सुदर्शन पर जगदम्बा की कृपा

जय श्री राम 

सुदर्शन पर जगदम्बा की कृपा

सुदर्शन पर जगदम्बा की कृपा
सुदर्शन पर जगदम्बा की कृपा


अयोध्या में भगवान् राम से 15वीं पीढ़ी बाद ध्रुवसंधि नाम के राजा हुए। उनके दो स्त्रियाँ थीं। बड़ी रानी थी कलिंगराज वीरसेन की पुत्री मनोरमा और छोटी रानी थी उज्जयिनी नरेश युधाजित की पुत्री लीलावती। 

बड़ी रानी मनोरमा के पुत्र हुए सुदर्शन और छोटी रानी लीलावती के शत्रुजित। महाराज की दोनों पर ही समान दृष्टि थी। दोनों राजपुत्रों का समान रूप से लालन-पालन होने लगा।

इधर महाराज को शिकार का शौक कुछ अधिक था। एक दिन वे शिकार में एक सिंह के साथ भिड़ गये, जिसमें सिंह के साथ वह स्वयं भी स्वर्ग को प्राप्त  हो गये। मन्त्रियों ने उनकी पारलौकिक क्रिया करके सुदर्शन को राजा बनाना चाहा। 

इधर शत्रुजित के नाना युधाजित को इस बात की खबर लगी तो वे एक बड़ी सेना लेकर इसका विरोध करने के लिये अयोध्या में आ डटे। इधर कलिंग नरेश वीरसेन भी सुदर्शन के पक्ष में आ गये। दोनों में युद्ध छिड़ गया। 

कलिंगाधिपति मारे गये। अब रानी मनोरमा डर गयी। वह सुदर्शन को लेकर एक धाय (दूध पिलाने वाली दाई) तथा महामन्त्री विदल्ल के साथ भागकर महर्षि भारद्वाज के आश्रम में प्रयाग पहुँच गयी। युधाजित ने अयोध्या के सिंहासन पर शत्रुजित को अभिषिक्त किया और सुदर्शन को मारने के लिये वे भरद्वाज के आश्रम पर पहुँचे। पर मुनि के भय से, उन्हें वहां से भागना पड़ा।

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एक दिन भरद्वाज के शिष्यगण महामन्त्री के सम्बन्ध में कुछ बातें कर रहे थे। कुछ ने कहा कि विदल्ल क्लीब (नपुंसक) है। दूसरों ने भी कहा- 'यह सर्वथा क्ली है।' सुदर्शन अभी बालक ही था। उसने बार-बार जो उनके मुँह से 'क्ली-क्ली' सुना तो स्वयं भी 'क्ली-क्ली' करने लगा।

पूर्व पुण्य के कारण वह कालीबीज के रूप में अभ्यास में परिणत हो गया। अब वह सोते, जागते, खाते, पीते, 'क्ली क्ली' रटने लगा। इधर महर्षि ने उसके क्षत्रियोचित संस्कारादि भी कर दिये और थोड़े ही दिनों में वह भगवती तथा ऋषि की कृपा से शस्त्र अस्त्रादि सभी विद्याओं में अत्यन्त निपुण हो गया। 

एक दिन वन में खेलने के समय उसे देवी की दया से अक्षत तुणीर (तीर) तथा दिव्य धनुष भी पड़ा मिल गया। अब सुदर्शन भगवती जगदम्बा  की कृपा से पूर्ण शक्ति सम्पन्न हो गया।

इधर काशी में उस समय राजा सुबाहु राज्य करते थे। उनकी कन्या शशिकला बड़ी विदुषीं तथा देवी भक्त थी। भगवती ने उसे स्वप्न में आज्ञा दी कि 'तू सुदर्शन को अपने पतिरूप में वरण कर ले। वह तेरी समस्त कामनाओं को पूर्ण करेगा।' शशिकला ने मन में उसी समय सुदर्शन को पति के रूप में स्वीकार कर लिया।

प्रातःकाल उसने अपना सपना माता-पिता को सुनाया। पिता ने लड़की को जोरों से डाँटा और एक असहाय वनवासी के साथ सम्बन्ध जोड़ने में अपना अपमान समझा। उन्होंने अपनी कन्या के स्वयंवर की तैयारी आरम्भ की। 

