KAB AUR KYON KI RAAVAN NE SHIV TAANDAV STOTR KI RACHNA|SHIV TANDAV STOTRAM | शिव तांडव स्तोत्र

हर हर महादेव ! प्रिय पाठकों आशुतोष भगवान् शिव का आशीर्वाद आप सभी भक्तों को प्राप्त हो 

इस पोस्ट मे आप पाएंगे --

स्तोत्र का अर्थ
आधारित स्तोत्र
शिव तांडव स्तोत्र के रचनाकार
संक्षिप्त जानकारी 
शिव तांडव के लाभ

KAB AUR KYON KI RAAVAN NE SHIV TAANDAV STOTR KI RACHNA|SHIV TANDAV STOTRAM | शिव तांडव स्तोत्र

KAB AUR KYON KI RAAVAN NE SHIV TAANDAV STOTR KI RACHNA|SHIV TANDAV STOTRAM | शिव तांडव स्तोत्र
KAB AUR KYON KI RAAVAN NE SHIV TAANDAV STOTR KI RACHNA|SHIV TANDAV STOTRAM | शिव तांडव स्तोत्र

स्तोत्र का अर्थ

प्रिय पाठकों! मंत्रो और स्तोत्रो मे बहुत शक्ति होती है।स्तोत्र का पाठ करना कृपासगार मे डुबकी लगाने जैसा है।प्रत्येक देवी देवताओं के वेदों मे अलग-अलग स्तोत्र दिये गये है।

आज इस पोस्ट मे हम भगवान शिव की आराधना में बनाए गए शिव तांडव स्तोत्र के बारे मे जानेंगे। जिसे बनाया  था महाविद्वान लंका धिपती राजा रावण ने। ये स्तोत्र बहुत ही चमत्कारी और इतना प्रभावशाली है की इसका पाठ करने से मनुष्य अपने जीवन से दुखो को भगा कर सुखी जीवन प्राप्त कर सकता है। शिव तांडव स्तोत्र एक अद्वितीय काव्य रचना है ,जो इसे अन्य स्तोत्रो से अलग बनाती है। 

यह भी पढ़ेनिवेदन व (संकटनाशन गणेश स्तुति संस्कृत में )

आधारित स्तोत्र 

भगवान शिव 

शिव तांडव स्तोत्र के रचनाकार 

लंका का राजा रावण

संक्षिप्त जानकारी 

एक बार रावण ने अहंकार मे आकर भगवान शिव के वास कैलाश पर्वत को ही उठा लिया और उसे लंका मे ले जाने लगा। रावण के ऐसा करने से भगवान शिव को बहुत क्रोध आया। उन्होने रावण के अहंकार को दूर करने के लिय कैलाशपर्वत को अपने पैर के अंगूठे से दबा दिया।

जिससे रावण का हाथ उस पर्वत के नीचे दब गया।अनेक कोशिशे करने के बाद भी रावण अपना हाथ न निकाल सका और उसने भगवान शिव के क्रोध से बचने के लिए उनकी प्रसंशा करते हुए 17 श्लोक बोले।जो की प्रभु के मन को अती प्रिय लगे और उन्होने क्रोध को शान्त करते हुए अपना अंगूठा हटा  लिया।

साथ ही रावण को ये आशीर्वाद दिया की उसके द्वारा गाई हुई ये स्तुति संसार मे हमेशा अजर अमर रहेगी।जो मनुष्य इस श्लोक द्वारा मेरी स्तुति करेगा मेरी कृपा हमेशा उस बनी रहेगी और वो जबतक इस संसार मे रहेगा सुखपूर्वक सभी भोगो को प्राप्त करेगा।

शिव तांडव के लाभ

शिव तांडव स्तोत्र द्वारा भगवान की स्तुति करने से होने वाले लाभ 

1- शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य  धन सम्पत्ति के भौतिक सुखो के साथ-साथ समाज मे उत्कृष्ट व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है।

