CHALO HUM BHI DIYA BANE

 श्री गणेशाय नमः 

हर हर महादेव! प्रिय पाठकों

कैसे हैं आप लोग,आशा करते है की आप सभी सकुशल होंगे।भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद आप सभी को प्राप्त। उनकी कृपा आप पर बरसती रहे।


हम धन कमाने का ध्यान रखते हैं हमें आशीर्वाद का भी ध्यान रखना चाहिए। हम जो पैसा कमाते हैं, उससे हम अपने परिवार के लिए भौतिक सुख-सुविधाएँ खरीद सकते हैं। हम जो आशीर्वाद कमाते हैं, उससे हम अपने परिवार के लिए खुशी, स्वास्थ्य और सद्भाव का संचार करते हैं। अगर हम किसी को दुख या दर्द देते हैं और घर आते हैं तो उनका दर्द भी हमारे साथ घर आएगा। और फिर हम कहते हैं- पता नहीं किसकी नजरें हम पर हैं, कि हम मुसीबतों का सामना कर रहे हैं।


इस पोस्ट मे आप पायेंगे-

दीया का अर्थ है 'देना'।

जो सबको देगा उसे कौन देगा?

राज योग क्या है।

हम प्रकृति में किसकी पूजा करते हैं?

स्वास्तिक का अर्थ

इसे कलयुग से सतयुग में कौन बदलेगा?

CHALO HUM BHI DIYA BANE

प्रिय पाठकों!आपने घरों मे अक्सर देखा होगा कि अधिकतर लोग अपने कार्यक्रम की शुरुआत दीया या दीप जलाकर करते हैं।और हम सब भी घर में दीपक जलाते हैं। ऐसा माना जाता है कि दीया जलाना शुभ होता है। ऐसा भी माना जाता है कि अगर किसी दीया को बंद कर दिया जाए तो वह अशुभ होता है।इसलिए अगर दीये की लौ टिमटिमाने लगे तो हम तुरंत दौड़ते हैं और लौ की रक्षा करते हैं।

कौन सा दीया जलाए जाने पर शुभ होता है? और कौन सा दीया है जो बुझने पर अशुभ होता है? क्योंकि मिट्टी का वह दीया जिसकी लौ अगर बुझ जाए तो घर में कुछ भी अशुभ नहीं होगा।लेकिन जिस दिया की बात हम कर रहे है, उसके बुझने पर बहुत फर्क पड़ेगा तो कौन सा है वो दिया। आइये जाने - जानने से पहले स्वागत है एक बार फिर से आपका विश्वज्ञान में। दोस्तों !जिस दीया की हम बात कर रहे है वो है दीया यानी देना।  


दीया का अर्थ है 'देना'।

मैं प्यार देता हूं।  मैं सम्मान देता हूं।  मैं खुशी देता हूं। जब यह दीया बंद कर दिया जाता है, तो जीवन अशुभ हो जाता है। लेकिन हम कहने लगे- मुझे चाहिए- मैं चाहता हूं। मैं चाहता हूं। कहने का मतलब है की जब हम चीजों को चाहते रहते हैं, तो जीवन अशुभ हो जाता है। जब हम देते रहते हैं, तो जीवन शुभ रहता है। हर घर को एक दीया की जरूरत है , एक देने वाला चाहिए।

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यानी हर घर में एक ऐसे शख्स की जरूरत होती है जो प्यार और सम्मान देने के लिए तैयार हो।  वह कुछ नहीं चाहता। क्या आप अपने घर में दीया बनने के लिए तैयार हैं? बस अपने आस-पास के लोगों को याद करें और देखें कि आप उनसे क्या चाहते हैं। जरा आंख बंद कर के देख लो।  हमें किसी से कुछ नहीं चाहिए।  हमारे पास सब कुछ है। बेवजह हम चीजों को चाहते रहते हैं।अपने मन के पर्दे पर, अपने परिवार के लोगों को लाओ।


