माता सीता की शक्ति और क्रोध

हर हर महादेव! प्रिय पाठकों, 

कैसे है आप लोग,

हम आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे। 

माता सीता की शक्ति और क्रोध 

माता सीता की शक्ति और क्रोध
माता सीता की शक्ति और क्रोध 

एक बार भगवान श्रीराम पूरे परिवार सहित सभा मे बैठे थे। की तभी लंकापति विभीषण हड़बड़ाते हुए अपनी स्त्री तथा चार मन्त्रियों के साथ दौड़े आये और बार-बार गहरी साँस लेते हुए कहने लगे- हे'राजीवनयन राम ! मुझे बचाइये, मुझे बचाइये। 

श्री राम ने पूछा- क्या हुआ लंकेश्वर ?

तब विभीषण ने उत्तर देते हुए कहा- प्रभु कुम्भकर्ण के पुत्र मूलकासुर नामक राक्षस ने, जिसे मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण कुम्भकर्ण ने वन में छुड़वा दिया था, लेकिन मधुमक्खियों ने उसे पाल लिया था।

माता सीता की शक्ति और क्रोध
माता सीता की शक्ति और क्रोध 

अब वह बड़ा हो चुका है प्रभु, यही नही,उसने तपस्या के द्वारा ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया है और उनके बल से गर्वित होकर बड़ा भारी ऊधम मचा रखा है।उसे आपके द्वारा लंका-विजय तथा मुझे राज्य प्रदान की बात मालूम हुई तो पाताल वासियों के साथ दौड़ा हुआ लंका पहुँचा और मुझ पर धावा बोल दिया। 

जैसे-तैसे मैं उसके साथ छः महीने तक युद्ध करता रहा। कल रात में मैं अपने पुत्र, मन्त्रियों तथा स्त्री के साथ किसी प्रकार सुरंग से भागकर यहाँ तक पहुँचा हूँ। 

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उसने कहा है कि 'पहले भेदिया विभीषण को मारकर फिर पितृहन्ता राम को भी मार डालूँगा। सो राघव ! वह आपके पास भी आता ही होगा, इसलिये ऐसी स्थिति में आप जो उचित समझते हों, वह तुरन्त कीजिये।'

भक्तवत्सल भगवान् श्री राम के पास उस समय यद्यपि बहुत से अन्य आवश्यक कार्य भी थे, लेकिन फिर भी भक्त की करुण कथा सुनकर उन्होंने अपने पुत्र लव, कुश तथा लक्ष्मण आदि भाईयों एवं सारी वानरी सेना को तुरन्त तैयार किया और पुष्पक यान पर चढ़कर झट लंका की ओर चल पड़े। 

मूलकासुर को श्री राम के आने की बात मालूम हुई तो वह भी अपनी सेना लेकर लड़ने के लिए लंका से बाहर आया। बड़ा भारी युद्ध छिड़ गया। चारो तरफ कोलाहल मच गया। सात दिनों तक घोर युद्ध होता रहा। अनेक सैनिक मारे गए। 

बड़ी कठिन समस्या उत्पन्न हो गई। अयोध्या से सुमन्त आदि सभी मन्त्री भी आ पहुँचे। तब हनुमानजी ने बिना देरी किए संजीवनी लाकर वानरों, भालुओं तथा मानुषी सेना को जिंदा करते रहे,पर युद्ध का परिणाम उल्टा ही दिख रहा था। 

माता सीता की शक्ति और क्रोध
माता सीता की शक्ति और क्रोध 

भगवान् श्री राम चिन्ता में कल्पवृक्ष के नीचे बैठे थे। मूलकासुर अभिचार होम(मृत्यु के लिए किया गया हवन)के लिये गुप्त गुफा में गया था। ये बात जब विभीषण को पता चली तो वह भगवान् श्रीराम के पास गये और उस गुप्त हवन के बारे मे बताने लगे। 

अभी वो बात कर ही रहे थे कि इतने मे वहां ब्रह्माजी आये और कहने लगे- 'रघुनन्दन! इसे मैंने स्त्री के हाथ मरने का वरदान दिया है। साथ ही एक बात और है, उसे भी सुन लीजिये। 

एक दिन इसने मुनियों के बीच शोक से व्याकुल होकर 'चण्डी सीता के कारण मेरा कुल नष्ट हुआ' ऐसा वाक्य कहा।' इस पर एक मुनि ने कुद्ध होकर उसे शाप दे दिया-'दुष्ट! तूने जिसे चण्डी कहा है, वही सीत  तुझे जान से मार डालेगी।'

मुनि का इतना कहना था कि वह दुष्टात्मा उन्हें खा गया। अब क्या था? शेष सब मुनि लोग चुपचाप उसके डर के मारे धीरे से वहाँ से खिसक गये। इसलिए अब उसकी कोई औषधि नहीं है। अब तो केवल सीता जी ही इसका वध करने में समर्थ हो सकती हैं। 

ऐसी दशा में हे रघुनन्दन ! आप उन्हें ही यहाँ बुलाकर इसका तुरन्त वध कराने की चेष्टा करें। यही इसके वध का एकमात्र उपाय है। इतना कहकर ब्रह्माजी चले गये। 

