आखिर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)

हर हर महादेव 

जय श्रीराम 

प्रिय पाठकों, कैसे है आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप सकुशल होंगें।


दोस्तों आज की ये कहानी बड़ी ही रौचक और दर्द भरी सच्ची कहानी है। ये कहानी है एक नाबालिक राजकुमारी की। जिसके सपनों को इतिहास के पन्नों ने रौंदकर रख दिया। यानी इतिहास के कुछ ऐसे दरिन्दे राजा जिन्हें सिर्फ अपने ऐसों आराम के लिए औरतों और बालिकाओं की आबरू को रौंदने मे जरा भी हिचकिचाहट नहीं होती थी। तो चलिए दोस्तों बिना देरी किए पढ़ते हैं आज की ये रोचक और सच्ची कहानी। 

आख़िर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)

एक राजकुमारी, जिसकी उम्र मुश्किल से चौदह या पंद्रह वर्ष की थी।उसने अभी अपने बचपन के आनंद को पार करके यौवन की दहलीज पर कदम ही रखा था। 


आखिर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)
आखिर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)


चूँकि वह एक राजा की बेटी थी इसलिए शायद वह सपनों में किसी राजकुमार को देखती होगी। खुशियों से भरा खुशहाल हरे-भरे भविष्य को देखती होगी, उसके चारों ओर सुख का ही बसेरा रहा होगा।पर अफसोस उसे अपने कल के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं था,की उसके ये सपने सिर्फ सपने बन कर रह जाएंगे क्योंकि काल ने उस राजकुमारी के लिए कुछ और ही सोच कर रखा था। 


उसे तो पता भी नही था कि दिल्ली से चला एक बर्बर का दरिंदा उसके लिए एक नरक का संदेश लेकर आने वाला था। वह कोमल राजकुमारी एक वेश्या बनाई जाने वाली थी। इससे भी ज्यादा घृणित बात तो यह थी दोस्तों कि ,वह राजकुमारी किसी एक के लिय नहीं,बल्कि सैनिकों की जिस्मानी भोग के लिए इस्तेमाल होने वाली एक नरम मांस के रूप मे पेश की जाने वाली वस्तु थी।


दोस्तों! यह कहानी किसी कल्पना से भरी खोखली कहानी नहीं है बल्कि अपने ही इतिहास के पन्नों पर लिखी वह दर्दनाक दास्तान है जो आज भी आपके रोंगटे खड़े कर देगी और आपको खून के आंसू रोने पर विवश कर देगी।


जिस राजकुमारी के बारें में हम चर्चा कर रहे है वह राजा पूरन मल की बेटी थी और उसकी मां का नाम था महारानी  रत्नावली। राजा पूरनमल ने अफगानी दरिन्दे शेरशाह के डर से अपनी रानी रत्नावली का सर काट दिया ताकि वे अफगानी दरिंदे  उन्हें उठाकर न ले जाए। 


लेकिन वह अपनी बेटी और बेटों को चाह कर भी नहीं मार पाए।बच्चे अभी छोटे है और शेरशाह इन पर जुल्म नही करेगा। ये सोचकर राजा ने अपने बच्चों को नही मारा। लेकिन ये राजा की भूल थी। क्योंकि शेरशाह दरिंदों का भी दरिन्दा था। उस राजकुमारी और दो अबोध राजकुमारों के साथ जो हुआ वह इतिहास में एक दर्दनाक दृश्य के साथ दर्ज किया गया। 


यह कहानी 1544  की है।लेकिन इस घटना के पीछे के ऐतिहासिक परिदृश्य को समझने के लिए हमें समय में थोड़ा पीछे जाना होगा। ताकि आप राजकुमारी के साथ हुए इस अन्याय के कारण को अच्छे से समझ सकें। 


ये बात है 1398 की। उस समय दिल्ली की गद्दी पर तुग़लक़ वंश का कमज़ोर शासक नसीरुद्दीन मेहमूद राज कर रहा था। उसी समय काबुल, कंधार और पंजाब को लूटते, रौंदते लंगड़े तैमूर ने दिल्ली पर चढ़ायी कर दी ।


तैमूर की मानसिकता किस प्रकार की थी ये आप उसके जीवनी तुजुके तैमूरी की पहली पंक्ति पढ़ेंगे तो आप अच्छे से समझ जाएंगे। जिसकी कुछ लाइनें इस प्रकार हैं। 