शरीर के संबंध में वे आपसे बड़े या छोटे हो सकते हैं। लेकिन उनमें से प्रत्येक एक आत्मा है। इसलिए अपने दिमाग के पर्दे पर अपने परिवार और अपने कार्यस्थल के लोगों को लेकर आएं। सबकी ओर देखते हुए एक विचार बनाएं- मैं दाता हूं। फिर से दोहराओ कि मैं आत्मा, दाता हूं। मैं प्यार, सम्मान और खुशी का दाता हूं। मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए। मुझे उनसे कुछ नहीं चाहिए। क्या आपको यकीन है?  हां। इसे हर दिन करने की जरूरत है।


इससे हमारा सोचने का नजरिया बदल जाएगा। हमारे पास सब कुछ है। सुख और शांति हमारे संस्कार हैं। शक्ति हमारा संस्कार है। लेकिन हम उनका उपयोग करने के बजाय चीजों के वांछित पक्ष पर खड़े हैं। और फिर हम लापरवाही से कहते हैं कि दीया जलाने से जीवन मंगलमय हो जाता है। आज से हमें प्रतिदिन आंतरिक दीया जलाने की जरूरत है। और हर रोज हमें अपने आप को यह बताने की जरूरत है कि मैं आत्मा एक दाता हूं, आज पूरे दिन। मैं हमारे घर में दीया हूँ। दूसरे व्यक्ति की उम्र या स्थिति को मत देखो। मैं सभी को बिना शर्त देता हूं।

जो सबको देगा उसे कौन देगा? 

जो सबको देगा उसे कौन देगा? जब हम लोगों को कुछ देते हैं, तो हम उसे प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति होंगेध्यान से समझिय -जब हम किसी पर क्रोधित होते हैं, तो उस ऊर्जा को प्राप्त करने वाला पहला व्यक्ति कौन होगा?


जरा कल्पना कीजिए कि एक व्यक्ति दूसरे पर क्रोधित हो रहा है। एक व्यक्ति क्रोधित हो रहा है और यह दूसरा व्यक्ति इसे प्राप्त कर रहा है।तो दोनों मे से किसका रक्तचाप बढ़ेगा?  क्रोध पैदा करने वाले का या उसे प्राप्त करने वाले का ?ज़ाहिर सी बात है। उसी का जो क्रोध उत्पन्न करता है। किसकी धड़कन बढ़ेगी? जो क्रोध पैदा करता है।किसका मन अशांत रहेगा? जो क्रोध पैदा करता है।


जो क्रोध प्राप्त कर रहा है उसका क्या? क्रोध प्राप्त करने वाले के पास केवल एक विकल्प होता है। वह या तो इसे प्राप्त कर सकता है या इसे अस्वीकार कर सकता है। क्रोध देने वाले के पास कोई विकल्प नहीं है।


ईश्वर ने हमें एक मंत्र दिया है कि देने में ग्रहण है। आप जो भी ऊर्जा देते हैं, उसे देते समय भी आप सबसे पहले प्राप्त करेंगे। जैसे की - जब हम किसी को क्रोध दे रहे होते हैं तो सबसे पहले हम उसे प्राप्त करते हैं। जब हम उन्हें देते हैं तो उनके पास इसे स्वीकार या अस्वीकार करने का विकल्प होता है। कभी-कभी जब हमें किसी पर गुस्सा आता है, तो वे मुस्कुरा रहे होते हैं। और ऐसा इसलिए होता है की उन्हें अब हमारे गुस्से की आदत हो गई होती है। इसलिए सुनकर अपने आप से कहेंगे-  अब यह शख्स मुझे 5 मिनट तक लेक्चर देगा।


जब वह पूरा लेक्चर दे लेगा, तो मैं काम पर वापस जा सकता हूँ। अच्छा है उसे बोलने दो।कम से कम आज के लिए उनका गुस्सा निकालने का मेरा कोटा तो खत्म हो जाएगा।  वे इसके आदि हो जाते हैं।  इसलिए वे हमारा क्रोध ग्रहण नहीं करेंगे। और इससे उनका रक्तचाप भी सामान्य रहेगा।क्योंकि वे प्राप्त करने के पक्ष में हैं। प्राप्तकर्ता के पास इसे लेने या छोड़ने का विकल्प होगा।


