आत्मा जब शरीर छोड़ती है,तो क्या मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है?

हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे है आप लोग, 

आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे। 

आत्मा जब शरीर छोड़ती है,तो क्या मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है?

आत्मा जब शरीर छोड़ती है,तो क्या मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है?
आत्मा जब शरीर छोड़ती है,तो क्या मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है?

प्रिय पाठकों, आज की इस पोस्ट मे गरूड पुराण के माध्यम से जानेंगे की आत्मा जब शरीर छोड़ती है,तो क्या मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है? तो चलिए बिना देरी किए पढ़ते हैं आज की पोस्ट। 

प्रिय दोस्तों,आत्मा जब शरीर छोड़ती है, तो मनुष्य को पहले ही पता चल जाता है। ये बात 100 % सच है। जब मनुष्य को ये पता चल जाता है कि अब वह मरने वाला है,तो ऐसे में वह जीवन से हार मान लेता है 

वास्तव मे तो वह अपनी आत्मा को शरीर में बनाये रखने का, बहुत प्रयत्न करता होता है, लेकिन उसकी हर कोशिश नाकामयाब होती है और वो इसी जीवन मृत्यु के चक्कर में पड़कर अनेक प्रकार के कष्ट झेलता रहता है।

Read more- क्या जीवित व्यक्ति को गरूड पुराण पढ़ना चाहिए 

जब मृत्यु पास आती है तो उससे पहले मनुष्य के सामने उसके सारे जीवन की यात्रा, चल चित्र यानी एक मूवी के फ्लैश बैक की तरह चल रही होती है। वो अपनी यादों मे खोया रहता है और आत्मा शरीर से निकलने की तैयारी कर रही होती है। मनुष्य के शरीर मे पाँच प्राण होते हैं। जिसमें से 'धनंजय प्राण' को छोड़कर, बाकी के चार प्राण शरीर से बाहर निकलना शुरू कर देते हैं। 

ये चारो प्राण, आत्मा से पहले बाहर निकलकर,आत्मा के लिये छोटे  (सूक्ष्म) शरीर बनाते हैं ,ताकि आत्मा आसानी से इस सूक्ष्म शरीर से बाहर निकल सकें। धनंजय प्राण पर सवार होकर आत्मा शरीर से निकलकर इसी सूक्ष्म शरीर में प्रवेश कर जाती है। लेकिन अभी आत्मा पूरे तरीके से बाहर नही निकली होती, उसका कुछ अंश अभी शरीर में ही होता है। 

बाकी के दूसरे प्राण धीरे-धीरे शरीर से बाहर निकल रहे होते हैं, कि व्यक्ति को पता चल जाता है। उसे बेचैनी होने लगती है, घबराहट होने लगती है। सारा शरीर फटने लगता है, खून की गति धीमी होने लगती है। साँस उखड़ने लगती है।

बाहर के द्वार बंद होने लगते हैं। अर्थात्,  याददाश्त कम होने लगती है और बेहोशी छाने लगती है। चैतन्य ही आत्मा के होने का संकेत है, और जब आत्मा ही शरीर छोड़ने को तैयार है, तो चेतना को तो जाना ही है, और इसीलिए व्यक्ति मूर्छित होने लगता है।

उसकी बुद्धि समाप्त हो जाती है, और उसे किसी अनजाने लोक में प्रवेश की अनुभूति होने लगती है, यह चौथा आयाम होता है। फिर मूर्च्छा आ जाती है, और आत्मा एक झटके से, किसी भी खुली हुई इंद्रिय से बाहर निकल जाती है। और  यही वो समय होता है ,जब चेहरा विकृत हो जाता है। यही स्थिति आत्मा के शरीर छोड़ देने का मुख्य चिह्न होता है। 

शरीर छोड़ने से पहले केवल कुछ पलों के लिये, आत्मा अपनी शक्ति से शरीर को, शत प्रतिशत सजीव करती है, ताकि उसके निकलने का मार्ग अवरुद्ध न रहे, और फिर उसी समय आत्मा निकल जाती है, और शरीर खाली मकान की तरह निर्जीव रह जाता है।

इससे पहले घर के आसपास, कुत्ते-बिल्ली के रोने की आवाज़ें आती हैं। इन पशुओं की आँखे अत्याधिक चमकीली होती है, जिससे ये रात के अँधेरे में तो क्या, सूक्ष्म शरीर धारी आत्माओं को भी देख लेते हैं।

