क्रोध मत करो, कोई किसी को नहीं मारता

ध्रुव ने पितामह को प्रणाम किया और उनकी आज्ञा स्वीकार करके अस्त्र चलाना बंद कर दिया। ध्रुव का क्रोध शान्त हो गया है, यह जानकर धनाधीश कुबेर जी स्वयं वहाँ प्रकट हो गये और बोले- 'ध्रुव ! चिन्ता मत करो। न तुमने यक्षों को मारा है और न यक्षों ने तुम्हारे भाई को मारा है। कोई किसी को नही मारता। 

प्राणी की मृत्यु तो उसके पूर्व जन्मों के कर्म अथवा भाग्य के अनुसार काल की प्रेरणा से ही होती है। मृत्यु का निमित्त दूसरे को मानकर लोग अज्ञानवश दुखी तथा परेशान होते हैं........

जय श्री राम प्रिय पाठकों! कैसे है आप लोग
आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे। 

प्रिय पाठकों! आज की इस कहानी से हम जानेंगे की कोई भी व्यक्ति किसी की मृत्यु का कारण नही होता। प्राणी की मृत्यु तो उसके पूर्व जन्मों के कर्म अथवा भाग्य के अनुसार होती है। इसलिए किसी पर भी क्रोध करना ठीक नहीं,कोई किसी को नही मारता। 

क्रोध मत करो, कोई किसी को नहीं मारता।

महाराज उत्तानपाद के सन्यासी होकर वन में तपस्या करने के लिये चले जाने पर ध्रुव सम्राट हुए। उनके सौतेले भाई उत्तम वन में शिकार करने गये थे, भूल से वे यक्षों के प्रदेश( मायावी नगरी )में चले गये। वहाँ किसी यक्ष ने उन्हें मार डाला। 

क्रोध मत करो, कोई किसी को नहीं मारता
क्रोध मत करो, कोई किसी को नहीं मारता 

पुत्र की मृत्यु का समाचार पाकर उत्तम की माता सुरुचि ने प्राण त्याग दिये। भाई के वध का समाचार पाकर ध्रुव को बड़ा क्रोध आया। उन्होंने यक्षों की अलकापुरी पर चढ़ाई कर दी।

अलकापुरी के बाहर ध्रुव का रथ पहुँचा और उन्होंने शंखनाद किया। बलवान यक्ष इस चुनौती को कैसे सहन कर लेते। वे सहस्रों की संख्या में एक साथ निकले और ध्रुव पर टूट पड़े। भयंकर संग्राम प्रारंभ हो गया। 

कामवश बिना विचारे प्रतिज्ञा करने से विपत्ति,एकादशी की महिमा 

ध्रुव के हाथ की फुर्ती और होशियारी का वह अद्भुत दृश्य था। सैकड़ों यक्ष उनके बाणों से कट रहे थे। एक बार तो यक्षों का दल भाग ही खड़ा हुआ युद्धभूमि से। मैदान खाली हो गया। परन्तु ध्रुव जानते थे कि यक्ष मायावी हैं, उनकी नगरी में जाना उचित नहीं है। 

ध्रुव का अनुमान ठीक निकला। यक्षों ने माया प्रकट की। चारों ओर मानों अग्नि प्रज्वलित हो गयी। प्रलय का समुद्र दिशाओं को डुबाता उमड़ता आता दिखाई देने लगा, सौ-सौ पर्वत आकाश से खुद गिरने लगे और उन पर्वतों से अपार अस्त्र-शस्त्र, नाना प्रकार के जीव-जन्तु भी मुख फाड़े दौड़ने लगे।

क्रोध मत करो, कोई किसी को नहीं मारता
क्रोध मत करो, कोई किसी को नहीं मारता 

परन्तु ध्रुव को इसका कोई भय नहीं था। मृत्यु उनका स्पर्श नहीं कर सकती थी, क्योंकि वे अजेय थे। उन्होंने नारायणास्त्र का सन्धान किया। यक्षों की माया दिव्यास्त्र के तेज से ही ध्वस्त हो गयी। उस दिव्यास्त्र में लाखों दिव्यास्त्र प्रकट हो गये और वे यक्षों को घास के समान काटने लगे।

सुदर्शन पर जगदम्बा की कृपा

यक्ष उपदेवता(छोटे देवता)हैं, मनुष्य न होने के कारण अत्यधिक बलशाली हैं, मायावी हैं, किन्तु उन्हें आज ऐसे मानव से संग्राम करना जो नारायण का कृपा पात्र था, मृत्यु से परे था। बेचारे यक्ष उसकी क्रोधाग्नि में पतंगों के समान भस्म हो रहे थे। परन्तु यह संहार उचित नहीं था। 

