है और कितना झूठ। इस विषय की पूरी जानकारी हम आपको अन्य पोस्ट मे देंगे। ताकि आपको सही जानकारी मिल सकें और आप औरों को भी सही ज्ञान दे सके। 

राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम
राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम 

अब यदि बात करे उनके पतिव्रत धर्म की,तो मित्रों शास्त्रों मे वर्णित है कि राधा के पति अभिमन्यु जिन्हें अयान के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें महर्षि दधीचि जी ने श्राप दिया था कि अगर वो राधा को छुएगा तो वो जलकर भस्म हो जाएगा। इस तरह से राधा जी शादी करने के बाद भी पवित्र रही और अंत समय तक कृष्ण को मन मे बसाए हुए वो अपने घर की जिम्मेदारियों को निभाती रही। 

अपनी सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने के बाद, एक दिन राधा कृष्ण से मिलने द्वारिका नगरी गई। महल मे जब उन्होंने एक दूसरे को देखा तो, पहले तो बहुत देर तक एक-दूसरे को देखते रहे, फिर उसके बाद बिना मुहँ से बोले केवल मन के जरिए बातें करते रहे। कुछ दिन राधा ने कृष्ण के महल मे निवास किया।  

इस तरह कुछ दिन और राधा जी को कृष्ण की भक्ति करने व उनसे बातें करने का मौका मिला। लेकिन कृष्ण राजपाट व अन्य कामों मे इतने व्यस्त रहते थे कि वो राधा को पहले की तरह समय नही दे पाते थे। और राधा महल में अकेली बैठी कृष्ण के पुराने रूप को ही याद किया करती थी।

राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम
राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम 

कृष्ण का पुराने समय जैसा साथ न पाकर राधा का मन बहुत व्याकुल रहने लगा और उन्हें ये डर सताने लगा कि कहीं कृष्ण की पुरानी छवि और उनकी मनोहर यादे  उनके मन से न निकल जाए, इसलिये राधा चुपचाप , बिना किसी को बताये द्वारिका से चली गई। 

द्वारिका से निकलने के बाद राधा कहाँ गई ये किसी को भी नही पता था लेकिन श्री कृष्ण जो कि त्रिकाल दर्शी है, उन्हें पता था की राधा कहाँ गई है। द्वारिका से निकलने के बाद राधा जी एक जंगल मे छोटी सी कुटिया में रहने लगी। 

कुछ समय व्यतीत करने के बाद मित्रों! जब राधा जी को ये महसूस हुआ कि उनका अंतिम समय अब निकट है, तो उन्होंने कृष्ण का स्मरण किया और उन्हें अपने वचन की याद दिलाई। कृष्ण राधा की पुकार को सुनते ही उनके पास दौड़े चले आए। 

राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम
राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम 

लेकिन राधा की दयनीय  स्थिति देखकर कृष्ण अत्यन्त भावुक हो उठे,उनकी आंखे अश्रु से भर गई। उन्हें ज्ञात हो गया कि राधा उनसे अब विदा लेने जा रही हैं इसलिये उन्होंने राधा से अंतिम समय में कुछ मांगने को कहा। 

इस पर राधा ने कृष्ण से कहा कि मैं अपने जीवन के अंतिम पलों मे तुम्हारा वही रूप देखना चाहती हूं , जिसे मैं पहले वृंदावन मे देखा करती थी। मैं तुम्हें पहले की तरह बाँसुरी की मीठी, प्यारी धुन बजाते हुए देखना चाहती हूं। 

मित्रों! राधा के सिर्फ इतना कहने भर की देर थी कि ,कृष्ण उनके पास बैठ कर उन्हे बांसुरी की धुन सुनाने लगे। बाँसुरी बजाते वक्त राधा और कृष्ण दोनों की ही आँखों से प्रेम के आँसू बह रहे थे। बाँसुरी की धुन को सुनते सुनते राधा ने कृष्ण के सामने ही प्राण त्याग दिए।

राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम
राधा कृष्ण का निःस्वार्थ प्रेम 

ये देखकर श्री कृष्ण इतने विचलित हो गए कि उन्होंने अपनी प्रिय बाँसुरी को वहीँ उसी समय तोड़ दिया और फिर कभी बाँसुरी नहीं बजाई। क्योंकि बाँसुरी और राधा का अटूट रिश्ता था इसलिए जब राधा नहीं ,तो बाँसुरी भी नहीं। ये सोच कर श्री कृष्ण ने अपने बचे जीवन में कभी बाँसुरी नहीं बजाई। इस तरह से मित्रों कृष्ण और राधा के प्रेम का अंत हुआ।  

मित्रों! अब बताइए क्या आज वर्तमान मे ऐसा प्यार कहीं  है।क्या ऐसा त्याग कहीं है, ऐसा धैर्य, विश्वास और स्वच्छ मन कहीं है। हमे तो नही लगता कि ऐसा है।हमने तो आज के प्रेमियों मे छल, कपट, झूठ, अविश्वास और नफरत ही देखी है। 

आये दिन ख़बरों मे भी यही सुनने को मिलता है कि, आज एक प्रेमिका ने अपने प्रेमी की हत्या कर दी ,तो कहीं किसी प्रेमी ने अपनी प्रेमिका की।आज के प्रेमियों ने प्रेम की भाषा ही बदल दी है। जो मन से नही, केवल शरीर से प्यार करते है।  

अब ऐसा कहना भी ठीक नही होगा की, सभी प्रेमी ऐसा करते हैं। क्योकि जिस प्रकार पांचों उँगलियाँ एक सी नही होती ,उसी प्रकार सभी प्रेमी एक से नही होते। लेकिन अधिकतर ऐसे ही है। ऐसा हमे लगता है, आपको कैसा लगता है। क्या आप इस बात से सहमत है। अपनी राय हमे अवश्य बताये। 

शिक्षा 

प्यारे मित्रों! इस कहानी से हमे ये सीख मिलती है की,यदि किसी से प्यार करें तो श्री राधे और कृष्ण जैसे करें। अपना प्यार हमे मिल जाए तो ठीक और न मिले तो दूर रहकर जिंदगी भर अपने प्यार के लिए दुआ करते रहे, कि वो जहां भी रहे बस खुश रहे और श्री राधे कृष्ण जी की कृपा उस पर बनी रहे। 

तो मित्रों! कैसे लगी आपकों आज ये पोस्ट। हमे अवश्य बताये। इसी के साथ हम विदा लेते हैं। अगली पोस्ट के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मिलेंगे। तब तक आप हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और प्रभु का स्मरण करते रहिए। 

धन्यवाद

जय जय श्री राधे कृष्ण 

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