2- दोस्तो ! शनिदेव काल है और महादेव कालो के भी काल है।इसलिय यदि कोई व्यक्ति शनि से पीड़ित हो तो उसे शिव तांडव के पाठ को करना चाहिए इससे उसे लाभ प्राप्त होगा ।

3- नृत्य,लेखन,चित्रकला,योग,समाधि और ध्यान आदि मे जुड़े  लोगो को शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है।

यह भी पढ़े -चर्पटपञ्चरिकास्तोत्र हिंदी में

4- इस स्तोत्र के हर रोज पाठ करने से वाणी सिद्धि की भी।प्राप्ति होती है।

5- आपको जीवन मे किसी भी सिद्धि की महत्वाकांक्षा हो तो इस स्तोत्र के जाप करने से आप उसे आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

6- कालसर्प से पीड़ित लोगो के लिये शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही लाभदायक होता है।

7- शिव तांडव का पृदोष काल मे पाठ करने से भगवान् शिव की कृपा से रथ,गज,वाहन,अश्व आदि से सम्पन्न होकर लक्ष्मी हमेशा स्थिर रहतीं हैं 

KAB AUR KYON KI RAAVAN NE SHIV TAANDAV STOTR KI RACHNA|SHIV TANDAV STOTRAM | शिव तांडव स्तोत्र
KAB AUR KYON KI RAAVAN NE SHIV TAANDAV STOTR KI RACHNA|SHIV TANDAV STOTRAM | शिव तांडव स्तोत्र


शिव तांडव स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌ ।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं

चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥1॥

भावार्थ  – जिन्होंने अपनी जंगलरूपी जटाओं (जटारुपी अटवी (वन)) से निकलती हुई गंगा जी के गिरते हुए  तेज (प्रवाहों )से पवित्र किये गए गले में साँपो की माला (सर्पों की लटकती) हुई विशाल (बड़ी )माला को पहनकर (धारण कर) डमरू के डम डम शब्दों से मण्डित(सजाया हुआ ) प्रचंड तांडव नृत्य किया, वे शिवजी(वे भोलेनाथ  हमारे कल्याण (सुख,शुभ या मंगल ) का विस्तार करें।

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-

विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्द्धनी ।

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके

किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥2॥

भावार्थ  – जिनका मस्तक जटारुपी कड़ाह (खुले मुँह तथा ऊंचे किनारों का एक बर्तन ) में वेग (तेजी ) से घूमती हुई गंगा की चंचल तरंगों (यानी नटखट , जो किसी एक स्थिति या एक स्थान पर न रहता हो ) से सुशोभित हो रहा है, ललाट (माथे ) की अग्नि धक् धक् जल रही है, सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं, उन भगवान शिव में मेरा निरंतर (हमेशा ) अनुराग (प्रेम ,भक्ति ) हो।

धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर-

स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।

कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि

क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

भावार्थ  – गिरिराज किशोरी (हिमालय की पुत्री ) पार्वती के शिरोभूषण (मुकुट )से समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देख जिनका मन आनंदित हो रहा है।

जिनकी निरंतर कृपादृष्टि (दया ,अनुग्रह ) से कठिन से कठिन आपत्ति (मुसीबतों ) का भी निवारण (छुटकारा ,मुक्ति मिल जाना आदि ) हो जाता है, ऐसे किसी दिगंबर तत्व में मेरा मन आनंद प्राप्त करे।

जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-

कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।

मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे

मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥

भावार्थ  – जिनकी जटाओं में रहने वाले सर्पों के फणों की मणियों का फैलता हुआ प्रभापुंज दिशा रुपी स्त्रियों के मुख पर कुंकुम का लेप कर रहा है।

मतवाले हाथी के हिलते हुए चमड़े का वस्त्र धारण करने से स्निग्ध वर्ण हुए उन भूतनाथ में मेरा चित्त अद्भुत आनंद करे।

सहस्त्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-

प्रसूनधूलिधोरणीविधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।

भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः

श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥5॥

भावार्थ – जिनकी चरण पादुकाएं इन्द्र आदि देवताओं के प्रणाम करने से उनके मस्तक पर विराजमान फूलों के कुसुम से धूसरित (मिट्टी में सनी हुई ) हो रही हैं।

