यज्ञ में पशु बलि होनी चाहिये या नहीं ?

जय श्री राम 


यज्ञ में पशु बलि का समर्थन करना सही या गलत 

यज्ञ में पशु बलि का समर्थन, असत्य का समर्थन है
यज्ञ में पशु बलि होनी चाहिये या नहीं ?


सृष्टि के प्रारम्भ में सत्ययुग का समय था। उस समय देवताओं के महर्षियों से कहा-' श्रुति कहती है कि यज्ञ में अजबलि होनी चाहिये। अज बकरे का नाम है, फिर आप लोग उसका बलिदान क्यों नहीं करते?"

महर्षियों ने कहा- 'देवताओं को मनुष्यों की इस प्रकार परीक्षा नहीं लेनी चाहिये और न उनकी बुद्धि को भ्रम में डालना चाहिए। बीज का नाम ही अज है। बीज के द्वारा अर्थात् अत्रों से ही यज्ञ करने का वेद निर्देश करता है। यज्ञ में पशु वध, पशु बलि देना सज्जनों का धर्म नहीं है।'

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परन्तु देवताओं ने ऋषियों की बात स्वीकार नहीं की। दोनों पक्षों में इस प्रश्न पर विवाद प्रारम्भ हो गया। उसी समय राजा उपरिचर आकाश मार्ग से सेना के साथ उधर से निकले। 

भगवान् नारायण की आराधना करके राजा उपरिचर ने यह शीक्त प्राप्त की थी कि वे अपने रथ तथा सैनिकों, मन्त्रियों आदि के साथ इच्छानुसार आकाश मार्ग से सभी लोकों में जा सकते थे। 

उन प्रतापी नरेश को देखकर देवताओं तथा ऋषियों ने उन्हें मध्यस्थ(बिचौलिया) बनाना चाहा। उनके समीप जाकर ऋषियों ने पूछा- 'यज्ञ में पशु बलि होनी चाहिये या नहीं ?

राजा उपरिचर ने पहले यह जानना चाहा कि देवताओं और ऋषियों में से किसका क्या पक्ष है। दोनों पक्षों के विचार जानकर राजा ने सोचा-देवताओं की प्रसन्नता प्राप्त करने का यह अवसर मुझे नहीं छोड़ना चाहिए।' उन्होंने निर्णय दे दिया कि 'यज्ञ में पशु बलि होनी चाहिये।'

उपरिचर का निर्णय सुनकर महर्षियों ने क्रोधपूर्वक कहा-'तूने सत्य का निर्णय न करके पक्षपात किया है, झूठ का साथ दिया है, अतः हम शाप देते हैं कि अब तू देवलोक में नहीं जा सकेगा। पृथ्वी के ऊपर भी तेरे लिये स्थान नहीं होगा। तू पृथ्वी में धँस जायेगा।'

उपरिचर उसी समय आकाश से गिरने लगे। अब देवताओं को उन पर दया आयी। उन्होंने कहा- 'महाराज! महर्षियों के वचन मिथ्या करने की शक्ति हम में नहीं है। 

हम लोग तो श्रुतियों का तात्पर्य जानने के लिए हठ किये हुए थे। पक्ष तो महर्षियों का हो सत्य है, किन्तु हम लोगों से प्रेम होने के कारण आपने हमारा पक्ष लिया, इससे हम वरदान देते हैं कि जब तक आप भू-गर्भ में रहेंगे, तब तक यज्ञ में ब्राह्मणों द्वारा जो घी की धारा (बसुधारा) डाली जायेगी, वह आपको प्राप्त होगी। आपको भूख-प्यास का कष्ट नहीं होगा।'

इन यज्ञों से क्या लाभ,भगवद्गीता की अद्भुत महिमा 

इन यज्ञों से क्या लाभ,
यज्ञ में पशु बलि होनी चाहिये या नहीं ?

नर्मदा के तट पर महिष्मती नाम की एक नगरी है। वहाँ माधव नाम के एक ब्राह्मण रहते थे। उन्होंने अपनी विद्या के प्रभाव से बड़ा धन कमाया और एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में बलि देने के लिये एक बकरा मँगाया गया। 

जब उसके शरीर की पूजा हो गयी, तब बकरे ने हँसकर कहा-'ब्राह्मन ! इन यज्ञों से क्या लाभ है। इनका फल विनाशी तथा जन्म- मरणप्रद ही है। मैं भी पूर्व जन्म में एक ब्राह्मण था। मैंने समस्त यज्ञों का अनुष्ठान किया था और वेद विद्या में बड़ा प्रवीण था। 

एक दिन मेरी स्त्री ने बाल-रोग की शान्ति के लिए एक बकरे की मुझसे बलि दिलायी। जब चण्डिका के मन्दिर में वह बकरा मारा जाने लगा, तब उसकी माता ने मुझे शाप दिया - 'ओ पापी ! तू मेरे बच्चे का वध करना चाहता है, अतएव तू भी बकरे की योनि में जन्म लेगा।' 

हे ब्रह्मणो ! उसके बाद मैं मरकर बकरा हुआ। अतएव इन सभी वैधानिक क्रियाजल से भगवद आराधना आदि शुद्ध कर्म ही अधिक दिव्य हैं। 

अध्यात्म मार्ग परायण होकर हिंसा रहित पूजा, पाठ एवं गीतादि  का पाठ नियमित रूप से करना ही संसार -चक्र से छूटने की एकमात्र औषधी है। इस सम्बन्ध में मैं आपको एक और आदर्श की बात बताता हूँ।

पूजा करते समय शरीर क्यो हिलता है 

एक बार सूर्य ग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र के राजा चन्द्र शर्मा ने बड़ी श्रद्धा के साथ कालपुरुष का दान करने की तैयारी की। उन्होंने वेद-वेदांगों के पारगामी एक विद्वान ब्राह्मण को बुलवाया और पुरोहित सहित स्नान करने के लिय चले गए। स्नान करने के बाद उन्होंने उस ब्राह्मण को कालपुरुष का दान किया।

तब कालपुरुष का हृदय चीरकर उसमें से एक पापात्मा चाण्डाल और निन्दात्मा एक चाण्डाली निकली। चाण्डालों की वह जोड़ी आँखें लाल किये ब्राह्मण के शरीर में हठात् प्रवेश करने लगी। तब ब्राह्मण ने मन-ही-मन गीता के नवम् अध्याय का जप आरम्भ किया। 

राजा यह सब कौतुक चुपचाप देख रहा था। गीता के अक्षरों से समुद्भूत विष्णु दूतों ने चाण्डाल जोड़ी को ब्राह्मण के शरीर में प्रवेश करते देख वे झट दौड़े और उनका उद्योग निष्फल कर दिया। 

इस घटना को देख राजा चकित हो गया और उस ब्राह्मण से इसका रहस्य पूछा। तब ब्राह्मण ने सारी बात बतलायी। अब राजा उस ब्राह्मण का शिष्य हो गया और उनसे गीता का पाठ सीखना शुरु कर दिया। 

इस कथा को बकरे के मुँह से सुनकर ब्राह्मण बड़ा प्रभावित हुआ और उसने बकरे को मुक्त कर दिया। और खुद भी गीता का अध्ययन करना शुरू कर दिया ।

तो प्रिय पाठकों कैसी लगी आपको कहानी, आशा करते हैं कि अच्छी लगी होगी।इसी के साथ विदा लेते हैं, अगली कहानी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी। तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहें,मुस्कराते रहें और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहें। 

धन्यवाद 

जय श्री राम 

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