पूर्णकुम्भ और अर्धकुम्भ

मुगल साम्राज्य में हिन्दू-धर्म पर जब अधिक कुठाराघात होने लगा उस समय चारों दिशाओं के शंकराचार्यां ने हिन्दू-धर्म की रक्षा के लिये हरिद्वार एवं प्रयागमें साधु-महात्माओं एवं बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाकर विचार-विमर्श किया था, तभीसे हरिद्वार और प्रयागमें अर्धकुम्भ-मेला होने लगा। 

पूर्णकुम्भ और अर्धकुम्भ

पूर्णकुम्भ और अर्धकुम्भ


पूर्णकुम्भ

हिन्दू समाज में प्राचीन काल से ही कुम्भ-पर्व मनाने की प्रथा चली आ रही है। हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक-इन चारों स्थानों में क्रमशः बारह बारह वर्ष पर पूर्णकुम्भ का मेला लगता है, जबकि हरिद्वार तथा प्रयागमें अर्धकुम्भ-पर्व भी मनाया जाता है; किन्तु यह अर्धकुम्भ-पर्व उज्जैन और नासिकमें नहीं होता।

अर्धकुम्भ

अर्धकुम्भ-पर्वके प्रारम्भ होने के सम्बन्ध में कुछ लोगों का विचार है कि मुगल साम्राज्य में हिन्दू-धर्म पर जब अधिक कुठाराघात होने लगा उस समय चारों दिशाओं के शंकराचार्यां ने हिन्दू-धर्म की रक्षा के लिये हरिद्वार एवं प्रयागमें साधु-महात्माओं एवं बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाकर विचार-विमर्श किया था, तभीसे हरिद्वार और प्रयागमें अर्धकुम्भ-मेला होने लगा। 

शास्त्रों में जहाँ कही भी कुम्भ-पर्व को चर्चा होती है, वहाँ पूर्णकुम्भका ही उल्लेख मिलता है-

पूर्ण: कुम्भोऽधि काल अहितस्तं वै पश्यामो बहुधा नु सन्तः।

स इमा विश्वा भुवनानि प्रत्यङ्कालं तमाहुः परमे व्योमन् ॥

(अथर्ववेद 1 9 . 53.3 )

'हे सन्तगण! पूर्णकुम्भ बारह वर्षके बाद आता है, जिसे हम अनेक बार हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक-इन चार तीर्थ स्थानों में देखा करते हैं। कुम्भ उस कालविशेषको कहते हैं, जो महान् आकाश में ग्रह- राशि आदि के योग से होता है।'

हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक-इन चारों स्थानोंमें प्रत्येक बारहवें वर्ष में कुम्भ पड़ता है। किन्तु इन चारों स्थानों के कुम्भ-पर्व का क्रम इस प्रकार निर्धारित है, 

मेष या वृषके बृहस्पतिमें जब सूर्य, चन्द्रमा दोनों मकर राशिपर आते हैं तब प्रयाग में कुम्भ-पर्व होता है। इसके पश्चात्वर्षों का अन्तराल जो भी हो, 

कुम्भ की उत्पत्ति की अमरकथा 

जब बृहस्पति सिंहमें होते हैं और सूर्य मेष राशि पर रहता है तो उज्जैन में कुम्भ लगता है। 

जब सूर्य सिंह पर रहता है तो नासिक में कुम्भ लगता है। तत्पश्चात् लगभग छ: बार्हस्पत्य वर्षों के अन्तरालपर जब बृहस्पति कुम्भ राशिपर रहता है।और सूर्य मेष पर तब हरिद्वार में कुम्भ लगता है। 

इनके मध्यमें छः-छः वर्ष के अन्तर से केवल हरिद्वार और प्रयाग में अर्धकुम्भ होता है।

ठीक उसी प्रकार जैसे पूर्वाचार्यो द्वारा स्थापित अर्धकुम्भ-पर्वका माहात्म्य अपार है।क्योंकि अर्धकुम्भ-पर्व का उद्देश्य पूर्णकुम्भ की तरह विशेष पवित्र और लोकोपकारक है। लोकोपकारक (लोक कल्याण करने के लिये) इस पर्व से धर्म के प्रचार के साथ-साथ देश और समाजका महान् कल्याण सुनिश्चित है।

Faqs 

कुम्भ किसे कहते हैं?

कुम्भ उस कालविशेषको कहते हैं, जो महान् आकाश में ग्रह- राशि आदि के योग से होता है।'

अर्ध कुंभ और महाकुंभ में क्या अंतर है?

अर्ध कुंभ यानी आधा मेला या छोटा मेला। ये हर 6 वर्ष के बाद लगता केवल हरिद्वार और प्रयाग मे लगता है

महाकुंभ बारह वर्षके बाद आता है, जिसे हम अनेक बार हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक-इन चार तीर्थ स्थानों में देखा करते हैं। य़ह बहुत बड़ा मेला होता है। इसमे भक्तों के अलावा दूर दूर से अनेक तपस्वी ऋषि मुनि भी आते हैं। जो देखने मे बड़े ही अद्भूत होते हैं। 

अर्ध कुंभ कब लगता है?

हर 6 वर्ष के बाद।

कुंभ कितने प्रकार के हैं?

कुंभ तीन प्रकार के हैं होते हैं- कुम्भ, अर्ध कुम्भ और पूर्ण कुम्भ 

चार कुंभ कौन कौन से हैं?

हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक-इन चारों स्थानों में क्रमशः बारह बारह वर्ष पर पूर्णकुम्भ का मेला लगता है।

हरिद्वार में पूर्ण कुंभ कब लगेगा?

13 जनवरी 2025।

उज्जैन में कुंभ कब हुआ था?

2016 मे। 

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