श्रीकृष्ण की मृत्यु का रहस्य, मुसल युद्ध और यदुवंश का अंत

हर हर महादेव प्रिय पाठकों, कैसे हैं आप लोग, हम आशा करते हैं कि आप ठीक होंगे।आज की इस पोस्ट मे हम श्रीकृष्ण की मृत्यु के रहस्य,मुसल युद्ध और यदुवंश के अंत के बारे मे जानेंगे। 

श्रीकृष्ण की मृत्यु का रहस्य, मुसल युद्ध और यदुवंश का अंत


श्रीकृष्ण की मृत्यु का रहस्य, मुसल युद्ध और यदुवंश का अंत
श्रीकृष्ण की मृत्यु का रहस्य, मुसल युद्ध और यदुवंश का अंत


मित्रों, आप सभी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बारे में भली-भांति जानते हैं। हर कोई जानता है कि उनका जन्म कैसे और कहाँ हुआ था? उन्होंने धरती पर अवतार क्यों लिया? उनके लीलाएं, प्रेम और जीवन से हर कोई परिचित है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनकी मृत्यु कैसे हुई? इसका क्या कारण था? द्वारका पूरी कैसे जलमग्न हो गई? और श्रीकृष्ण के शरीर का कौन सा हिस्सा उनके अंतिम संस्कार में नहीं जला और वह अंग आज भी जीवित है?

अगर आप जानते हैं तो अच्छा है, और अगर नहीं जानते, तो इस पोस्ट के माध्यम से आपको सभी प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे। क्योंकि आज की पोस्ट इन्हीं प्रश्नों पर आधारित है। तो बिना देरी किए, चलिए आज की रोचक पोस्ट पढ़ते हैं।

श्रीकृष्ण की मृत्यु का कारण

प्रिय मित्रों, सबसे पहले हम जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु का कारण क्या था? किसके श्राप से उनका पूरा वंश समाप्त हुआ?

मित्रों, भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु का कारण गांधारी थी, जो कौरवों की माता थीं। महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने बिना हथियार उठाए कौरवों का नाश कर दिया था। इस युद्ध में धृतराष्ट्र और गांधारी के सभी 100 पुत्र आपस में लड़ते हुए मारे गए। और पांडव युद्ध जीत गए।

युद्ध समाप्त होने के बाद जब श्रीकृष्ण कौरवों की माता गांधारी से विदा लेने पहुंचे, तो गांधारी अपने 100 पुत्रों की मृत्यु का शोक मना रही थीं। उन्होंने श्रीकृष्ण को अपने सामने देखकर बहुत क्रोध किया और कहा,आप मेरे पुत्रों की मृत्यु के कारण हैं। अगर आप चाहते तो इस युद्ध को रोक सकते थे, लेकिन आपने ऐसा नहीं किया। इसलिए मैं आपको कभी माफ नहीं करूंगी। आपको इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा।

गांधारी ने भगवान कृष्ण को श्राप दिया और कहा,यदि मैंने भगवान विष्णु की सच्चे मन और विश्वास के साथ पूजा की है और पातिव्रता धर्म का पालन किया है, तो जैसे मेरे पुत्र आपस में लड़कर मरे हैं, वैसे ही आपका वंश भी आपस में लड़कर समाप्त हो जाएगा। यह द्वारका आपके सामने समुद्र में डूब जाएगी और आप कुछ नहीं कर पाएंगे।

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यदुवंश का अंत 

मित्रों, भगवान श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार थे और गांधारी विष्णु की बड़ी भक्त थीं, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने उनका श्राप स्वीकार कर लिया। उन्होंने गांधारी को प्रणाम किया और वहाँ से चले गए।

भगवान अपने सच्चे भक्तों को कभी निराश नहीं करते, इसलिए उन्होंने यदुवंशियों को मूर्ख बना दिया ताकि गांधारी का श्राप सत्य हो सके।

महाभारत युद्ध के 36 साल बाद, एक दिन विश्वामित्र, दुर्वासा, भृगु और नारद जैसे महान ऋषि द्वारका के पिंडारका वन में तपस्या करने आए। एक दिन जब वे तपस्या कर रहे थे, तो कुछ शरारती यदुवंशी कुमार उन्हें परेशान करने आ गए। उन्होंने एक सांप को एक गर्भवती महिला के रूप में सजाया और ऋषियों के सामने लाकर कहा, "गुरुदेव, कृपया जाग जाइए।"