नागराज के हार से बंधी हुई जटा वाले वे भगवान चंद्रशेखर मुझे चिरस्थाई(लम्बे समय तक रहनेवाली ) संपत्ति देने वाले हों।

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-

निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्‌ ।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं

महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु नः ॥6॥

भावार्थ  – जिन्होंने ललाट (मस्तक )वेदी पर प्रज्वलित हुई अग्नि के तेज से कामदेव को नष्ट कर डाला था, जिनको इन्द्र नमस्कार किया करते हैं।

सुधाकर (चन्द्रमा) की कला से सुशोभित मुकुट वाला वह उन्नत विशाल ललाट वाला जटिल मस्तक हमें संपत्ति प्रदान करने वाला हो।

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-

द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।

धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-

प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥7॥

भावार्थ  – जिन्होंने अपने विकराल ललाट (मस्तक पर भयानक ) पर धक् धक् जलती हुई प्रचंड(तेज ) अग्नि में कामदेव को भस्म कर दिया था।

गिरिराज किशोरी के स्तनों पर पत्रभंग रचना करने के एकमात्र कारीगर उन भगवान त्रिलोचन में मेरा मन लगा रहे।

नवीनमेघमण्डलीनिरुद्धदुर्धरस्फुर-

त्कुहूनिशीथिनीतमःप्रबन्धबद्धकन्धरः ।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः

कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः ॥8॥

भावार्थ – जिनके कंठ( गले )में नवीन मेघमाला से घिरी हुई अमावस्या की आधी रात के समय फैलते हुए अंधकार के समान कालिमा अंकित है।

जो गजचर्म(हाथी के चमड़े ) लपेटे हुए हैं, वे संसार भार को धारण करने वाले चन्द्रमा के समान मनोहर कांतिवाले भगवान गंगाधर मेरी संपत्ति का विस्तार करें।

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-

वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्‌ ।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं

गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥9॥

भावार्थ – जिनका कंठ खिले हुए नील कमल समूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करने वाली है तथा जो कामदेव, त्रिपुर, भव (संसार), दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी संहार करने वाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।

अखर्वसर्वमंगलाकलाकदम्बमञ्जरी-

रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम्‌ ।

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं

गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥10॥

भावार्थ  – जो अभिमान रहित (मान -अभिमान की परवाह न किये बिना )पार्वती जी के कलारूप कदम्ब मंजरी के मकरंद स्रोत की बढ़ती हुई माधुरी के पान करने वाले भँवरे हैं तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी अंत करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।

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जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमश्वस-

द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।

धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्मृदंगतुंगमंगल-

ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ॥11॥

भावार्थ  – जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुए साँपों के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुई फैल रही है।धीमे धीमे बजते हुए मृदंग के गंभीर मंगल स्वर के साथ जिनका प्रचंड तांडव हो रहा है , उन भगवान शंकर की जय हो।

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्त्रजो-

र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः

समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥12॥

भावार्थ  – पत्थर और सुन्दर बिछौनों(बिस्तर ) में, सांप और मोतियों की माला में, बहुमूल्य(कीमती ) रत्न और मिटटी के ढेले में, मित्र या शत्रु पक्ष में, तिनका या कमल के समान आँखों वाली युवती में, प्रजा और पृथ्वी के राजाओं में समान भाव रखता हुआ मैं कब सदाशिव को भजूँगा ?

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्‌

विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्‌ ।

विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः

शिवेति मन्त्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥

भावार्थ  – सुन्दर ललाट वाले भगवान चन्द्रशेखर में मन को एकाग्र करके अपने कुविचारों (बुरे विचारो)को त्यागकर (छोड़कर ) गंगा जी के तटवर्ती (किनारे )वन के भीतर रहता हुआ सिर पर हाथ जोड़ डबडबाई हुई विह्वल (अशांत )आँखों से शिव मंत्र का उच्चारण करता हुआ मैं कब सुखी होऊंगा ?