इसलिए हमने कहा है की क्रोध देने वाले के पास कोई विकल्प नहीं होगा। प्राप्त करने वाले के पास हमेशा एक विकल्प होता है।तो अगर हमें गुस्सा आता है तो सबसे पहले उसे हम ही ग्रहण करते है ,अपने ही स्वास्थ  को हानि पहुंचाते है। तो इसी तरह जब हम किसी को सम्मान देंगे तो सबसे पहले उसे कौन लेगा? हम ही इसे पहले प्राप्त करेंगे।


इसी तरह जब हम किसी से प्रेमपूर्वक बात करते हैं, तो सबसे पहले प्रेम की ऊर्जा हमे ही प्राप्त होती है। जब हम  मन से  किसी की गलतियों को माफ कर देंगे और बात को बंद कर देंगे तो सबसे पहले हम सहज महसूस करेंगे ?


आप खुद अनुभव करके देखिए। किसी के  भी जीवन में पिछली कोई घटना घटी हो ,झगड़ा हुआ हो और अभी भी वो दर्द होता हो । आप इसे नहीं भूले हैं। उस दिन तुमने खुद से कहा था - मैं इसे कभी नहीं भूलूंगा। ऐसी बातें होती हैं ना? जब  हम  उस घटना को अपने दिमाग में रखते हैं, तो मन व्याकुल हो जाता है। और जिस दर्द को हमने अपने पास रखा है, उसका कंपन पूरे दिन हमारे शरीर में फैलता रहता है।

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यदि हम कई वर्षों तक दर्द, भय या घृणा को धारण करते हैं, तो इसका असर वर्षों तक शरीर में फैलता है। जिससे  शरीर बीमारियों का विकास करता है। पहले शरीर में दाग -धब्बे  नहीं बनते , वो पहले मन में निर्मित होते हैं। जिन बातों को हमने मन में धारण किया है, वे कुछ वर्षों के बाद शरीर में दर्द के रूप में प्रकट होते हैं। इसलिए लोगों को माफ कर दो। उस दिन उन्होंने जो किया वह उनके संस्कार, स्वभाव और मन की स्थिति के अनुसार था।


मुझे वह बात आज खत्म करनी है। अगर कोई हमारे साथ गलत करता है चाहे वो छोटी सी गलती हो या बहुत बड़ी क्या हम नफरत और गुस्से की बजाये उन्हें आशीर्वाद नहीं दे सकते हैं? दे सकते है। थोड़ा मुश्किल तो जरूर होगा पर असंभव नहीं।  


CHALO HUM BHI DIYA BANE

जब कोई हमारे साथ गलत होता है, तो क्या हम उसके बारे में गलत सोच सकते हैं? क्या हम उनके लिए अच्छा या बुरा सोच सकते हैं? उन्होंने हमारे साथ जो किया वह उनका कर्म था।उनके बारे में मेरे विचार उनके व्यवहार या कर्म पर निर्भर नहीं हैं। मेरे विचार मेरे खुद पर निर्भर हैं?मेरे संस्कार और मेरा स्वभाव मेरे खुद पर है 


मान लीजिए किसी ने मुझे नुकसान पहुंचाया है। यह मेरे लिए बहुत बड़ी क्षति थी। उन्होंने मेरे बारे में गलत संदेश फैलाया।तो मूल रूप से वे मेरे लिए गलत थे।अधिकतर लोगों के सोचने का एक तरीका यह होगा कि उन्होंने मेरे साथ जो कुछ किया, वही उनके साथ भी होना चाहिए।भगवान करें कि उसे भी भारी नुकसान का सामना करना पड़े।क्या इसकी जगह हम ये नहीं सोच सकते ?कि भगवान की शक्तियां और आशीर्वाद हमेशा उनके साथ रहें। सोचने के दो तरीकों में से कौन सा आसान है?


