क्यों नहीं है इस स्थान पर कलयुग का असर

ब्रह्माजी ने यह भी कहा- कि वह स्थान कलयुग के प्रभाव से मुक्त रहेगा। कहा जाता है, कि इसी स्थान पर चक्र का नेमि गिरा था, जिस वजह से इसका नाम नैमिषारण्य पड़ा, और यह जगह चक्रतीर्थ के नाम से जानी गई। 

जय श्रीराम प्रिय पाठकों 

कैसे है आप लोग 

आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे 

दोस्तो! आज की इस पोस्ट मे हम जानेंगे की वो ऐसी कौन सी जगह है जहां अभी तक कलयुग की शुरुआत नहीं हुई। यह जगह अभी भी कलयुग के प्रभाव से बची हुई है। तो चलिए बिना देरी किये पढ़ते हैं आज की ये पोस्ट। 

क्यों नहीं है इस स्थान पर कलयुग का असर 

क्यों नहीं है इस स्थान पर कलयुग का असर
क्यों नहीं है इस स्थान पर कलयुग का असर 

वर्षों पहले की बात है मित्रों! जब कलयुग ने सभी जगह अपने पैर पसार रखे थे। जिससे उस समय के ऋषि मुनि बड़े परेशान थे। वे तपस्या,ध्यान आदि नहीं कर पा रहे थे और इसीलिए उन्हें एक ऐसे स्थान की जरूरत थी जहां वे आराम से अपनी तपस्या कर सकें। 

इसके लिय उन्होंने ब्रह्मा जी से अनुरोध किया और ब्रह्मा जी ने उन्हे एक ऐसा स्थान दिया जहाँ उन्होंने कलयुग के प्रभाव से बचने के लिए  तप किया था। 

इस स्थान पर सभी तीर्थों का वास है। इसलिए इस स्थान की यात्रा के बिना सभी तीर्थों को अधूरा माना जाता हैं। वर्तमान मे अभी कलयुग का दूसरा चरण चल रहा है। हर जगह आपको कलयुग का प्रभाव देखने को मिल रहा है,लेकिन अपनी इस तपोभूमि पर खासकर भारत में एक ऐसी जगह है, जहां अभी तक कलयुग का प्रभाव नहीं पड़ा। 

आज हम आपको जिस जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, उसका इतिहास बहुत ही विचित्र एवं प्राचीन है। इस तीर्थ स्थान के दर्शन के बिना, चार धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। यह स्थान तीर्थों का भी तीर्थ है। इसे भारत भूमि का महान तीर्थ का दर्जा दिया गया है।

पाताल भुवनेश्वर के अलावा नैमिषारण्य ही, एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां 33 करोड़ हिंदू देवी-देवताओं का वास माना जाता है। हिंदुओं के लिए नैमिषारण्य को सभी तीर्थस्थानों में सबसे पहला, और सबसे पवित्र होने का दर्जा मिला है। 

नैमिषारण्य का वर्णन वेद-पुराण से लेकर हर हिंदू धर्मग्रंथ में मिलता है। श्रीमद्भागवत महापुराण, महाभारत, वायु पुराण, वामन पुराण, पद्म पुराण, शिव पुराण, देवी भागवत पुराण, यजुर्वेद का मंत्र भाग श्वेताश्वर, उपनिषद्, प्रश्नोपनिषद, अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, कालिका तंत्र, कर्म पुराण, शक्ति यामल तंत्र, श्रीरामचरितमानस, यागिना तंत्र आदि ग्रंथों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है।

यही वह स्थान है, जहां महापुराणों की रचना हुई थी। महाभारत काल में युधिष्ठिर और अर्जुन भी यहां आए थे। इतना ही नहीं मित्रों! प्राचीन काल में 88 हजार ऋषि-मुनियों ने इसी स्थान पर कठोर तपस्या की थी। इसलिए इस स्थान को तपोभूमि कहा जाता है। 

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नैमिषारण्य स्थान के बारे मे आप वाल्मीकि रामायण के युद्ध काण्ड में भी पढ़ सकते हैं। जी हाँ दोस्तों! सही पहचाना आपने, हम बात कर रहे हैं, नैमिषारण्य की। यह उत्तर प्रदेश के सीतापुर गांव मे स्थित है, यह हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।यह लखनऊ से 80 किलोमीटर दूर गोमती नदी के तट पर स्थित है।