जब किसी व्यक्ति की आत्मा शरीर छोड़ने को तैयार होती है, तो उसके अपने सगे-संबंधी, जो मृतात्माओं के रूप में होते है, उसे लेने आते हैं, और व्यक्ति उन्हें यमदूत समझता है,और कुत्ते-बिल्ली उन्हें साधारण जीवित मनुष्य ही समझते हैं। और अनजान होने की वजह से उन्हें देखकर रोते हैं, और कभी-कभी भौंकते भी हैं। 

शरीर से पाँच प्रकार के प्राण बाहर निकलकर, उसी तरह सूक्ष्म शरीर का निर्माण करते हैं। जैसे गर्भ में स्थूल शरीर का निर्माण क्रम से होता है। सूक्ष्म शरीर का निर्माण होते ही,आत्मा अपने मूल वाहक धनंजय प्राण के द्वारा, बड़े वेग से निकलकर सूक्ष्म शरीर में प्रवेश कर जाती है।

आत्मा शरीर के किस हिस्से से निकलती है?

आत्मा शरीर के जिस अंग से निकलती है, उसे खोलती, तोड़ती हुई निकलती है। जो लोग भयंकर पापी होते है, उनकी आत्मा,मूत्र या मल-मार्ग से निकलती है। 

जो पापी भी हैं, और पुण्यात्मा भी हैं, उनकी आत्मा मुख से निकलती है। जो पापी कम और पुण्यात्मा अधिक है,उनकी आत्मा नेत्रों से निकलती है, और जो पूर्ण धर्मनिष्ठ हैं, पुण्यात्मा,और योगी पुरुष हैं, उनकी आत्मा ब्रह्मरंध्र से निकलती है। 

अब तक शरीर से बाहर सूक्ष्म शरीर का निर्माण हुआ रहता है। लेकिन ये सभी का नहीं हुआ रहता। जो लोग, अपने जीवन में ही मोहमाया से मुक्त हो चुके योगी पुरुष है, उन्ही के लिये तुरंत सूक्ष्म शरीर का निर्माण हो पाता है। 

अन्यथा जो लोग मोहमाया से ग्रस्त हैं, परंतु बुद्धिमान हैं, ज्ञान-विज्ञान से अथवा पांडित्य से युक्त हैं, ऐसे लोगों के लिये दस दिनों में, सूक्ष्म शरीर का निर्माण हो पाता है।

मरने के तुरंत बाद दस गात्र का श्राद्ध जरूरी क्यों है?

हिन्दू धर्म-शास्त्र में दस गात्र का श्राद्ध, और अंतिम दिन मृतक का श्राद्ध करने का विधान इसीलिये है, कि दस दिनों में शरीर के दस अंगों का निर्माण, इस विधान से पूर्ण हो जाये, और आत्मा को सूक्ष्म शरीर मिल जाये।

ऐसे में, जब तक दस गात्र का श्राद्ध पूर्ण नहीं होता, और सूक्ष्म शरीर तैयार नहीं हो जाता, आत्मा प्रेत-शरीर में निवास करती है। अगर किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाता है, तो आत्मा प्रेत योनि में भटकती रहती है। 

आत्मा जब शरीर से निकलती है तो क्या होता है?

एक और बात, आत्मा के शरीर छोड़ते समय, व्यक्ति को पानी की बहुत प्यास लगती है। शरीर से प्राण निकलते समय कण्ठ सूखने लगता है। ह्रदय सूखता जाता है, और इससे नाभि जलने लगती है। लेकिन कण्ठ अवरुद्ध होने से पानी पिया नहीं जाता, और ऐसी ही स्थिति में आत्मा शरीर छोड़ देती है। प्यास अधूरी रह जाती है। इसलिये अंतिम समय में, मुख में 'गंगा-जल' डालने का विधान है। 

इसके बाद आत्मा का अगला पड़ाव होता है,शमशान का 'पीपल'। यहाँ आत्मा के लिये 'यमघंट' बँधा होता है। जिसमें पानी होता है। यहाँ प्यासी आत्मा यमघंट से पानी पीती है, जो उसके लिये अमृत तुल्य होता है। इस पानी से आत्मा तृप्ति का अनुभव करती है।  