प्रजाधीश मनु आकाश में प्रकट हो गये। उन्होंने पौत्र ध्रुव को सम्बोधित किया- 'ध्रुव ! अपने अस्त्र को रोको। तुम्हारे लिए यह क्रोध करना ठीक नहीं है। तुमने तो भगवान् नारायण (विष्णु जी) की आराधना की है। वे सर्वेश्वर तो प्राणियों पर कृपा करने से प्रसन्न होते हैं। 

शरीर के मोह के कारण परस्पर शत्रुता तो पशु करते हैं। बेटा ! देखो तो तुमने कितने निरपराध यक्षों को मारा है। भगवान् शंकर के प्रियजन यक्षराज कुबेर से शत्रुता मत करो। उन लोकेश्वर का क्रोध मेरे कुल पर हो, उससे पूर्व ही उन्हें प्रसन्न करो।'

ध्रुव ने पितामह को प्रणाम किया और उनकी आज्ञा स्वीकार करके अस्त्र चलाना बंद कर दिया। ध्रुव का क्रोध शान्त हो गया है, यह जानकर धनाधीश कुबेर जी स्वयं वहाँ प्रकट हो गये और बोले- 'ध्रुव ! चिन्ता मत करो। न तुमने यक्षों को मारा है और न यक्षों ने तुम्हारे भाई को मारा है। कोई किसी को नही मारता। 

प्राणी की मृत्यु तो उसके पूर्व जन्मों के कर्म अथवा भाग्य के अनुसार काल की प्रेरणा से ही होती है। मृत्यु का निमित्त दूसरे को मानकर लोग अज्ञानवश दुखी तथा परेशान होते हैं। तुम श्रेष्ठ, सदाचारी हो, तुमने भगवान् को प्रसन्न किया है, अतः मैं भी तुम्हें वरदान देना चाहता हूँ। तुम जो चाहो, माँग लो।'

अकाल मृत्यु क्या होती है?अकाल मृत्यु किसे कहते है ?अकाल मृत्यु के बाद आत्मा कहाँ जाती है ?अकाल मृत्यु के बाद क्या होता है ?

ध्रुव को माँगना क्या था! क्या दुर्लभ था उनके लिए ,जो वो कुबेर से माँगते ? लेकिन सच्चा हृदय प्रभु की भक्ति से कभी तृप्त नहीं होता। ध्रुव ने माँगा- 'आप मुझे आशीर्वाद दें कि श्री हरि के चरणों में मेरा अनुराग हो।' कुबेर जी ने 'एवमस्तु' कहकर सम्मानपूर्वक ध्रुव को विदा किया।

तो प्रिय पाठकों, कैसी लगी आपको कहानी। आशा करते हैं कि अच्छी-लगी होगी ।इसी के साथ विदा लेते हैं। अगली पोस्ट के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी। तब तक के लिय आप अपना ख्याल रखें, हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए। 

धन्यवाद 

जय श्री राम 

Faqs 

क्रोध कब अच्छा होता है?

क्रोध तब अच्छा होता है जब इसका उपयोग अन्याय के खिलाफ खड़े होने और अपने या दूसरों के अधिकारों की रक्षा के लिए किया जाए। सही दिशा में नियंत्रित क्रोध आत्म-संरक्षण और समाज की भलाई के लिए लाभकारी हो सकता है। यह प्रेरणा का स्रोत बन सकता है और सकारात्मक बदलाव ला सकता है।

क्रोध किसका बना होता है?

क्रोध कई भावनाओं और स्थितियों का मिश्रण होता है, जैसे निराशा, चोट, अपमान, या अन्याय की भावना। यह मानसिक और शारीरिक प्रतिक्रियाओं से बना होता है, जिसमें तंत्रिका तंत्र की उत्तेजना, एड्रेनालिन का बढ़ना, और मानसिक तनाव शामिल हैं।

क्रोध के देवता कौन है?

हिंदू धर्म में, क्रोध के देवता रूद्र या शिव माने जाते हैं, जो अपने तांडव नृत्य और विनाशक रूप के लिए प्रसिद्ध हैं। रूद्र को क्रोध और विनाश का प्रतीक माना जाता है।

क्रोध के पांच चेहरे कौन से हैं?