इस स्थान को नैमिषारण्य, नैमिष या नीमषार के नाम से भी जाना जाता है। जिसका अर्थ है- नैमिष यानी निमिष किंवा निमेष, तथा आरण्य यानी अरण्य, अर्थात वन क्षेत्र परमात्म तत्व का क्षेत्र ।

कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने खुद इस स्थान को, ध्यान योग के लिए सबसे उत्तम बताया था। इस स्थान के मुख्य आकर्षण करने वाले स्थानों की बात करें तो इनमें ॐ भूतेश्वरनाथ मंदिर,ललिता देवी का मंदिर,शेष मंदिर,चक्रतीर्थी, व्यास गद्दी, हवन कुंड, पंचप्रयाग, हनुमान गढ़ी, शिवाला-भैरव जी मंदिर, पंच पांडव मंदिर, पंचपुराण मंदिर, मां आनंदमयी आश्रम, नारदानन्द सरस्वती आश्रम-देवपुरी मंदिर, रामानुज कोट, रुद्रावर्त आदि शामिल हैं। 

नैमिषारण्य स्टेशन से लगभग एक मील दूर चक्रतीर्थ सरोवर है। यह एक बड़ा गोलाकार जलाशय है।घेरे के चारों ओर बाहर जल भरा रहता है, जिसमें श्रद्धालु स्नान करते हैं। जल में चलते हुए इस गोल चक्र की परिक्रमा भी करते हैं। जल के भरे हुए घेरे के बाहर चारों ओर सीढ़ियां बनी हुई हैं। 

यहां अनेक देवी-देवताओं के मंदिर हैं। मुख्य मंदिर भूतनाथ यानी के महादेव का है। चक्रतीर्थ के बारे में एक  कथा बड़ी प्रचलित है, कहते हैं कि एक अट्ठासी हजार ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मा जी से निवेदन किया, कि जगत कल्याण के लिए उन्हें तपस्या करनी है।कृप्या आप तपस्या के लिए दुनिया में सर्वश्रेष्ठ पवित्र, सौम्य और शांन्त भूमि के बारे में बताएं। 

यह घटना महाभारत के युद्ध के बाद की है। सभी ऋषि-मुनि कलयुग के प्रारंभ को लेकर भी चिंतित थे। ब्रह्मा जी ने अपने मन से एक चक्र उत्पन्न करके ऋषियों से कहा, कि आप सभी इस चक्र के पीछे चलते हुए जाएं। जिस भूमि पर इस चक्र का मध्य भाग यानी नेमि खुद गिर जाए, तो समझ लेना, कि वही  पृथ्वी का मध्य भाग है।

ब्रह्माजी ने यह भी कहा- कि वह स्थान कलयुग के प्रभाव से मुक्त रहेगा। कहा जाता है, कि इसी स्थान पर चक्र का नेमि गिरा था, जिस वजह से इसका नाम नैमिषारण्य पड़ा, और यह जगह चक्रतीर्थ के नाम से जानी गई। 

इसके अलावा यह भी कहा जाता है, कि नैमिषारण्य वो स्थान है, जहां पर ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिए, अपने दुश्मन देवराज इन्द्र को अपनी अस्थियां दान की थीं। ऐसी मान्यता है, कि इस परम पवित्र भूमि के दर्शन बिना सभी तीर्थ अधूरे रहते हैं।

84 कोस की परिक्रमा : दोस्तों! आपकी जानकारी के लिए बताये कि नैमिषारण्य की परिक्रमा भी की जाती है। यह 84 कोस की परिक्रमा है।परिक्रमा साल फाल्गुनमास की अमावस्या के बाद की, प्रतिपदा तिथी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलती है। यहां पंचप्रयाग नाम से एक पक्का सरोवर है. सरोवर के किनारे अक्षयवट नामक वृक्ष हैं।

कलयुग कौन है ,कहाँ से आया,क्या चाहता है।  

नैमिषारण्य में व्यास शुकदेव का मंदिर है। मंदिर के बाहर व्यासजी की गद्दी है। यहां दशाश्वमेध टीले पर एक मंदिर में श्रीकृष्ण, और पांचों पांडवों की मूर्तियां हैं। यहीं पर चारों धाम मंदिर भी हैं। 