जब वे गलत कर्म करते हैं और हम भी गलत, नकारात्मक विचार पैदा करते हैं तो गलत विचार कहां जाएंगे? वे हमारे दिमाग में दर्ज हो जाएंगे। हमारे गलत विचार उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। हमारे गलत विचार हमारा नुकसान करेंगे। उनका व्यवहार गलत था। लेकिन मेरे गलत विचार मेरे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करेंगे। उनके गलत कर्मों के कारण, हम अपना नुकसान क्यों करें? तो अगर वे गलत कर्म करते हैं, तो क्या हम उनके लिए सही सोच सकते हैं? सोचिए और कमेंट कर उत्तर दीजिए। 


क्या हम उनके बारे में अच्छा सोच सकते हैं? गलत सोचना आसान है। आखिर यह सिर्फ एक विचार है। सही सोचना भी बहुत आसान है। आखिर यह सिर्फ एक विचार है। लेकिन हालाँकि हम सोचना चुनते हैं , हम बोलना चुनते हैं - तो इसे दिमाग में रिकॉर्ड किया जाएगा।


यह मेरे वर्तमान का निर्माण करेगा।और अगर आज मैं आत्मा शरीर छोड़ दूं, तो वह मेरे साथ आएगी। जब हम शरीर छोड़ते हैं तो बहुत से लोग अंतिम संस्कार में आते हैं ,वे कहते हैं - यह व्यक्ति खाली हाथ गया है।  वह अपने साथ क्या ले गया? वे कहते हैं - वह खाली हाथ आया और वह खाली हाथ चला गया। भगवान हमें सिखाते हैं कि हम न तो खाली हाथ आए और न ही खाली हाथ निकले। हम अपने कर्मों और संस्कारों के साथ आए थे। हम कर्म और संस्कार साथ लेकर चलेंगे। जिसने मेरे साथ गलत किया वो पीछे छूट जाएगा  उसका कर्म भी पीछे छूट जाएगा।


लेकिन मैंने उसके बारे में कैसे सोचा - यह मेरे साथ चलेगा। इसलिए हमें दूसरों की गलतियों के कारण खुद को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। क्या हम सही सोच सकते हैं अगर लोग हमारे लिए सही नहीं हैं? हाँ - यह बहुत आसान है। हमें बस यह याद रखने की जरूरत है कि जब हम सही सोचेंगे तो किसको फायदा होगा? मुझे इसका लाभ मिलेगा। मुझे कैसे लाभ होगा? मेरी आत्मा की बैटरी चार्ज रहेगी। मेरा शरीर स्वस्थ रहेगा। मेरे संबंध सौहार्दपूर्ण रहेंगे।

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उन्होंने जो कर्म किया, ईश्वर का आशीर्वाद उनके साथ रहा, क्योंकि अपने - अपने कर्मों का फल सभी को भोगना ही पड़ता है।हमारे कर्म ही हमारे भाग्य का निर्माण करते हैं। जब कोई गलत कर्म करता है तो वह अपने भाग्य में नुकसान लिखता है। लेकिन उस शख्स के प्रति नफरत पैदा करके हम अपने लिए दर्द की तकदीर लिख देते हैं।


हमारे पास दूसरा विकल्प यह है कि उन्हें क्षमा करके हम अपने लिए एक सुंदर भाग्य बना सकते हैं। उनके कर्म हमारे भाग्य का निर्माण नहीं करेंगे। हमारे विचार और कर्म ही हमारे भाग्य का निर्माण करेंगे। आइए आज हम यहां इस इस रहते हुए अतीत के सभी मामलों को समाप्त करते हैं। जब हम यह स्थान छोड़ेंगे तो हम इसे अपने साथ नहीं ले जाएंगे। हमारे भाग्य पर प्रभाव पड़ेगा।


मन हमारा है। अगर हम अपने मन की बात कहें- मैं इस घटना को कभी नहीं भूल पाऊंगा। तब मन इसे कभी नहीं भूलेगा। लेकिन अगर हम अपने मन से कहें - यह बात खत्म हो गई है। तब हमारा मन सचमुच उस मामले को बंद कर देगा।