Read more- गरुड़ ज्ञान- 25 पांच प्रेतों की अद्भुत कथा

हिन्दू धर्म शास्त्रों में विधान है, कि मृतक के लिये यह सब करना अति आवश्यक होता है, ताकि मृतक की आत्मा को शान्ति मिले। 

अगर किसी कारण वश मृतक का, दस गात्र का श्राद्ध न हो सके, और उसके लिये पीपल पर यमघंट भी न बाँधा जा सके, तो उसकी आत्मा प्रेत-योनि में चली जायेगी, और फिर कब वहाँ से उसकी मुक्ति होगी, कहना कठिन होगा। 

आत्मा का प्रेत योनि मे न जाने का उपाय 

हाँ, एक उपाय अवश्य हैं। तो यह, कि किसी के देहावसान यानी अंतिम संस्कार होने के समय से लेकर तेरह दिन तक, निरन्तर भगवान् के नामों का, उच्च स्वर में, जप अथवा कीर्तन किया जाय, और जो संस्कार बताये गये हैं उनका पालन करने से मृतक, भूत प्रेत की योनि, नरक, आदि में जाने से बच जायेगा, लेकिन यह करेगा कोन। 

यह संस्कारित परिजन, सन्तान, नातेदार ही कर सकते हैं। अन्यथा आजकल अनेक लोग केवल औपचारिकता निभाकर,केवल दिखावा ही अधिक करते हैं।

मित्रों! मरने वाला व्यक्ति यदि स्वयं भजनानंदी रहा हो, भगवान का भक्त रहा हो, और अंतिम समय तक यथासंभव हरि स्मरण में रत रहा हो। तो वो प्रेत योनि मे नहीं जाएगा। उसकी मुक्ति स्वयं हो जाएगी। 

जिसने भगवान के धामों में देह त्यागी हो, अथवा जिसका दाह संस्कार काशी, वृंदावन, या चारों धामों में से किसी एक में हुआ हो। वह भी भूत, प्रेत की योनि मे नही जाएगा। उसे स्वयं मुक्ति मिल जायेगी। 

मित्रों! हमे खुद से विचार करना चाहिये, कि हम दूसरों के भरोसे रहें, या अपना हित स्वयं सोचे। ये जीवन बहुत अनमोल है इसलिए इसको व्यर्थ मत गँवायें। एक एक पल को सार्थक करें। हरिनाम का नित्य आश्रय लें। मन के दायरे से बाहर निकल कर, सचेत होकर जीवन को जियें, न कि मन के अधीन होकर। 

यह मानव शरीर बार बार नहीं मिलता।  जीवन का एक एक पल, जो गुज़र रहा है, वह फिर वापस नहीं मिलेगा। इसमें जितना अधिक हो, भगवान् का स्मरण जप करते रहें, हर पल जो भी कर्म करें , वह बहुत सोच समझकर  करें। क्योंकि कर्म परछाई की तरह मनुष्य के साथ रहते है। इसलिये सदा शुभ कर्मों की शीतल छाया में रहें।

वैसे भी कर्मों की ध्वनि, शब्दों की ध्वनि से अधिक ऊँची होती है। अतह, सदा कर्म सोच विचार कर करें। जिस प्रकार धनुष में से तीर छूट जाने के बाद वापस नहीं आता, इसी प्रकार जो कर्म आपसे हो गया ,वह उस पल का कर्म वापस नहीं होता,चाहे कर्म अच्छा हो या बुरा।  

Read more- अच्छे लोग जल्दी  क्यों  मर जाते है ?

इसलिये, इससे पहले कि आत्मा इस शरीर को छोड़ जाये, शरीर में रहते हुए आत्मा को, यानी स्वयं को जान लें, और जितना अधिक हो सके, मन से, वचन से, कर्म से, भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण का ध्यान, चिंतन, जप कीर्तन करते रहें, निरन्तर स्मरण से हम,यम पाश से तो बचेंगे ही बचेंगे, साथ ही हमें भगवत् धाम भी प्राप्त हो सकेगा, जो कि मनुष्य जीवन का वास्तविक लक्ष्य है।

प्रिय पाठकों, आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी। ऐसी ही रोचक जानकारियों के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी। तब तक के लिए आप हंसते रहें, खुश रहें और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहें। 

धन्यवाद 

Previous Post Next Post