महर्षि गोपाल दास जी के द्वारा स्थापित जगन्नाथ धाम, बद्रीनाथ धाम, द्वारिकाधीश धाम और रामेश्वरम धाम के मंदिर हैं। नैमिषारण्य को सत्य युग, या कृत युग से जाना जाता है, जो सबसे प्राचीन युग हैं। यह एक पवित्र स्थल है, जहां कई संतों ने अपने पापों का प्रायश्चित किया है। 

हिंदू पौराणिक कथाओं केअनुसार माना जाता है, कि चक्र तीर्थ का निर्माण ब्रह्मा के हृदय से निकले चक्र से हुआ था। इस झरने में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। 

व्यास गद्दी एक वैदिक विद्वान हैं। व्यास ने पुराणों की रचना की और वेदों को चार भागों में विभाजित किया, और अपना ज्ञान जैमिनी अंगिरा,पैल, शुक देव, वैशम्पायम और सुथ को दिया। व्यास ने वेदों की भी रचना की और उन्हें चार भागों में विभाजित किया।

श्री ललिता देवी मंदिर 

शिव की पत्नी सती ने आत्महत्या कर ली, जिसके बाद शिव उनके शरीर को मंदिर के मैदान में ले गए। यात्रा के दौरान उनका शरीर 108 टुकड़ों में विभाजित हो गया, जिसमें की देवी सती का हृदय नैमिषारण्य में गिरा, और  आज वह ललिता देवी के नाम से जाना जाता है।जो भारत के शक्तिपीठों में से एक है। 

भगवान वेंकटेश्वर मंदिर 

यह मंदिर भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है, और यह विशेष रूप से आंध्र प्रदेश से बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ यहां इकठ्ठा होती है। उन तीर्थयात्रियों को समायोजित करने के लिए, जो मंदिर के मैदान में रात भर रुकना चाहते हैं। उनके लिए मंदिर के मैदान के अंदर रहने का प्रबंध किया जाता है।

दधीचि कुंड

देवताओं के शासक इंद्र ने ऋषि दधीचि से विनती की, कि वे अपनी हड्डियां दे दें, ताकि वह राक्षस वृत्त असुर को मार सकें, और दुनिया को बचा सकें। उन्होंने स्वीकार किया, लेकिन केवल एक शर्त परः और वो ये कि,वह सभी क्षेत्र की सभी पवित्र नदियों और स्थलों का दौरा करने के बाद ही ऐसा करेंगे। 

देवता हड़बड़ी में थे और उन्होंने दधीचि की शर्त को पूरा करने के लिए, इस स्थान पर सभी स्थानों को एक साथ इकट्ठा किया, जिसके बाद दधीचि जी ने अपनी हड्डियों को त्याग दिया। जिनका उपयोग वज्र बनाने के लिए किया गया था।

उस वज्र से वृत्तासुर, और उसके अनुयायियों का वध किया गया। इस कुंड में स्नान करना, भारत के सभी पवित्र स्थानों में स्नान करने के बराबर माना जाता है।

सुथ गद्दी

इस स्थान पर, वेद व्यास के शिष्य ऋषि सुथ ने 88000 ऋषियों को हनुमान गद्दी, और पांडव किला ये दुनिया के दो सबसे शक्तिशाली योद्धा माने जाते हैं। हनुमान गद्दी को इसलिए योद्धा माना जाता है क्योंकि यहाँ हनुमान ने अबिरावण का वध कर राम और लक्ष्मण को रिहा कराया जिससे वे इस स्थान से दक्षिण की ओर जाने में सक्षम हुए। 

और पांडव किला वह स्थान है, जहां पांडवों ने अपने कर्म के तहत तपस्या की थी। भगवान राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियों वाले, एक पुराने मंदिर द्वारा चिह्नित यह स्थान, दसवें अश्वमेध यज्ञ का स्थल था, जो इस दिन भगवान राम द्वारा आयोजित किया गया था।

स्वयंभू मनु और सतरूपा

इसी स्थान पर स्वयंभू मनु, और सतरूपा ने भगवान नारायण के जन्म का आशीर्वाद पाने के लिए, 23000 वर्षों तक तपस्या की थी। 

तो दोस्तों! आपको ये जानकारी कैसी लगी आशा करते हैं कि अच्छी लगी होगी। अपनी राय अवश्य प्रकट करें।इसी के साथ विदा लेते हैं। अगली पोस्ट के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी। तब तक के लिय आप हंसते रहिए,मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए। 

धन्यवाद 

जय श्रीराम 

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