उन्होंने उस में सुदर्शन को आमन्त्रित भी नहीं किया। पर शशिकला भी अपने मार्ग पर दृढ़ थी। उसने सुदर्शन को एक ब्राह्मण द्वारा देवी का सन्देश भेज दिया। सभी राजाओं के साथ वह भी काशी आ गया।

इधर शत्रुजित को साथ लेकर उसके नाना अवन्ति नरेश युधाजित भी आ धमके थे। प्रयास करते रहने पर भी शशिकला द्वारा सुदर्शन के मन-ही- भन वरण किये जाने की बात सर्वत्र फैल गयी थी। 

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इसे भला युधाजित कैसे सहन कर सकते थे। उन्होंने सुबाहु को बुलाकर पूछा कि - ये बात कैसे फैली। सुबाहु ने कहा - इसमें मेरी कोई गलती नही। फिर भी युधाजित ने कहा- 'मैं सुबाहु सुदर्शन को मारकर बलपूर्वक कन्या का अपहरण करूँगा।' 

राजाओं को बालक सुदर्शन पर कुछ दया आ गयी। उन्होंने सुदर्शन को बुलाकर सारी स्थिति समझायी और भाग जाने की सलाह दी।

सुदर्शन ने कहा- 'मैं जानता हूँ कि- न मेरा कोई सहायक है और न मेरी कोई सेना ही है, फिर भी मैं भगवती के स्वप्नगत आदेशानुसार ही यहाँ स्वयंवर देखने आया हूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है, वे मेरी रक्षा करेंगी। मेरी न तो किसी से शत्रुता है और न में किसी का बुरा ही चाहता हूँ।'

अब प्रातः काल स्वयंवर में राजा लोग सज-धजकर आ बैठे तो सुबाहु ने शशिकला से स्वयंवर में जाने के लिये कहा। पर उसने राजाओं के सामने होना अस्वीकार दिया। 

सुबाहु ने राजाओं के अपमान तथा उनके द्वारा उपस्थित होने वाले भय की बात कही। तो शशिकला बोली-'यदि तुम सर्वथा कायर ही हो तो तुम मुझे सुदर्शन के हवाले करके नगर से बाहर छोड़ आओ।'

कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था, इसलिये सुबाहु ने राजाओं से कह दिया 'आप लोग कल स्वयंवर में आयेंगे, आज शशिकला नहीं आयेगी।' इधर रात में ही उसने संक्षिप्त विधि से गुप्तरीत्या सुदर्शन से शशिकला का विवाह करा दिया और सबेरा होते ही पहुँचाने लगा।

युधाजित को भी ये बात किसी प्रकार मालूम हो गयी। वह रास्ते में अपनी सेना लेकर सुदर्शन को मार डालने के विचार से खड़ा था। सुदर्शन भी भगवती का स्मरण करता हुआ वहाँ पहुँचा। 

कहानी धन्य कौन

दोनों में युद्ध छिड़ने वाला ही था कि भगवती जगदम्बा साक्षात् प्रकट हो गर्यो। युधाजित की सेना भाग चली। युधाजित अपने नाती शत्रुजित के साथ मारा गया। पराम्बा, जगदम्बा ने सुदर्शन को वर माँगने के लिये प्रेरित किया। 

सुदर्शन पर जगदम्बा की कृपा
सुदर्शन पर जगदम्बा की कृपा


सुदर्शन में केवल देवी के चरणों में अबिरल,निश्चल अनुराग की याचना की। साथ ही काशीपुरी की रक्षा की भी प्रार्थना की। सुदर्शन के वरदानस्वरूप ही दुर्गाकुण्ड में स्थित हुई माँ पराम्बा दुर्गा वाराणसीपुरी की आजतक रक्षा कर रही हैं।

तो प्रिय पाठकों कैसी लगी आपको कहानी, आशा करते हैं कि अच्छी लगी होगी।इसी के साथ विदा लेते हैं, अगली कहानी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी। तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहें,मुस्कराते रहें और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहें। 

धन्यवाद 

जय श्री राम 

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