तैमूर कुरान पर अपने से ज्यादा भरोसा था ,कुरान मे लिखी एक एक बात उसके लिए पत्थर की लकीर थी। वह लिखता है कि ,ऐ पैगम्बर- काफिरों और विश्वास ना लाने वालों से युद्ध करो और उन पर सख्ती से पेश आओ। 


वह आगे भारत पर अपने आक्रमण का कारण बताते हुए लिखता है कि हिंदुस्तान पर आक्रमण करने का मेरा लक्ष्य है काफिर मूर्ति पूजा के हिंदुओं के विरुद्ध जिहाद करना। और  हिन्दुओं की दौलत, गुलाम और महिलाओं को लूटकर ले जाना। 


बहरहाल उस समय दिल्ली पर तुगलक वंश का शासक नसीरुद्दीन मेहमूद राज करता था। तैमूर के आक्रमण ने तुगलक वंश के वर्चस्व को समाप्ति की अंधेरी खाई की तरफ मोड़ दिया। तैमूर दिल्ली को लूट कर और कत्लेआम मचा कर चला गया।


उसके जाने के बाद कमज़ोर तुग़लक़ वंश की गद्दी पर  अफ़गानों ने कब्ज़ा कर लिया। समय तेज घोड़े की रफ़्तार की तरह साल दर साल बढ़ता रहा। फिर इतिहास के पर्दे पर बाबर का राज  होता है। बाबर अपनी माता की तरफ से मंगोल वंशी और अपने पिता के तरफ से तैमूर वंशी का था। इसीलिए जब 1504 में उसे समरकन्द से निकाला गया तो उसने पहले भारत की पश्चिमी सीमा काबुलऔर कंधार पर क़ब्ज़ा किया।


फिर वर्तमान दिल्ली के अफ़गान शासक इब्राहिम लोदी को अपने हक के वास्ते पत्र लिखा कि उनका हक उन्हें दिया जाए लेकिन इब्राहिम लोदी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इस कारण उसी दिन से बाबर मौके की तलाश में रहने लगा ।और अखिरकार एक दिन उसे मौका मिल ही  गया।


21 अप्रैल 1526  को पानीपत का प्रथम युद्ध लड़ा गया। उस युद्ध मे बाबर ने इब्राहिम लोदी को पराजित कर दिया। अब दिल्ली की गद्दी पर बाबर का राज हो गया और मुगल वंश की स्थापना हो गई।इधर राणासांगा को लगा कि बाबर अपने पूर्वज तैमूर की तरह दिल्ली को लूटकर लौट जाएगा।लेकिन ऐसा हुआ नहीं। क्योंकि  बाबर के पास जाने के लिए कोई ठिकाना ही नहीं था। इसलिए वह दिल्ली में ही जम गया। 


वर्ष 17 मार्च 1527 को खानवा का युद्ध शुरू हुआ। इस युद्ध में राणा सांगा हार गए। लेकिन राजपूत अभी पूरी तरह टूटे नहीं थे वे फिर इकट्ठे हुए और 21जनवरी 1528 को फिर से चंदेरी का युद्ध लड़ा गया।


राणा सांगा के बाद में युद्ध की कमान मेदिनी ने संभाली। जब बाबर ने देखा कि हम जीत नहीं सकते तो उसने जिहाद का नारा बुलंद किया। इस नारे ने मेदिनी राय के राज्य मे उपस्थित मुसलमानों के दिलों मे एक ज्वाला भड़का दी,जिस कारण मेदनीराय के राज्य में रहने वाले उनकी ही छत्रछाया में पलने बढ़ने वाले मुसलमानों ने मेदिनी राय के खिलाफ ही गृहयुद्ध छेड़ दिया। 


अपने ही लोगों से मिले विश्वासघात के कारण मेदिनी राय की युद्ध मे हार हुई। परिणामस्वरूप चंदेरी का राजा बाबर का हुआ और यहीं से राजा पूरणमल तथा दिल्ली का विवाद शुरू होता है। 


चंदेरी के युद्ध में केवल किला नहीं हारा गया था बल्कि हारी गई थी राजपूती साख और इसे फिर से पाने का एक ही तरीका था और वह था बाबर से किला वापस लेना।


वर्ष 1529 मे अफ़गान सरदार महमूद लोधी ने बाबर के साथ युद्ध करने की ठानी और इसके लिए उसका साथ दिया बंगाल के नवाब, नुसरत शाह ने। बाबर का दिल्ली  पर राज तभी हो पाता ,जब तक कि वह अफगान सरदार को मार न दे । इसीलिए बाबर गंगा को पार कर घाघरा के किनारे बिहार में महमूद लोदी और मुशर्रफ को सबक सिखाने पहुंच गया।