अगर मैं आपसे पूछूं कि आपने पिछले रविवार की रात को खाने में क्या खाया था,तो ज्यादातर लोगों को याद नहीं होगा। लेकिन 10 साल पहले उस दिन उन्होंने वह ड्रैस पहनी थी, और उन्होंने मुझसे ऐसी-वैसी बातें कहीं।  हमें वो  सब याद है। इसलिए हमें खुद से यह पूछने की जरूरत है कि 4 दिन पहले क्या हुआ था, हमें याद क्यों नहीं है?, लेकिन हमें 10 साल पहले की घटना याद  है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले रविवार को जब आपने खाना खाया था तो आपने अपने मन की बात नहीं बताई थी - अब जो मैंने खाया उसे मत भूलना।  याद रखें कि मैंने आज रात  खाने में क्या  खाया। नहीं तो मन उसे याद करेगा। कहने का तात्पर्य है कि -


10 साल पहले जब वह घटना हुई थी तो हमने मन ही मन कहा था- इसे मैं कभी नहीं भूलूंगा. हमने भी इसे हर कुछ दिनों के बाद याद किया। हमने उस घटना के बारे में अन्य लोगों को भी बताया। जितनी बार हमने इसे दोहराया, हमारे दिमाग में और हमारे शब्दों में और  मन मे यह रिकॉर्ड हो गया।


तो सबसे पहले जब कोई हमारे साथ गलत होता है तो हमें एक पहलू पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है, वो ये की अन्य लोगों के साथ इस पर चर्चा न करें। इस पर चर्चा करने से मामला और तेज हो जाएगा। तो पहले इसे शब्दों में मत लाओ और कुछ दिनों के लिए भगवान से जुड़ो और उनके(जिसके भी प्रति मन में नफरत हो ) लिए एक विचार बनाओ। आशीर्वाद का विचार । जैसे कि - मेरे मन में कोई कड़वाहट नहीं है। 5 से 10 दिन में ये सब दिमाग से मिट जाएगा। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि जब मैं आत्मा यानी शरीर को छोड़ूँ तो मेरी आत्मा दुःखी रहे। मैं अपनी यात्रा में कुछ भी अप्रिय नहीं लेना चाहता।


हमे अप्रिय सोच को आगे नहीं बढ़ाना है । नहीं तो यात्रा (अंतिम समय ) में ऐसे संस्कार और मन की बातें हमारे साथ आएंगी। हम अपने वर्तमान को सुंदर बनाना चाहते हैं। यदि वर्तमान सुंदर है तो हमारा भविष्य अवश्य ही सुंदर होगा। इसलिए लोगों को क्षमा करना सीखो। क्षमा करना बहुत आसान है।ऐसा करने में तकलीफ तो जरूर होगी लेकिन यकीन कीजिए -ऐसा करने के बाद मन बहुत ही सहज ,हल्का व खुश महसूस करेगा। इसलिए जब दूसरे लोग कहेंगे कि माफ करना बहुत मुश्किल है।तो आप लोगों की बातों पर ध्यान न दें।क्योकिं यदि हम यह कहते रहें कि क्षमा करना बहुत कठिन है, तो यह कठिन होता रहेगा।


लेकिन अगर आप 4 दिन के लिए खुद से कहते हैं - क्षमा करना सबसे आसान काम है।  यह केवल एक विचार है।किसी एक विचार का निर्माण करना कठिन कैसे हो सकता है? इसमें पैसे खर्च नहीं होते हैं और प्रयास भी खर्च नहीं होते हैं। यह सिर्फ एक विचार है। लेकिन दुनिया ने इसे मुश्किल बताया। वे यह भी कहते हैं- शायद हम माफ कर दें। लेकिन हम यह कभी नहीं भूलेंगे कि उसने हमारे साथ क्या किया था। इसलिए जब हम कहते हैं कि हम कुछ भूल नहीं सकते, तो हम उसे कभी नहीं भूलेंगे।