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं

पठन् स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम्‌ ।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं

विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिन्तनम् ॥14 ॥

भावार्थ  – जो मनुष्य इस उत्तमोत्तम (अच्छे से अच्छा ) स्तोत्र का नित्य (हमेशा )पाठ , स्मरण और वर्णन करता है, वह सदा शुद्ध रहता है और शीघ्र ही भगवान शंकर की भक्ति प्राप्त कर लेता है।

वह विरुद्ध गति को प्राप्त नहीं करता क्योंकि शिव जी का ध्यान चिंतन मोह का नाश करने वाला है।

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं

यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां

लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥15 ॥

भावर्थ  – सायंकाल( रात के समय ) में पूजा समाप्त होने पर जो रावण के गाये हुए इस शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करता है, भगवान शंकर उस मनुष्य को रथ, हाथी, घोड़ों से युक्त सदा स्थिर रहने वाली संपत्ति प्रदान करते हैं।

|| इति श्री रावणकृतं शिव तांडव स्तोत्रम संपूर्ण  ||

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शिव तांडव स्तोत्र केवल हिन्दी 

भावार्थ  – जिन्होंने अपनी जंगलरूपी जटाओं (जटारुपी अटवी (वन)) से निकलती हुई गंगा जी के गिरते हुए  तेज (प्रवाहों )से पवित्र किये गए गले में साँपो की माला (सर्पों की लटकती) हुई विशाल (बड़ी )माला को पहनकर (धारण कर) डमरू के डम डम शब्दों से मण्डित(सजाया हुआ ) प्रचंड तांडव नृत्य किया, वे शिवजी(वे भोलेनाथ  हमारे कल्याण (सुख,शुभ या मंगल ) का विस्तार करें।

भावार्थ  – जिनका मस्तक जटारुपी कड़ाह (खुले मुँह तथा ऊंचे किनारों का एक बर्तन ) में वेग (तेजी ) से घूमती हुई गंगा की चंचल तरंगों (यानी नटखट , जो किसी एक स्थिति या एक स्थान पर न रहता हो ) से सुशोभित हो रहा है, ललाट (माथे ) की अग्नि धक् धक् जल रही है, सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं, उन भगवान शिव में मेरा निरंतर (हमेशा ) अनुराग (प्रेम ,भक्ति ) हो।

भावार्थ  – गिरिराज किशोरी (हिमालय की पुत्री ) पार्वती के शिरोभूषण (मुकुट )से समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देख जिनका मन आनंदित हो रहा है। जिनकी निरंतर कृपादृष्टि (दया ,अनुग्रह ) से कठिन से कठिन आपत्ति (मुसीबतों ) का भी निवारण (छुटकारा ,मुक्ति मिल जाना आदि ) हो जाता है, ऐसे किसी दिगंबर तत्व में मेरा मन आनंद प्राप्त करे।

भावार्थ  – जिनकी जटाओं में रहने वाले सर्पों के फणों की मणियों का फैलता हुआ प्रभापुंज दिशा रुपी स्त्रियों के मुख पर कुंकुम का लेप कर रहा है। मतवाले हाथी के हिलते हुए चमड़े का वस्त्र धारण करने से स्निग्ध वर्ण हुए उन भूतनाथ में मेरा चित्त अद्भुत आनंद करे।

भावार्थ – जिनकी चरण पादुकाएं इन्द्र आदि देवताओं के प्रणाम करने से उनके मस्तक पर विराजमान फूलों के कुसुम से धूसरित (मिट्टी में सनी हुई ) हो रही हैं। नागराज के हार से बंधी हुई जटा वाले वे भगवान चंद्रशेखर मुझे चिरस्थाई(लम्बे समय तक रहनेवाली ) संपत्ति देने वाले हों।

यह भी पढ़ेसृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुई?सृष्टि की उत्पत्ति कहाँ से हुई ?