इसी का फ़ायदा उठाकर राजस्थान के राजपूत शासक राजा पुरणमल ने चंदेरी के किले पर क़ब्ज़ा कर लिया। साल भर के भीतर वह किला राजपूतों के हाथ में वापस आ गया था। इसी तरह समय गुजरता रहा। 


आखिरकार लड़ते भिड़ते बाबर की 1530 में मृत्यु हो गई। और गद्दी मिली उसके बड़े बेटे हुमायूं को और यहीं से इस कहानी में शेर शाह जिसे शेर खान के नाम से भी जाना जाता है का प्रवेश होता है।


आखिर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)
आखिर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)


हुमायूं के सामने पूरब की चुनौती थी, जिससे कि बाबर भी पार नहीं पा सका था। इसलिए, गद्दी पर बैठने के दो साल के अंदर ही 1532  में हुमायूं ने पूरब का द्वार कहे जाने वाले चुनारगढ़ के किले पर आक्रमण कर दिया। उस समय किले की रखवाली कर रहा था शेर खां।  


शेर खां ने घाघरा के युद्ध में बाबर का साथ दिया था क्योंकि वह मुगलिया तोप खाने की शक्ति से भलीभांति परिचित था। और इसीलिए उसने हुमायूं के सामने बल का प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि उसने हुमायूं का सामना कूटनीति से किया। उसके बाद हुमायूं शेर खां से समझौता करके दिल्ली वापस लौट गया ।


हुमायूं को इस बात की खबर ही नहीं थी कि यह उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित होने वाली थी। शेर खान एक अफ़ग़ान था और इसीलिए उसे लगता था कि दिल्ली उसके बाप की जागीर है। वह चाहता था कि दिल्ली पर मुगलों का क़ब्ज़ा होना चाहिए।और यही सोचकर उसने अपने सैन्य शक्ति को बढ़ाने का फ़ैसला किया।


वर्ष 1532 में उसने देख लिया था कि वह हुमायूं का मुकाबला नहीं कर सकता है और हुमायूं से मुकाबला करने के लिए उसे अधिक सैनिक शक्ति की आवश्यकता होगी. अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाता हुआ शेरखां ने  1537 में बंगाल को जीत लिया।


बंगाल बाबर के समय से ही, घाघरा के युद्ध के बाद से ही मुगलों की संपत्ति हो गया था। जब शेर खान ने बंगाल पर विजय हासिल की तो हुमायूं ने इसे अपनी संप्रभुता पर चोट माना। बिहार का एक सरदार अचानक से बंगाल का नवाब बन गया और इसी घमंड मे वह दिल्ली के तख्त को चुनौती दे रहा था। 


हुमायूं से यह सब कैसे बर्दास्त होता? उसने शेर खान को सबक सिखाने का निर्णय किया और बंगाल की तरफ चल पड़ा। जब हुमायूं बंगाल की तरफ चला, तो शेरखान ने उसके साथ सीधे टकराव नहीं किया बल्कि रास्ते में उसे गुरिल्ला युद्ध( गुमराह करना, कभी सामने आना और कभी छुप जाना)के द्वारा उलझाए रखा और जब हुमायूं की सेना बंगाल पहुंची तो उसने बंगाल में भी इस तरह से लड़ाई कि हुमायूं की सेना बड़ी देर तक बंगाल में फँसी रही। 


शेर खान चाहता थी कि हुमायूं की सेना को जितना ज्यादा हो सके, उतना ज्यादा समय तक बंगाल में रोका जाए ताकि वे थक जाएं और फिर उनकी शक्ति कमज़ोर पड़ जाए।और शेर खान अपनी इस कूटनीति में सफल हुआ भी। 


1537  में गया हुआ हुमायूं,1539 में वापस लौटा और वापस लौटते हुए बक्सर के नज़दीक गंगा के तट पर चौसा नामक स्थान पर शेर खान ने हुमायूं पर हमला कर दिया। चौसा में हुए इस युद्ध मे लड़ते-लड़ते  हुमायूं की हार हुई ,लेकिन उस हार का कारण केवल शेर खान की  बहादुरी और उसकी कूटनीति नहीं थी बल्कि हुमायूं के भूगोल का आकलन भी गलत साबित हुआ था। 