जब ऋषियों ने आँखें खोलीं, तो यदुवंशी कुमार ने कहा,हे गुरुदेव! यह महिला गर्भवती है और आप त्रिकालदर्शी हैं। आपकी शक्ति और ज्ञान अमोघ हैं। यह महिला जानना चाहती है कि इसके गर्भ में पुत्र है या पुत्री। कृपया इस महिला की जिज्ञासा पूरी करें

ऋषियों ने अपनी शक्ति से यह जान लिया कि यदुवंशी कुमार उनके साथ मजाक कर रहे हैं। तब ऋषि क्रोधित हुए और उन्होंने कहा, "हे मूर्खों, तुमने हमारे साथ यह घृणित कार्य किया है। तुम्हें इसकी सजा जरूर मिलेगी।"

ऋषियों ने उन्हें श्राप दिया,अब इस सांप के गर्भ से एक मुसल (गदा) जन्म लेगा, जो तुम्हारे पूरे वंश का नाश कर देगा

यदुवंशी कुमार डर गए और उन्होंने तुरंत सांप का पेट फाड़ा। उन्हें देखकर आश्चर्य हुआ क्योंकि उसमें वास्तव में एक मुसल था। वे अपने कर्मों पर पछताने लगे। वे राजा उग्रसेन के पास पहुँचे और सारी घटना सुनाई। राजा ने उस मुसल को तोड़कर समुद्र में फेंकने का आदेश दिया। समुद्र में गिरे उस टुकड़े को एक मछली ने खा लिया और बाकी धूल किनारे पर रह गई, जिससे वहाँ बिना गाँठ वाला घास उग आया।

एक दिन, एक जारा नामक मछुआरे ने मछली पकड़ी और जब उसने मछली को काटा, तो उसमें से वह टुकड़ा निकला। मछुआरे ने उसे अपने तीर की नोक पर लगा दिया।

चर्पटपञ्चरिकास्तोत्र हिंदी में 

श्रीकृष्ण की मृत्यु और द्वारका का जलमग्न होना

मित्रों, भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्त गांधारी के श्राप को सत्य करने के लिए यदुवंशियों को मदिरा पिलाई। मदिरा पीकर सभी यदुवंशी आपस में झगड़ने लगे और उनकी लड़ाई युद्ध में बदल गई। उन्होंने समुद्र किनारे उगी घास को उखाड़कर एक-दूसरे पर वार करना शुरू किया। वह घास उसी मुसल से बनी थी, जो ऋषियों के श्राप के कारण उत्पन्न हुआ था। सभी यदुवंशी आपस में लड़कर समाप्त हो गए।

बलराम जी इस विनाश को सहन नहीं कर पाए और उन्होंने समुद्र किनारे ध्यानमग्न होकर प्राण त्याग दिए।

श्रीकृष्ण अकेले रह गए। तब उन्होंने भी अपने धाम लौटने का निश्चय किया। एक दिन वे पेड़ के नीचे बैठे थे, तभी जारा मछुआरे ने उनके पैर की चमक को हिरण की आँख समझकर तीर चला दिया। तीर लगने के बाद मछुआरे ने उनसे क्षमा माँगी। श्रीकृष्ण ने उसे बताया कि यह पूर्व जन्म का कर्म है और वे वैकुंठधाम चले गए। उनके जाने के बाद द्वारका समुद्र में डूब गई।

श्रीकृष्ण का हृदय आज भी जीवित है

श्रीकृष्ण के अंतिम संस्कार के समय उनका हृदय नहीं जलाउसे बाद में जगन्नाथ पुरी में स्थापित कर दिया गया, और वह आज भी धड़क रहा है। 

तो मित्रों, अगर आप जगन्नाथ पुरी नहीं गए हैं, तो एक बार वहाँ जाकर देखें। आप श्रीकृष्ण के हृदय की धड़कन को महसूस कर सकते हैं।

तो प्रिय पाठकों, आशा करते हैं कि आपको पोस्ट पसंद आई होगी। ऐसी ही रोचक जानकारियों के साथ विश्वज्ञान मे फिर से मुलाकात होगी, तब तक के लिए आप अपना ख्याल रखें, हंसते रहिए,मुस्कराते रहिए और औरों को भी खुशियाँ बांटते रहिए। 

धन्यवाद, हर हर महादेव 

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