सिर्फ 4 दिन के लिए अपने आप से कहो कि तुम बात भूल गए हो। अगर दूसरा व्यक्ति आपसे भूल न करने के लिए कहे, तो भी अपने आप से कहें - मैं भूल गया हूँ। 4 दिन के अंदर ये दिमाग से हटा दिया जाएगा. यह तो बस हमारी सोच का खेल है।

राज योग क्या है।

राज योग एक प्रकार का ध्यान है। यह हमें रास्ता देता है कि हम हर स्थिति में  शुद्ध विचार पैदा करें। क्योंकि हमारे विचार दूसरे लोगों के व्यवहार पर निर्भर नहीं होते। वे केवल हम पर निर्भर हैं। अगर हम हमेशा खुश रहना चाहते हैं, तो हमें बस एक काम करने की जरूरत है। सुनिश्चित करें कि आपके विचार, शब्द और व्यवहार ऐसा है कि वे अन्य लोगों के लिए आशीर्वाद हैं।  उस प्रक्रिया में हम आशीर्वाद भी अर्जित करते हैं।


लेकिन अगर हम अप्रिय बातें कहते हैं ,अगर हम किसी के बारे में गपशप करते हैं ,अगर हम अफवाह फैलाते हैं तो हमारे अपने कर्म हमें खुश नहीं रहने देंगे। इसलिए दिन भर में हमारा एक ही उद्देश्य होना चाहिए। मुझे सभी को खुशी देने की जरूरत है मुझे हर किसी को आशीर्वाद देने की जरूरत है जो मुझे कमाने की जरूरत है और शाम को घर आशीर्वाद लाने की जरूरत है।


किसी की बुरी नजर हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। यह हमारे अपने कर्म की वापसी है जो हमारे पास आता है।अपने भाग्य को बदलने के लिए और  समस्याओं को खत्म करने के लिए ,बाधाओं को दूर करने के लिए अपने कर्मों को ऊपर उठाएं। हमारे आस-पास के लोग अलग-अलग तरीकों से व्यवहार कर सकते हैं।


लेकिन हम किस युग में हैं? इसे कलयुग कहते हैं। सुबह अखबार पढ़ने से हमें लगता है कि यह गहन कलयुग है।इसे हम घोर कलयुग कहते हैं। जो लोग जीवन में कलयुग के संस्कारों का प्रयोग कर रहे हैं उनके लिए यह तीव्र कलयुग है। लेकिन उसी कलयुग में रहते हुए यदि हम अपने संस्कारों को ऊंचा करें तो हम अपना सतयुग बना सकते हैं। 

यह हमारी पसंद है। कलयुग और सतयुग बाहर नहीं हैं। वो हम सभी के मन में हैं। यदि मैं घृणा, द्वेष और क्रोध उत्पन्न करूँ तो मेरा जीवन कलयुग का अनुभव करेगा। लेकिन अगर मैं किसी को माफ कर दूं तो कोई मेरे साथ गलत भले ही करे, मेरी आत्मा हमेशा  सत्युगी ही रहेगी । वे कलयुग में रहेंगे और  हम यहाँ कलयुग मे रहते हुए भी सतयुग में रहेंगे।हम एक-दूसरे के सामने खड़े होंगे, लेकिन हमारी जिंदगी अलग-अलग युगों में जी जाएगी। इसलिए हमें यह चुनना होगा कि किस युग में रहना है

जो आत्माएं (मनुष्य) हमेशा कुछ न कुछ देते रहते हो , उन्हें देवी-देवता के कहा जाता है। हमेशा सिर्फ और सिर्फ देने की ही भावना होनी चाहिये। आज हम जिसकी भी पूजा करते हैं, वे सब दाता । प्रकृति में भी हम हर उस चीज की पूजा करते हैं जो हमें देती है।

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हम प्रकृति में किसकी पूजा करते हैं?