ऐसा इसलिए कि वह बरसात का समय था जब हुमायूं ने अपने सैनिकों का तम्बू गंगा के एकदम किनारे निचले स्थान पर लगवाया और जब गंगा नदी में बाढ़ आई तो हुमायूं के बहुत सारे सैनिकों के तम्बू तो ऐसे ही डूब गये। उसके अस्त्र शस्त्र, उसके घोड़े और उसका तोप खाना पूरी तरह से बर्बाद हो गया। और इन्हीं सबका फ़ायदा उठाया शेरखाने। 


शेरखाने ने अपनी सेना को उस समय आक्रमण करने का आदेश दिया जब हुमायूं की सेना डूब रही थी और एक ही झटके में,उसने उसने बाकी बची सेना का अंत कर दिया,लेकिन हुमायूं को नहीं मार पाया। क्योंकि  वह किसी तरह एक भिष्टि की सहायता से जान बचाकर  दिल्ली पहुंचा।


दिल्ली पहुंचते पहुंचते हुमायूं की शक्ति कमज़ोर हो चुकी थी और इधर शेर शाह भी दिल्ली की तरफ बढ़ता चला जा रहा था।वर्ष 17 मई 1540 में एक आखरी युद्ध हुआ और वह युद्ध हुआ कनौज मे। 


आखिर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)
आखिर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)


कन्नौज के इस युद्ध में पहले से हारी हुई और मनोबल से टूटी हुई हुमायूं की सेना अंततः पूरी तरह पराजित हो गई और शेरखान अपने नए नाम शेर शाह के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा।

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बिहार का एक मामुली सा अफ़गान वंशी सरदार आज दिल्ली का सुल्तान वन चुका था। दिल्ली के सुल्तान बनते हैं शेरशाह ने भी ठीक वही किया जो उसके पूर्वज किया करते थे। यानी कि उसने राज्य विस्तार करना प्रारंभ कर दिया और इसी प्रकरण में 1542  में उसने मालवा के किले पर अधिकार कर लिया। 


जब शेरशाह ने मालवा के किले पर अधिकार कर लिया तो उसे चंदेरी के किले की याद आई।तब तक चंदेरी के किले पर रायसेन के राजा पूरणमल का ही अधिकार था। शेर शाह ने अपने एक अमीर सुजात खान को पूरणमल के पास भेजा। 


वर्ष 1543 ईसवीं मे शेरशाह और पुराणमल के बीच में एक समझौता हो जाता है क्योंकि पुराणमल जानते थे कि वे दिल्ली की सेना से सीधे टकराकर जीत नहीं सकते हैं। क्योंकि उनका राज्य बहुत ही छोटा था और चंदेरी के युद्ध में वे अपने ही राज्य में गृहयुद्ध को भी झेल चुके थे। 


और इन्हीं सब कारणों से वे नहीं चाहते थे कि उनके राज्य मे किसी भी तरह का खून खराबा हो और जब जीत उन्हें सामने से दिख ही नहीं रही थी तो उन्होंने शेरशाह के साथ समझौता करना ही सही समझा।


वर्ष 1543 में वे दिल्ली गए और अपने भाई चतुर्भुज को शेरशाह के दरबार में ही छोड़ कर राइसैन के किले में वापस आ गए। पूरणमल ने शेरशाह से समझौता तो कर लिया था।और शेरशाह ने भी चंदेरी के किले को पूर्णमल के अंतर्गत ही रहने दिया।


लेकिन चंदेरी के मुसलमान, पूरणमल के अधीन नहीं रहना चाहते थे।वे चाहते थे कि दिल्ली पर जब अपना शासन है तो क्यों ना दिल्ली का सुल्तान यहां का भी शासन अपने हाथ में ले ले। इसी कारण से चंदेरी के मुसलमानों ने एक बार फिर से जाकर शेरशाह को भड़काया और कहा कि यहां का राजा हमारे प्रति बड़ा ही गलत व्यवहार करता है।


वह हमें अपनी मर्जी से अपनी मान्यताओं के अनुसार नहीं चलने  देता है। यहां के कानून में शरीयत का पालन नहीं होता है।इसीलिए आप चंदेरी आ करके हमें बचाइए।