क्रोध के पांच चेहरे निम्नलिखित हैं:

शाब्दिक क्रोध - जब व्यक्ति अपनी वाणी से गुस्से का इजहार करता है।

शारीरिक क्रोध - जब व्यक्ति अपनी शारीरिक क्रियाओं से गुस्से का इजहार करता है।

अंतर्मुखी क्रोध - जब व्यक्ति भीतर ही भीतर गुस्सा महसूस करता है लेकिन व्यक्त नहीं करता।

प्रतिशोधात्मक क्रोध - जब व्यक्ति बदला लेने के उद्देश्य से गुस्से का इजहार करता है।

ध्यानाकर्षण क्रोध - जब व्यक्ति दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए गुस्सा दिखाता है।

क्रोध क्या छुपाता है?

क्रोध अक्सर किसी अन्य गहरी भावना को छुपाता है, जैसे दुख, भय, निराशा, या असुरक्षा। यह एक रक्षा तंत्र के रूप में कार्य करता है जिससे व्यक्ति अपनी कमजोरियों और संवेदनशीलताओं को छुपाने की कोशिश करता है।

क्रोध का नॉर्स देवता कौन है?

नॉर्स पौराणिक कथाओं में, क्रोध का देवता थोर है, जो बिजली और गड़गड़ाहट के देवता हैं। थोर को उनके महान बल और उग्र स्वभाव के लिए जाना जाता है।

क्रोध की उत्पत्ति कैसे हुई?

क्रोध की उत्पत्ति मानव विकास के दौरान आत्म-संरक्षण के एक रूप के रूप में हुई। यह एक जीवित रहने की प्रतिक्रिया है जो खतरे या अन्याय के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करती है। यह एक बुनियादी भावनात्मक प्रतिक्रिया है जो सभी जीवित प्राणियों में पाई जाती है।

क्रोध के देवता में जेंडर कौन है?

अधिकांश पौराणिक कथाओं में, क्रोध के देवता पुरुष होते हैं, जैसे हिंदू धर्म में रूद्र और नॉर्स पौराणिक कथाओं में थोर। हालांकि, कुछ संस्कृति में महिला देवता भी हो सकती हैं जो क्रोध और प्रतिशोध का प्रतिनिधित्व करती हैं, जैसे ग्रीक पौराणिक कथाओं में एरिस।

क्रोध को जन्म कौन देता है?

क्रोध को जन्म देने वाले कारक विभिन्न हो सकते हैं, जैसे असंतोष, अपमान, चोट, अन्याय, या भय। यह एक स्वाभाविक मानव प्रतिक्रिया है जो मानसिक और शारीरिक उत्तेजना के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है।

क्रोध के देवता में युगल कौन है?

हिंदू पौराणिक कथाओं में, रूद्र या शिव के साथ उनकी अर्धांगिनी पार्वती हैं। शिव और पार्वती की जोड़ी को सृजन और विनाश के संतुलन के रूप में देखा जाता है।

क्रोध के बारे में कहानी क्या है?

महाभारत में क्रोध की कहानी दुर्योधन और द्रौपदी के बीच के अपमान और प्रतिशोध के रूप में दिखती है। द्रौपदी का अपमान द्रौपदी के क्रोध का कारण बना, जिसने महाभारत युद्ध का मार्ग प्रशस्त किया।

क्रोध का दूसरा नाम क्या है?

क्रोध का दूसरा नाम "अंगर" है, जो संस्कृत में भी गुस्से या क्रोध को दर्शाता है।

मनुष्य को क्रोध क्यों आता है?

मनुष्य को क्रोध तब आता है जब वे अपने या दूसरों के प्रति अन्याय, अपमान, या हानि महसूस करते हैं। यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है जो किसी अप्रिय या उत्तेजक स्थिति के प्रति उत्पन्न होती है।

क्रोध मनुष्य को क्या करता है?

क्रोध मनुष्य को शारीरिक और मानसिक रूप से उत्तेजित करता है, जिससे उनके हृदय की गति बढ़ जाती है, रक्तचाप उच्च हो जाता है, और तनाव हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है। यह अक्सर व्यक्ति को तात्कालिक और आक्रामक कार्रवाई के लिए प्रेरित करता है।

क्रोध व्यक्ति को क्या करता है?

क्रोध व्यक्ति को आत्म-नियंत्रण खोने, तर्कहीन रूप से व्यवहार करने और दूसरों के साथ संघर्ष में पड़ने की ओर ले जाता है। यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

गीता के अनुसार क्रोध क्या है?

भगवद गीता के अनुसार, क्रोध कामना और इच्छा के अप्राप्ति का परिणाम है। क्रोध मनुष्य की बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है और आत्म-संयम को नष्ट कर देता है, जिससे व्यक्ति अपने कर्तव्यों से भटक जाता है।

क्रोध किसका जनक है?

गीता के अनुसार, क्रोध भ्रम का जनक है, जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाता है। यह मनुष्य को अधर्म और पतन की ओर ले जाता है।


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