पराई स्त्री की कामना मृत्यु का कारण होती है

हर हर महादेव! प्रिय पाठकों,कैसे है आप लोग,

हम आशा करते हैं कि आप सकुशल होंगें। 

 पराई स्त्री की कामना मृत्यु का कारण होती है

पराई स्त्री की कामना मृत्यु का कारण होती है
पराई स्त्री की कामना मृत्यु का कारण होती है

द्रौपदी के साथ पाण्डव बनवास के अन्तिम वर्ष अज्ञातवास के समय में वेश तथा नाम बदलकर राजा विराट के यहाँ रहते थे। उस समय द्रौपदी ने अपना नाम सैरन्ध्री रख लिया था और राजा विराट की रानी सुदेष्णा की दासी बनकर वे अपना समय व्यतीत कर रही थीं।

राजा विराट का प्रधान सेनापति कीचक रानी सुदेष्णा का भाई था। एक तो वह राजा का साला था, दूसरे सेना उसके अधिकार में थी, तीसरे वह स्वयं प्रख्यात बलवान था और उसके समान ही बलवान उस के एक सौ पाँच भाई उनका अनुसरण करते थे। 

इन सब कारणों से कीचक निडर तथा अहंकारी हो गया था। वह सदा मनमानी करता था। राजा विराट का भी उसे कोई भय या संकोच नहीं था। उल्टे राजा ही उससे दबे रहते थे और उसके अनुचित व्यवहारों पर भी कुछ कहने का साहस नहीं करते थे।

दुरात्मा कीचक अपनी बहिन रानी सुदेष्णा के भवन में एक बार किसी कार्यवश गया। वहाँ अपूर्व लावण्यवती दासी सैरन्ध्री को देखकर उस पर आसक्त हो गया। कीचक ने नाना प्रकार के प्रलोभन सैरन्ध्री को दिये। 

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सैरन्ध्री ने उसे समझाया- 'मैं पतिव्रता हूँ। अपने पति के अतिरिक्त किसी पुरुष की कभी कामना नहीं करती। तुम अपना पाप-पूर्ण विचार त्याग दो।' लेकिन कामातुर कीचक ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। उसने अपनी बहिन सुदेष्णा को भी तैयार कर लिया कि वे सैरन्ध्री को उसके भवन में भेजेंगी। 

रानी सुदेष्णा ने सैरन्ध्री के अस्वीकार करने पर भी अधिकार प्रकट करते हुए डाँटकर उसे कीचक के भवन में जाकर वहाँ से अपने लिए कुछ सामग्री लाने को भेजा। सैरन्ध्री जब कीचक के भवन में पहुँची, तब वह दुष्ट उसके साथ बल प्रयोग करने पर उतारू हो गया। 

पराई स्त्री की कामना मृत्यु का कारण होती है
पराई स्त्री की कामना मृत्यु का कारण होती है

उसे धक्का देकर वह भागी और राजसभा में पहुँची। परन्तु कीचक ने वहाँ पहुँचकर राजा विराट के सामने ही केश पकड़‌कर उसे भूमि पर पटक दिया और पैर की एक ठोकर लगा दी। राजा विराट कुछ भी बोलने का साहस नहीं कर सके।

सैरन्ध्री बनी द्रौपदी ने देख लिया कि इस दुरात्मा से विराट उनकी रक्षा नहीं कर सकते। कीचक और भी धृष्ट हो गया। अन्त में व्याकुल होकर रात्रि में द्रौपदी भीमसेन के पास गई और रोकर उन्होंने भीमसेन से अपनी व्यथा कही। 

भीमसेन ने उन्हें आश्वासन दिया। दूसरे दिन सैरन्ध्री ने भीमसेन की सलाह के अनुसार कीचक से प्रसत्रतापूर्वक बातें कीं और रात्रि में उसे नाट्यशाला में आने को कह दिया।

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राजा विराट की नाट्यशाला अन्तःपुर की कन्याओं के नृत्य एवं संगीत सीखने के काम आती थी। वहाँ दिन में कन्याएँ गान-विद्या का अभ्यास करती थीं, किन्तु रात्रि में वह सूनी रहती थी। 

कन्याओं के विश्राम के लिए उसमें एक पलंग पड़ा था। रात्रि का अन्धकार हो जाने पर भीमसेन चुपचाप आकर नाट्यशाला के उस पलंग पर लेट गए। कामान्ध कीचक सज-धज कर वहाँ आया और अन्धेरे में पलंग पर बैठकर, भीमसेन को सैरेन्ध्री समझकर उनके ऊपर उसने हाथ रक्खा। 

पराई स्त्री की कामना मृत्यु का कारण होती है
पराई स्त्री की कामना मृत्यु का कारण होती है

उछलकर भीमसेन ने उसे नीचे पटक दिया और वे उस दुरात्मा की छाती पर चढ़ बैठे। कीचक बहुत बलवान था। भीमसेन से वह भिड़ गया। दोनों में मल्लयुद्ध होने लगा, किन्तु भीम ने उसे शीघ्र पछाड़ दिया।

उसने उसका गला घोंटकर उसे मार डाला और फिर उसका मस्तक तथा हाथ-पैर इतने जोर से दबा दिये कि सब धड़ के भीतर घुस गये। कीचक का शरीर एक डरावना लोथड़ा बन गया।

प्रातःकाल सैरन्ध्री ने ही लोगों को दिखाया कि उसका अपमान करने वाला कीचक किस दुर्दशा को प्राप्त हुआ। परन्तु कीचक के एक सौ पाँच भाइयों ने सैरन्ध्री को पकड़कर बाँध लिया। 

वे उसे कीचक के शव के साथ चिता में जला देने के उद्देश्य से श्मशान ले चले। सैरन्ध्री विलाप करती जा रही थी। उसका विलाप सुनकर भीमसेन  नगर का परकोटा कूदकर श्मशान पहुँचे। 

उन्होंने एक वृक्ष उखाड़ कर कन्धे पर उठा लिया और उसी से कीचक के सभी भाइयों को यमलोक भेज दिया। और सैरन्ध्री को बंधन से मुक्त कर दिया। 

अपनी कामासक्ति के कारण दुरात्मा कीचक मारा गया और पापी भाई का पक्ष लेने के कारण उसके एक सौ पाँच भाई भी बुरी मौत मारे गये।

इसीलिए कहते हैं दोस्तों! कामशक्ति ठीक नहीं। इससे जितना दूर रहें उतना अच्छा है। आशा करते हैं कि आपकों कहानी पसंद आई होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं, अगली कहानी के साथ विश्व ज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी, तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें, हंसते रहें ,मुस्कराते रहें और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहें। 

धन्यवाद 

जय श्री राम 

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