वास्तव में तो शेरशाह जिस वंश का था ,वहां पर दोस्ती, समझौता और वफादारी इन सब शब्दों का कोई मतलब  नहीं होता था. और शेरशाह उसके अंदर तो बदले की ज्वाला पहले से ही भड़क रही थी। उसे तो युद्ध करने का बस एक मौका चाहिए था और मुस्लिम लोगों के कहने से उसे यह मौका मिल गया।


उसने वर्ष 1544 में चंदेरी के मुसलमानों के कहने पर रायसेन के किले पर हमला कर दिया। पुरणमल और उनके गांव वाले उस किले अंदर चले गए। राजा पूरणमल का किला काफी ऊंचाई पर था और उसे जीतना शेरशाह के वश में नहीं था।


आखिर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)
आखिर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)


इसीलिए शेरशाह ने किले के बाहर ही घेराबंदी कर दी।उसने किले में अंदर आने और जाने वाले सभी मार्गों को बंद करवा दिए। लेकिन किला कोई छोटा मोटा किला नहीं होता था। उसकी एक बड़ी boundary होती थी और उसके अंदर खाने पीने की बहुत सारी वस्तुएं जमा करके रखी जाती थी। 


ताकि मुसीबत के समय उन वस्तुओ को उपयोग मे लाया जा सकें। क्योंकि वह तब का समय था जब अक्सर ही युद्ध हुआ करते थे इसलिए युद्ध जैसी स्थिति से निपटने के लिए पहले पूरी व्यवस्था कर ली जाती थी। शेरशाह ने बाहर घेरा डाला और इधर पूरणमल और उनके राज्य के लोग किले के अंदर आराम से रहने लगे। 

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धीरे धीरे चार महीने का समय गुज़र गया। शेरशाह को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर पूरणमल के इस किले पर विजय कैसे प्राप्त की जाए? कहते हैं कि शेरशाह ने जीत हासिल करने के लिय तोपों पर तांबे के सिक्कों को जड़वाये और उसने उस किले पर उन्ही तोपों से आक्रमण किया। लेकिन फिर भी वह किला नहीं टूट पाया।


राजा पूरणमल को शेरशाह किसी भी तरह से नहीं हरा पाया, फिर शेरशाह ने अपने कॉम की वह चाल चली जिसके लिए यह लोग जाने जाते थे। उसने पूरणमल के पास एक संदेश पहुंचाया कि वह बहुत समय से हो रही युद्ध की इस हानि से परेशान है।उसे दिल्ली वापस लौटना है और अपने राज्य का संचालन करना है। इसलिए वह पूर्णमल से समझौता करना चाहता है।


पूर्णमल ने अपने सैनिकों को तैयार रहने का आदेश दिया और खुद दो विश्वसनीय सैनिकों को साथ लेकर शेरशाह से मिलने के लिए गए। वहां पर जाने के बाद शेरशाह ने उनके साथ बैठकर बहुत ही अच्छा बर्ताव किया और फिर मित्रता के सभी शर्तों का वहां पर अनुपालन किया गया। 


राजा पूरणमल को लगा कि शेरशाह सच बोल रहा है इसलिए पूरनमल खुशी खुशी अपने किले में वापस आ गए। और इधर जैसे ही पूरणमल वापस आए, वैसे ही मौलवीओं और उलेमाओं का एक दल शेरशाह के पास गया ।


उनके साथ कुछ महिलाएं थी।वे महिलाएं शेरशाह के पास जाकर रोने लगी कि हमारे साथ यहां पर बहुत ही गलत व्यवहार होता है। राजा और इसके सैनिक हमारे ऊपर अत्याचार करते हैं। हम चाहते हैं कि आप इस राजा के अत्याचारों से हमें मुक्त करवाएं।


इसके साथ ही उलेमाओं ने पूरनमल के मृत्यु का ख़तवा जारी कर दिया और शेरशाह से कहा कि इस ख़तवे को लागू करवाना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है क्योंकि तुम राजा हो और हम उलेमा हैं। और एक तरह से हम धर्म के ठेकेदार हैं। हम जो कहेंगे उसको लागू तुम ही करवाओगे।

 

शेरशाह एक बार फिर इन सब की बातों में आ गया था. इधर पूरन मल अपने किले में गए और वहां पर जाकर उन्होंने घोषणा कर दी कि शेर शाह से समझौता हो गया है।अब हम सब बाहर निकल सकते हैं और किले से बाहर आकर के उत्सव मना सकते हैं।