सूर्य, जल, अग्नि, गाय, तुलसी का पौधा कहने का अर्थ है हम उनकी पूजा कर रहे हैं जो हमें बिना मांगे कुछ न कुछ देते हैं।क्या सूर्य से गर्मी ,जल 


लेने वालों की पूजा नहीं की जाती, देने वालों की पूजा की जाती है। अर्थात एक दाता अपने संस्कारों और कर्मों के कारण इतना ऊँचा उठा लेता है कि दूसरा व्यक्ति उसे प्रणाम करेगा। क्योंकि वह आत्मा दाता है।सतयुग देने का युग है।कलयुग अभावों का युग है। वास्तव में कलयुग चाहने के बारे में नहीं बना है।  यह एक स्नैचिंग के बारे में है।

स्वास्तिक का अर्थ


CHALO HUM BHI DIYA BANE


अभी अपने मन में स्वास्तिक खींचो। यह अच्छाई का प्रतीक है।  कैसे खींचा जाता है? बिलकुल ऊपर बने चित्र की तरह। इसके चार चतुर्थांश हैं। यह हमारी पहचान का प्रतिनिधित्व करता है। 

इसके चार भागों की जाँच करें।


पहले चतुर्थांश में हाथ इस प्रकार दिखाया गया है। -यह स्थिति एक आशीर्वाद हाथ का प्रतिनिधित्व करती है।

दूसरे चतुर्थांश में हाथ नीचे की ओर होता है। जिसका अर्थ है कि हम अब आशीर्वाद नहीं दे रहे हैं।

तीसरे चतुर्थांश में हाथ इस प्रकार है, जो चाहत का प्रतीक है।

चौथे चतुर्थांश में हाथ को इस तरह से पकड़ा जाता है, यह दर्शाता है कि हम हिट करने के लिए तैयार हैं।


पहला चतुर्थांश सतयुग का प्रतिनिधित्व करता है।

दूसरा चतुर्थांश त्रेता युग का प्रतिनिधित्व करता है।

तीसरा चतुर्थांश द्वापर युग का प्रतिनिधित्व करता है।

चौथा चतुर्थांश कलयुग का प्रतिनिधित्व करता है।


कलयुग के बाद क्या आएगा ? कलयुग के बाद फिर से सतयुग होगा। यह एक चक्र है। यह चार युगों का चक्र है।


इसे कलयुग से सतयुग में कौन बदलेगा?


सतयुग लाएंगे।  यह बहुत आसान है। हम इसे कैसे लाएंगे। जैसा संस्कार होगा, वैसा ही संसार होगा। हमारे संस्कार हमारी दुनिया बनाते हैं।

जब हमने क्रोध और घृणा के संस्कारों का प्रयोग किया तो कलयुग का निर्माण किया।

जब हम क्षमा, प्रेम, आशीर्वाद, श्रेष्ठ कर्मों का प्रयोग करेंगे तो सतयुग का निर्माण होगा।


हमारा सतयुग कब शुरू होगा?


आज से ,अभी से ,इस पल से। 


जब हम और आप  इस  पोस्ट  को  पढ़कर  इस पर अमल करेंगे। कृपया याद रखें कि अन्य लोग कलयुग में रह रहे हैं। और हम सतयुग में रह रहे हैं। हमारा जीवन स्वर्ग हो या नर्क यह अन्य लोगों पर निर्भर नहीं करता है।  यह हमारे विचारों, शब्दों और व्यवहार पर निर्भर करता है। अपने जीवन और अपने घर को स्वर्ग बनाओ। पृथ्वी पर स्वर्ग अपने आप एक वास्तविकता बन जाएगा।

आशा करते है आपको पोस्ट पसंद आई होगी। अपने विचार अवश्य प्रकट करें। इसी के साथ अपनी वाणी को विराम देते है। भगवान् भोलेनाथ से आपके जीवन की मंगलकामना करते हुए विदा लेते है। भगवान् शिव आपका हर प्रकार से कल्याण करें। आपके मार्ग को आसान बनाये। विश्वज्ञान में अगली पोस्ट के साथ फिर मुलाक़ात होगी। 

धन्यवाद। 


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