रावण को क्यों नहीं जलाना चाहिए

हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे है आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप सभी ठीक होंगे । आज की इस पोस्ट में हम बात करेंगे कि रावण को क्यों नहीं जलाना चाहिए 

रावण को क्यों नहीं जलाना चाहिए।

रावण को क्यों नहीं जलाना चाहिए
रावण को क्यों नहीं जलाना चाहिए 

रावण को क्यों नहीं जलाना चाहिए, इस पर विचार करते समय हमें रावण के जीवन, उसके कर्म, और हमारे समाज में उसकी प्रतीकात्मकता के पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए। नवरात्रि के अंत में दशहरा मनाया जाता है, जिसमें रावण का पुतला जलाकर बुराई पर अच्छाई की विजय का जश्न मनाया जाता है। 

हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि रावण को जलाने की परंपरा पर पुनर्विचार करना चाहिए। इसके पीछे कुछ कारण हैं, जो हमें सोचने पर मजबूर करते हैं। आइए इन कारणों को सरल भाषा में समझते हैं:

1- रावण का विद्वान और ज्ञानी होना 

रावण को एक महान पंडित और विद्वान माना जाता था।उसे वेद, शास्त्र, और ज्योतिष का बहुत ज्ञान था। रावण ने शिव-भक्त के रूप में तपस्या करके कई सिद्धियाँ प्राप्त की थीं और उसे शिव से वरदान भी प्राप्त हुआ था। 

जब हम किसी विद्वान व्यक्ति का सम्मान करते हैं, तो हमें उसके ज्ञान को नहीं भूलना चाहिए। रावण ने अपने जीवन में कई अच्छे कार्य भी किए थे, जिनमें उसके ज्ञान और विद्वता का बड़ा योगदान था। उसे जलाने से हम उसके ज्ञान और उसके सकारात्मक पहलुओं को भी अनदेखा कर देते हैं, जो उचित नहीं है।  

2- रावण की बुराईयों से सीखना

रावण को जलाने के बजाय, हमें उसके जीवन से सीखना चाहिए। रावण के भीतर अच्छाई और बुराई दोनों थीं। उसकी सबसे बड़ी कमजोरी उसका अहंकार और अपहरण का कृत्य था। रामायण हमें यह सिखाती है कि रावण के अहंकार और उसकी गलतियों के कारण उसका पतन हुआ। अगर हम रावण को जलाने के बजाय उसके जीवन से सीखें और उसके अहंकार और लालच से बचें, तो यह मनुष्य के लिए ज्यादा अच्छा होगा।  

रावण का पुतला जलाने से केवल एक प्रतीकात्मक विजय दिखाई जाती है, लेकिन हमें मन मे य़ह करना चाहिए और यह समझना चाहिए कि हम अपने भीतर की बुराइयों से कैसे छुटकारा पा सकते हैं।  

3- समाज में हिंसा और द्वेष की प्रवृत्ति बढ़ाना

रावण को जलाना बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है, लेकिन क्या हम वास्तव में बुराई को जलाने से हटा सकते हैं? इस परंपरा के माध्यम से, हम समाज में हिंसा और द्वेष को बढ़ावा दे सकते हैं। रावण को जलाना एक आक्रामक और हिंसक कृत्य है, और इससे हमारे भीतर की नकारात्मक ऊर्जा को भी बल मिलता है।  

इसके विपरीत, अगर हम रावण की मूर्ति को सम्मान के साथ रखते हुए, उसे सजाते और उसके ज्ञान और विद्वता की सराहना करते, तो यह एक सकारात्मक संदेश होता। इससे हमें यह सीखने को मिलता कि अच्छाई और बुराई दोनों हमारे भीतर ही होती हैं, और हमें अपने भीतर की अच्छाई को बढ़ावा देना चाहिए।  

4- रावण का संस्कृति और परंपरा से जुड़ा होना

रावण केवल रामायण का खलनायक नहीं था, बल्कि वह एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक चरित्र भी था। रावण का संबंध लंका से था, जिसे उन्होंने एक शक्तिशाली और विकसित राज्य बनाया था। लंका को सोने की नगरी (स्वर्ण नगरी) कहा जाता था, और रावण ने इसे समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।  

रावण की संस्कृति और परंपरा को नकारात्मक रूप में देखने से हम उसकी उपलब्धियों और उसके द्वारा बनाई गई सभ्यता को अनदेखा कर देते हैं। इसलिए, उसे जलाने के बजाय हमें उसके योगदान को याद करना चाहिए और उसकी संस्कृति का सम्मान करना चाहिए।  