सभी लोगों में खुशी की एक लहर दौड़ गई।वह चार महीने से एक छोटी सी जगह पर बंद थे,वह आजाद होना चाहते थे,खुले में उत्सव मनाना चाहते थे और इसीलिए पूरणमल के राज्य के जितने भी लोग किले में उपस्थित थे वह बाहर इकट्ठा होने लगे।


किले के बाहर बड़े से मैदान में उत्सव मनाने की तैयारी होने लगी।तंबू लग गए थे। वहां पर सभी खुश थे, प्रसन्न थे और स्वतंत्रता का उत्सव मना रहे थे।तभी शेर शाह कि सेना अपने पूरे दल-बल के साथ आ पहुंची।


अचानक से सामने आये सैनानियों को देख कर सभी लोग घबरा गए। पूर्णमल के सैनिक असाधारण हो गए थे।क्योंकि वे सब खुशियां,उत्सव मनाने में व्यस्त थे। राजा पुरणमल साफ समझ गए कि शेरशाह ने उनके साथ धोखा किया है ।


उनके पास अब कोई औरों चारा नहीं बचा था। वह अपने टेंट में अपनी पत्नी के पास गए। उनकी रानी का नाम रत्नावली था। राजा ने रानी को सारा वृतांत बताया और पूछा कि रत्ना! अब हमें क्या करना चाहिए? 


आखिर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)
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रत्नावली ने कहा कि- महाराज!आप इस बात को बखूबी जानते हैं कि दिल्ली के यह वहशी दरिन्दे अपनी जीत के बाद हारने वालों की स्त्रियों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। यह हैवानियत से भरे वहशी दरिन्दे है, यह इंसान नहीं है. इन्हें मनुष्य समझना मनुष्यता के सबसे बड़ी भूल होगी।


राजा अपनी रानी की इस बात से पूरी तरह से सहमत थे। उनके सामने और कोई चारा नहीं था।रानी  रत्नावली ने हंसते हुए कहा कि यह जीवन आपके लिए है। आपके बिना यह जीवन रहे इसका भी कोई फ़ायदा नहीं है। 


राजा जान गए थे कि अब मृत्यु की घड़ी नज़दीक है। बलिदान का समय आ गया है।वे नहीं चाहते थे कि उनके बाद उनकी पत्नी के साथ कोई भी दुर्व्यवहार हो। इसलिए उन्होंने अपनी तलवार निकाली और रानी रत्नावली का गला काट डाला। 


उनके ऐसा करते हैं राजपूत सैनिकों के खून में उबाल आ गया। वे भले ही असावधान थे लेकिन वीरता उनके रग रग में बहती थी। उनकी नसों में अंगारे दहकते थे। उनकी आंखों की ज्वालाएं फड़क गई और वे शेर शाह की सेना से युद्ध करने के लिए तैयार हो गए। 


राजा पूरणमल रानी के कटे सिर को लेकर बाहर आए उस समय टेंट में तीन लोग और थे। और वो थे राजा पूरणमल के दो राजकुमार यानी बेटे, जो कि बहुत ही छोटे थे और एक थी उनकी 14,15 वर्ष की राजकुमारी यानी बेटी।


आखिर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)
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ये वहीं
राजकुमारी है दोस्तों, जिसकी चर्चा हमने post की शुरुआत मे की है।राजा ने सोचा कि ये तो बच्चे हैं, कोई इनके साथ क्या करेगा? क्योंकि राजा पूरनमल एक इंसान थे,भगवान के भक्त थे उनकी सोच वहां तक जा ही नहीं सकती थी जहां तक दरिंदे जा सकते हैं। 


उन्होंने यह सोचा ही नहीं कि कोई राजा के बच्चों के साथ भी दुर्व्यवहार कर सकता है लेकिन शेर शाह और उसकी सेना केवल दुर्व्यवहार तक सीमित नहीं थी।शेर शाह की सेना बहुत बड़ी थी और वे तैयार होकर आए थे इधर पूरणमल के सिपाही असाधारण थे फिर भी उन्होंने वीरता के साथ युद्ध किया लेकिन यह युद्ध था ही नहीं। यह तो केवल प्राण को देने का एक त्यौहार था।


यह अपनी आन पर मरने का एक ऐसा उत्सव था जिसमें गुलाल की जगह खून उड़ाए जा रहे थे और सर कटवाए जा रहे थे।राजपूत एक एक करके लड़ते-लड़ते मरते रहे और फिर शेर शाह किसेना उन तंबूों में घुसी जहां पर बच्चे स्त्रियां और बूढ़े थे।