भगवान् श्रीराम ने भी तुरन्त हनुमानजी और विनतानन्दन गरुड़ को सीता को पुष्पक यान से सुरक्षित ले आने के लिये भेजा। इधर पराम्बा भगवती जनकनन्दिनी सीता की बड़ी विचित्र दशा थी। 

उन्हें श्रीराघवेन्द्र रामचन्द्र के विरह में एक क्षणभर भी चैन नहीं था। वे बार-बार महल की छत पर चढ़कर देखतीं कि कहीं दक्षिण से पुष्पक पर प्रभु तो नहीं पधार रहे हैं।

वहाँ से निराश होकर वे पुनः नीचे चली जातीं। कभी वे प्रभु की विजय के लिये तुलसी, शिव प्रतिमा, पीपल आदि की प्रदक्षिणा करतीं और कभी ब्राह्मणों से श्री सूक्त का पाठ करातीं। 

कभी वे दुर्गा की पूजा करके यह माँगतीं कि विजयी श्रीराम शीघ्र लौटें और कभी ब्राह्मणों से शतरुद्रिय का जप करातीं। नींद तो उन्हें कभी आती ही न थी।

वे दुनिया भर के देवी-देवतओं से मन्नतें माँगती रहतीं। उन्हें अपने खाने पीने और श्रृंगार की भी कोई सुधी नही थी। इस प्रकार उनका एक-एक पल युग के समान बीत रहा था कि,तभी गरुड़ और हनुमानजी उनके पास पहुँचे। 

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पति के संदेश को सुनकर सीता तुरन्त चल दीं और लंका में पहुँचकर उन्होंने कल्पवृक्ष के नीचे प्रभु का दर्शन किया। प्रभु ने उनके कमजोर होने का कारण पूछा। पराम्बा ने लजाते हुए हँसकर कहा-'स्वामिन्। यह केवल आपके अभाव में हुआ। 

माता सीता की शक्ति और क्रोध
माता सीता की शक्ति और क्रोध 

आपके बिना न नींद आती है, न भूख लगती है। मैं आपकी वियोगिनी, बस योगिनी की तरह रात-दिन आपके ध्यान में पड़ी रही। बाह्य शरीर में क्या हुआ है, इसका मुझे कोई ज्ञान नहीं।'

तत्पश्चात् प्रभु ने मूलकासुर के पराक्रमादि की बात कही। तो फिर क्या था ? भगवती को क्रोध आ गया। उनके शरीर से एक दूसरी तामसी शक्ति निकल पड़ी, उसका स्वर बड़ा भयानक था। वह लंका की ओर चली। 

तब तक वानरों ने भगवान् का संकेत पाकर गुफा में पहुँचकर मूलकासुर को हवन करने से रोकना शुरू कर दिया। वानरों  ने इतना अधिक उत्पात मचाया की मूलकासुर को हवन बीच मे ही रोकना पड़ा और  परेशान होकर वह मारने के उद्देश्य से उनके पीछे दौड़ने लगा। इस तरह पीछा करते हुए वह रणक्षेत्र में आ गया।

रणक्षेत्र मे सीता जी के क्रोध से प्रकट हुई छाया को देखकर उसने कहा- 'तू भाग जा। मैं स्त्रियों पर पुरुषार्थ नहीं दिखाता।' पर छाया ने कहा- 'मैं तुम्हारी मृत्यु-चण्डी हूँ। तूने मेरे पक्षपाती ब्राह्मण को मार डाला था, अब मैं तुम्हें मारकर ऋण चुकाऊँगी।' इतना कहकर उसने मूलक पर पाँच बाण चलाए। मूलक ने भी बाण चलाना शुरू किया।

माता सीता की शक्ति और क्रोध
माता सीता की शक्ति और क्रोध 

अन्त में चंडिकास्त्र चलाकर छाया ने मूलकासुर का सिर उड़ा दिया। सिर उड़ता हुआ लंका के दरवाजे पर जा गिरा। राक्षस हाहाकार करते हुए भाग खड़े हुए। छाया लौटकर सीता के बदन में प्रवेश कर गयी। 

तत्पश्चात् विभीषण ने प्रभु को पूरी लंका दिखायी, क्योंकि पिता वचन के कारण पहली बार वे लंका में न आ सके थे। सीताजी ने उन्हें अपना वासस्थल अशोक वन दिखाया। 

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कुछ देर तक वे प्रभु का हाथ पकड़कर उस वाटिका में घूमीं भी। फिर कुछ दिनों तक लंका में रहकर वे सीता तथा लव-कुशादि के साथ पुष्पक यान से अयोध्या लौट आये।

प्यारे दोस्तों! कैसी लगी आपको कहानी। आशा करते हैं कि आपको पसंद आई होगी। विश्वज्ञान ऐसी ही रोचक कहानियां और जानकारियां आपको मिलती रहेंगी। इसी के साथ विदा लेते हैं और अगली कहानी के साथ फिर प्रस्तुत होंगे। तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें। हंसते रहें,मुस्कराते रहें और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहें। 

धन्यवाद 

जय श्रीराम 


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