5 - बुराई को जलाने से बेहतर है बुराई का उन्मूलन

रावण का पुतला जलाना प्रतीकात्मक रूप से बुराई का अंत दर्शाता है, लेकिन असली बुराई हमारे समाज में विचारों और कर्मों में होती है। रावण को जलाने से बुराई का वास्तविक अंत नहीं होता। हमें बुराई का उन्मूलन अपने विचारों और कर्मों में करना चाहिए।  

यदि हम रावण को न जलाएं और उसकी मूर्ति के माध्यम से उसके जीवन के अच्छे और बुरे पहलुओं पर विचार करें, तो यह अधिक शिक्षाप्रद होगा। हमें यह समझना चाहिए कि असली बुराई हमारे अंदर है, और हमें उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए।  

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6- रावण को दानव समझने की बजाय उसे मानव समझना

रामायण के कई संस्करणों में रावण को दानव बताया गया है, लेकिन वास्तव में वह एक मानव था जिसने गलतियों की वजह से पतन का सामना किया। अगर हम रावण को केवल दानव मानकर उसका पुतला जलाते हैं, तो हम यह भूल जाते हैं कि उसके जैसे व्यक्ति से भी हम सीख सकते हैं।  

रावण एक महान राजा था जिसने अपनी प्रजा की सेवा की थी। यदि हम उसे जलाने की बजाय उसके जीवन से प्रेरणा लें और उसके अच्छे कार्यों को याद रखें, तो यह अधिक सार्थक होगा। रावण को मानवीय नजरिए से देखना हमें यह सिखाता है कि कोई भी व्यक्ति पूरी तरह से बुरा नहीं होता, बल्कि उसके अंदर अच्छाई और बुराई दोनों का मिश्रण होता है।  

7- समाज में विभाजन और विवाद से बचना  

आज के समय में, रावण को जलाने की परंपरा कई जगहों पर विवाद का कारण बनती है। विशेषकर उन स्थानों पर जहाँ लोग रावण को अपने पूर्वज के रूप में देखते हैं या उसकी संस्कृति का सम्मान करते हैं। अगर हम रावण को जलाना बंद कर दें और उसे एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक चरित्र के रूप में मान्यता दें, तो इससे समाज में एकता और शांति बढ़ सकती है।  

8- रावण के ज्ञान और शक्ति का आदर

रावण ने कई धार्मिक ग्रंथों की रचना की और विभिन्न शास्त्रों में निपुण था। उसने शक्ति, भक्ति और विद्या का संगम अपने जीवन में दिखाया। ऐसे व्यक्ति का पुतला जलाने से उसकी विद्वता और शक्तियों का अपमान होता है। हमें उसके ज्ञान और उसके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों का सम्मान करना चाहिए।  

यदि हम रावण को जलाने की बजाय उसके ज्ञान और तपस्या को समझें और उसका आदर करें, तो इससे हमें अधिक लाभ होगा। इससे हमें सिखने को मिलेगा कि कैसे एक व्यक्ति अपने ज्ञान और शक्ति का सदुपयोग कर सकता है।  

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9- रावण के प्रति द्वेष की भावना का त्याग 

रावण को जलाने से हमारे अंदर उसकी प्रति द्वेष और क्रोध की भावना जाग्रत होती है। अगर हम इस भावना को छोड़कर उसे क्षमा कर दें और उसके जीवन को एक शिक्षा के रूप में देखें, तो यह हमें सच्ची शांति और धैर्य सिखा सकता है।  

10- धर्म और संस्कृति का सही अर्थ समझना

रावण का पुतला जलाने की परंपरा प्रतीकात्मक हो सकती है, लेकिन हमें धर्म और संस्कृति का सही अर्थ समझना चाहिए। धर्म हमें क्षमा, करुणा, और ज्ञान का मार्ग दिखाता है। अगर हम रावण को जलाने के बजाय उसके जीवन से सीखें और अपने अंदर की बुराईयों को दूर करें, तो यह असली धार्मिकता होगी।  

तो प्रिय पाठकों, कैसी लगी आपको पोस्ट ,हम आशा करते हैं कि आपकों पोस्ट पसंद आयी होगी। इसी के साथ विदा लेते हैं अगली रोचक, ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी ,तब तक के लिय आप अपना ख्याल रखे, हंसते रहिए, मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए।

धन्यवाद ,हर हर महादेव 

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