शेरशाह ने सभी पुरुषों को एक एक करके काट दिया डाला। बच्चे ,बूढ़े ,नौजवान तो पहले ही युद्ध में मारे जा चुके थे। अब बच गई केवल स्त्रियां और बच्चियां। चूंकि पूर्णमल राजा थे, इसलिए उनके टेंट में शेरशाह खुद गया और वहां पर उसे मिली तो रानी की सर कटी लाश और तीन अबोधित बच्चे।

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शेरशाह उस समय अपने उम्र के उत्तरार्ध में था यानि के बुढ़ा होने वाला था फिर भी उस दरिंदगी को दया नहीं आई। और उसने पहले तो उन दोनों राजकुमारों का वहीं कत्ल करवा दिया और उस अबोध, नाबालिग बच्ची को सैनिकों में फ़ेंक दिया।


धोखे से मिली हुई इस जीत के उन्माद में चोर शेरशाह के सैनिक उस बच्ची पर जरा दया नहीं करते है, उसकी उम्र की तरफ नहीं देखते हैं और उस के जिस्म को एक मांस का टुकड़ा समझकर उसके साथ खेलने लगते हैं। 


देखते ही देखते एक- एक कर सैनिक उसे एक सैनिक से दूसरे सैनिकों के हाथों मे फैंकते रहे। वह राजकुमारी उन सैनिकों मे ऐसे उछाली जा रही थी मानो कि वह कोई इंसान नही बल्कि नाचने वाली कोई कठपुतली हो। 


राजा की उस बच्ची पर उन सैनिकों ने जरा भी दया नही की। एक भूखे शेर की तरह वो सब सैनिक उस नन्ही सी जान को नोचते रहे, काटते रहे , उसके जिस्म के साथ खेलते रहे। 


उसके बाद उसे शेरशाह के पास हराम के लिय ले जाया गया। आपकी जानकारी के लिय बता दें दोस्तों की हराम  एक प्रक्रिया होती है जिसमें लड़की के तन पर एक भी कपड़ा नहीं होता। इस प्रक्रिया के साथ उस राजकुमारी को शेरशाह के पास भेजा गया। 


जब तक शेरशाह का दिल किया उसे हराम में ही रखा। और जब मन भर गया तो उसे फिर से सैनिकों और  अधिकारियों को सौंप दिया। कुत्ते की तरह वो दरिन्दे उसके जिस्म को नोचते रहे। 


महीनों तक उन लोगों ने उस राजकुमारी का शोषण किया। और फिर जब उन वहशी दरिंदों का मन भर गया तो उन लोगों ने उसे दिल्ली के बाज़ार में कोठे पर बिठा दिया। मात्र 14 वर्षीय एक राजा की लड़की के साथ इस तरह का कुकृत्य पूरे इतिहास में किसी ने नहीं किया था। 


पूरा इतिहास कहता है कि शेरशाह के जीवन में यदि कोई सबसे बड़ा दाग है तो वह है पूरन मल के किले पर आक्रमण करना और उसकी बेटी के साथ इतना भयानक व्यवहार करना है। 


यदि यह काम केवल शेरशाह के सैनिक खुद अपनी मर्जी से करते ,तो समझ में आता है लेकिन इसमें तो शेरशाह का पूरा-पूरा हाथ था। पूर्णमल की वह बेटी जो कि कुछ समय पहले तक एक राजकुमारी थी और जिसकी तरफ आंख उठाकर देखने का भी कोई हौसला नहीं रखता था। वह राजकुमारी आज दिल्ली के बाज़ार में कोठे पर बैठने लगी थी।


आखिर उस लड़की के दिल से आह तो निकलती ही होगी,उसे भी दर्द तो होता ही होगा, अपनी आपबीती को याद कर वह अक्सर रोया भी करती होगी और फिर  अपनी किस्मत को कोसती भी जरूर होगी। अपने परिवार को अपने सामने मरते देख और सैनिकों के अत्याचारों से टूट तो चुकी ही होगी।

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इतना बेबस और लाचार थी वह की उसके दिल से अक्सर कोई ना कोई बदबूा शेरशाह के लिए तो निकलती ही होगी। यही कारण था कि अभी एक साल ही बीता था , कि शेरशाह का दिल कलिंजर की एक वेश्या पर ही आ गया और यह वेश्या एक नर्तकी थी।