भावार्थ  – जिन्होंने ललाट (मस्तक )वेदी पर प्रज्वलित हुई अग्नि के तेज से कामदेव को नष्ट कर डाला था, जिनको इन्द्र नमस्कार किया करते हैं। सुधाकर (चन्द्रमा) की कला से सुशोभित मुकुट वाला वह उन्नत विशाल ललाट वाला जटिल मस्तक हमें संपत्ति प्रदान करने वाला हो।

भावार्थ  – जिन्होंने अपने विकराल ललाट (मस्तक पर भयानक ) पर धक् धक् जलती हुई प्रचंड(तेज ) अग्नि में कामदेव को भस्म कर दिया था। गिरिराज किशोरी के स्तनों पर पत्रभंग रचना करने के एकमात्र कारीगर उन भगवान त्रिलोचन में मेरा मन लगा रहे।

भावार्थ – जिनके कंठ( गले )में नवीन मेघमाला से घिरी हुई अमावस्या की आधी रात के समय फैलते हुए अंधकार के समान कालिमा अंकित है। जो गजचर्म(हाथी के चमड़े ) लपेटे हुए हैं, वे संसार भार को धारण करने वाले चन्द्रमा के समान मनोहर कांतिवाले भगवान गंगाधर मेरी संपत्ति का विस्तार करें।

भावार्थ – जिनका कंठ खिले हुए नील कमल समूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करने वाली है तथा जो कामदेव, त्रिपुर, भव (संसार), दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी संहार करने वाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।

भावार्थ  – जो अभिमान रहित (मान -अभिमान की परवाह न किये बिना )पार्वती जी के कलारूप कदम्ब मंजरी के मकरंद स्रोत की बढ़ती हुई माधुरी के पान करने वाले भँवरे हैं तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी अंत करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।

भावार्थ  – जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुए साँपों के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुई फैल रही है। धीमे धीमे बजते हुए मृदंग के गंभीर मंगल स्वर के साथ जिनका प्रचंड तांडव हो रहा है , उन भगवान शंकर की जय हो

भावार्थ  – पत्थर और सुन्दर बिछौनों(बिस्तर ) में, सांप और मोतियों की माला में, बहुमूल्य(कीमती ) रत्न और मिटटी के ढेले में, मित्र या शत्रु पक्ष में, तिनका या कमल के समान आँखों वाली युवती में, प्रजा और पृथ्वी के राजाओं में समान भाव रखता हुआ मैं कब सदाशिव को भजूँगा ?

भावार्थ  – सुन्दर ललाट वाले भगवान चन्द्रशेखर में मन को एकाग्र करके अपने कुविचारों (बुरे विचारो)को त्यागकर (छोड़कर ) गंगा जी के तटवर्ती (किनारे )वन के भीतर रहता हुआ सिर पर हाथ जोड़ डबडबाई हुई विह्वल (अशांत )आँखों से शिव मंत्र का उच्चारण करता हुआ मैं कब सुखी होऊंगा ?

भावार्थ  – जो मनुष्य इस उत्तमोत्तम (अच्छे से अच्छा ) स्तोत्र का नित्य (हमेशा )पाठ , स्मरण और वर्णन करता है, वह सदा शुद्ध रहता है और शीघ्र ही भगवान शंकर की भक्ति प्राप्त कर लेता है। वह विरुद्ध गति को प्राप्त नहीं करता क्योंकि शिव जी का ध्यान चिंतन मोह का नाश करने वाला है।

भावर्थ  – सायंकाल( रात के समय ) में पूजा समाप्त होने पर जो रावण के गाये हुए इस शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करता है, भगवान शंकर उस मनुष्य को रथ, हाथी, घोड़ों से युक्त सदा स्थिर (हमेशा साथ,युगोयुगांतर तक साथ)रहने वाली संपत्ति प्रदान करते हैं।

प्रिय पाठकों !आशा है आपको पोस्ट पसंदा आई होगी। भगवान् शिव आपके सभी मनोरथ सिद्ध करें। विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मिलेंगे। 

 धन्यवाद। 

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