कलिंजर का किला बहुत ही मजबूत किला था। वह किला अपनी मजबूती के लिए पूरे एशिया में मशहूर था। उस समय वहां पर कीरत सिंह नाम के राजा राज्य किया करते थे. उनके राज्य में एक नर्तकी थी। जिसकी सुंदरता के चर्चा पूरे भारतवर्ष में फैली हुई थी।


आखिर क्यों? 14 वर्षीय राजकुमारी के साथ हुआ अत्याचार ( सच्ची कहानी)


बूढ़े शेर शाह का दिल उस नर्तकी पर आ गया। और उसने कीरत सिंह के पास एक पत्र भिजवाया। जिसमे लिखा था कि इस नर्तकी को दिल्ली के हवाले कर दिया जाए। लेकिन कीरत सिंह ने उस नर्तकी को देने से साफ मना कर दिया।


उसे अपने किले पर भरोसा था। वह जानता था कि शेर शाह इसे कभी नहीं जीत सकता। और इधर शेर शाह भी अपने अहंकार में भरा हुआ था। उसने कलिंजर के किले को जीतने का फ़ैसला किया और दिसम्बर 1544 के अंत में उसने कलिंजर पर हमला कर दिया।


ऐसा कहा जाता हैं कि शेरशाह ने कलिंजर के किले को जीतने के लिए उसने एक ऐसी मीनार बनवाई जो किले से भी काफी ऊपर जाती थी। और उसी मीनार पर रखकर वह तोप से गोले दागा करता था।


उसने अपना पूरा तोप खाना वहां पर इकट्ठा कर दिया था। उसने कलिंजर को जीतने के लिय अपना पूरा जोर लगा दिया। पर उसकी हर कोशिश नाकाम हुई। उसे सफ़लता नहीं मिली। 


एक बार वह अपनी बनाई हुई उसी मीनार पर चढ़कर तोप खाने का मोयना कर रहा था कि एक गोला कलिंजर के किले की मज़बूत दीवार से टकराकर वापस लौटा और उस तोप खाने पर ही गिर पड़ा। जिससे कि एक भयानक विस्फोट हुआ और शेरशाह वहीं मौत के मुँह में समा गया। 


शेर साहब मारा गया और शेरशाह की मृत्यु के कुछ ही समय के बाद कहते हैं कि पूरनमल की बेटी (राजकुमारी) ने भी अपने जीवन की अंतिम सांसें ली। आख़िर वो कब तक अत्याचारों को सहती। वह बीमार रहने लगी थी।  और कहीं ना कहीं शेरशाह के इस अचानक आई मृत्यु में कहीं ना कहीं पूरणमल की  उस नाबालिग, अबोध बेटी के दिल से निकले हुए श्रापों का बहुत बड़ा हाथ रहा ही होगा।


तो मित्रों! यह थी राजा पुरणमल की प्यारी,दुलारी और अबोध नाबालिग राजकुमारी की दर्दभरी कहानी। एक ऐसी दर्दनाक कहानी जिसे पढ़ते सुनते आज भी आंखों से खून के आंसू बहने लगते हैं। आपको ये कहानी कैसी लगी। अपनी राय अवश्य प्रकट करें।


इसी के साथ विदा लेते हैं, अगली पोस्ट के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी।तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें ,हंसते रहें, मुस्कराते रहें और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहें। 

धन्यबाद 

जय श्रीराम 

Faqs 

राजा पुरणमल ने अपनी पत्नी का सिर क्यों काट डाला?

राजा पुरणमल जान गए थे कि अब मृत्यु की घड़ी नज़दीक है। बलिदान का समय आ गया है।वे नहीं चाहते थे कि उनके बाद उनकी पत्नी के साथ कोई भी दुर्व्यवहार हो। इसलिए उन्होंने अपनी तलवार निकाली और रानी रत्नावली का गला काट डाला। 


राजा पुरणमल के कितनी सन्तान थी?

राजा पुरणमल की तीन संताने थी दो पुत्र और एक पुत्री। 


शेरशाह की मौत कैसे हुई?

एक बार शेरशाह अपनी बनाई हुई मीनार पर चढ़कर तोप खाने का मोयना कर रहा था कि एक गोला कलिंजर के किले की मज़बूत दीवार से टकराकर वापस लौटा और उस तोप खाने पर ही गिर पड़ा। जिससे कि एक भयानक विस्फोट हुआ और शेरशाह वहीं मौत के मुँह में समा गया। 


हराम किसे कहते हैं?

हराम  एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमें लड़की के तन पर एक भी कपड़ा नहीं होता। 
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